
महा शिवरात्रि 2026
हर साल महाशिवरात्रि का महापर्व पूरे देश में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन भक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए और उनकी कृपा पाने के लिए व्रत रखते हैं, शिवलिंग पर जल, दूध और बेलपत्र चढ़ाते हैं और पूरी रात भजन-कीर्तन करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस शुभ अवसर पर भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा-अर्चना करने से परिवार में खुशहाली आती है और महादेव की कृपा से जीवन में सफलता मिलती है। वैसे तो हर महीने एक शिवरात्रि आती है, लेकिन महाशिवरात्रि साल में एक बार आती है और इसे बेहद खास माना जाता है। इस पर्व को फाल्गुन माह में मनाया जाता है।
महा शिवरात्रि का महत्व

महाशिवरात्रि भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है और इस पर्व का भोलेबाबा के भक्त पूरे साल इंतजार करते हैं. इस दिन विधि विधान के साथ शिव पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इसी वजह से देशभर के शिवालय में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि पर पहली बार भगवान शिव अपने निराकार स्वरूप यानी शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे. साथ ही इस दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह भी संपन्न हुआ था. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सच्चे मन से व्रत रखकर पूजा अर्चना करने से भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है और सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है. साथ ही परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है
महा शिवरात्रि 2026 मुहूर्त
महा शिवरात्रि रविवार, फरवरी 15, 2026 को
निशिता काल पूजा समय – 12:09 ए एम से 01:01 ए एम, फरवरी 16
16वाँ फरवरी को, शिवरात्रि पारण समय – 06:59 ए एम से 03:24 पी एम
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय – 06:11 पी एम से 09:23 पी एम
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय – 09:23 पी एम से 12:35 ए एम, फरवरी 16
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय – 12:35 ए एम से 03:47 ए एम, फरवरी 16
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय – 03:47 ए एम से 06:59 ए एम, फरवरी 16
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – फरवरी 15, 2026 को 05:04 पी एम बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त – फरवरी 16, 2026 को 05:34 पी एम बजे
महा शिवरात्रि पूजा विधि

- महाशिवरात्रि पर स्नान ध्यान करने के बाद व्रत का संकल्प लें और फिर पास के शिवालय में जाकर शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, अक्षत, सफेद चंदन, दूध, दही आदि चीजें अर्पित करें. इसके बाद पूरे दिन भगवान शिव का ध्यान करते रहें या शिव मंत्रों का जप करते रहें
- शिवालय के बाद एक चौकी की स्थापना करें और उसके ऊपर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछा दें. फिर थोड़े से चावल रख दें और भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति, प्रतीमा या तस्वीर रख दें. अगर मूर्ति या तस्वीर ना हो तो शुद्ध मिट्टी से शिवलिंग बना लें. फिर गंगाजल से पूजा स्थल पर छिड़काव करें.
- इसके बाद एक मिट्टी या कलश लें और उस पर स्वास्तिक बना दें. फिर कलश में थोड़ा गंगाजल और जल मिला लें और कलश में सुपारी, हल्दी की गांठ और एक सिक्का डाल दें. इसके बाद घी का दीपक जलाएं.
- अब शिवलिंग पर सुपारी, लौंग, इलायची, चंदन, हल्दी, दूध, दही, बेलपत्र, कमलगट्टा, धतूरा, भांग, शहद, घी आदि अर्पित करें.
- पूजा की चीजें शिवलिंग पर अर्पित करने के बाद शिव कथा का पाठ करें और कपूर से भगवान शिव की आरती करें. फिर प्रसाद का भोग लगाएं.
- रात को जागरण अवश्य करें और इस दौरान आप शिव की स्तुति या शिव चालीसा का पाठ मंगलकारी रहेगा. शिव मंत्र आदि का जप कर सकते हैं. रात्रि जागरण में शिवजी की चार आरती का विधान जरूरी है.
महा शिवरात्रि की कथा
पूर्व काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी।
शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया। जब अंधकार हो गया तो उसने विचार किया कि रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी। वह वन एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा।
बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढंका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला। पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची।
शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली- ‘मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।’
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शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया।
कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया- ‘हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।’ शिकारी ने उसे भी जाने दिया।
दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे तथा दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई।
तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली- ‘हे शिकारी! मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।’
शिकारी हंसा और बोला- ‘सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्यग्र हो रहे होंगे।’
उत्तर में हिरणी ने फिर कहा- जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। हे शिकारी! मेरा विश्वास करो, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।
हिरणी का दुखभरा स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। उसके बाद एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला- ‘ हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।’
मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा- ‘मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।’
शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस प्रकार प्रात: हो आई। उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला। शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसमें भगवद्शक्ति का वास हो गया।
थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया।
अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर भी शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई। जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक ले गए। शिवजी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जानकर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।
महा शिवरात्रि पर इन चीजों का करें दान
अगर आप मानसिक तनाव की समस्या का सामना कर रहे हैं, तो महाशिवरात्रि के दिन पूजा करने के बाद सफेद चीजों का दान करें। जैसे- चावल, दूध और दही आदि। मान्यता है कि इन चीजों का दान करने से चंद्र दोष दूर होता है और महादेव की कृपा से रुके हुए काम जल्द पूरे होते हैं।
महा शिवरात्रि के दिन क्या करें

- सुबह जल्दी उठें।
- स्नान करने के बाद साफ वस्त्र पहनें।
- मंदिर में गंगाजल का छिड़काव कर शुद्ध करें।
- विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करें।
- सात्विक चीजों का सेवन करें।
- अन्न और धन समेत आदि चीजों का दान करें।
- सच्चे मन से शिव चालीसा और मंत्रों का जप करें।
- महादेव का विशेष चीजों से अभिषेक करें।
- जीवन में खुशियों के आगमन के लिए महादेव से कामना करें।
महाशिवरात्रि के दिन क्या ना करें
