स्तोत्र (stotra)

श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र | श्री गणेश की महिमा का दिव्य वर्णन (Shri Ganesh Ashtottara Shatnam Stotra Lyrics with Meaning) – ज्ञान की बातें

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श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र भगवान गणेश को समर्पित है गणेश जी को सभी देवी-देवताओं में सबसे शक्तिशाली देव और प्रथम पूजनीय रूप में जाना जाता है। भगवान गणेश विभिन्न धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष आयोजनों के दौरान पूजा का केंद्र बिंदु होते हैं, खासकर जब नए उद्यम शुरू करते हैं या वाहन जैसी संपत्ति प्राप्त करते हैं। हिंदू धर्म में, भगवान गणेश के 108 अलग-अलग नाम मौजूद हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से भगवान गणेश की अष्टोत्तर शतनामावली के रूप में जाना जाता है। हिंदू पौराणिक मान्यता के अनुसार, नियमित रूप से गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का जाप करने से भगवान गणपति प्रसन्न होते है और उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है

श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का इतिहास और महत्व

गणेश जी को जीवन की बाधाओं को दूर करने वाले के रूप में पूजा जाता है। यह स्तोत्र, एक पवित्र भजन या मंत्र, प्रचुरता को आकर्षित करने में महान शक्ति रखता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र का दैनिक पाठ गणेश जी को अपने निवास में आमंत्रित करता है, जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य, खुशी और समृद्धि में सुधार होता है।

श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र के संस्कृत श्लोक एवं हिन्दी अर्थ

जेतुं यस्त्रिपुरं हरेणहरिणा व्याजाद्बलिं बध्नता
स्रष्टुं वारिभवोद्भवेनभुवनं शेषेण धर्तुं धराम्।
पार्वत्या महिषासुरप्रमथनेसिद्धाधिपैः सिद्धये
ध्यातः पञ्चशरेण विश्वजितयेपायात्स नागाननः॥1॥

विघ्नध्वान्तनिवारणैकतरणि-र्विघ्नाटवीहव्यवाड्
विघ्नव्यालकुलाभिमानगरुडोविघ्नेभपञ्चाननः।
विघ्नोत्तुङ्गगिरिप्रभेदन-पविर्विघ्नाम्बुधेर्वाडवो
विघ्नाघौधघनप्रचण्डपवनोविघ्नेश्वरः पातु नः॥2॥

खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनंलम्बोदरं सुन्दरं
प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धम-धुपव्यालोलगण्डस्थलम्।
दन्ताघातविदारितारिरुधिरैःसिन्दूरशोभाकरं
वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिंसिद्धिप्रदं कामदम्॥3॥

गजाननाय महसेप्रत्यूहतिमिरच्छिदे।
अपारकरुणा-पूरतरङ्गितदृशे नमः॥4॥

अगजाननपद्मार्कंगजाननमहर्निशम्।
अनेकदन्तं भक्तानामेक-दन्तमुपास्महे॥5॥

श्वेताङ्गं श्वेतवस्त्रं सितकु-सुमगणैः पूजितं श्वेतगन्धैः
क्षीराब्धौ रत्नदीपैः सुरनर-तिलकं रत्नसिंहासनस्थम्।
दोर्भिः पाशाङ्कुशाब्जा-भयवरमनसं चन्द्रमौलिं त्रिनेत्रं
ध्यायेच्छान्त्यर्थमीशं गणपति-ममलं श्रीसमेतं प्रसन्नम्॥6॥

आवाहये तं गणराजदेवंरक्तोत्पलाभासमशेषवन्द्यम्।
विघ्नान्तकं विघ्नहरं गणेशंभजामि रौद्रं सहितं च सिद्धया॥7॥

यं ब्रह्म वेदान्तविदो वदन्तिपरं प्रधानं पुरुषं तथान्ये।
विश्वोद्गतेः कारणमीश्वरं वातस्मै नमो विघ्नविनाशनाय॥8॥

विघ्नेश वीर्याणि विचित्रकाणिवन्दीजनैर्मागधकैः स्मृतानि।
श्रुत्वा समुत्तिष्ठ गजानन त्वंब्राह्मे जगन्मङ्गलकं कुरुष्व॥9॥

गणेश हेरम्ब गजाननेतिमहोदर स्वानुभवप्रकाशिन्।
वरिष्ठ सिद्धिप्रिय बुद्धिनाथवदन्त एवं त्यजत प्रभीतीः॥10॥

अनेकविघ्नान्तक वक्रतुण्डस्वसंज्ञवासिंश्च चतुर्भुजेति।
कवीश देवान्तकनाशकारिन्वदन्त एवं त्यजत प्रभीतीः॥11॥

अनन्तचिद्रूपमयं गणेशंह्यभेदभेदादिविहीनमाद्यम्।
हृदि प्रकाशस्य धरं स्वधीस्थंतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥12॥

विश्वादिभूतं हृदि योगिनां वैप्रत्यक्षरूपेण विभान्तमेकम्।
सदा निरालम्बसमाधिगम्यंतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥13॥

यदीयवीर्येण समर्थभूता मायातया संरचितं च विश्वम्।
नागात्मकं ह्यात्मतया प्रतीतंतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥14॥

सर्वान्तरे संस्थितमेकमूढंयदाज्ञया सर्वमिदं विभाति।
अनन्तरूपं हृदि बोधकं वैतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥15॥

यं योगिनो योगबलेन साध्यंकुर्वन्ति तं कः स्तवनेन नौति।
अतः प्रणामेन सुसिद्धिदोऽस्तुतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥16॥

देवेन्द्रमौलिमन्दार-मकरन्दकणारुणाः।
विघ्नान् हरन्तुहेरम्बचरणाम्बुजरेणवः॥17॥

एकदन्तं महाकायंलम्बोदरगजाननम्।
विघ्ननाशकरं देवंहेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥18॥

यदक्षरं पदं भ्रष्टंमात्राहीनं च यद्भवेत्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवप्रसीद परमेश्वर॥19॥

॥ इति श्रीगणपतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र हिंदी अनुवाद और अर्थ

त्रिपुरासुर को जीतने के लिये शिव ने, बलि को छल से बाँधते समय विष्णु ने, जगत्‌ को रचने के लिये ब्रह्मा ने, पृथ्वी धारण करने के लिये शेषनाग ने, महिषासुर को मारने के समय पार्वती ने, सिद्धि पाने के लिये सिद्धों के अधिपतियों (सनकादि ऋषियों) ने और सब संसार को जीतने के लिये कामदेव ने जिन गणेशजी का ध्यान किया है, वे हमलोगों का पालन करें ॥ १ ॥

विघ्नरूप अन्धकार का नाश करने वाले एकमात्र सूर्य, विघ्न्न रूप वन के जलाने वाले अग्नि, विघ्न रूप सर्पकुल का दर्प नष्ट करने के लिये गरुड, विघ्न्न रूप हाथी को मारने वाले सिंह, विघ्न रूप ऊँचे पहाड़ के तोड़ने वाले वज्र, विघ्न रूप महासागर के वडवानल, विघ्न रूपी मेघ-समूह को उड़ा देने वाले प्रचण्ड वायुसदृश गणेशजी हमलोगों का पालन करें ॥ २ ॥

जो नाटे और मोटे शरीरवाले हैं, जिनका गजराज के समान मुँह और लंबा उदर है, जो सुन्दर हैं तथा बहते हुए मद की सुगन्ध के लोभी भौरों के चाटने से जिनका गण्डस्थल चपल हो रहा है, दाँतों की चोट से विदीर्ण हुए शत्रुओं के खूनसे जो सिन्दूर की-सी शोभा धारण करते हैं, कामनाओं के दाता और सिद्धि देने वाले उन पार्वती के पुत्र, गणेशजी की मैं वन्दना करता हूँ ॥ ३॥

विघ्न्न रूप अन्धकार का नाश करने वाले, अथाह करुणा रूप जल राशि से तरङ्गित नेत्रों वाले, गणेश नामक ज्योति को नमस्कार है ॥ ४ ॥

जो पार्वती के मुख रूप कमल को प्रकाशित करने में सूर्यरूप हैं, जो भक्तों को अनेक प्रकार के फल देते हैं, उन एक दाँत वाले गणेशजी की मैं सदैव उपासना करता हूँ ॥ ५॥

जिनका शरीर श्वेत है, कपड़े श्वेत हैं, श्वेत फूल, चन्दन और रत्नदीपों से क्षीर समुद्र के तट पर जिनकी पूजा हुई है; देवता और मनुष्य जिनको अपना प्रधान पूज्य समझते हैं, जो रत्न के सिंहासन पर बैठे हैं, जिनके हाथों में पाश (एक प्रकारकी डोरी), अंकुश और कमल के फूल हैं, जो अभयदान और वरदान देनेवाले हैं, जिनके सिर में चन्द्रमा रहते हैं और जिनके तीन नेत्र हैं; निर्मल लक्ष्मी के साथ रहनेवाले, उन प्रसन्न प्रभु गणेशजी का अपनी शान्ति के लिये ध्यान करे ॥ ६ ॥

जो देवताओं के गण के राजा हैं, लाल कमल के समान जिनके देह की आभा है, जो सबके वन्दनीय हैं, विघ्न के काल हैं, विघ्न के हरने वाले हैं, शिवजी के पुत्र हैं; उन गणेशजी का मैं सिद्धि के साथ आवाहन और भजन करता हूँ ॥ ७ ॥

जिनको वेदान्ती लोग ब्रह्म कहते हैं और दूसरे लोग परम प्रधान पुरुष अथवा संसार की सृष्टि के कारण या ईश्वर कहते हैं; उन विघ्नविनाशक गणेशजी को नमस्कार है ॥ ८ ॥

हे विघ्नेश ! हे गजानन ! मागध और वन्दीजनों के मुखसे गाये जाते हुए अपने विचित्र पराक्रमों को सुनकर, ब्राह्ममुहूर्त में उठो और जगत्का कल्याण करो ॥ ९ ॥

‘हे गणेश ! हे हेरम्ब ! हे गजानन ! हे लम्बोदर ! हे अपने अनुभव से प्रकाशित होनेवाले ! हे श्रेष्ठ ! हे सिद्धि के प्रियतम ! हे बुद्धिनाथ !’ ऐसा कहते हुए, हे मनुष्यो ! अपना भय छोड़ दो ॥ १० ॥

‘हे अनेक विघ्नों का नाश करनेवाले ! हे वक्रतुण्ड ! गणेश आदि अपने नामवालों में भी निवास करनेवाले ! हे चतुर्भुज ! हे कवियों के नाथ ! हे दैत्यों का नाश करनेवाले !’ ऐसा कहते हुए, हे मनुष्यो ! अपने भय को भगा दो ॥ ११ ॥

जो गणेश अनन्त हैं, चेतनरूप हैं, अभेद और भेद आदिसे रहित और सृष्टि के आदि कारण हैं, अपने हृदय में जो सदा प्रकाश धारण करते हैं तथा अपनी ही बुद्धि में स्थित रहते हैं; उन एकदन्त गणेशजी की शरण में हम जाते हैं ।॥ १२ ॥

जो संसार के आदि कारण हैं, योगियों के हृदय में अद्वितीय रूप से साक्षात् प्रकाशित होते हैं और निरालम्ब समाधि के द्वारा ही जानने योग्य हैं, उन एकदन्त गणेश की शरण में हम जाते हैं ॥ १३ ॥

जिनके बल से माया समर्थ हुई है और उसके द्वारा यह संसार रचा गया है, उन नाग स्वरूप तथा आत्मारूप से प्रतीत होनेवाले एकदन्त गणेशजी की शरण में हम जाते हैं ॥ १४ ॥

जो सब लोगों के अन्तःकरण में अकेले गूढ़भाव से स्थित रहते हैं, जिनकी आज्ञा से यह जगत् विराजमान है, जो अनन्तरूप हैं और हृदय में ज्ञान देनेवाले हैं; उन एकदन्त गणेश की शरण में हम जाते हैं ॥ १५॥

जिनको योगीजन योगबल से साध्य करते (जान पाते) हैं, स्तुति से उनका वर्णन कौन कर सकता है? इसलिये हम उनको केवल प्रणाम करते हैं कि हमें सिद्धि दें; उन प्रसिद्ध एकदन्तकी शरण में हम जाते हैं ॥ १६ ॥

जो इन्द्र के मुकुट में गुँथे हुए मन्दार पुष्पों के मकरन्द कणों से लाल हो रही है, वह गणेशजी के चरण-कमलों की रज विघ्नों का हरण करे ॥ १७ ॥

एक दाँतवाले, बड़े शरीरवाले, स्थूल उदरवाले, हाथी के समान मुखवाले और विघ्नों का नाश करनेवाले गणेशदेव को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ १८ ॥

हे देव ! जो अक्षर, पद अथवा मात्रा छूट गयी हो, उसके लिये क्षमा करो और हे परमेश्वर ! प्रसन्न होओ ॥ १९ ॥

॥ इति श्रीगणपतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र के लाभ और जाप विधि

श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन की सभी विघ्न और बाधाएं दूर होती हैं। और उसे बुद्धि, ज्ञान और समृद्धि की प्राप्ति होती है। उसके मन को शांति मिलती है और भय व चिंता कम होती है। नए कार्यों में सफलता मिलती है। गणेश जी की कृपा से सुख-शांति और धन की भी वृद्धि होती है।

जाप विधि:

श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ करने से पहले स्नान करे और स्वच्छ वस्त्र पहनें। फिर गणेश जी की मूर्ति या फोटो स्थापित करे गणेश जी को फूल, दूर्वा और मोदक अर्पित करे गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ करना शुरू करे पाठ करते समय इन 108 नामों का कम से कम एक माला जाप करें। अंत में गणेश जी की आरती से समापन करें।

निष्कर्ष

ज्ञान की बातें साइट पर हम अन्य स्तोत्र जैसे शिव तांडव स्तोत्र, दुर्गा अष्टोत्तर आदि भी उपलब्ध कराते हैं। गणेश जी की कृपा आप पर सदैव बनी रहे!

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