पुत्रदा एकादशी 2026: महिमा, व्रत और कथा
एकादशी के दिन

पुत्रदा एकादशी 2026: महिमा, व्रत और कथा

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हिंदू धर्म में पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) का विशेष महत्व है। यह पवित्र व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो संतान प्राप्ति की कामना करते हैं। यह व्रत न केवल संतान सुख प्रदान करता है, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। पुत्रदा एकादशी 2026 (Putrada Ekadashi 2026) का यह आलेख आपको इस व्रत की महिमा, पूजा विधि, कथा और इसके लाभों के बारे में विस्तार से बताएगा। हमारी वेबसाइट ज्ञान की बातें (https://www.gyankibaatein.com) पर हम आपको धार्मिक और प्रेरणादायक जानकारी प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। आइए, इस आलेख में पुत्रदा एकादशी व्रत (Putrada Ekadashi Vrat) की महिमा और महत्व को समझें और इसे अपने जीवन में अपनाने की प्रेरणा लें।


पुत्रदा एकादशी का महत्व

पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) का नाम ही इसके महत्व को दर्शाता है। “पुत्रदा” शब्द का अर्थ है “पुत्र देने वाली”। यह व्रत विशेष रूप से उन दंपतियों के लिए महत्वपूर्ण है जो संतान प्राप्ति की कामना रखते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से भगवान विष्णु की कृपा से न केवल संतान सुख प्राप्त होता है, बल्कि संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि भी सुनिश्चित होती है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पुत्रदा एकादशी व्रत (Putrada Ekadashi Vrat) करने से वाजपेयी यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत जीवन के सभी दुखों और कष्टों को दूर करने में सहायक है। यह भक्तों को आध्यात्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी दिखाता है। सनातन धर्म में एकादशी तिथि को भगवान विष्णु का प्रिय दिन माना जाता है, और पुत्रदा एकादशी इसकी विशेषता को और बढ़ाती है।

प्रेरणादायक विचार: पुत्रदा एकादशी का व्रत केवल संतान प्राप्ति के लिए नहीं, बल्कि जीवन में सकारात्मकता और भक्ति को अपनाने का एक अवसर है। यह हमें सिखाता है कि श्रद्धा और विश्वास के साथ किए गए कार्य हर असंभव को संभव बना सकते हैं।


पुत्रदा एकादशी 2026: तिथि और शुभ मुहूर्त

श्रावण पुत्रदा एकादशी रविवार, अगस्त 23, 2026 को

24वाँ अगस्त को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 01:41 पी एम से 04:16 पी एम

पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय – 10:49 ए एम

एकादशी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 23, 2026 को 02:00 ए एम बजे

एकादशी तिथि समाप्त – अगस्त 24, 2026 को 04:18 ए एम बजे

श्रावण पुत्रदा एकादशी पारण

वैष्णव श्रावण पुत्रदा एकादशी सोमवार, अगस्त 24, 2026 को

25वाँ अगस्त को, वैष्णव एकादशी के लिए पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 05:55 ए एम से 06:20 ए एम

पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 06:20 ए एम

एकादशी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 23, 2026 को 02:00 ए एम बजे

एकादशी तिथि समाप्त – अगस्त 24, 2026 को 04:18 ए एम बजे

नोट: सटीक तिथि और मुहूर्त के लिए स्थानीय पंचांग की जांच करें, क्योंकि यह स्थान और समय के अनुसार थोड़ा भिन्न हो सकता है।


पुत्रदा एकादशी व्रत की विधि

पुत्रदा एकादशी व्रत (Putrada Ekadashi Vrat Vidhi) को विधि-विधान से करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। नीचे दी गई प्रक्रिया को अपनाकर आप इस व्रत को पूर्ण कर सकते हैं:

  1. प्रातःकाल की तैयारी:
    • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
    • घर के मंदिर को साफ करें और भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें।
  2. पूजा सामग्री:
    • तुलसी पत्र, ताजे फूल, चंदन, केसर, घी का दीपक, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, चीनी), मिठाई और फल।
  3. व्रत संकल्प:
    • भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लें। संकल्प में अपनी मनोकामना (संतान प्राप्ति या अन्य) स्पष्ट करें।
  4. पूजा विधि:
    • भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें।
    • विष्णु सहस्रनाम या संतान गोपाल मंत्र (Santana Gopal Mantra) का जाप करें:
      ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
      • कम से कम 108 बार जाप करें।
    • तुलसी पत्र और पंचामृत से भगवान का अभिषेक करें।
    • घी का दीपक जलाएं और विष्णु जी की आरती करें।
  5. व्रत कथा:
    • पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Putrada Ekadashi Vrat Katha) पढ़ें या सुनें। यह व्रत का एक अभिन्न हिस्सा है।
  6. रात्रि जागरण:
    • रात में भगवान विष्णु के भजन और कीर्तन करें। जागरण करने से व्रत का पुण्य कई गुना बढ़ता है।
  7. पारण:
    • अगले दिन (द्वादशी तिथि) शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करें।
    • ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।

प्रेरणादायक विचार: यह व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्म-शुद्धि और भक्ति का प्रतीक है। इसे पूरे मन से करें और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करें।


पुत्रदा एकादशी की पौराणिक कथा

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Putrada Ekadashi Vrat Katha) प्राचीनकाल में भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नामक राजा राज्य करता था। वह संतानसुख से वंचित था। उसकी भार्या का नाम शैव्या था। वह भी संतानसुख की लालसा में अत्यंत चिंतित रहा करती थी। राजा को अब धन-धान्य, स्त्री, बांधव, राज्य, वैभव इन सब में से किसी से भी सुख की अनुभूति प्राप्त नहीं हो रही थी। राजा के पितर भी रो रो कर पिंड का स्वीकार किया करते थे उन्हें भी अब यह चिंता रहती थी की अब इसके बाद हमें कौन पिंड दान करेगा।

राजा अब सदैव यही चिंता में रहता की मेरी मृत्यु के पश्चात कौन मुझे पिंड दान देगा? बगैर पुत्र के देवताओं और पितरो का ऋण कैसे चूका पाउँगा? जिस घर में पुत्र ना हो उस घर में सदैव अंधकार निवास करता है। अतः संतान प्राप्ति हेतु सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिये।

राजा अब पुत्र प्राप्ति हेतु सदैव चिंता में रहने लगे। जिनके घर में पुत्र की प्राप्ति होती है वह धन्य है। उनको इस लोक में यश और परलोक में शांति की प्राप्ति होती है अतः उनको दोनों लोक सुधर जाते है। पूर्व जन्म के कर्म के फल स्वरुप ही मनुष्य इस जन्म में धनवान और पुत्रवान बनता है।

निःसंतान राजा ने हताशा में एक समय अपना देह त्यागाने का निर्णय ले लिया किन्तु आत्महत्या सबसे बड़ा पाप होने के कारण उन्होंने अपने निर्णय को बदल दिया। एक दिन राजा अपनी इसी चिंता में वन की और शांति की खोज में निकल पड़ा और मार्ग में आनेवाले पेड़, पौधे, पशु, पक्षीओ को देखने लगा। उसने देखा वन में मृग, सिँह, सूअर, सर्प, बन्दर, भालू आदि सब भ्रमण कर रहे है। हाथी अपने शिशु और हाथनी के साथ वन में विचार रहा है।

कंही पर उसे गीदड़ जे कर्कश स्वर सुनाई पड़ रहे थे तो कंही पर उल्लू अपने तीक्ष्ण स्वर में कुछ कह रहे थे। राजा वन में विचरते विचरते यही सब दृश्य देखता हुआ सोच विचार में पड़ गया। देखते ही देखते आधा दिन बीत गया था। वह सोचने लगे मेने पुत्र प्राप्ति हेतु कई यज्ञ किए, ब्रह्मणों को स्वादिस्ट भोजन खिलाकर तृप्त किया किन्तु फिर भी उन्हें संतानसुख की प्राप्ति ना हुई, आखिर क्यों ऐसा उनके साथ हो रहा था वो समझ नहीं पर रहे थे।

वन में विहरते विहरते उन्हें प्यास लगी और अत्यंत दुःख के मारे वो जल की तलाश में यंहा वंहा फिरने लगे। थोड़ी ही दुरी पर राजा को एक सरोवर दिखाई दिया। सरोवर के पास आने पर राजा ने देखा की सरोवर में मगरमच्छ, सारस, हंस आदि विहार कर रहे थे और सरोवर की चारो और ऋषि मुनि के आश्रम विद्यमान थे। राजा जल स्तोत्र को देख वंहा जल पिने अपने अश्व से निचे उतरा उसी क्षण उसके दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा इसे कोई शुभ संकेत मान वंहा बने आश्रम की और तुरंत दौड़ पड़ा। आश्रम में स्तिथ मुनिओं सादर वंदन करते हुए वंही पर बैठ गया।

राजा को अपने समक्ष पा कर ऋषिगन अत्यंत प्रसन्न हुए और कहा –

ऋषिगन – “हे राजन, हम तुम्हारे अदार भाव से अत्यंत प्रसन्न है अतः तुम हमसे जो मांगना चाहते हो कहो..!!”

राजा – “हे मुनिश्रेष्ठ..!! आप कौन है? और यहाँ किस प्रयोजन से आये हुए है कृपा कर मुझे बताइए..!!”

ऋषिगन – “हे राजन, आज संतान सुख प्रदान करने वाली पुत्रदा एकादशी का पर्व है। हम सभी ऋषिगन विश्वदेव है और इस पवन सरोवर में स्नान करने हेतु यंहा आये है।

यह सुनकर राजा अत्यंत हर्षित हो उठे और कहा –

राजा – “हे भूदेव..!! मुझे भी कोई संतान नहीं है। यदि आप मेरे सेवाभाव से प्रसन्न है तो मुझे एक पुत्र प्राप्ति का वरदान दे।”

ऋषिगन – “हे राजन..!! आज संतान सुख प्रदान करने वाली पुत्रदा एकादशी(Pausha Putrada Ekadashi) है अतः आप अवश्य इस एकादशी का व्रत रखे। आपको निश्चित रूप से पुत्र प्राप्ति होंगी।”

मुनि के वचनो से प्रभावित हो कर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किआ और अगले दिन द्वादाशी तिथि को व्रत का पारण कर व्रत का समापन किआ। इसके पश्चात सर्व मुनिओं को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद ग्रहण करके वह पुनः अपने महल में आ गया। व्रत के प्रभाव से कुछ ही माह में महारानी ने गर्भ धारण किआ और नौ माह की अवधि समाप्त होते ही उन्हें एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। वह पुत्र बहोत तेजस्वी और शूरवीर होने के साथ ही साथ प्रजापलक भी हुआ।

श्री कृष्ण बोले – “हे धर्मराज..!! हर मनुष्य को पुत्र प्राप्ति हेतु इस पुत्रदा एकादशी(Pausha Putrada Ekadashi) का व्रत अवश्य रखना चाहिये। जो भी मनुष्य इस व्रत के महात्मय को पढ़ता या सुनता है उसे अंत समय में निश्चित रूप से स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।”

प्रेरणादायक विचार: यह कथा हमें सिखाती है कि भक्ति और विश्वास के साथ किए गए कार्य असंभव को भी संभव बना सकते हैं। भगवान विष्णु की कृपा से हर बाधा दूर हो सकती है।


पुत्रदा एकादशी के लाभ

पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi Benefits) के व्रत से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। ये लाभ न केवल आध्यात्मिक, बल्कि भौतिक और मानसिक स्तर पर भी प्रभावी हैं:

  1. संतान प्राप्ति: यह व्रत विशेष रूप से निःसंतान दंपतियों के लिए फलदायी है। यह संतान सुख और उनके कल्याण को सुनिश्चित करता है।
  2. सुख-समृद्धि: व्रत करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।
  3. पापों का नाश: शास्त्रों के अनुसार, यह व्रत पिछले जन्मों के पापों को नष्ट करता है।
  4. मोक्ष की प्राप्ति: भगवान विष्णु की कृपा से भक्त को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।
  5. स्वास्थ्य और दीर्घायु: संतान की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह व्रत लाभकारी है।

पुत्रदा एकादशी के उपाय

पुत्रदा एकादशी 2026 (Putrada Ekadashi Upay) के दिन कुछ विशेष उपाय करने से व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है। नीचे कुछ प्रभावी उपाय दिए गए हैं:

  1. संतान गोपाल मंत्र जाप:
    • ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः या संतान गोपाल स्तोत्र का 108 बार जाप करें।
    • इससे भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होकर संतान का वरदान देते हैं।
  2. दान-पुण्य:
    • मीन राशि वालों को पके केले, चने की दाल, बेसन और मूंग दाल का दान करना चाहिए।
    • गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन और वस्त्र दान करें।
  3. वंशकवच पाठ:
    • वंशकवच या संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ करें। यह संतान प्राप्ति और उनके कल्याण के लिए अत्यंत प्रभावी है।
  4. तुलसी पूजा:
    • तुलसी के पौधे की पूजा करें और तुलसी मंत्र का जाप करें:
      ॐ तुलस्यै नमः

प्रेरणादायक विचार: छोटे-छोटे उपाय और श्रद्धा के साथ किया गया व्रत आपके जीवन में चमत्कार ला सकता है।


पुत्रदा एकादशी और ज्योतिषीय महत्व

पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi Jyotish) का ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व है। यह व्रत उन लोगों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है जिनकी कुंडली में संतान प्राप्ति में बाधाएं हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि कुंडली में पंचम भाव कमजोर है या शनि, राहु, केतु जैसे ग्रह बाधा डाल रहे हैं, तो यह व्रत उन बाधाओं को दूर करने में सहायक हो सकता है।

ज्योतिषियों का मानना है कि पौष पुत्रदा एकादशी (Paush Putrada Ekadashi) पर लक्ष्मी-नारायण की पूजा करने से मंगलकारी योग बनते हैं, जो संतान सुख और समृद्धि प्रदान करते हैं।


पुत्रदा एकादशी के लिए विशेष सुझाव

  1. निर्जला या फलाहारी व्रत: यदि आप स्वस्थ हैं, तो निर्जला व्रत करें। अन्यथा, फलाहारी व्रत भी प्रभावी है।
  2. शुद्धता का ध्यान: व्रत के दौरान शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनाए रखें।
  3. रात्रि जागरण: भजन-कीर्तन और ध्यान के साथ रात्रि जागरण करें।
  4. सकारात्मकता: व्रत के दौरान सकारात्मक विचार रखें और क्रोध, झूठ और नकारात्मकता से बचें।

निष्कर्ष

पुत्रदा एकादशी 2026 (Putrada Ekadashi 2026) एक ऐसा पवित्र अवसर है जो न केवल संतान सुख की कामना को पूरा करता है, बल्कि जीवन को सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक शांति से भर देता है। यह व्रत भगवान विष्णु की भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है। ज्ञान की बातें (https://www.gyankibaatein.com) की ओर से हम आपको प्रेरित करते हैं कि आप इस व्रत को पूर्ण भक्ति और विश्वास के साथ करें। यह न केवल आपके जीवन में चमत्कार लाएगा, बल्कि आपके परिवार को भी सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देगा।

आइए, इस पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) पर भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करें और अपने जीवन को नई दिशा दें। जय श्रीहरि!

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