
परिवर्तिनी/पद्मिनी एकादशी 2025: महिमा, व्रत और कथा
पद्मिनी एकादशी हिंदू धर्म में एक विशेष और अत्यंत पुण्यदायी व्रत है, जो अधिक मास (पुरुषोत्तम मास) के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। यह पवित्र दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना के लिए समर्पित है। मान्यता है कि Padmini Ekadashi Vrat करने से भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, और उन्हें सुख, समृद्धि, संतान सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत हर तीन साल में एक बार आता है, जिसके कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
2025 में Padmini Ekadashi का विशेष महत्व होगा, क्योंकि यह भक्तों के लिए एक दुर्लभ अवसर है, जो जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। इस लेख में हम Padmini Ekadashi 2025 की महिमा, व्रत की विधि, कथा और इसके लाभों के बारे में विस्तार से जानेंगे। यदि आप अपने जीवन में शांति, समृद्धि और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए प्रेरणादायक और उपयोगी सिद्ध होगा। आइए, ज्ञान की बातें के साथ इस पवित्र यात्रा पर चलें।
पद्मिनी एकादशी का महत्व
पद्मिनी एकादशी, जिसे Kamala Ekadashi या Purushottam Ekadashi के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र मानी जाती है। यह व्रत अधिक मास में आता है, जो हर तीन साल में एक बार होता है। अधिक मास को भगवान विष्णु का प्रिय मास माना जाता है, और इस दौरान की एकादशी का महत्व दोगुना हो जाता है।
पद्म पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, Padmini Ekadashi Vrat करने से भक्तों को यज्ञ, तप और दान के समान फल प्राप्त होता है। यह व्रत न केवल भौतिक सुख-सुविधाएं प्रदान करता है, बल्कि आत्मिक शांति और मोक्ष का मार्ग भी खोलता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से धन, वैभव, यश और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
इस व्रत की एक विशेषता यह है कि इसे विधि-विधान से करने पर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। चाहे वह संतान प्राप्ति हो, आर्थिक समृद्धि हो या जीवन में शांति की खोज, Padmini Ekadashi 2025 आपके लिए एक सुनहरा अवसर हो सकता है। ज्ञान की बातें आपको इस पवित्र व्रत के महत्व को समझने और इसे अपनाने की प्रेरणा देता है।
पद्मिनी एकादशी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
इस दिन का शुभ मुहूर्त और पारण का समय निम्नलिखित है:
पार्श्व एकादशी बुधवार, सितम्बर 3, 2025 को
4वाँ सितम्बर को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 01:36 पी एम से 04:07 पी एम
पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय – 10:18 ए एम
एकादशी तिथि प्रारम्भ – सितम्बर 03, 2025 को 03:53 ए एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त – सितम्बर 04, 2025 को 04:21 ए एम बजे
पद्मिनी एकादशी व्रत की विधि
Padmini Ekadashi Vrat Vidhi को विधि-विधान से करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके बिना व्रत अधूरा माना जाता है। निम्नलिखित है व्रत की पूरी विधि:
- दशमी तिथि की तैयारी:
- दशमी तिथि को व्रत का संकल्प लें।
- इस दिन सात्विक भोजन करें और नमक का सेवन न करें।
- रात को भूमि पर शयन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- एकादशी के दिन:
- ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करें। 12 बार कुल्ला करके शुद्धता सुनिश्चित करें।
- पूजा स्थल को साफ करें और एक चौकी पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं और दीपक, धूप, फूल, तुलसी दल, चंदन, और प्रसाद चढ़ाएं।
- भगवान विष्णु को केसर मिश्रित जल से अभिषेक करें।
- Vishnu Sahasranama या Vishnu Chalisa का पाठ करें।
- Padmini Ekadashi Vrat Katha पढ़ें या सुनें।
- रात में जागरण करें और भजन-कीर्तन करें।
- द्वादशी तिथि पर पारण:
- द्वादशी के दिन स्नान और पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा दें।
- इसके बाद स्वयं व्रत का पारण करें।
इस विधि का पालन करने से Padmini Ekadashi 2025 का पूर्ण फल प्राप्त होता है। ज्ञान की बातें आपको इस पवित्र व्रत को अपनाने के लिए प्रेरित करता है।
पद्मिनी एकादशी की पौराणिक कथा
धर्मराज युधिष्ठिर के वचन सुन प्रभु श्री कृष्ण बोले –
श्रीकृष्ण – “है राजन, आपके प्रश्नों के उत्तर में मैं आपको सब पापों का नाश करने वाली पतितपावनी परिवर्तिनी एकादशी(Parivartani Ekadashi) की कथा सुनाने जा रहा हूं अतः इसे ध्यानपूर्वक सुनना।
त्रेतायुग में दैत्य राज बली का राज हुआ करता था। वह मेरा परम भक्त था। वह विविध वेद मंत्रों द्वारा मेरा पूजन किया करता था, वह नित्य ब्राह्मणों का पूजन और यज्ञ अनुष्ठान किया करता था। किंतु वह देवराज इंद्र का परम शत्रु था, इसी कारणवश उसने इंद्रलोक तथा सभी देवताओं को जीत लिया था।
स्वर्गलोक से अपना आधिपत्य खो लेने से सभी देवतागण बहोत चिंतित थे। वो सभी एक जगा एकत्रित हो कर मेरे पास अपनी याचना ले कर गए। उसे समय में शयन मुद्रा में लीन था। तब उन्होंने मेरी स्तुति का पठन कर मुझे प्रसन्न किया और मेरे जागृत होने पर अपनी संपूर्ण व्यथा सुनाई।
राजा बलि मेरा परम भक्त था और इसी कारणवश में उसे दंडित नहीं करना चाहता था। अतः मेने मेरा चोथा स्वरूप वामनरूप धरा और राजा बलि को जीत लिया।
भगवान श्री विष्णु द्वारा उनके वामन रूप धर कर राजा बलि को जीतने की बात सुन राजा युधिष्ठिर बड़े ही उत्सुक हो गए और कहा –
युधिष्ठिर – “हे केशव..!! आपने वामनरूप धर किस प्रकार राजा बलि को जीता? आप हमे इसकी संपूर्ण कथा सुनने की कृपा करे।”
श्रीकृष्ण – “अवश्य क्यों नहीं…!!! मेने अपना वामनरूप धर राजा बलि के क्षेत्र में एक ब्रह्मिण याचक के वेश में आ पहुंचा। मेरा स्वरूप इतना मोहक था की सभी लोग मुझे कुछ क्षण के लिए देखते ही रह गए। राजा बलि उस समय अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे उनके संग असुर गुरु शुक्राचार्य भी उपस्थित थे। में एक याचक के रूप में उनकी यज्ञ स्थली पर आ पहुंचा और भिक्षा की याचना करने लगा। मेरा शरीर एक किशोर युवक को भांति था। राजा बलि एक सच्चा दानवीर था अपने द्वार पर आए किसी भी याचक को खाली हाथ कभी नहीं जाने देता था। मुझे देख वह एक स्मित के साथ अपनी यज्ञ स्थली से खड़ा हो कर मेरे सम्मुख आ गया और कहा –
बली – “हे किशोर ब्रह्मिण, तुम्हारी छवि अदभुत जान पड़ती है। में महाबली राक्षस राज बली हूं और मैंने स्वर्गलोक पर भी अपना आधिपत्य स्थापित किया है तीनों लोक में मुझ जैसा बलशाली राजा तुम्हें ढूंढने पर भी प्राप्त नहीं होगा। में आज विश्व विजय अश्वमेध यज्ञ करने जा रहा हूं आज तुम बड़े ही शुभ अवसर पर आए हो आज तुम्हारे ख़ाली भंडार स्वर्ण, मानेक, मोतियों से भर जायेंगे। तुम मेरे दरबार में एक भिक्षुक की भांति आए हो बोलो क्या मांगना चाहते हो?? क्या चाहिए तुम्हे??”
किशोर – “हे महाबली राजन, आप सर्व शक्तिमान है। आप के राज्य में प्रजा सुखी और समृद्ध है। में एक साधारण ब्राह्मण हूं। कहा जाता है एक भिक्षुक को उतनी ही भिक्षा मंगानी चाहिए जितना उसमे सामर्थ्य हो। अतः मुझे आप मेरे तीन पग भूमि प्रदान करें हे दानवीर।”
ब्राह्मण कुमार की बात सुन राजा बलि जोर जोर से हंसने लगे और अपने अहंकार में चूर हो कर बोले –
बली – “बस तीन पग भूमि…!! तुम तो मेने सोचा था उससे अधिक भोले निकले हे ब्राह्मण कुमार। बस तीन पग भूमि… हा हा हा..!!”
राजा बली ने तुरंत आपने हाथ में जल ले कर उच्च स्वर में यह संकल्प कर लिया –
बली – “में स्वर्गाधिपति.. महाबली बली.. आज तीनों लोको के सभी देवताओं को साक्षी मान कर इस भिक्षुक ब्राह्मण कुमार को तीन पग भूमि देने का संकल्प करता हूं।”
तीनों लोको में उनके संकल्प की ध्वनि गूंजने लगीं। किंतु कुछ क्षण बाद एक आकाशवाणी हुई..!!
हे मूर्ख बली…!! अपने अहंकार में चूर हो कर तूने अपना आज सर्वस्व लूटा दिया है। तुम्हारे द्वार पर खड़े यह ब्राह्मण कुमार और कोई नहीं परम ब्रह्म परमात्मा श्री विष्णु है। तुमने इन्हे तीन पग भूमि दे कर बहोत बड़ी भूल की है। आकाश में हुई आकाशवाणी से सभी उपस्थित दैत्यगण चौंक गए। कुछ ही क्षण में भगवान वामन अवतार ने अपना शरीर एक विशालकाय शीला के रूप में विस्तृत कर दिया। उनका स्वरूप इतना विशाल था की उन्होंने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी और दूसरे पैर से संपूर्ण स्वर्गलोक नाप लिया था। चारो और हाहाकार मच गया था। राजा बलि भगवान श्री हरि के इस स्वरूप को देख उनके समक्ष नतमस्तक हो गए और अपने अहंकार रूपी बर्ताव के लिए उनसे क्षमा याचना की। राजा बलि के इस वर्तन से उपस्थित असुरगुरु शुक्राचार्य राजा बलि से क्रोधित हो कर कहा –
शुक्राचार्य – “हे मूर्ख बली..!! अपने परम शत्रु ऐसे छली और कपटी विष्णु से क्षमा याचना कर रहे हो। तुम मूर्ख हो.. और तुम जैसा मूर्ख शिष्य मेरे कृपा के योग्य नहीं है अतः में इसी क्षण तुम्हारा परित्याग करता हूं।”
शुक्राचार्य अपना वचन सुना कर वह से चले गए। और तब प्रभु श्री वामन अवतार विष्णु ने अपने उच्च स्वर में कहा – “हे दानवीर राजा बलि, मेने अपने दोनो पैरो से पृथ्वी और स्वर्गलोक दोनो को नाप लिया है अतः अब तुम इनके अधिपति नहीं रहे किंतु अभी भी मुझे एक पैर भूमि देना शेष रह गया है। सो है दानवीर कहो यह एक पैर में कहा रखू।”
भगवान वामन अवतार के वचन सुन राजा बलि विचलित हो गए क्यों की उनके आधिपत्य में जितनी भी भूमि थी वो तो प्रभु पहले से ही ले चुके थे कुछ क्षण सोच कर राजा बलि बोले।
राजा बलि – “हे प्रभु, आप की इस लीला से में पूर्ण रूप से अहंकार विहीन हो गया हूं। मेने अपना सबकुछ आपको समर्पित कर दिया है और अब में स्वयं को आपको समर्पित करने जा रहा हूं। अतः आप अपना तीसरा पैर मेरे शीश पर रखने की कृपा करें है प्रभु।”
राजा बलि के वचन सुन वामन अवतार श्री हरि अति प्रसन्न हुए और कहा – “तथास्तु..!!” और अपना तीसरा पैर राजा बली के शीश पर रख दिया और उसीके साथ ही राजा बलि अपने समस्त राज्य समेत पाताल लोक में चले गए। राजा बलि की समर्पण भक्ति से प्रसन्न हो कर भगवान वामन अवतार ने उन्हें कलयुग के अंत तक पाताललोक का अधिपति बनने का वर दिया। और कहा – “हे दानवीर बली, में तुम्हारी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूं और में तुम्हे यह वर देता हु की में तुम्हारे सदैव निकट रहूंगा।” विरोचन पुत्र बली ने भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी के दिन आपने आश्रम में मेरी मूर्ति की स्थापना किया थीं। और इसी प्रकार दूसरी की स्थापना क्षीरसागर में शेषनाग के पष्ट पर हुई थी।
हे राजन..!! इस एकादशी(Parivartani Ekadashi) के पर्व पर भगवान श्री हरि विष्णु शयन करते हुए करवट लेते है, अतः तीनों लोको के स्वामी भगवान विष्णु का उस दिन पूजन किया जाता है। इस दिन तांबा, चावल, चांदी और दही का दान देना अति उत्तम माना जाता है। रात्रि जागरण करने से भगवान श्री हरि की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
जो भी मनुष्य पूरी विधिविधान से इस एकादशी व्रत का अनुष्ठान करते है वह सभी पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चंद्रमा की भांति प्रकाशन मान होते है और उन्हें यश की प्राप्ति होती है। इस एकादशी(Parivartani Ekadashi) व्रत का पठन एवं श्रवण करने वाले मनुष्य को सहस्त्र अश्वमेध यज्ञ का फ़ल प्राप्त होता है।
पद्मिनी एकादशी के लाभ
Padmini Ekadashi Vrat के निम्नलिखित लाभ हैं:
- पापों से मुक्ति: यह व्रत सभी प्रकार के पापों को नष्ट करता है और आत्मिक शुद्धि प्रदान करता है।
- संतान सुख: संतानहीन दंपतियों के लिए यह व्रत विशेष रूप से फलदायी है।
- धन और समृद्धि: माता लक्ष्मी की कृपा से धन-वैभव और यश की प्राप्ति होती है।
- मोक्ष की प्राप्ति: यह व्रत भक्तों को बैकुंठ धाम की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
- स्वास्थ्य और शांति: नियमित रूप से एकादशी व्रत करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
ज्ञान की बातें आपको प्रेरित करता है कि इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करें, ताकि आप इन लाभों को प्राप्त कर सकें।
व्रत के नियम और सावधानियां
Padmini Ekadashi Vrat को सफल बनाने के लिए निम्नलिखित नियमों और सावधानियों का पालन करें:
- सात्विक जीवन: व्रत के दौरान सात्विक भोजन और विचार रखें। मांस, मदिरा, और तामसिक भोजन से बचें।
- चावल न खाएं: एकादशी के दिन चावल और चावल से बनी चीजों का सेवन वर्जित है।
- ब्रह्मचर्य: व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- क्रोध और नकारात्मकता से बचें: मन को शांत और सकारात्मक रखें।
- दान और सेवा: गरीबों और जरूरतमंदों को दान करें और ब्राह्मणों की सेवा करें।
इन नियमों का पालन करने से आपका व्रत पूर्ण और फलदायी होगा।
पद्मिनी एकादशी पर किए जाने वाले विशेष उपाय
Padmini Ekadashi 2025 के दिन निम्नलिखित उपाय करने से विशेष लाभ प्राप्त हो सकता है:
- तुलसी पूजन: भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करें। तुलसी मंत्र का जाप करें: ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
- पीले रंग का उपयोग: पूजा में पीले फूल, पीली मिठाई, और पीले वस्त्र चढ़ाएं, क्योंकि यह भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को प्रिय है।
- दान: गरीबों को पीले वस्त्र, चने की दाल, और मिठाई का दान करें।
- जागरण: रात में भगवान विष्णु के भजन और कीर्तन करें।
- व्रत कथा का पाठ: Padmini Ekadashi Vrat Katha का पाठ अवश्य करें।
ये उपाय आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने में सहायक होंगे।
निष्कर्ष
Padmini Ekadashi 2025 एक ऐसा पवित्र अवसर है, जो भक्तों को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का मार्ग दिखाता है। यह व्रत न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाने का माध्यम भी है। चाहे आप संतान सुख की कामना करें, धन-वैभव की इच्छा रखें, या मोक्ष की प्राप्ति चाहें, यह व्रत आपकी हर मनोकामना को पूर्ण करने में सक्षम है।
ज्ञान की बातें आपको प्रेरित करता है कि इस Padmini Ekadashi Vrat को पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ करें। व्रत की विधि, कथा और नियमों का पालन करके आप अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। इस पवित्र दिन पर भगवान विष्णु की आराधना करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को धन्य बनाएं।