व्रत कथाएँ

गंगा दशहरा व्रत सम्पूर्ण कथा

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पौराणिक काल में अयोध्यापति महाराज सगर ने एक बार विशाल यज्ञ का आयोजन किया (कराया )और उसकी (उसके) देखरेख की जिम्मेदारी अपने पौत्र अंशुमान को सौंप दी। यज्ञ में विघ्न डालते हुए देवराज इंद्र ने राजा सगर के यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया और उसे ले जाकर पाताल लोक में कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। घोड़े की खोज में सगर के पुत्रों ने धरती की खुदाई शुरू की और आखिरकार उन्होंने कपिल मुनि के आश्रम को ढूंढ निकाला।

इस कोलाहल से कपिल मुनि की तपस्या भंग हो गई और जब उन्होंने क्रोधित होकर आंखें खोली तो उनकी क्रोधाग्नि में राजा सगर के हजारों पुत्र जलकर भस्म हो गए।

घोड़े की खोज में जब अंशुमान, कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे, तो महात्मा गरुड़ ने उन्हें सगर के हज़ारों पुत्रों के भस्म होने की जानकारी दी। साथ ही गरुड़ जी ने यह भी बताया कि सभी भस्म हुए लोगों को मुक्ति केवल माँ गंगा के पवित्र जल से मिल पाएगी, जिसके लिए उन्हें स्वर्ग से धरती पर लाना होगा।

यह सुनकर अंशुमान वहां से घोड़ा लेकर चले गए और वापिस पहुंचकर राजा सगर को पूरा वृतांत सुनाया। यज्ञ संपन्न होने के बाद राजा सगर, अंशुमान और उनके पुत्र दिलीप ने गंगा को धरती पर लाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हो सके।

कई वर्षों के पश्चात्, दिलीप के पुत्र भागीरथ ने देवी गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तपस्या की, जिसे देखकर माँ गंगा प्रसन्न हुईं और उनसे वरदान मांगने के लिए कहा। राजा ने माँ से धरती पर आने का आग्रह किया, जिससे उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति मिल पाए। माँ गंगा धरती पर आने के लिए मान गईं। लेकिन उन्होंने भागीरथ को बताया कि अगर वह स्वर्ग से सीधा पृथ्वी पर आएंगी तो पृथ्वी उनके वेग और गति को सहन नहीं कर पाएगी।

इस समस्या के समाधान के लिए देवी गंगा ने भागीरथ को भगवान शिव की आराधना करने के लिए कहा। इसके बाद भागीरथ शिव भक्ति में पूरी तरह लीन हो गए और इससे प्रसन्न होकर स्वयं महादेव ने उन्हें दर्शन दिए। जब शिव जी ने उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा तो उन्होंने अपनी समस्या के बारे में बताया।

भागीरथ की समस्या सुनकर महादेव ने इसका समाधान निकाला और गंगा जी को अपनी जटाओं में कैद कर लिया। फिर जटा से एक लट को खोल दी जिससे देवी गंगा सात धाराओं में पृथ्वी पर प्रवाहित हुईं। इस प्रकार भागीरथ माँ गंगा को धरती पर लाने में और अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने में सफल रहे। भागीरथ के कठोर तप के कारण ही गंगा जी को धरती पर ‘भागीरथी’ नाम से भी जाना जाता है।

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