दुर्गा अष्टमी व्रत सम्पूर्ण कथा
प्राचीन काल मे कत नामक एक महान ऋषि थे। उनके पुत्र कात्य हुए, वह भी एक प्रसिद्ध ऋषि बने, उन्हीं के नाम से “कात्य” गोत्र की स्थापना हुई थी। ऋषि कात्य के पुत्र “कात्यायन” हुए। वो माता आदिशक्ति पराम्बरा के परम भक्त थे। उन्होंने माता पराम्बरा की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किआ और वर स्वरुप उनके कुल मे अवतरित होने का वर माँगा। माता ने सहज़ भाव से ऋषि “कात्यायन” की इच्छा स्वकारी और उनके कुल मे जन्म लिआ और वो माता “कात्यायनी” कहलाई।
आगे जाके पृथ्वी पर राक्षस राज महिसासुर का आतंक बहोत बढ़ गया था। ब्रह्मा जी के वरदान से उसे कोई भी पुरुष शक्ति परास्त नहीं कर सकती थी, इसी कारण वश त्रिदेवो ने अपनी ऊर्जा से माता शक्ति को उत्पन्न किआ तभी महर्षि कात्यायन ने उनकी पूजा और आराधना की थी। महर्षि कात्यायन की पूजा अर्चना करने से माता को “कात्यायनी” नाम से जाने जानी लगी। माता कात्यायनी अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेने के बाद शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिनों तक कात्यायन ऋषि ने इनकी पूजा की, पूजा ग्रहण कर दशमी को माता कात्यायनी ने राक्षश महिषासुर का वध किया।