जगन्नाथ रथ यात्रा 2026
त्यौहार (Festival)

जगन्नाथ रथ यात्रा 2026

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रथ यात्रा दक्षिण भारत के शहर पुरी में होने वाली भगवान जगन्नाथ जी की प्रसिद्ध यात्रा है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ के बड़े भाई बलभद्र, और उनकी बहन सुभद्रा की अलग-अलग तीन रथो में निकाली जाती है। इन रथो को रस्सियों द्वारा खीच कर पुरी से गुड़ीचा तक ले जाया जाता है।  

  • रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ (कृष्ण जी) को समर्पित है। यह त्योहार रथ त्योहार के रूप में मनाया जाता है।
  • यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए भारी भीड़ अत्यंत हर्षोउल्लास के साथ इस रथ यात्रा का आनंद लेते है।
  • यह यात्रा पुरी से शुरू होकर 3 किलोमीटर दूर गुडीचा मंदिर तक लाया जाता है।  
  • इस यात्रा के बाद भगवान जगनाथ को गुडीचा मंदिर में सात दिन के लिए विराजमान किया जाता है।
  • इन सात दिनों को एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है, व दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते है।  
  • भगवान जगनाथ की रथ लाल और पीले रंग की होती है, और इस रथ में 16 पहिये होते है।
  • भगवान बलभद्र की रथ लाल और हरा रंग की होता है, और रथ में 14 पहिये लगे होते है।
  • देवी सुभद्रा की रथ काला या नीला और रंग की होती है, रथ में 12 पहिये होते है।
  • हर साल यह आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन से आरंभ हो जाता है।
  • एकादशी को पुनः भगवान जगन्नाथ पूरी मंदिर में विराजामन होते है।
  • इस त्योहार को धूम-धाम से 9 दिन मनाया जाता है ।

जगन्नाथ रथ यात्रा 2026 मुहूर्त

रथ यात्रा बृहस्पतिवार, जुलाई 16, 2026 को

द्वितीया तिथि प्रारम्भ – जुलाई 15, 2026 को 11:50 ए एम बजे

द्वितीया तिथि समाप्त – जुलाई 16, 2026 को 08:52 ए एम बजे

रथ यात्रा क्यों निकाला जाता है?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी सुभद्रा ने भगवान जगन्नाथ से नगर भ्रमण की इच्छा व्यक्त की। तब भगवान ने बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ मौसी के घर जाने का फैसला किया। गुंडिचा देवी को भगवान की मौसी माना जाता है और वो बहन-भाई के साथ मिलकर सात दिन के लिए गुंडिचा देवी के घर जाते हैं। इसीलिए गुंडिचा टेंपल को भगवान की मौसी का घर कहा जाता है। जहां प्रेम स्वरुप उन्हें पोडा पीठा यानी खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। भगवान जगन्नाथ भाई बलभद्र और बहन शुभद्रा के साथ मौसी गुंडिचा के घर पूरे सात दिन के लिए रुकते हैं और रोज आमजनों को दर्शन देते हैं। इस मंदिर में भी उनकी पूजा, भोग से सेवा की जाती है। हालांकि नगर भ्रमण की ये यात्रा पूरे नौ दिन की होती है। जिसमे से सात दिन वो अपनी मौसी के यहां रुकते हैं। भगवान जगन्नाथ के बहन सुभद्रा और बलभद्र के साथ लौटने की यात्रा बहुदा यात्रा बोली जाती है। जिसके बाद ये तीनों अपने श्रीमंदिर में विराजमान हो जाते हैं।

एक और मान्यता है –

भगवान श्री कृष्ण का मन प्रत्येक वर्ष मथुरा जाने का करता था, मथुरा श्री कृष्ण की जन्मस्थली है। भगवान की इच्छा पूर्ण करने के लिए हर वर्ष भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा ओडिशा के पूरी शहर से निकाली जाती है, और गुडीचा तक ले जाया जाता है।

यात्रा के पहले क्यों बीमार पड़ जाते हैं भगवान जगन्नाथ

भगवान जगन्नाथ यात्रा शुरू होने के पहले बीमार हो जाते हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा के स्नान के बाद 15 दिन के एकांतवास पर जाते हैं और इस दौरान भक्तों को दर्शन नहीं देते। इन 15 दिनों में भगवान को काढ़ा पिलाकर और औषधियों का लेप लगाकर उनकी बीमारी को ठीक किया जाता है। पौराणिक कहानियों के अनुसार भगवान ने भक्त माधव दास की लंबी बीमारी को अपने ऊपर ले लिया। दरअसल, भक्त माधवदास बेहद बीमार थे, बीमारी की हालत में उन्होंने भगवान जगन्नाथ से कहा आप तो जगतस्वामी हो, क्या आप मेरी बीमारी ठीक नहीं कर सकते? ऐसे में भगवान ने कहा कि ये पिछले जन्म के कर्म है जिन्हें तुम्हें भोगना है। अभी तुम्हारी बीमारी को 15 दिन और बचे हैं। ये सुनकर माधवदास रोने लगे और कहा मुझे बहुत पीड़ा हो रही है। भक्त की पीड़ा को दूर करने के लिए भगवान ने 15 दिन की बची हुई बीमारी को अपने ऊपर ले लिया। तब माधवदास तो ठीक हो गए लेकिन भगवान जगन्नाथ 15 दिन के लिए बीमार हो गए और तब से ही ये परंपरा चली आ रही है कि ज्येष्ठ पूर्णिमा के स्नान के बाद भगवान 15 दिन के लिए बीमार होते हैं और एकांतवास में चले जाते हैं। वहीं ठीक हो जाने के बाद यानी 15 दिन बाद रथ पर बैठकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं।

रथ यात्रा से संबंधित तथ्य

आड़प दर्शन

गुडीचा में जब रथ 3 किलोमीटर की दूरी तय कर शाम तक पहुच जाती है, और अगले दिन 7 दिन इसी मंदिर में भगवान जगन्नाथ विराजमान रहते है। गुडीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ का सभी भक्त दर्शन करने आते है, जिसे आड़प दर्शन कहते है। भगवान जगन्नाथ जी का प्रसाद महाप्रसाद कहा जाता है।

गुडीचा मार्जन

जब भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पूरी से निकलने वाली होती है उसके एक दिन पहले गुडीचा मंदिर को सभी भक्त मिलकर भगवान्न जगन्नाथ की आने की खुशी में साफ सफाई करते है इसे ही गुडीचा मार्जन कहते है। 

बहुडा यात्रा

नौवे दिन पुनः सभी रथ पूरी मंदिर में वापस आती है, जिसे बहुडा यात्रा कहते है। परंतु मूर्तिया  सारी एकादशी से पूर्व रथ में ही रहती है। एकादशी के दिन पुनः भगवान को स्नान आदि करा कर मंत्रों द्वारा मंदिर में प्रतिष्ठित किया जाता है।   

जगन्नाथ पुरी मंदिर का निर्माण

पुरी के जगन्नाथ मंदिर का निर्माण राजा जजाती केसरी ने 1949 में प्रारंभ किया गया, जो 1959 तक बन कर तैयार हुआ। 12वी शताब्दी में गंग वश के राजा अन्नतवर्मन चोडगंग द्वारा पुनर्निर्माण कराया गया था। जगन्नाथ मंदिर कलिंग वास्तुकला का एक खूबसूरत उदाहरण है। इस मंदिर को व्हाइट पैगोडा नाम से भी जाना जाता है।

जगन्नाथ पूरी कैसे जाए?

हवाई जहाज

  • आप पुरी हवाई यात्रा द्वारा भी जा सकते है।
  • पूरी के सबसे निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर का बीजू पटनायक हवाई अड्डा है।
  • पटनायक हवाई अड्डा से जगन्नाथ मंदिर की दूरी 65 किलोमीटर हैं,
  • यहाँ पहुच कर आप कोइ भी सवारी बस या टैक्सी कर सकते है पुरी पहुचने के लिए।
  • मंदिर तक का टैक्सी और बस का किराया 150 से 300 तक होता हैं।
  • इस यात्रा मे लगभग 1 घंटे का समय लगता हैं।   

ट्रेन द्वारा

  • पुरी जाने के लिए ट्रेन की सुविधा भी है।
  • देश के लगभग सभी शहरों से ट्रेन सुविधा उपलब्ध है, जो पुरी तक जाती है।
  • पुरी के निकटतम रेलवे स्टेशन जगन्नाथ पुरी है। यह मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • पुरी रेलवे स्टेशन से मंदिर तक के लिए ऑटोरिक्शा सुलभ हैं, जिनका किराया लगभग 50 रुपए है।

सड़क मार्ग द्वारा

ओडिशा का पुरी अच्छी तरह सड़क मार्ग से जुड़ा है। आप पड़ोसी राज्यों से बस से, टैक्सी से, खुद की गाडी से जा सकते है।

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