धारी देवी मंदिर , उत्तराखंड
धार्मिक स्थल

धारी देवी मंदिर , उत्तराखंड

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देवभूमि उत्तराखंड के चार धाम की तरह मां धारी देवी के पावन धाम की बड़ी महत्ता है. शक्ति का यह पावन धाम उत्तराखंड स्थित श्रीनगर से तकरीबन 14 ​किलोमीटर की दूरी अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है. दस महाविद्या में से एक मां काली को समर्पित यह मंदिर काफी रहस्मयी माना जाता है. शक्ति के इस पावन स्थल के बारे में स्थानीय लोगों का मानना है कि धारी देवी उत्तराखंड के चारों धाम यानि गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की रक्षा करती हैं. मान्यता है कि मां धारी देवी के आशीर्वाद से यह पूरा क्षेत्र बाढ़, भूकंप, भूस्खलन जैसी तमाम प्राकृतिक आपदाओं से बचा रहता है. यही कारण है कि चार धाम पर यात्रा करने वाला हर भक्त माता के दरबार में बगैर हाजिरी लगाए आगे नहीं बढ़ता है

धारी देवी मंदिर का इतिहास

माना जाता है कि धारी देवी मंदिर द्वापर युग से धारो गांव के पास स्थित है। इस मंदिर को चारधामों का रक्षक भी माना जाता है। यहां माता रानी के धड़ की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार भयंकर बाढ़ आने के चलते मूर्ति  देवी की मूर्ति भी उस में बह गई और धारो गांव के पास एक चट्टान पर जाकर रुक गई। इसके बाद एक ईश्वरीय वाणी हुई, जिसने देवी की मूर्ति को धारो गांव के पास स्थापित करने को कहा। धारो गांव के लोगों ने ही इसके बाद माता की प्रतिमा को यहां स्थापित किया और तब से उनकी पूजा यहां शुरू हो गई।

धारी देवी मंदिर के खुलने और बंद होने का समय

सुबह : 6:00 बजे – 12:00 बजे 

दोपहर: 2:00 बजे – 7:00 बजे

धारी देवी मंदिर पूजा का समय

सुबह की आरती:  6:00 बजे – 6:30 बजे

शाम की आरती: सूर्यास्त के तुरंत बाद

धारी देवी मंदिर की वास्तुकला

धारी देवी मंदिर अपनी आकर्षक बनावट के लिए भी जाना जाता है, जिसमें उत्तर भारतीय और गढ़वाल स्थापत्य शैली का मिश्रण है। स्थानीय रूप से उपलब्ध पत्थरों और चट्टानों से निर्मित, इसकी जटिल कलाकृतियाँ कारीगरों की शिल्पकला को उजागर करती हैं। गर्भगृह कई सुंदर रूप से गढ़े गए शिखरों (पर्वत शिखरों) से सुशोभित है, जिनमें से प्रत्येक पर हिंदू पौराणिक कथाओं और दिव्य प्राणियों के पात्रों को दर्शाया गया है। मुख्य द्वार नक्काशीदार मूर्तियों और जटिल रूपांकनों से सुसज्जित है। गर्भगृह में, धारी देवी की शिला मूर्ति फूलों, अगरबत्तियों और तेल के दीयों से घिरी हुई है। मंदिर की दीवारें प्राचीन धर्मग्रंथों और लोककथाओं की कहानियों को दर्शाती चित्रकारी और नक्काशी से सजी हैं।

धारी देवी मंदिर की कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भीषण बाढ़ से मंदिर बह गया था। साथ ही साथ उसमें मौजूद माता की मूर्ति भी बह गई और वह धारो गांव के पास एक चट्टान से टकराकर रुक गई। कहते हैं कि उस मूर्ति से एक ईश्वरीय आवाज निकली, जिसने गांव वालों को उस जगह पर मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया। इसके बाद गांव वालों ने मिलकर वहां माता का मंदिर बना दिया। पुजारियों की मानें तो मंदिर में मां धारी की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है। कहते हैं कि मां धारी के मंदिर को साल 2013 में तोड़ दिया गया था और उनकी मूर्ति को उनके मूल स्थान से हटा दिया गया था, इसी वजह से उस साल उत्तराखंड में भयानक बाढ़ आई थी, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे। माना जाता है कि धारा देवी की प्रतिमा को 16 जून 2013 की शाम को हटाया गया था और उसके कुछ ही घंटों बाद राज्य में आपदा आई थी। बाद में उसी जगह पर फिर से मंदिर का निर्माण कराया गया।

धारी देवी और कालीमठ का संबंध

धारी देवी मंदिर में देवी काली के सिर की पूजा की जाती है वहीं कालीमठ में माता के धड़ की पूजा की जाती है। यह दोनों ही मंदिर देवी काली को समर्पित हैं लेकिन कालीमठ में तंत्र विद्या का एक प्रमुख केंद्र माना जाता है। वहीं देवी धारी को चारधामों की संरक्षक देवी माना जाता है। 

धारी देवी मंदिर की विशेषताएं

मूर्ति का रूपांतरण: यह माना जाता है कि धारी देवी की मूर्ति दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती है—सुबह में बालिका, दोपहर में युवती और शाम को वृद्धा का रूप धारण करती है। यह परिवर्तन देवी के जीवन चक्र का प्रतीक माना जाता है।

खुले आकाश के नीचे मूर्ति: एक मान्यता के अनुसार, देवी की मूर्ति को कभी भी छत के नीचे नहीं रखा जाना चाहिए। जब भी इसे छाया में रखने का प्रयास किया गया, प्राकृतिक आपदाएं आईं, जिससे यह विश्वास और भी मजबूत हुआ।

108 शक्तिपीठों में स्थान: श्रीमद देवी भागवत के अनुसार, धारी देवी मंदिर भारत के 108 शक्तिपीठों में से एक है, जो इसे और भी अधिक धार्मिक महत्व प्रदान करता है।

धारी देवी मंदिर कैसे पहुँचें

हवाई मार्ग : जॉली ग्रांट हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है, जो मंदिर से 136 किमी दूर स्थित है। हवाई अड्डे से मंदिर तक नियमित रूप से कई बसें और टैक्सियाँ चलती हैं।

रेल मार्ग : ऋषिकेश और हरिद्वार दो निकटतम रेलवे स्टेशन हैं, जो कल्यासौर से लगभग 124 किमी और 142 किमी दूर स्थित हैं। इन स्टेशनों पर पहुँचने के बाद, आप अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए बस या टैक्सी ले सकते हैं।

सड़क मार्ग : राज्य का सुसंबद्ध सड़क नेटवर्क देवी काली का आशीर्वाद पाने के लिए आरामदायक यात्रा प्रदान करता है। यह क्षेत्र उत्तराखंड के विभिन्न लोकप्रिय और प्रमुख पर्यटन स्थलों, जैसे ऋषिकेश, रुद्रप्रयाग और देहरादून से सुगमता से जुड़ा हुआ है।

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