स्तोत्र (stotra)

श्री गंगा सहस्त्रनाम स्तोत्र – माँ गंगा की महिमा का दिव्य वर्णन (Shri Ganga Sahasranama Stotra Lyrics with Meaning) – ज्ञान की बातें

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श्री गंगा सहस्रनाम स्तोत्र माँ गंगा को समर्पित है ये उनके हजार नामों का एक शक्तिशाली स्तोत्र है, जो स्कंद पुराण और अन्य ग्रंथों में वर्णित है। यह स्तोत्र माँ गंगा माता की महिमा का गुणगान करता है और भक्तों को आध्यात्मिक शुद्धि प्रदान करता है। हिंदू धर्म में मां गंगा को मोक्षदायिनी और पापहारिणी देवी भी कहा जाता है जो भी व्यक्ति गंगा नदी के जल में स्नान करता है उसके सभी पाप धूल जाते हैं। और उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंगा स्नान के साथ माँ गंगा जी की आरती से भी उतना ही लाभ मिलता है। अगर साधक गंगा स्त्रोत का पाठ करता है तो उसे माँ गंगा की विशेष कृपा प्राप्त होती है

श्री गंगा सहस्रनाम स्तोत्र का इतिहास और महत्व

श्री गंगा स्तोत्रम की रचना श्री आदि शंकराचार्य ने की थी। हिंदुओं के लिए गंगा केवल एक नदी नहीं है, वह देवी है, पुराणों के अनुसार, गंगा के दर्शन, नाम और स्पर्श सभी पापों को दूर कर देता है । यह अक्सर गंगा की पवित्रता और आध्यात्मिक महत्व का वर्णन करता है, माँ गंगा पापों को शुद्ध और मनुष्य को मोक्ष प्रदान करती है पौराणिक कथाओं के अनुसार मां गंगा भगवान शिव की जटाओं से धरती पर अवतरित हुईं और राजा भगीरथ की तपस्या से पृथ्वी पर आईं। माँ गंगा का नाम उनके विभिन्न रूपों, गुणों और शक्तियों को दर्शाते हैं। ये स्तोत्र माँ गंगा माता की कृपा प्राप्त करने का सरल माध्यम है। ईसके नियमित पाठ से भक्तों को पापों से मुक्ति, रोग नाश और मन की शांति मिलती है।

श्री गंगा सहस्रनाम स्तोत्र के संस्कृत श्लोक एवं हिन्दी अर्थ

देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ॥१॥

शङ्करमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ।

भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः ॥ २॥

नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ।

हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे ॥ ३॥

दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम् ।

तव जलममलं येन निपीतं, परमपदं खलु तेन गृहीतम् ॥ ४॥

मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः।

पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे ॥ ५॥

भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये, पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ।

कल्पलतामिव फलदां लोके, प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ॥ ६॥

पारावारविहारिणि गङ्गे विमुखयुवतिकृततरलापाङ्गे ।

तव चेन्मातः स्रोतःस्नातः पुनरपि जठरे सोऽपि न जातः ॥ ७॥

नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे ।

पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे ॥ ८॥

इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ।

रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम्॥ ९॥

त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे।

अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये ॥ १०॥

तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः।

वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः ॥ ११॥

अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः।

भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ॥ १२॥

गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम्।

येषां हृदये गङ्गाभक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः ॥ १३॥

मधुराकान्तापज्झटिकाभिः परमानन्दकलितललिताभिः।

गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं वाञ्छितफलदं विमलं सारम् ॥ १४॥

शङ्करसेवकशङ्कररचितं पठति सुखी स्तव इति च समाप्तः।

श्री गंगा सहस्रनाम स्तोत्र हिंदी अनुवाद और अर्थ

हे देवि गंगे ! तुम देवगण की ईश्वरी हो, हे भगवति तुम त्रिभुवन को तारने वाली, विमल और तरल तरंगमयी तथा शंकर के मस्तक पर विहार करने वाली हो। हे माता तुम्हारे चरण कमलों में सदा मेरी मति लगी रहे।

हे भागीरथि ! तुम समस्त प्राणियों को सुख प्रदान करती हो, हे माता ! वेद और शास्त्र में तुम्हारे जल का माहात्म्य वर्णित भी है, मैं तुम्हारी महिमा को नहीं जानता, हे दयामयि ! मुझ अज्ञानी की रक्षा करो।

हे गंगे ! तुम श्री हरि के चरणों की चरणोदकमयी नदी हो, हे देवि ! तुम्हारी तरंगें हिम, चन्द्रमा और मोती के समान सफ़ेद हैं, तुम मेरे पापों का भार दूर कर दो और कृपा करके मुझे भवसागर के पार कर दो।

हे देवि ! जिसने तुम्हारा जल ग्रहण कर लिया, उसने निश्चित ही परमपद पा लिया, हे माता गंगे ! जो तुम्हारी भक्ति करता है, उसको यमराज भी नहीं देख सकते अर्थात तुम्हारे भक्तगण यमपुरी में न जाकर बैकुण्ठ में जाते हैं।

हे पतितजनों का उद्धार करने वाली जह्नुकुमारी गंगे ! तुम्हारी तरंगें गिरिराज हिमालय को भी खण्डित कर देती है और बहती हुई सुशोभित होती हैं, तुम भीष्म की जननी और जह्नु मुनि की कन्या हो, पतित पावनी होने से तुम त्रिभुवन में धन्य हो।

हे माता ! तुम इस लोक में कल्पलता की भाँति फल प्रदान करने वाली हो, तुम्हें जो प्रणाम करता है, वह कभी शोक में नहीं पड़ता, हे गंगे ! मानिनि वनिता के जैसे चंचल कटाक्ष वाली तुम समुद्र के साथ विहार करती हो।

हे गंगे ! जिसने तुम्हारे जल में स्नान कर लिया, वह फिर से मातृगर्भ में प्रवेश नहीं करता, हे जाह्नवि ! तुम भक्तों को नरक जाने से बचाती हो और उनके पापों को हर लेती हो, तुम्हारा माहात्म्य अतीव उच्च है।

हे करुणा कटाक्ष वाली जह्नु पुत्री गंगे ! मेरे अपावन अंगों पर अपनी पावन तरंगों से उल्लसित होने वाली, तुम्हारी जय हो ! जय हो ! तुम्हारे चरण इन्द्र के मुकुटमणि से प्रदीप्त हैं, तुम सबको सुख और शुभ देने वाली हो और अपने सेवक को आश्रय प्रदान करती हो।

हे भगवति ! तुम मेरे रोग, शोक, पाप, ताप और कुमति का हरण कर ले, तुम त्रिभुवन की सार और वसुधा का हार हो, हे देवि ! इस संसार में तुम्हीं मेरी एकमात्र गति हो।

हे दुखियों की वंदना देवि गंगे ! तुम अलकापुरी को आनन्द प्रदान करने वाली और परमानन्दमयी हो, तुम मुझ पर कृपा करो, हे माता ! जो तुम्हारे तट के समीप वास करता है, मानो वह बैकुण्ठ में ही वास करता है।

हे देवि ! तुम्हारे जल में कच्छप या फिर मछली बनकर रहना अच्छा है, तुम्हारे तीर पर दुबला-पतला गिरगिट बनकर रहना अच्छा है या अति मलिन दीन चाण्डाल कुल में जन्म ग्रहण कर रहना अच्छा है, परंतु तुमसे दूर कुलीन नरपति होकर रहना अच्छा नहीं।

हे देवि ! तुम त्रिभुवन की ईश्वरी हो, तुम धन्य और पावन हो, जलमयी व् मुनिवर की कन्या हो। जो प्रतिदिन इस गंगा स्तोत्र का पाठ करता है, वह संसार में निश्चय ही जयलाभ कर सकता है।

जिनके हृदय में गंगा के प्रति अचला भक्ति है, वे सदा ही आनन्द और मुक्तिलाभ करते हैं। यह स्तुति परमानन्दमयी और सुललित पदावली से युक्त, मधुर और कमनीय है।

इस असार संसार में उक्त गंगा स्तोत्र ही निर्मल सारवान पदार्थ है, यह भक्तों को अभिलषित फल प्रदान करता है। शंकर के सेवक शंकराचार्य कृत इस स्तोत्र को जो पढ़ता है, वह सुखी होता है। इस प्रकार यह स्तोत्र समाप्त हुआ।

श्री गंगा सहस्रनाम स्तोत्र के लाभ और जाप विधि

गंगा सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त हो जाता है। जो व्यक्ति इस स्त्रोत का पाठ नियमित रूप से करता है। उसके सभी पाप नष्ट होते है साथ ही उसकी आत्मा को शांति भी प्राप्त होती है। गंगा स्त्रोत का पाठ रोज करने से व्यक्ति के तन और मन दोनों ही शुद्ध होती है और साधक का शरीर रोग मुक्त हो जाता है। ईस स्त्रोत का पाठ करने से मन में सकारात्मक विचार बने रहते है

जाप विधि:

श्री गंगा सहस्रनाम स्तोत्र पाठ करने से पहले स्नान करे फिर पूजा स्थल पर गंगा जल छिड़क कर माँ गंगा की मूर्ति या चित्र स्थापित करे मां गंगा पर धूप , दीप , और फूल अर्पित करे और पूर्ण श्रद्धा से गंगा स्तोत्र का जाप करें। अंत में मां गंगा की आरती के साथ समाप्त करे गंगा दशहरा या सोमवार को ईस स्तोत्र का पाठ करने से विशेष फल प्राप्त होता है और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं भो पूर्ण होती हैं

निष्कर्ष

मां गंगा सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं यह स्तोत्र सच्ची भक्ति के लिए उपयोगी है। ज्ञान की बातें वेबसाइट पर अन्य स्तोत्र जैसे शिव तांडव स्तोत्र और माँ यमुना स्तोत्र भी उपलब्ध हैं। जय गंगे माता!

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