
कालकाजी मंदिर , दक्षिणी दिल्ली
कालकाजी का मंदिर दिल्ली के साथ साथ पूरे देश में काफी प्रसिद्ध है। दक्षिण दिल्ली में स्थित यह मंदिर अरावली पर्वत श्रृंखला के सूर्यकूट पर्वत पर है, जहां मां कालका माता के नाम से विराजमान हैं। कालकाजी माता का मंदिर सिद्धपीठों में से एक माना जाता है और नवरात्र के दौरान यहां एक से डेढ़ लाख श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। मान्यता है कि इस पीठ का स्वरूप हर काल में बदलता रहता है और मां दुर्गा ने यहीं पर महाकाली के रूप में प्रकट हो कर असुरों का संहा किया था। मान्यताओं के अनुसार मंदिर 3000 साल से अधिक पुराना है। मंदिर में बड़ी संख्या में लोग अपने बच्चों के मुंडन के लिए भी आते हैं।
कालकाजी मंदिर का इतिहास

इस प्राचीन मंदिर का इतिहास 3000 साल से भी अधिक पुराना बताया जाता है। यानि इस मंदिर का इतिहास महाभारत के समय से जुड़ा हुआ है। बताया जाता है, महाभारत युद्द के दौरान कौरव और पांडवों ने इसी मंदिर में जाकर देवी काली के दर्शन किए थे। ऐसे में यह मंदिर भारतीय संस्कृति और इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस मंदिर का कई बार निर्माण और तोड़-फोड़ हो चुकी है। ऐसा कहा जा है कि सबसे पहले इसका हिस्सा 1764 ईस्वी के पास बनाया गया था। वर्तमान में जो मंदिर की संरचना है उसका निर्माण 18वीं और 19वीं शताब्दी का बताया जाता है।
कालकाजी मंदिर के खुलने और बंद होने का समय
सुबह: सुबह 4:00 बजे
दोपहर में मंदिर भोग के लिए बाद रहता है : सुबह 11:30 बजे से 12:00 बजे तक
शाम में मंदिर सफाई के लिए बाद रहता है : शाम 3:00 बजे से 4:00 बजे तक
रात: रात 11:30 बजे
कालकाजी मंदिर पूजा का समय

गर्मियों में
सुबह की आरती: 5:00 बजे – 6:30 बजे
शाम की आरती: 7:00 बजे – 8:30 बजे
सर्दियों में
सुबह की आरती: 6:00 बजे – 7:30 बजे
शाम की आरती: 6:30 बजे – 8:00 बजे
कालकाजी मंदिर की वास्तुकला

कालकाजी मंदिर कालकाजी क्षेत्र में एक छोटी पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। इसका सबसे पुराना हिस्सा मराठों के काल में बना था। लेकिन आधुनिक मंदिर का पुनर्निर्माण दिल्ली के व्यापारियों ने करवाया था। मंदिर परिसर एक साधारण संरचना है जिसमें लगभग कोई दिखावटीपन नहीं है।
मंदिर पिरामिडनुमा मीनार से घिरा हुआ है। मुख्य मंदिर 12 भुजाओं वाला है और दोनों ओर एक-एक द्वार है। यह संगमरमर से बना है और 8’9″ चौड़े बरामदे से घिरा है जिसमें 36 मेहराबदार द्वार या बाहरी द्वार हैं। मेहराब के बीच में ज़मीन पर बैठी बाघों की दो मूर्तियाँ हैं।
कालकाजी मंदिर की कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवता परेशान होकर ब्रह्मा जी के पास गए, तो ब्रह्मा जी ने उन्हें देवी पार्वती से प्रार्थना करने को कहा. देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न होकर, देवी पार्वती ने अपना एक अवतार लिया और प्रकट हुईं. उन्होंने कौशिकी देवी के साथ मिलकर राक्षसों का संहार किया, लेकिन उनके रक्त से कई नए असुर उत्पन्न हो गए. इन नए असुरों से युद्ध करने के लिए, देवी पार्वती ने अपना एक और अवतार, देवी काली, के रूप में लिया. देवी काली ने कौशिकी देवी द्वारा मारे गए असुरों के रक्त को सोख लिया और दोनों देवियों ने मिलकर धरती से असुरों का पूर्ण रूप से विनाश कर दिया.
यहीं पर देवी काली ने अपने दैवीय रूप में निवास करने का निर्णय लिया, और इस स्थान को देवी काली का सिद्धपीठ या जयंती पीठ कहा जाने लगा, जहाँ भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं.
कालकाजी मंदिर कैसे पहुंचे
इस मंदिर में पहुंचने का सबसे अच्छा साधन मेट्रो है। यह मंदिर दिल्ली मेट्रो की वायलेट लाइन पर पड़ता है। मेट्रो स्टेशन का नाम भी कालकाजी है। यहीं आप उतरकर आसानी से मंदिर वाक करते हुए जा सकते हैं। इसके अलावा आप सड़क मार्ग से अपनी पर्सनल कार, बस, टैक्सी, बाइक और स्कूटी से भी पहुंच सकते हैं। मंदिर तक आप ई-रिक्शा के जरिए भी जा सकती हैं। मंदिर से दर्शन करने के बाद आप नेहरू प्लेस, ओखला बर्ड सेंचुरी, लॉट्स टेंपल और इंडिया गेट जैसी आसपास जगहों को घूम सकती हैं।
कालकाजी मंदिर से जुड़े रोचक किस्से

- मान्यता है कि नवरात्रि के दिनों में जो यहां मेला लगता है। इस दौरान होने वाली अष्टमी और नवमी के दौरान माता यहां घूमती हैं।
- कहा जाता है अष्टमी वाले दिन सुबह की आरती के बाद मंदिर के कपाट खोल दिए जाते है।
- और उस दिन शाम को और अगले पूरे दिन आरती नहीं होती है और फिर दशमी वाले दिन मंदिर आरती की जाती है।
- आमतौर पर ग्रहण के काल में मंदिर सूतक काल से ही बंद कर दिए जाते हैं, लेकिन कालकाजी उन मंदिरों में से है, जो कि सूर्यग्रहण के दौरान भी खुला रहता है।
- इस दौरान भक्तों को भी अंदर जाकर पूजा-पाठ करने की अनुमति होती है।