सांची स्तूप , मध्य प्रदेश
धार्मिक स्थल

सांची स्तूप , मध्य प्रदेश

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साँची का स्तूप भारत के सबसे अच्छी तरह से संरक्षित और अध्ययनित बौद्ध स्थलों में से एक है। यह मध्य प्रदेश के साँची नामक शहर में एक पहाड़ी पर स्थित है। पूर्व से पश्चिम में यह सत्रह मील के क्षेत्र में और उत्तर से दक्षिण में लगभग दस मील में फैला हुआ है। इस स्थल पर कई स्तूप हैं, जिनमें से साँची के स्तूप को सबसे प्रमुख माना जाता है। इस महान स्तूप का निर्माण अशोक ने ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में करवाया था। यहाँ बुद्ध और उनके सबसे श्रद्धेय शिष्यों के धार्मिक अवशेष या निशानियाँ प्रतिष्ठापित हैं।

सांची स्तूप का इतिहास

सांची स्तूप का इतिहास सम्राट अशोक द्वारा तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध अवशेषों को रखने के लिए बनवाया गया था। यह मूल रूप से एक साधारण ईंट की संरचना थी, जिसमें बाद में सातवाहन काल के दौरान भव्य तोरण द्वार जोड़े गए। समय के साथ क्षतिग्रस्त होने के बाद, इसका जीर्णोद्धार कार्य 1818 में फिर से खोजे जाने के बाद शुरू हुआ और 1912-1919 के बीच सावधानीपूर्वक मरम्मत की गई। 

सांची स्तूप के खुलने और बंद होने का समय

सुबह: 6:00 बजे

शाम: 6:30 बजे तक

लाइट शो: शाम 7:30 बजे से 8:00 बजे तक।

स्‍तूप क्या होता है

स्तूप एक पवित्र बौद्ध स्थल होते हैं, जिसे चैत्य भी कहा जाता है। इसका उपयोग पवित्र बौद्ध अवशेषों को रखने के लिए किया जाता है और वहां पर भगवान गौतम बुद्ध की आराधना की जाती है। 

सांची स्तूप की वास्तुकला

साँची के स्तूप बौद्ध वास्तुकला शैली को प्रदर्शित करते हैं। इस विशाल स्तूप का मुख्य आकर्षण एक अर्धगोलाकार गुंबद है। इसे अंडा भी कहा जाता है। यहाँ एक आधार है जिस पर मुख्य गुंबद टिका हुआ है, और एक अवशेष कक्ष भी है। गुंबद को छतरियों नामक तीन संरचनाओं से सजाया गया है, और ऐसा माना जाता है कि ये संरचनाएं बौद्ध धर्म के तीन रत्नों अर्थात धर्म, संघ और बुद्ध का प्रतीक हैं। इस स्तंभ का व्यास 120 फीट तथा ऊंचाई 54 फीट है, जो इसे राष्ट्रीय स्तर पर अद्वितीय बनाता है। इसमें चार सुंदर रूप से सुसज्जित ‘तोरण’ (या प्रवेशद्वार) हैं जो बुद्ध के जीवन की विभिन्न घटनाओं को दर्शाते हैं। प्रत्येक तोरण में तीन क्षैतिज पट्टियाँ और शीर्ष पर दो ऊर्ध्वाधर स्तंभ हैं। क्षैतिज पट्टियाँ आगे और पीछे दोनों ओर विभिन्न मूर्तिकला विषयों से सुसज्जित हैं। स्तूप के दक्षिणी भाग में अशोक का सिंह स्तंभ पाया जाता है, जो यह सिद्ध करता है कि सांची कलात्मक गतिविधियों का केंद्र बन गया था।

सांची स्तूप की कथा

 सांची के स्तूपों का निर्माण कई कालखंडों में हुआ जिसे ईसा पूर्व तीसरी सदी से बारहवीं सदी के मध्य में माना गया है। ईसा पूर्व 483 में जब गौतम बुद्ध ने देह त्याग किया तो उनके शरीर के अवशेषों पर अधिकार के लिए उनके अनुयायी राजा आपस में लडने-झगडने लगे। अंत में एक बौद्ध संत ने समझा-बुझाकर उनके शरीर के अवशेषों के हिस्सों को उनमें वितरित कर समाधान किया। इन्हें लेकर आरंभ में आठ स्तूपों का निर्माण हुआ और इस प्रकार गौतम बुद्ध के निर्वाण के बाद बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार इन स्तूपों को प्रतीक मानकर होने लगा। सांची के स्तूप दूर से देखने में भले मामूली अर्द्धगोलाकार संरचनाएं लगती हैं, लेकिन इसकी भव्यता, विशिष्टता व बारीकियों का पता सांची आकर देखने पर ही लगता है। इसीलिए देश-दुनिया से बडी संख्या में बौद्ध मतावलंबी, पर्यटक, शोधार्थी, अध्येता इस बेमिसाल संरचना को देखने चले आते हैं।

सांची स्‍तूप के बारे में रोचक तथ्‍य

1. सांची में मौजूद स्तूप भारत में सबसे पुरानी पत्थर की संरचना है, जिसका निर्माण तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक मोर्य ने कराया था।
2. सांची के स्तूप 14वीं शताब्दी तक निर्जन हो गया था, क्‍योंकि इनके संरक्षण के लिए उस समय किसी भी शासक ने इस पर ध्यान नही दिया।
3. इन स्तूपों की खोज वर्ष 1818 में एक ब्रिटिश अधिकारी जनरल टेलर ने की थी।
4. जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने सर जॉन मार्शल को इसके पुनर्निर्माण का कार्यभार सौंपा था। वर्ष 1912-1919 तक इस स्तूप की संरचना कर इसे पुन: खड़ा किया गया।
5. यह स्तूप भारत के सबसे बड़े स्तूपों में से एक है, जिसकी ऊंचाई लगभग 21.64 मीटर और व्यास 36.5 मीटर है।
6. इस स्तूप के निकट सबसे प्रसिद्ध अशोक स्तंभ, जिसमें सारनाथ की तरह चार शेर शामिल हैं पाया गया है। साथ ही यहां बड़ी संख्या में ब्राह्मी लिपि के शिलालेख पाए गए हैं।
7. सर जॉन मार्शल ने वर्ष 1919 में इसे संरक्षित रखने के लिए एक पुरातात्विक संग्रहालय की स्थापना की, जिसे बाद में सांची पुरातत्व संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया।
8. सांची नामक स्थान का गौतम बुद्ध द्वारा कभी भी दौरा नहीं किया गया था, भले ही आज इस स्थान पर बौद्ध धर्म का अपना एक ऐतिहासिक महत्व हो।
9. इस स्तूप का निर्माण बौद्ध अध्ययन और बौद्ध शिक्षाओं को सिखाने के लिए किया गया था।
10. यूनेस्को ने सांची के स्तूप की संरचना और शिल्पकारिता को देखते हुए वर्ष 1989 में इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।





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