
रामेश्वरम मंदिर , तमिलनाडु
रामेश्वरम मंदिर तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित है, और इसे स्थानीय लोग रामनाथस्वामी मंदिर के नाम से भी जानते हैं। यह मंदिर भारत के मुख्य चार धामों में से एक है, और यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से प्रथम ज्योतिर्लिंग है। मान्यता है की इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना भगवान राम ने लंका विजय करने के लिए की थी, इसीलिए इस मंदिर का नाम भगवान राम के नाम पर ही ‘रामेश्वरम मंदिर’ पड़ा है।
रामेश्वरम मंदिर का इतिहास

ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने ब्राह्मण रावण को मारने के अपराध बोध से ग्रस्त होकर इसी स्थान पर भगवान शिव की पूजा की थी। हालाँकि, द्वीप पर कोई मंदिर न होने के कारण, उन्होंने भगवान हनुमान को कैलाश पर्वत से शिवलिंग लाने के लिए भेजा था। भगवान राम शिवलिंग के भक्त थे। हनुमान जी शिवलिंग को विश्वलिंगम नाम से पुकारते थे और यही प्रथम पूजनीय शिवलिंग है।
बाद में, 15वीं शताब्दी में, राजा उदयन सेतुपति और नागूर के वैश्य निवासियों ने इस मंदिर का निर्माण कराया। 16वीं शताब्दी में, मंदिर के दक्षिणी भाग के दूसरे भाग को तिरुमलय सेतुपति ने विभाजित किया। मंदिर के द्वार पर तिरुमलय और उनके पुत्र की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
माना जाता है कि रामेश्वरम मंदिर का वर्तमान डिज़ाइन 17वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था। विशेषज्ञों के अनुसार, राजा किझावन सेतुपति ने मंदिर के निर्माण का आदेश दिया था। सेतुपति साम्राज्य के जाफना राजा का भी मंदिर निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
रामेश्वरम मंदिर के खुलने और बंद होने का समय
सुबह : 5:00 बजे – 1:00 बजे
दोपहर में मंदिर बाद हो जाता है : 1:00 बजे – 3:00 बजे
शाम : 3:15 बजे – 9:00 बजे तक
रामेश्वरम मंदिर पूजा का समय

पूजा | समय |
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पल्लियाराय दीपा आराधना | सुबह 5 बजे |
स्पदिगालिंग दीपा आराधना | सुबह 5:10 बजे |
तिरुवनंतपुरम दीपा आराधना | सुबह 5:45 बजे |
विला पूजा | सुबह 7.00 बजे |
कलासंथी पूजा | सुबह 10:00 बजे |
उचिकला पूजा | दोपहर 12:00 बजे |
सयाराचा पूजा | शाम 6:00 बजे |
अर्थजामा पूजा | रात 8:30 बजे |
पल्लियारई पूजा | रात 8:45 अपराह्न |
रामेश्वरम मंदिर की वास्तुकला

रामेश्वरम मंदिर राजसी स्थापत्य शैली और प्रचुर आध्यात्मिक ऊर्जा का एक अद्भुत संगम है। यह भारत के उन गिने-चुने मंदिरों में से एक है जो विश्व प्रसिद्ध द्रविड़ स्थापत्य शैली को दर्शाते हैं। सभी दक्षिण भारतीय मंदिरों की तरह, रामेश्वरम में ऊँची प्रांगण दीवारें (जिन्हें मदिल कहा जाता है) हैं जो मंदिर की चारों ओर से रक्षा करती हैं। 15 एकड़ में फैले इस मंदिर परिसर में 22 तीर्थम (तालाब) भी हैं जहाँ भक्त पवित्र स्नान करते हैं।
120 फुट ऊँचे गोपुरम रामेश्वरम द्वीप के क्षितिज को सुशोभित करते हैं। इसके आंतरिक भाग की आकर्षक विशेषताओं में 5 फुट के चबूतरे पर खड़े विशाल स्तंभ शामिल हैं। मंदिर में सैकड़ों बलुआ पत्थर के स्तंभों, बीम और ऊँची छतों से बने कई गलियारे हैं। 4000 से अधिक स्तंभों वाले इन गलियारों की कुल लंबाई लगभग 3800 फुट है।
विशाल ग्रेनाइट की दीवारें जटिल नक्काशी और हिंदू देवी-देवताओं के चित्रण से चिह्नित हैं। पाँच मुख्य हॉल हैं, जैसे- शुक्रवारा मंडपम, अनूप्पु मंडपम, सेतुपति मंडपम, नंदी मंडपम और कल्याण मंडपम। गर्भगृह के अंदर दो लिंग हैं- रामलिंगम और विश्वलिंगम। आपको शिव के बैल वाहन नंदी की एक विशाल प्रतिमा भी दिखाई देगी
रामेश्वरम मंदिर की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान राम जब 14 साल का वनवास खत्म करके और लंका पति रावण का वध करके मां सीता के साथ लौटे, तब ऋषि-मुनियों ने उनसे कहा कि उनपर ब्राह्मण हत्या का पाप लगा है। इसलिए उन्हें ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए शिवलिंग की स्थापना करने की सलाह दी गई। ऐसे में भगवान राम ने शिवलिंग लाने के लिए हनुमान जी को कैलाश पर्वत भेजा, लेकिन हनुमान जी को आने में देर हो गई। इस बीच माता सीता ने समुद्र तट पर रेत से शिवलिंग बना दिया। बाद में हनुमान जी द्वारा लाए गए शिवलिंग को भी वहीं स्थापित किया गया। एक तरफ जहां माता सीता द्वार बनाए लिंग को ‘रामलिंग’ और तो वहीं दूसरी तरफ हनुमान जी द्वारा लाए गए लिंग को ‘विश्वलिंग’ कहा गया। उसके बाद भगवान राम ने रामेश्वरम के पास स्नान करके शिवलिंग की विधिवत पूजा की और अपने पापों से मुक्ति पाई। आपको बता दें कि आज भी रामेश्वरम मंदिर में ये दोनों शिवलिंग विराजमान हैं।
रामेश्वरम मंदिर के कुएँ का रहस्य

माना जाता है की रामेश्वर मंदिर के भीतर चौबीस कुएँ बनाए गए हैं। मंदिर के बाहर स्थित अन्य कुओं का पानी खारा है, जबकि मंदिर के कुओं का पानी मीठा है। ये कुएँ भगवान राम के बाणों से निर्मित हुए थे। उन्होंने विभिन्न तीर्थस्थलों से जल मँगवाकर इन कुओं में डाला था। इसलिए इन कुओं को तीर्थ कहा जाता है।