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रक्षाबंधन 2026
त्योहार

रक्षाबंधन 2026

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रक्षाबंधन का यह त्योहार भाई और बहन के प्रेम का प्रतीत है। रक्षाबंधन का अर्थ है “रक्षा या सुरक्षा का बंधन”। इस पर्व पर बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है, और इसके बदले में भाई यह वचन देता है की वह उसकी हर परिस्थिती में रक्षा करेगा।

  • रक्षाबंधन का यह त्योहार हर साल श्रावण पूर्णिमा पर पड़ता है, जिसका इंतजार सभी भाई-बहनों को बेसब्री से होता है। 
  • इस पर्व पर भाई और बहन नए वस्त्र धारण करते है।
  • इसके बाद बहने अपने भाइयों का तिलक कर उनके हाथ में राखी बांधती है, और बदले में भाई उन्हे उनकी रक्षा का वचन तथा उपहार देते है।   

रक्षाबंधन 2026 मुहूर्त

रक्षा बन्धन शुक्रवार, अगस्त 28, 2026 को

रक्षा बन्धन अनुष्ठान का समय – 05:57 ए एम से 09:48 ए एम

रक्षा बन्धन के दिन भद्रा सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी।

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – अगस्त 27, 2026 को 09:08 ए एम बजे

पूर्णिमा तिथि समाप्त – अगस्त 28, 2026 को 09:48 ए एम बजे

रक्षाबंधन को मनाने का कारण

रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन के बीच कर्तव्य के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह अवसर उन सभी प्रकार के भाई-बहन के रिश्ते का जश्न मनाने के लिए है जो पुरुष और महिला के बीच जैविक रूप से संबंधित नहीं हो सकते हैं।

इस दिन, बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधकर उसकी समृद्धि, स्वास्थ्य और खुशहाली की कामना करती हैं। बदले में भाई अपनी बहन को उपहार देता है और हर परिस्थिति में उसकी रक्षा करने का वचन देता है। यह त्यौहार दूर के रिश्तेदारों, रिश्तेदारों या चचेरे भाइयों के बीच भी मनाया जाता है।

भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधनी चाहिए

पौराणिक कथा के अनुसार, भद्रा भगवान शनि देव की बहन और सूर्यदेव की पुत्री है। जब भी कोई शुभ कार्य करता है, तो वह उसमें विघ्न डालती है। इसीलिए भद्रा काल में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है।

ऐसी मान्यता है कि जब से भद्रा पैदा हुई थी, तब से वह समस्त कार्यों में विघ्न डाल रही थी। भद्रा के शुभ कार्यों में विघ्न डालता देख ब्रह्म देव ने उन्हें पृथ्वी, स्वर्ग और पाताल पर जाने की आज्ञा दी, और बोले जाओ वही शुभ कार्यों में विघ्न डालना।

रक्षाबंधन की कथा

यद्यपि, रक्षा बन्धन से सम्बन्धित विभिन्न पौराणिक कथायें प्रचलित हैं, किन्तु भविष्य पुराण में वर्णित कथा को सर्वाधिक प्रमाणित माना जाता है। व्रतराज में भी रक्षा बन्धन के अनुष्ठानों के साथ भविष्य पुराण की इस दन्तकथा का वर्णन प्राप्त होता है।

अनेक युगों पूर्व, एक समय देवताओं एवं दैत्यों में भीषण युद्ध हुआ था। यह युद्ध निरन्तर बारह वर्षों तक होता रहा। अन्त में देवता परास्त हो गये तथा इन्द्रलोक समेत तीनों लोकों पर दैत्यों ने अपना आधिपत्य कर लिया।

देवों के देव, देवराज इन्द्र ने देवगुरु बृहस्पति से विचार विमर्श किया। गुरु बृहस्पति ने इन्द्र को रक्षा विधान का सुझाव दिया तथा उसे सम्पन्न करने हेतु एक मन्त्र भी प्रदान किया।

श्रावण माह की पूर्णिमा तिथि को देवगुरु ने रक्षा विधान अनुष्ठान सम्पन्न किया। रक्षा विधान में एक रक्षा पोटली को पवित्र मन्त्रों द्वारा अभिमन्त्रित किया गया। पूजनोपरान्त इन्द्र की धर्मपत्नी शची ने इन्द्र के दायें हाथ पर रक्षा पोटली बाँधी थी।रक्षा पोटली की शक्तियों के प्रभाव से इन्द्र ने दैत्यों को परास्त कर अपना सम्राज्य पुनः प्राप्त कर लिया। उसी समय से श्रावण माह की पूर्णिमा तिथि पर रक्षा बन्धन पर्व मनाया जाता है।

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