
इंदिरा एकादशी 2026: महिमा, व्रत और कथा
हिंदू धर्म में इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) का विशेष महत्व है, खासकर पितृ पक्ष के दौरान, जब यह व्रत पितरों को मोक्ष और शांति प्रदान करने के लिए किया जाता है। यह एकादशी आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। वर्ष 2026 में यह पवित्र व्रत 17 सितंबर को मनाया जाएगा, जो अपने धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। इस व्रत को करने से न केवल व्रतधारी को पुण्य प्राप्त होता है, बल्कि उनके पूर्वजों को भी अधोगति से मुक्ति मिलती है। यह आर्टिकल आपको इंदिरा एकादशी 2026 (Indira Ekadashi 2026) की महिमा, व्रत विधि, कथा और इसके लाभों के बारे में विस्तार से बताएगा। इसे पढ़कर आप इस पवित्र व्रत को विधिवत करने के लिए प्रेरित होंगे और अपने पितरों को मोक्ष का मार्ग प्रदान कर सकेंगे।
ज्ञान की बातें (https://www.gyankibaatein.com) पर हम आपको इस व्रत की पूरी जानकारी देने के लिए उत्साहित हैं, ताकि आप इस पवित्र अवसर का अधिकतम लाभ उठा सकें। आइए, इस आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत करें!
इंदिरा एकादशी का महत्व
इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi significance) हिंदू धर्म में सभी 24 एकादशियों में से एक विशेष स्थान रखती है। यह व्रत पितृ पक्ष के दौरान आता है, जिसे श्राद्ध एकादशी (Shraddha Ekadashi) भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जिससे व्रतधारी के पापों का नाश होता है और उनके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से सात पीढ़ियों के पूर्वजों को पापों से मुक्ति मिलती है, और वे बैकुंठ धाम की ओर प्रस्थान करते हैं। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक शुद्धि प्रदान करता है, बल्कि जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी लाता है। पितृ दोष निवारण (Pitru Dosha Nivaran) के लिए यह व्रत अत्यंत प्रभावी माना जाता है।
ज्ञान की बातें पर हम मानते हैं कि यह व्रत न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर भी देता है। यह एक ऐसा अवसर है, जो हमें अपने परिवार की जड़ों से जोड़ता है और हमें उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का मौका देता है।
इंदिरा एकादशी 2026: तिथि और शुभ मुहूर्त
इस दिन का शुभ मुहूर्त और पारण का समय निम्नलिखित है:
इन्दिरा एकादशी मंगलवार, अक्टूबर 6, 2026 को
7वाँ अक्टूबर को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 06:17 ए एम से 08:38 ए एम
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 11:16 पी एम
एकादशी तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 06, 2026 को 02:07 ए एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त – अक्टूबर 07, 2026 को 12:34 ए एम बजे
इंदिरा एकादशी व्रत की विधि
इंदिरा एकादशी व्रत (Indira Ekadashi Vrat Vidhi) को विधिवत करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:
- दशमी तिथि की तैयारी:
- दशमी तिथि को प्रातः स्नान करें और पितरों का श्राद्ध करें।
- इस दिन एक समय भोजन करें और सात्विक भोजन ग्रहण करें।
- एकादशी व्रत का संकल्प:
- एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें।
- स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। संकल्प मंत्र:
“हे अच्युत! हे पुंडरीकाक्ष! मैं आपकी शरण हूं। मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर इंदिरा एकादशी का व्रत करूंगा। मेरी रक्षा करें।”
- पूजा विधि:
- भगवान शालिग्राम या विष्णु जी की मूर्ति की पूजा करें।
- पंचामृत (दूध, दही, घी, मिश्री, शहद) से अभिषेक करें।
- फूल, तुलसी दल, पीला चंदन, अक्षत, और नैवेद्य अर्पित करें।
- धूप, दीप और आरती करें। गीता के सातवें अध्याय (Bhagavad Gita Chapter 7) का पाठ करें, जो इस दिन विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
- श्राद्ध और दान:
- पितरों के नाम से श्राद्ध करें।
- ब्राह्मणों को फलाहार भोजन कराएं और यथाशक्ति दक्षिणा दें।
- बचे हुए भोजन को गाय को खिलाएं।
- रात्रि जागरण:
- रात में भगवान विष्णु के भजन और कीर्तन करें। जागरण करने से व्रत का पुण्य कई गुना बढ़ जाता है।
- द्वादशी तिथि पर पारण:
- द्वादशी तिथि को प्रातः स्नान के बाद भगवान की पूजा करें।
- ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें।
- परिवार के साथ मौन रहकर भोजन करें और व्रत का पारण करें।
ज्ञान की बातें की सलाह है कि इस व्रत को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करें। यह आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक शांति लाएगा।
इंदिरा एकादशी की पौराणिक कथा
इंदिरा एकादशी व्रत कथा (Indira Ekadashi Vrat Katha) प्राचीनकाल में सतयुग के समय में इंद्रसेन नामक एक प्रतापी राजा अपनी महिष्मति नगरी में अपनी प्रजा का पालन पोषण करते हुए शासन करता था। राजा धर्म काज में निपुण और परम विष्णु भक्त थे। राजा के शाशनकाल में सभी प्रजा धन धान्य से समृद्ध थी और राजा भी अपने पुत्र, पौत्र और प्रजा के साथ सुखमय जीवन व्यतीत करता था। एक दिन जब राजा अपने दरबार में सुखपूर्वक सभा का संबोधन कर रहे थें, तभी आकाशमार्ग से देवर्षि नारदजी का उनके दरबार में आगमन हुआ। देवर्षि नारदजी को अपने दरबार में आता हुआ देख राजा के साथ सभी दरबार में उपस्थित गण खड़े हो कर उन्हे नतमस्तक प्रणाम करते है। राजा इंद्रसेन उनका उचित स्वागत कर उन्हें उच्च स्थान पर विराजमान करते है और उनके वहा आने का प्रयोजन पूछते है।
राजा के पूछने पर देवर्षि नारद भी उन्हें प्रश्न पूछते है –
देवर्षि नारदजी – “हे राजन..!! में आपके आदर सत्कार से अति प्रसन्न हूं। किंतु क्या आपके सभी सातों अंग कुशलपूर्वक तो है ना? आपकी बुद्धि धर्म काज में और वुष्णुभक्ति में तो प्रवत है ना??”
देवर्षि नारदजी के ऐसे वचन सुन राजा इंद्रसेन अत्यंत विचलित हो उठे और उन्होंने कहा –
इंद्रसेन – “हे देवर्षि..!! आपकी कृपा से सभी धर्म काज कुशल मंगल हो रहे है और भगवान श्री हरि की कृपा से में भी सह कुशल और स्वस्थ हूं। आप कृपा कर आपके आने का प्रयोजन बताएं।”
राजा की वाणी सुन देवर्षि बोले –
देवर्षि नारद – “हे राजन..!! यदि आप मेरे प्रश्नों से चकित नहीं हुए तो मेरे इस कथन से अवश्य होंगे। एक दिन में ब्रह्मलोक से यमलोक की और भ्रमण कर रहा था। यमलोक जा कर यमराज द्वारा स्वचारु आदर सत्कार ग्रहण कर मेने धर्मशील और धेमकाज में प्रवीण सत्यवान धर्मराज की प्रसंशा की। यमराज को उसी भव्य सभा में मेने परम ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पूज्य पिताजी को एकादशी व्रत के भंग के कारण वांहा उपस्थित देखा। उनसे भेंट होने पर उन्होंने तुम्हारे लिए एक संदेशा भेजा है वह में तुम्हे कह रहा हुं। पूर्व जन्म में किसी अगम्य विध्न के कारण मुझसे एकादशी व्रत भंग हो गया और उसी कारण वश आज में यमराज के निकट वास कर रहा हूं अतः हे पुत्र अगर तुम मेरे निमित्त अश्विन माह के कृष्णपक्ष को आने वाली इंदिरा एकादशी का व्रत करो तो मुझे विष्णुलोक की प्राप्ति हो सकती है।
इतना सुनकर राजा इंद्रसेन द्रवित हो उठे वह अपने पूज्य पिता की इस दशा को देख दुखी हुए किंतु उनको इस परिस्थिति से उगार ने का उपाय सुन तुरंत देवर्षि नारदजी से कहा –
इंद्रसेन – “हे देवर्षि..!!! मेरे पूज्य पिता के संदेश वाहक बनने के लिए में आपका कोटि कोटि धन्यवाद करता हूं। कृपया आप ही मुझे इस परम पावन इंदिरा एकादशी की विधि और विधान बताने की कृपा करे।
देवर्षि नारदजी – “हे राजन..!! में तुम्हें इस पतित पावन इंदिरा एकादशी(Indira Ekadashi) व्रत की विधि और विधान सुना रहा हु इसे ध्यानपूर्वक सुनना। अश्विन माह के कृष्णपक्ष की दशवी तिथि के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठ कर मनुष्य को अपनी सभी काज जैसे स्नान आदि पूर्ण कर पुनः दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। पश्चात अपने पितरों का श्रद्धापूर्वक श्राद्ध कर एक बार भोजन करना चाहिए। प्रातः काल एकादशी तिथि के दिन सूर्योदय से पूर्व उठ कर स्नान आदि पूर्ण कर स्वच्छ परिधान धारण कर प्रभु श्री हरि सम्मुख बैठ कर हाथ में जल लिए यह संकल्प करना चाहिए “में आज संपूर्ण भोगों का त्याग करूंगा और निराहार रह कर इस पावन इंदिरा एकादशी का व्रत करूंगा। हे पुण्डलिकाक्ष..!! हे केशव..!! में आज आपकी शरण में आया हूं , आप मेरी रक्षा कीजिए। इस प्रकार नियमपूर्वक भगवान श्री हरि की शालिग्राम की मूर्ति समक्ष अपने श्राद्ध की विधि को संपन कर निमंत्रित ब्राह्मणों को उचित फलाहार करवा कर उन्हे दक्षिणा दे कर संतुष्ट करें। पितरों के श्राद्ध में अगर कोई भोजन या अन्न बच जाए तो उसे सुंधकर माता गौ को दान करें और अबिल, गुलाल, अक्षत, धूप, दीप आदि से भगवान श्री विष्णु का पूजन करें।
रात्रि पहर में भगवान श्री हरि की मूर्ति समक्ष उनका गुणगान गाते हुए जागरण करे। त्ततपश्चात द्वादशी तिथि के दिन प्रातःकाल होने पर भगवान श्री हरि का पूजन कर ब्राह्मणों को सात्विक भोजन अर्पित करें। और फिर अपने स्वजन और बांधवों के साथ भोजन ग्रहण कर व्रत का समापन करें।
हे राजन..!! यदि तुम इस विधि विधान से आलस्य रहित हो कर पूर्ण श्रद्धा के साथ इस इंदिरा एकादशी(Indira Ekadashi) का व्रत अनुष्ठान करोगे तो निश्चित रूप से तुम्हारे पिता स्वर्गलोक को प्रयाण करेंगे। इतना कह कर देवर्षि नारद अंतर्ध्यान हो गए।
नारदजी के कथनानुसार राजा इंद्रसेन से अपने सभी बांधव और सेवको सहित इस परम पाप नाशनी इंदिरा एकादशी(Indira Ekadashi) का व्रत अनुष्ठान किया। इस व्रत के प्रभाव से स्वयं देवलोक से उन पर पुष्प वर्षा होने लगी और उनके पिता गरुड़ पर बिराजमान हो कर श्री विष्णुलोक में प्रयाण कर गए। आगे जाके राजा इंद्रसेन भी एकादशी का व्रत पूर्ण श्रद्धा से करते हुए अंतकाल में अपने पुत्र को अपना राजपाठ सौंप कर स्वर्गलोक की और प्रस्थान हो गए।
अतः हे युधिष्ठिर..!! इस इंदिरा एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से मनुष्य अपने सभी पापो से मुक्ति पता है और अंत काल में मेरे वैकुंठ धाम को प्राप्त करता है।
इंदिरा एकादशी के लाभ
इंदिरा एकादशी व्रत (Indira Ekadashi benefits) के अनेक लाभ हैं, जो इसे विशेष बनाते हैं:
- पितृ दोष निवारण (Pitru Dosha remedy): यह व्रत पितरों को अधोगति से मुक्ति दिलाता है और उनके लिए मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।
- पापों का नाश: इस व्रत से व्रतधारी के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
- सुख और समृद्धि: यह व्रत घर में सुख, शांति और समृद्धि लाता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा से व्रतधारी को आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है।
- वाजपेय यज्ञ का फल: कथा सुनने या पढ़ने मात्र से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है।
इंदिरा एकादशी व्रत में क्या करें और क्या न करें
क्या करें:
- सूर्योदय से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु और शालिग्राम की पूजा करें।
- पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण करें।
- ब्राह्मणों को भोजन और दान दें।
- रात में जागरण और भजन-कीर्तन करें।
- सात्विक भोजन का ही सेवन करें (दशमी और द्वादशी पर)।
क्या न करें:
- चावल, मांस, मछली, और तामसिक भोजन का सेवन न करें।
- क्रोध, झूठ, और नकारात्मक विचारों से बचें।
- अनावश्यक वाद-विवाद से दूर रहें।
- व्रत के दौरान भोग-विलास से बचें।
इंदिरा एकादशी के लिए भोग और प्रसाद
इंदिरा एकादशी भोग (Indira Ekadashi Bhog) में सात्विक और शुद्ध सामग्री का उपयोग करें। भगवान विष्णु को निम्नलिखित प्रसाद अर्पित करें:
- पंचामृत: दूध, दही, घी, शहद, और मिश्री से बना पंचामृत।
- फल: केला, नारियल, सेब, और अन्य मौसमी फल।
- मिठाई: खीर, हलवा, या लड्डू।
- तुलसी दल: भगवान विष्णु को तुलसी अर्पित करना अनिवार्य है।
ब्राह्मणों और गायों के लिए भी सात्विक भोजन तैयार करें, जैसे दाल, सब्जी, और रोटी। ज्ञान की बातें की सलाह है कि भोग में शुद्धता और भक्ति का विशेष ध्यान रखें।
इंदिरा एकादशी की आरती
इंदिरा एकादशी आरती (Indira Ekadashi Aarti) भगवान विष्णु को समर्पित होती है। नीचे दी गई आरती को पूजा के अंत में गाएं:
जय एकादशी माता, जय एकादशी माता।
सुखदायिनी मोक्षदायिनी, भवसागर तारिणी माता॥
इन्द्रा आश्विन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी॥
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी।
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया॥
पावन मास में करूं विनती, पार करो नैया।
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी॥
शुक्ल मास में होय पद्मिनी, दुख दारिद्र हरनी।
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै॥
सब सुख भोगकर अंत समय में, बैकुंठ सिधावै।
जय एकादशी माता, जय एकादशी माता॥
निष्कर्ष
इंदिरा एकादशी 2026 (Indira Ekadashi 2026) एक ऐसा पवित्र अवसर है, जो हमें अपने पितरों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने और उनके लिए मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने का मौका देता है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक शुद्धि प्रदान करता है, बल्कि हमारे जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से भी भर देता है। ज्ञान की बातें (https://www.gyankibaatein.com) आपको इस व्रत को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करने के लिए प्रेरित करता है।
इस पवित्र दिन पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें, पितरों का श्राद्ध करें, और इंदिरा एकादशी व्रत कथा (Indira Ekadashi Vrat Katha 2026) का पाठ करें। यह न केवल आपके पूर्वजों को शांति देगा, बल्कि आपके जीवन को भी पुण्य और आशीर्वाद से भर देगा। आइए, इस इंदिरा एकादशी 2026 को हम अपने परिवार और पितरों के लिए समर्पित करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को और अधिक सार्थक बनाएं।