मोहिनी एकादशी 2026: महिमा, व्रत और कथा
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मोहिनी एकादशी 2026: महिमा, व्रत और कथा

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हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है, और मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi 2026) इसका एक अनमोल रत्न है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाने वाली यह तिथि भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप को समर्पित है। यह व्रत न केवल पापों का नाश करता है, बल्कि भक्तों को सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। मोहिनी एकादशी 2026 में यह व्रत और भी विशेष होगा, क्योंकि यह आध्यात्मिक उन्नति और मानसिक शांति का अवसर प्रदान करता है। इस लेख में हम मोहिनी एकादशी की महिमा, व्रत विधि, और पौराणिक कथा (Mohini Ekadashi Vrat Katha) के बारे में विस्तार से जानेंगे। साथ ही, हम यह भी देखेंगे कि कैसे यह व्रत आपके जीवन को प्रेरणा और सकारात्मकता से भर सकता है। आइए, इस पवित्र यात्रा में शामिल हों और इसे अपनी आत्मा के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव बनाएं।

मोहिनी एकादशी का महत्व

मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi Significance) का महत्व हिंदू धर्म में अत्यंत गहरा है। यह व्रत भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार को समर्पित है, जिन्होंने समुद्र मंथन के दौरान देवताओं को अमृत प्रदान कर असुरों को मोहित किया था। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत की कथा सुनने या पढ़ने से हजार गायों के दान के समान पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति देता है, बल्कि मानसिक शांति, सुख, और समृद्धि भी प्रदान करता है।

मोहिनी एकादशी का महत्व इसलिए भी विशेष है क्योंकि यह भक्तों को मोह-माया के बंधनों से मुक्त करता है। यह व्रत हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति और सही मार्ग पर चलकर हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। मोहिनी एकादशी 2026 में यह व्रत और भी प्रेरणादायक होगा, क्योंकि यह हमें अपने जीवन को सकारात्मकता और शुद्धता की ओर ले जाने का अवसर देगा।

मोहिनी एकादशी 2026: तिथि और शुभ मुहूर्त

इस दिन का शुभ मुहूर्त और पारण का समय निम्नलिखित है:

मोहिनी एकादशी सोमवार, अप्रैल 27, 2026 को

28वाँ अप्रैल को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 05:43 ए एम से 08:21 ए एम

पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 06:51 पी एम

एकादशी तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 26, 2026 को 06:06 पी एम बजे

एकादशी तिथि समाप्त – अप्रैल 27, 2026 को 06:15 पी एम बजे

मोहिनी एकादशी व्रत की विधि

मोहिनी एकादशी व्रत विधि (Mohini Ekadashi Vrat Vidhi) को पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान के साथ करना चाहिए। नीचे व्रत की पूरी प्रक्रिया दी गई है:

  1. प्रातः स्नान: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। गंगाजल मिला हुआ पानी उपयोग करें।
  2. संकल्प: स्वच्छ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु का स्मरण करें और व्रत का संकल्प लें।
  3. पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल को साफ करें और भगवान विष्णु या मोहिनी स्वरूप की मूर्ति/चित्र स्थापित करें।
  4. पूजा: भगवान को पंचामृत, तुलसी पत्र, पीले फूल (विशेष रूप से गेंदा), चंदन, धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित करें।
  5. मंत्र जाप: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना भी शुभ माना जाता है।
  6. व्रत कथा: मोहिनी एकादशी की कथा का पाठ करें या सुनें।
  7. आरती: भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की आरती करें।
  8. रात्रि जागरण: रात में भगवान का भजन-कीर्तन करें और जागरण करें।
  9. पारण: द्वादशी तिथि के शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करें। ब्राह्मणों को दान देना न भूलें।

मोहिनी एकादशी की पौराणिक कथा

मोहिनी एकादशी की कथा (Mohini Ekadashi Vrat Katha in Hindi) भगवान श्रीकृष्ण से चैत्र माह में कृष्णपक्ष में आने वाली वरुथिनी एकादशी का महात्म्य और कथा जानने के बाद राजा युधिष्ठिर भगवान श्री हरि से वैशाख माह की शुक्लपक्ष को आने वाली एकादशी के बारे में जानने को उत्सुक हो उठे।

युधिष्ठर – “हे मधुसूदन..!! में आपके श्री मुख से वरुथिनी एकादशी की व्रत कथा और अनुष्ठान सुन कर कृतार्थ हो गया। आप कृपा कर के मुजे वैशाख माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी के बारे में विस्तार से बताये। उस एकादशी को किस नाम से जाना जाता है और उसका महात्मय क्या है? यह बताने की कृपा करें है प्रभु…!!”

राजा युधिष्ठिर की बात सुन श्री कृष्ण अति प्रसन्न हुए और इस विषय पर आगे कहने लगे –

श्रीकृष्ण – “हे राजन, वैशाख माह के शुक्लपक्ष में आनेवाली एकादशी को “मोहिनी एकादशी”(Mohini Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी मनुष्य के सारे मोह बंधन को काटने वाली पापनाशिनी और मोक्षदायिनी एकादशी है। अब में आपको इसकी कथा सुनता हूं जो महर्षि वशिष्ठ ने मेरे राम अवतार में मुजे कह कर सुनाई थी। अतः इसे ध्यान से सुने।

एक समय की बात है जब त्रेता युग मे श्री राम अपना राज्याभिषेक होने के प्रश्चात प्रथम बार कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में उनसे मिलने जा पहुँचे। महर्षि वशिष्ठ के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेते हुए उनके समक्ष अपने व्याकुल स्वर में उन्होंने कहा –

श्री राम – “है गुरुदेव..!! मेरा मन कुछ समय से अत्यंत व्याकुल रह रहा है। वनवास काल मे मैंने जो सीता का वियोग सहा है वो अत्यंत दुःखदाई है। मन अभी तक उस दुःख से पूर्णरूप से उभर नहीं पाया है। में आपसे निवेदन करता हु की आप मेरी इस समस्या का समाधान करें। कोई ऐसा व्रत बताने की कृपा करें जिससे मेरा मन सागर की तरह शांत हो और में अपने राजकार्य में कुशलता से अपना योगदान दे सकू..!!”

महर्षि वशिष्ठ प्रभु श्री राम के वचन सुन उनके वखान करने लगे और कहा –

महर्षि वशिष्ठ – “हे राम, तुम धन्य हो.. तुमने जो वियोग सहा है वो आम मनुष्य के लिए मृत्यु के समान है। किंतु उस वियोग से उभरकर तुम अपनी प्रजा की सेवा हेतु मुजसे जो समाधान प्राप्त करने आये हो उसमे में तुम्हारी अवश्य सहायता करूँगा। है राम, तुम्हारी इस समस्या का समाधान एक परम हितकारी और मोक्षदायी व्रत में छुपा हुआ है। वो व्रत है “मोहिनी एकादशी”(Mohini Ekadashi) का व्रत। है राम वैसे तुम्हारे नाम के स्मरण मात्र से सभी जीवों के दुःख पीड़ा दूर हो जाते है किन्तु जनहित के उपलक्ष में यह व्रत जो भी मनुष्य श्रद्धापूर्वक करेगा उसके जन्मजन्मांतर के पाप नष्ट हो जायेंगे और वो सभी मोह बंधन से छूट कर भगवान विष्णु के परम धाम को प्राप्त करेगा। इस व्रत से जुड़ी एक कथा में आज तुम्हे सुनाने जा रहा हूँ अतः तुम इसे ध्यानपूर्वक सुनना।

सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नामक एक नगरी हुआ करती थी। धृतिमान नामक एक परम प्रतापी चंद्रवंशी राजा उस नगरी पर राज करता था। वह नगरी पूर्णरूप से समृद्ध और धनी थी। उस नगरी में धन संपत्ति से परिपूर्ण और धर्मकाज में अपना जीवन व्यतीत करने वाला धनपाल नामक एक वैश्य भी रहा करता था। वो अत्यंत पुण्यवान और परम विष्णु भक्त था। उसने अपने जीवनकाल में अपने नगर और जनहित में अनेक भोजनालय, धर्मशाला, कुँए, सरोवर और प्याऊ की रचना की थी। मार्गो पर आम, निम, जामुन आदि के वृक्ष भी लगवाए थे।

घनपाल सुखी और समृद्ध होने के साथ साथ संतान सुख से भी परिपूर्ण थे। उन्हें पांच संताने थी , सुमना, सुब्दुद्धि, मेघावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि। इन संतानों में पांचवी संतान धृष्टबुद्धि अत्यंत दुराचारी और महापापी थी। वह वेश्यागमन, दुष्ट मित्रों की संगति में रह कर जुआ खेलता और पर स्त्री के साथ भोग विलास भी करता तथा हर रोज मद्द और मांस का सेवन करता था। इसी प्रकार के कुकर्मों से वो अपने पुण्यात्मा पिता के धन का व्यय करता था।

पुत्र के इस कुकर्मो से पिता घनपाल अत्यंत दुःखी थे। एक बार पुत्र धृष्टबुद्धि मदिरा पान कर देर रात्रि घर आया और अपने पूज्य पिता का अपमान करने लगा। क्रोध में आकर पिता घनपाल से उसे घर से निकाल बाहर किआ। घर से विमुख हो कर उसने अपने शरीर पर धारण किये हुए वस्त्रों और अलंकारों को बेच कर अपना जीवन निर्वाह किया। जब वो भी समाप्त हो गए तब उसके सभी संगी साथी और वैश्याए  उसे अकेला छोड़ उसका अपमान कर चले गये। अब बिना धन और भूख प्यास से वो अति व्याकुल हो उठा। कोई सहारा ना मिलने पर अपने जीवन निर्वाह हेतु वो चोरी करना सिख गया।

चोरी करते करते एक बार वह पकड़ा गया किन्तु नगर में उसके पिता के कारण एक पुण्यात्मा वैश्य का पुत्र जान उसे चेतावनी दे कर छोड़ दिया गया। किंतु अपने दुष्टकर्मो के कारण वो दुबारा फिर पकड़ा गया। इस बार नागजनो ने उसे राजा को सौंप दिया। राजा ने उसका अपराध जान उसे कठिन कारावास की सज़ा सुनाई। कारावास में उसे अत्यंत दुःख प्राप्त हुए और अंतः राजा ने उसे अपने नगर से बाहर निकाल दिया।

अब वह अपनी नगरी छोड़ वन में निर्वाह करने लगा। अपनी भूख प्यास मिटाने उसने वन के पशु पक्षियों का शिकार करना शुरू कर दिया। अब वह कुशल बहेलिया बन गया था और अपने धनुष और बाण से पशु और पक्षियों का आखेड़ कर उसे खाने लगा।

एक दिन वह भूख प्यास से बेसुद्ध हो कर आखेड़ की तलाश में घूमता हुआ कौण्डिन्य ऋषि में आ पहुँचा। उस समय वैशाख माह के चलते ऋषि गंगा स्नान कर के वापस अपने आश्रम में आ रहे थे। रास्ते मे ऋषि के भीगे वस्त्र के छींटे धृष्टबुद्धि पर गिरे और गंगाजल के प्रभाव से उसे सुबुद्धि प्राप्त हुई।

वह उसी क्षण कौण्डिन्य ऋषि के आश्रम जा कर उनके श्री चरणों मे गिर गया और कहने लगा –

धृष्टबुद्धि – “है मुनिश्रेठ..!! मेने अपने जीवनकाल में अत्याधिक पाप कर्म किये हुए है। और उसके फल स्वरूप आज मेरी यह दशा है। मेरे पास नहीं धन है और नहीं पर्याप्त अन्न। इस अवस्था मे मेरा जीवन निर्वाह करना कठिन हो गया है। इन सभी दुखों के निवारण हेतु क्या आप मुजे कोई उपाय बता सकते है जिस में धन की आवश्यकता ना हो और में अपने पाप कर्मों का प्राश्चित कर सकू।”

ऋषि ने दीन स्वर सुन अपने उच्च स्वर में कहा –

ऋषि कौण्डिन्य – “है वत्स, में जानता हूँ तुमने अपनी क्षीण बुद्धि के कारण बहोत पाप कर्म किये है और उसके फ़ल स्वरूप आज तुम्हारी यह दशा है अतः इस दशा के निवारण हेतु तुम्हे भगवान विष्णु की अति प्रिय एकादशी तिथि का व्रत रखना होगा। वैशाख माह के शुक्लपक्ष में आनेवाली “मोहनी एकादशी”(Mohini Ekadashi) तुम्हारे पाप कर्मो से तुम्हें मुक्ति दिलाने हेतु अति उत्तम तिथि है। इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के मेरु पर्वत समान पाप भी क्षणभर में नष्ट हो जाते है और मनुष्य को सद्द्गति प्राप्त होती है।”

ऋषि कौण्डिन्य के वचन सुन धृष्टबुद्धि अत्यंत प्रसन्न हुआ और बिना विलंब किये आने वाली “मोहिनी एकादशी”(Mohini Ekadashi) पर व्रत रख कर पूरे विधि विधान से भगवान श्री हरि की पूजा अर्चना की और द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद भगवान श्री हरि की आराधना करते हुए उस व्रत का समापन किआ।

है राम! इस व्रत की पूर्ति से उसके सारे पाप नष्ट हो गये और उसके अंत समय मे वह गरुड़ पर बैठ कर विष्णुलोक को गया। संसार मे इस व्रत को करने से मोह के सारे बंधन छूट जाते है। संसार मे इस व्रत के अतिरिक्त और कोई व्रत श्रेष्ठ नही है। इस व्रत के महात्मय को पढ़ने या श्रवण मात्र से एक हज़ार गौ दानों का पुण्य फ़ल प्राप्त होता है।

मोहिनी एकादशी के लाभ

मोहिनी एकादशी के लाभ (Mohini Ekadashi Benefits) अनगिनत हैं। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक, बल्कि मानसिक और शारीरिक लाभ भी प्रदान करता है:

  • पापों का नाश: यह व्रत पिछले जन्मों और इस जन्म के पापों को नष्ट करता है।
  • मोक्ष की प्राप्ति: व्रत करने से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • सुख-समृद्धि: यह व्रत घर में सुख, समृद्धि, और वैभव लाता है।
  • मानसिक शांति: भक्ति और ध्यान से मन को शांति मिलती है।
  • शत्रु नाश: यह व्रत शत्रुओं और बाधाओं को दूर करता है।
  • आर्थिक समृद्धि: आर्थिक तंगी से मुक्ति मिलती है।

मोहिनी एकादशी पूजा सामग्री

मोहिनी एकादशी पूजा सामग्री (Mohini Ekadashi Puja Samagri) में निम्नलिखित वस्तुएं शामिल करें:

सामग्रीउपयोग
भगवान विष्णु की मूर्ति/चित्रपूजा के लिए स्थापना
पीले फूल (गेंदा)भगवान को अर्पित करने के लिए
तुलसी पत्रभगवान विष्णु को प्रिय
चंदनतिलक और पूजा के लिए
धूप, दीपपूजा और आरती के लिए
पंचामृतअभिषेक के लिए
नैवेद्य (मिठाई/फल)भोग के लिए
लाल कपड़ाकलश स्थापना के लिए

मोहिनी एकादशी के उपाय

मोहिनी एकादशी के उपाय (Mohini Ekadashi Upay) आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं:

  1. तुलसी पूजन: भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पित करें।
  2. विष्णु सहस्रनाम पाठ: इस पाठ से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  3. दान: गरीबों और ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, और दक्षिणा दान करें।
  4. गंगाजल अभिषेक: भगवान विष्णु का गंगाजल से अभिषेक करें।
  5. पीले वस्त्र धारण: इस दिन पीले वस्त्र पहनें, क्योंकि यह भगवान विष्णु को प्रिय है।

मोहिनी एकादशी और समुद्र मंथन

मोहिनी एकादशी का संबंध समुद्र मंथन की कथा से भी है। समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत कलश प्राप्त हुआ, तो देवताओं और असुरों में इसे लेने की होड़ मच गई। भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर असुरों को मोहित किया और देवताओं को अमृत पान कराया। इस घटना के कारण यह एकादशी मोहिनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हुई। यह व्रत हमें सिखाता है कि सत्य और धर्म की जीत हमेशा होती है।

मोहिनी एकादशी के लिए विशेष टिप्स

  1. शुद्धता: व्रत के दौरान शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनाए रखें।
  2. सात्विक भोजन: यदि आप निर्जल व्रत नहीं कर सकते, तो सात्विक भोजन लें।
  3. ध्यान और भक्ति: भगवान विष्णु का ध्यान और भजन करें।
  4. पंचांग जांच: सटीक तिथि और मुहूर्त के लिए पंचांग देखें।
  5. सामुदायिक पूजा: परिवार और समुदाय के साथ मिलकर पूजा करें।

निष्कर्ष

मोहिनी एकादशी 2026 (Mohini Ekadashi 2026) एक ऐसा पवित्र अवसर है, जो हमें अपने जीवन को शुद्ध करने और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का मौका देता है। इस व्रत की महिमा, कथा, और विधि हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और सही मार्ग पर चलकर हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। यह व्रत न केवल पापों का नाश करता है, बल्कि हमें सुख, समृद्धि, और मोक्ष की ओर ले जाता है।

आइए, इस मोहिनी एकादशी 2026 को हम पूरे विधि-विधान और श्रद्धा के साथ व्रत करें और अपने जीवन को आध्यात्मिक और सकारात्मक ऊर्जा से भर दें। अधिक आध्यात्मिक और प्रेरणादायक जानकारी के लिए, हमारी वेबसाइट ज्ञान की बातें पर जाएं और अपने जीवन को और समृद्ध बनाएं।

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