
षटतिला एकादशी 2025: महिमा, व्रत और कथा
नमस्कार, प्रिय पाठकों! ज्ञान की बातें (https://www.gyankibaatein.com) पर आपका स्वागत है, जहां हम प्राचीन भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिक ज्ञान और जीवन को प्रेरित करने वाली कहानियों को साझा करते हैं। आज हम बात करेंगे एक ऐसे पवित्र व्रत की जो न केवल पापों से मुक्ति दिलाता है बल्कि जीवन में समृद्धि, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति का द्वार खोलता है। षटतिला एकादशी, जिसे Shattila Ekadashi के नाम से भी जाना जाता है, भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का एक अद्भुत अवसर है। 2025 में यह व्रत विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह हमें सिखाता है कि दान, भक्ति और संयम से कैसे हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। इस लेख में हम Shattila Ekadashi 2025 date, importance, vrat vidhi, puja vidhi और katha को विस्तार से जानेंगे। यह आर्टिकल आपको प्रेरित करेगा कि कैसे छोटे-छोटे कर्म जीवन की बड़ी समस्याओं को हल कर सकते हैं। आइए, इस आध्यात्मिक यात्रा पर चलें और अपने मन को शुद्ध करें। षटतिला एकादशी हिंदू धर्म में एकादशी व्रतों की श्रृंखला में एक विशेष स्थान रखती है। माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाने वाली यह एकादशी तिल (sesame seeds) के छह प्रकार के उपयोग से जुड़ी है, जो इसे Shattila Ekadashi long tail keywords जैसे “Shattila Ekadashi importance and story” से जुड़ा बनाती है। 2025 में यह व्रत हमें सिखाता है कि जीवन की भागदौड़ में भक्ति और दान कैसे हमें आंतरिक शांति प्रदान कर सकते हैं। यदि आप “Shattila Ekadashi 2025 vrat and katha” खोज रहे हैं, तो यह लेख आपके लिए है। प्राचीन शास्त्रों में वर्णित यह व्रत न केवल पापों से मुक्ति दिलाता है बल्कि स्वास्थ्य, धन और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। ज्ञान की बातें पर हम मानते हैं कि ऐसे व्रत जीवन को प्रेरित करते हैं, हमें याद दिलाते हैं कि सच्ची खुशी भौतिक सुखों में नहीं, बल्कि आध्यात्मिक संयम में है। आइए, इसकी गहराई में उतरें।
षटतिला एकादशी का महिमा
षटतिला एकादशी का महिमा इतना विशाल है कि यह पापों के पहाड़ को तिल के दाने की तरह नष्ट कर देता है। भगवान विष्णु को समर्पित यह व्रत “Shattila Ekadashi importance” के रूप में जाना जाता है, जहां तिल का दान विशेष महत्व रखता है। शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत से ब्रह्महत्या, चोरी, ईर्ष्या जैसे महापापों से मुक्ति मिलती है। यह हमें प्रेरित करता है कि जीवन में क्रोध, लोभ और मोह को त्यागकर भक्ति अपनाएं। माघ मास में यह व्रत ठंड के मौसम में शरीर को शुद्ध करता है और आत्मा को उज्ज्वल बनाता है।
इसका महिमा पुराणों में वर्णित है, जहां कहा गया है कि तिल के दान से स्वर्ग में हजारों वर्षों का निवास प्राप्त होता है। यदि आप जीवन में संघर्षों से थक चुके हैं, तो यह व्रत आपको नई ऊर्जा देगा। “Shattila Ekadashi mahima in Hindi” की खोज करने वाले भक्तों के लिए यह संदेश है: दान और भक्ति से जीवन की हर समस्या हल हो सकती है। यह व्रत हमें सिखाता है कि छोटे कर्म बड़े फल देते हैं, जैसे एक तिल का दान पुनर्जन्मों तक पुण्य प्रदान करता है। प्रेरणा लें कि कैसे एक साधारण व्रत जीवन को दिव्य बना सकता है।
षटतिला एकादशी 2025 : तिथि और शुभ मुहूर्त
इस दिन का शुभ मुहूर्त और पारण का समय निम्नलिखित है:
षटतिला एकादशी शनिवार, जनवरी 25, 2025 को
26वाँ जनवरी को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 07:12 ए एम से 09:21 ए एम
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 08:54 पी एम
एकादशी तिथि प्रारम्भ – जनवरी 24, 2025 को 07:25 पी एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त – जनवरी 25, 2025 को 08:31 पी एम बजे
व्रत विधि
षटतिला एकादशी का व्रत “Shattila Ekadashi vrat vidhi” के रूप में जाना जाता है, जो संयम और भक्ति का प्रतीक है। व्रत की विधि इस प्रकार है:
- एक दिन पहले (दशमी) सात्विक भोजन करें, अनाज और तेल से परहेज करें।
- एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान करें, जिसमें तिल मिलाएं।
- पूरे दिन निराहार रहें या फलाहार करें।
- शाम को भगवान विष्णु की आरती करें।
- रात जागरण में भजन-कीर्तन करें।
- अगले दिन पारण करें, ब्राह्मणों को दान दें।
यह विधि हमें प्रेरित करती है कि संयम से जीवन की हर चुनौती पर विजय प्राप्त की जा सकती है। यदि आप कमजोर महसूस करें, तो याद रखें कि भगवान की भक्ति शक्ति देती है।
पूजा विधि
“Shattila Ekadashi puja vidhi” में भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें। धूप, दीप, नैवेद्य चढ़ाएं। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। तिल से हवन करें और खिचड़ी का भोग लगाएं। अर्घ्य दें: “हे कमलनयन, हे माधुसूदन, हे जगन्नाथ, हे पुंडरीकाक्ष, इस अर्घ्य को ग्रहण करें।” पूजा के बाद तिल दान करें। यह विधि जीवन में शांति लाती है और प्रेरित करती है कि सच्ची पूजा दिल से होती है।
षटतिला एकादशी की कथा
एक समय जब देवर्षी नारदजी ने भी भगवान श्री हरी विष्णु से भी यही प्रश्न किया था उस समय श्री हरी विष्णु ने जो षटतिला एकादशी(Shat Tila Ekadashi) का महात्मय देवर्षी नारदजी को कहा था वही आज में तुमसे कहने जा रहा हुँ।भगवान श्री हरी विष्णु ने देवर्षी नारदजी से कहा –
“हे नारद..!!! आज में तुम्हे एक सत्य घटना कहने जा रहा हुँ। सो इस तुम बड़े ध्यानपूर्वक सुनना।”
प्राचीनकाल में पृथ्वीलोक में एक ब्राह्मण स्त्री रहती थी। वह परम साधवी और सदैव व्रत किया करती थी। एक समय वह निरंतर पुरे एक माह तक व्रत करती रही। व्रत के प्रभाव से उसका शरीर दुर्बल हो गया था। वह साध्वी ब्राह्मण स्त्री बहुत बुद्धिशाली थी किन्तु उसने अभी तक देवताओं और ब्राह्मणो के निमित्त अन्न और धन का दान नहीं किआ था। इसलिए मैंने सोचा ब्राह्मणी ने व्रत अनुष्ठान से अपना शरीर शुद्ध तो कर लिया था इससे उसे विष्णुलोक की प्राप्ति तो हो जाएगी किन्तु उसने अपने जीवनकाल में कभी भी देवताओं और ब्राह्मणों को अन्न और धन का दान नहीं किया था इसलिए उसकी तृप्ति होना कठिन जान पडता था।
भगवान श्री हरी ने आगे कहा – “ऐसा सोचकर में स्वतः एक भिक्षुक का वेश धारण कर मृत्युलोक में उस ब्राह्मणी के पास गया और उसके द्वार पर खड़ा हो कर भिक्षा की याचना करने लगा।
मेरी पुकार सुन ब्राह्मणी बाहर आई और कहने लगी – “हे महाराज, आप किस कारणवश यंहा आये हुए हो?”
मैंने कहा – “में तुम्हारे द्वार भिक्षा मांगने आया हुँ। मुझे भिक्षा चाहिये।”
मेरी याचना पर उसने एक मिट्टी का ढेला मेरे भिक्षापात्र में रख दिया और में वापस अपने धाम लौट आया। कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी का भी अंत समय आ गया था और अपने पुण्य फल के प्रताप से वह स्वर्गलोक में आ गई। उसने भिक्षा में मिट्टी का ढेला दिया था उसी के परिणाम स्वरुप उसे स्वर्गलोक में एक भव्य महल मिला किन्तु उसने अपने महल को अन्न और अन्य सामग्रीयो से शून्य पाया।
भयप्रद हो कर वह तुरंत मेरे पास आई और याचना करने लगी उसने कहा – “हे प्रभु, मैंने अपने जीवनकाल में अनेक व्रत अनुष्ठान किये और पूर्ण श्रद्धा से आपका पूजन किया है किन्तु मेरा महल अन्न आदि वस्तुओ से शून्य है इसका क्या कारण है?”
उत्तर में मैंने कहा – “हे देवी, तुम पहले अपने महल को जाओ। कुछ देवस्त्रियां तुम्हे देखने के लिए आएँगी। अपना द्वार खोलने से पहले उनसे षटतिला एकादशी का महात्मय और विधि विधान सुन लेना तत्पश्चात अपना द्वार खोलना।”
भगवान श्री हरी विष्णु के कथननुसार ब्राह्मणी अपने महल को चली गई। कुछ क्षण बाद जब देवस्त्रियां ब्राह्मणी को देखने उसके द्वार आई तो ब्राह्मणी ने कहा – “हे देवस्त्रियों यदि आप मुझे देखने आई है तो आप पहले मुछे षटतिला एकादशी का महात्मय और विधि विधान बताये तत्पश्चात में अपने द्वार खोलूंगीI”
ब्राह्मणी की बात सुन उन देवस्त्रियों में से एक ने कहा की में तुम्हे षटतिला एकादशी(Shattila Ekadashi) व्रत का महात्मय कहूँगी। सम्पूर्ण महात्मय और विधि विधान सुनने के पश्चात ब्राह्मणी ने अपने द्वार खोले। जब देवांगनाओ ने उसे देखा तो वो चकित रह गये। न तो वो गंधार्वी थी नहीं आसुरी थी वह तो एक मानुषी थी।
ब्राह्मणी ने अब देवस्त्रियों के कथननुसार षटतिला एकादशी(Shattila Ekadashi) का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से वह और भी सुन्दर एवं रुपवाती हो गई। उसके महल के भंडार अन्नादी सभी सामग्रीयो से युक्त हो गये।
अतः सभी मनुष्यों को अपने जीवनकल में परम धाम की प्राप्ति पाने के लिए मूर्खता छोड़ कर षटतिला एकादशी(Shattila Ekadashi) व्रत निश्चित रूप से करना चाहिये और लालच ना करते हुए तिल आदि का दान करना चाहिये। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
षटतिला एकादशी व्रत के लाभ
यह व्रत स्वास्थ्य, धन, मोक्ष देता है। पाप मुक्ति, समृद्धि, आध्यात्मिक विकास। “Benefits of Shattila Ekadashi vrat” में कहा गया है कि यह जीवन को प्रेरित करता है, नकारात्मक ऊर्जा हटाता है।
निष्कर्ष
षटतिला एकादशी 2025 हमें सिखाती है कि भक्ति और दान से जीवन दिव्य बनता है। ज्ञान की बातें (https://www.gyankibaatein.com) पर ऐसे लेख पढ़कर अपने जीवन को प्रेरित करें। यह व्रत रखें और भगवान की कृपा प्राप्त करें। जय श्री विष्णु!