षटतिला एकादशी 2026: महिमा, व्रत और कथा
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षटतिला एकादशी 2026: महिमा, व्रत और कथा

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षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi) हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखती है, जो माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह पवित्र दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की भक्ति, तिल के दान, और आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है। वर्ष 2026 में यह व्रत 14 फरवरी को मनाया जाएगा, जो भक्तों के लिए सुख, समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति का अवसर लेकर आएगा। षटतिला एकादशी व्रत (Shattila Ekadashi Vrat) न केवल शारीरिक और मानसिक शुद्धि प्रदान करता है, बल्कि यह जीवन में सकारात्मकता और वैभव को भी आकर्षित करता है। इस लेख में, हम षटतिला एकादशी 2026 (Shattila Ekadashi 2026) की महिमा, व्रत विधि, कथा, और इसके आध्यात्मिक महत्व को विस्तार से जानेंगे, ताकि आप इस पवित्र दिन को पूर्ण श्रद्धा और उत्साह के साथ मना सकें। यह लेख ज्ञान की बातें (https://www.gyankibaatein.com) की ओर से आपके लिए प्रेरणादायक और सूचनात्मक जानकारी प्रदान करता है।

षटतिला एकादशी का महत्व

षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi Significance) का महत्व हिंदू शास्त्रों में अत्यंत विशेष माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और तिल के दान से भक्तों को मोक्ष, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। “षटतिला” शब्द का अर्थ है “छह तिल,” जो तिल के छह प्रकार के उपयोग—स्नान, उबटन, हवन, तर्पण, भोजन, और दान—को दर्शाता है। यह व्रत न केवल पापों का नाश करता है, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और धन-धान्य की वृद्धि भी करता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन तिल का दान करने से व्यक्ति को उतने हजार वर्षों तक स्वर्ग में सुख प्राप्त होता है, जितने तिल दान किए जाते हैं। यह व्रत भक्तों को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर समृद्ध करता है।

षटतिला एकादशी 2026 की तिथि (Shattila Ekadashi 2026 Date)

षटतिला एकादशी बुधवार, जनवरी 14, 2026 को

15वाँ जनवरी को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 07:15 ए एम से 09:21 ए एम

पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 08:16 पी एम

एकादशी तिथि प्रारम्भ – जनवरी 13, 2026 को 03:17 पी एम बजे

एकादशी तिथि समाप्त – जनवरी 14, 2026 को 05:52 पी एम बजे

इन समयों को स्थानीय पंचांग के अनुसार सत्यापित करें, क्योंकि यह स्थान और क्षेत्र के अनुसार थोड़ा भिन्न हो सकता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है।

षटतिला एकादशी व्रत की विधि

षटतिला एकादशी व्रत विधि (Shattila Ekadashi Vrat Vidhi) को विधिवत रूप से करने से भक्तों को पूर्ण फल प्राप्त होता है। नीचे व्रत की पूरी प्रक्रिया दी गई है:

  1. प्रात:काल स्नान: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। स्नान के पानी में तिल डालकर स्नान करना शुभ माना जाता है।
  2. व्रत संकल्प: स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
  3. पूजा की तैयारी: पूजा स्थल को साफ करें और भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  4. षोडशोपचार पूजन: भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, और तिल से बनी मिठाई अर्पित करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
  5. व्रत कथा: षटतिला एकादशी व्रत कथा (Shattila Ekadashi Vrat Katha) का पाठ करें या सुनें। यह पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  6. रात्रि जागरण: रात में भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन करें। यदि जागरण संभव न हो, तो कथा का पाठ अवश्य करें।
  7. व्रत पारण: अगले दिन द्वादशी तिथि पर ब्राह्मण भोजन और तिल का दान करने के बाद व्रत खोलें।

ध्यान दें: इस दिन चावल और अनाज का सेवन न करें। फलाहार या तिल से बनी मिठाइयों का सेवन करें।

तिल के छह उपयोग: क्यों है खास

षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi Importance) का नाम तिल के छह प्रकार के उपयोग से पड़ा है। ये उपयोग न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं। ये हैं:

  1. तिल स्नान: तिल के पानी से स्नान करने से त्वचा स्वस्थ रहती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
  2. तिल उबटन: तिल का उबटन लगाने से शारीरिक शुद्धि होती है।
  3. तिल हवन: तिल से हवन करने से वातावरण में सकारात्मकता बढ़ती है।
  4. तिल तर्पण: पितरों को तिल मिश्रित जल से तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
  5. तिल भोजन: तिल से बनी मिठाइयाँ या व्यंजन खाने से स्वास्थ्य लाभ होता है।
  6. तिल दान: तिल का दान करने से पुण्य और समृद्धि प्राप्त होती है।

ये छह उपयोग षटतिला एकादशी 2026 (Shattila Ekadashi 2026 Benefits) को और भी प्रभावशाली बनाते हैं।

षटतिला एकादशी की पौराणिक कथा

एक समय जब देवर्षी नारदजी ने भी भगवान श्री हरी विष्णु से भी यही प्रश्न किया था उस समय श्री हरी विष्णु ने जो षटतिला एकादशी(Shat Tila Ekadashi) का महात्मय देवर्षी नारदजी को कहा था वही आज में तुमसे कहने जा रहा हुँ।भगवान श्री हरी विष्णु ने देवर्षी नारदजी से कहा –

“हे नारद..!!! आज में तुम्हे एक सत्य घटना कहने जा रहा हुँ। सो इस तुम बड़े ध्यानपूर्वक सुनना।”

प्राचीनकाल में पृथ्वीलोक में एक  ब्राह्मण स्त्री रहती थी। वह परम साधवी और सदैव व्रत किया करती थी। एक समय वह निरंतर पुरे एक माह तक व्रत करती रही। व्रत के प्रभाव से उसका शरीर दुर्बल हो गया था। वह साध्वी ब्राह्मण स्त्री बहुत बुद्धिशाली थी किन्तु उसने अभी तक देवताओं और ब्राह्मणो के निमित्त अन्न और धन का दान नहीं किआ था। इसलिए मैंने सोचा ब्राह्मणी ने व्रत अनुष्ठान से अपना शरीर शुद्ध तो कर लिया था इससे उसे विष्णुलोक की प्राप्ति तो हो जाएगी किन्तु उसने अपने जीवनकाल में कभी भी देवताओं और ब्राह्मणों को अन्न और धन का दान नहीं किया था इसलिए उसकी तृप्ति होना कठिन जान पडता था।

भगवान श्री हरी ने आगे कहा – “ऐसा सोचकर में स्वतः एक भिक्षुक का वेश धारण कर मृत्युलोक में उस ब्राह्मणी के पास गया और उसके द्वार पर खड़ा हो कर भिक्षा की याचना करने लगा।

मेरी पुकार सुन ब्राह्मणी बाहर आई और कहने लगी – “हे महाराज, आप किस कारणवश यंहा आये हुए हो?”

मैंने कहा – “में तुम्हारे द्वार भिक्षा मांगने आया हुँ। मुझे भिक्षा चाहिये।”

मेरी याचना पर उसने एक मिट्टी का ढेला मेरे भिक्षापात्र में रख दिया और में वापस अपने धाम लौट आया। कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी का भी अंत समय आ गया था और अपने पुण्य फल के प्रताप से वह स्वर्गलोक में आ गई। उसने भिक्षा में मिट्टी का ढेला दिया था उसी के परिणाम स्वरुप उसे स्वर्गलोक में  एक भव्य महल मिला किन्तु उसने अपने महल को अन्न और अन्य सामग्रीयो से शून्य पाया।

भयप्रद हो कर वह तुरंत मेरे पास आई और याचना करने लगी उसने कहा – “हे प्रभु, मैंने अपने जीवनकाल में अनेक व्रत अनुष्ठान किये और पूर्ण श्रद्धा से आपका पूजन किया है किन्तु मेरा महल अन्न आदि वस्तुओ से शून्य है इसका क्या कारण है?”

उत्तर में मैंने कहा – “हे देवी, तुम पहले अपने महल को जाओ। कुछ देवस्त्रियां तुम्हे देखने के लिए आएँगी। अपना द्वार खोलने से पहले उनसे षटतिला एकादशी का महात्मय और विधि विधान सुन लेना तत्पश्चात अपना द्वार खोलना।”

भगवान श्री हरी विष्णु के कथननुसार ब्राह्मणी अपने महल को चली गई। कुछ क्षण बाद जब देवस्त्रियां ब्राह्मणी को देखने उसके द्वार आई तो ब्राह्मणी ने कहा – “हे देवस्त्रियों यदि आप मुझे देखने आई है तो आप पहले मुछे षटतिला एकादशी का महात्मय और विधि विधान बताये तत्पश्चात में अपने द्वार खोलूंगीI”

ब्राह्मणी की बात सुन उन देवस्त्रियों में से एक ने कहा की में तुम्हे षटतिला एकादशी(Shattila Ekadashi) व्रत का महात्मय कहूँगी। सम्पूर्ण महात्मय और विधि विधान सुनने के पश्चात ब्राह्मणी ने अपने द्वार खोले। जब देवांगनाओ ने उसे देखा तो वो चकित रह गये। न तो वो गंधार्वी   थी नहीं आसुरी थी वह तो एक मानुषी थी।

ब्राह्मणी ने अब देवस्त्रियों के कथननुसार षटतिला एकादशी(Shattila Ekadashi) का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से वह और भी सुन्दर एवं रुपवाती हो गई। उसके महल के भंडार अन्नादी सभी सामग्रीयो से युक्त हो गये।

अतः सभी मनुष्यों को अपने जीवनकल में परम धाम की प्राप्ति पाने के लिए मूर्खता छोड़ कर षटतिला एकादशी(Shattila Ekadashi) व्रत निश्चित रूप से करना चाहिये और लालच ना करते हुए तिल आदि का दान करना चाहिये। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

व्रत के लाभ और आध्यात्मिक प्रभाव

षटतिला एकादशी व्रत (Shattila Ekadashi Benefits) के कई लाभ हैं, जो भौतिक और आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर प्रभाव डालते हैं:

  • मोक्ष की प्राप्ति: यह व्रत पापों का नाश करता है और मृत्यु के बाद मोक्ष प्रदान करता है।
  • धन-धान्य की वृद्धि: तिल और अन्न दान से जीवन में समृद्धि आती है।
  • सुख-शांति: यह व्रत घर में सकारात्मकता और शांति लाता है।
  • स्वास्थ्य लाभ: तिल का उपयोग शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाता है।
  • पितृ तृप्ति: तिल तर्पण से पितरों को शांति मिलती है।

यह व्रत भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का अवसर देता है, जिससे जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं।

षटतिला एकादशी के लिए विशेष उपाय

षटतिला एकादशी उपाय (Shattila Ekadashi Upay) व्रत के प्रभाव को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित उपाय करें:

  1. तिल का दान: गरीबों और ब्राह्मणों को तिल, तिल की मिठाई, और अन्न दान करें।
  2. विष्णु सहस्रनाम पाठ: दिनभर विष्णु सहस्रनाम का जाप करें।
  3. गाय दान: यदि संभव हो, तो काली गाय का दान करें।
  4. हवन: तिल और घी से हवन करें।
  5. रात्रि जागरण: भगवान विष्णु के भजन और कीर्तन में समय बिताएँ।

ये उपाय षटतिला एकादशी 2026 (Shattila Ekadashi 2026 Remedies) को और प्रभावी बनाते हैं।

निष्कर्ष

षटतिला एकादशी 2026 (Shattila Ekadashi 2026) एक ऐसा पवित्र अवसर है, जो भक्तों को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति का साधन है, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति का वाहक भी है। तिल के छह उपयोग और व्रत कथा के पाठ के माध्यम से यह दिन भक्तों को दान और भक्ति का महत्व सिखाता है। ज्ञान की बातें (https://www.gyankibaatein.com) आपको प्रेरित करता है कि आप इस पवित्र दिन को पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान से मनाएँ, ताकि आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव आए। आइए, 14 फरवरी 2026 को षटतिला एकादशी व्रत (Shattila Ekadashi Vrat 2026) के साथ अपनी आध्यात्मिक यात्रा को और समृद्ध करें।

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