
शुक्रवार : साप्ताहिक व्रत महिमा और कथा
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2. शुक्रवार व्रत की महत्व
शुक्रवार व्रत हिन्दू धार्मिक परंपराओं में विशेष स्थान रखता है। इसे देवी लक्ष्मी, पार्वती, और सदा शक्ति की आराधना के लिए समर्पित माना गया है। इस व्रत से जीवन में समृद्धि, सौभाग्य और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। weekly fast on Friday रखने वाले भक्त महालक्ष्मी की कृपा से धन एवं सफलता की प्राप्ति का अनुभव करते हैं।
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3. लाभ और प्रेरणा
शुक्रवार व्रत रखने से अनेक लाभ होते हैं:
लाभ (Benefits) | विवरण (Description) |
---|---|
1. आने वाला भाग्य (Prosperity) | Financial prosperity की प्राप्ति होती है। |
2. मानसिक शांति (Mental Peace) | Stress relief और मन की शांति होती है। |
3. संबंधों में सुधार (Improved Relationships) | घर-परिवार में harmony बढ़ती है। |
4. आंतरिक शक्ति (Inner Strength) | Spiritual strength और आत्मविश्वास बढ़ता है। |
5. सकारात्मक ऊर्जा (Positive Energy) | जीवन में positive vibrations आती हैं। |
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4. व्रत की तैयारी और नियम
व्रत की सफलता के लिए तैयारी और नियम बेहद ज़रूरी हैं।
तैयारी
- Awake early morning और स्नान करके शुद्ध ह्रदय से व्रत आरंभ करें।
- व्रत का संकल्प लेते समय Friday Vrat Sankalp ज़रूरी है—जिसमें आप व्रत का उद्देश्य, समय, और मनोकामना स्पष्ट रूप से कहें।
नियम
- पूर्ण या अर्ध उपवास रखें—fasting rules for Friday Vrat के अनुसार।
- दिनभर सात्विक भोजन लें—दूध, फल, हल्का फलाहार।
- No grains, onion-garlic वर्जित।
- साँझ को देवी की पूजा करें और mantra chanting करें।
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5. शुक्रवार व्रत की कथा
एक बुढ़ि माँ थी। जिसके कुल सात बेटे थे। छे अपनी अपनी जगा काम में व्यस्त रहते और एक निक्कमा रहता था। माता अपने सभी छे बेटों के लिये रसोई बनती थी लेकिन उस सातवे बेटे का हमेशा तिरस्कार करती और उसे उन छे बेटों की जूठन खिलाती थी।
एक दिन वो निकम्मा बेटा अपनी बीवी से कहने लगा – “देखा, मेरी माँ मुझे कितना प्यार करती है।”
बीवी ने कहा – “क्योंकि नहीं, अपने सभी छे बेटों का झूठा जो खिलाती है तुम्हे।”
बेटा – “ये क्या बोल रही हो..!! मेरी माँ कभी मुझे ऐसा खाना नहीं खिलाएगी। जब में अपनी आँखों से देख ना लू तब तक में ये नहीं मान सकता।”
बीवी हसते हुए बोली – “अच्छा, जब आँखों से देख लोगो तब तों मानोगे ना..!!”
कुछ दिन गुजर गये और एक त्यौहार के मोके पर सब फिर से इक्कठा हुए। त्यौहार के उपलक्ष में घर में नाना प्रकार के भोग बने हुए थे लेकिन उन मेसे देसी घी में बने हुए लड्डू सबका आकर्षण अपनी ओर खिंच रहे थे। लेकिन सातवे बेटे को आज अपनी माँ का अपने प्रति प्रेम देखना था सो वो अपने सर दुखने का बहाना बना कर रसोई घर में ही अपने सर पर एक पतला कपड़ा ओढ़े सो गया और वहां क्या हो रहा है सब देखने लगा। भोजन का समय हो गया माँ ने एक एक करके सभी छे बेटे को प्यार से बुलाया और सभी को अपने हाथो से खाना परोसा। सभी ने संतुष्ट हो के भोजन किया और वहां से उठ खड़े हुए। माँ ने अब सब की थाली में से बच्चे हुए लड्डू का चूरमा इक्कठा करना शुरू कर दिया। सातवा बेटा बस ये सब देखता ही रह गया। माँ ने उस चूरमे से अपने सातवे बेटे के लिये एक लड्डू बनाया ओर उसे भोजन के लिये बुलाने लगी।
“अरे बेटा, देख तेरे भाईओ ने भोजन कर लिया है अब तू कब करेगा चल अब तू भी आजा ओर भोजन कर ले।”
“नहीं, माँ अब मुझे भोजन नहीं करना है। मुझे अब परदेस जाना है। में कल जा रहा हुँ।”
“परदेस..!!, अच्छा तों फिर कल क्योंकि जा रहा है आज ही चला जा।” माँ ने कहा
“क्यों नहीं माँ, में आज क्या अभी जा रहा हुँ..!!” बेटे ने गुस्से में कहा
अब सातवा बेटा अपना सामान बांधे परदेस जाने को घर से निकल रहा था की उसे अपनी पत्नी की याद आ गई। पत्नी गौशाला में कंड्डे (उपले) बना रही थी। वो उसके पास गया ओर कहा –
“हम जावे परदेस, आवेंगे कुछ काल।
तुम यहाँ संतोष से रहियो, धर्म आपनो पाल।”
उसने कहा –
“जाओ पिया आनन्द से हमारो सोच हटाय,
राम भरोसे हम रहें ईश्वर तुम्हें सहाय।
दो निशानी आपन देख धरूं में धीर,
सुधि मति हमारी बिसारियो रखियो मन गम्भीर।”
उसने खुद को टटोला ओर कहा – “मेरे पास तों कुछ नहीं, यह बस एक अंगूठी है सो ले ओर अपनी कोई निशानी मुझे दे”
वो बोली – “मेरे पास क्या ही हो सकता है। ये बस अपने गोबर भरे हाथ है। इतना कह कर उसने अपने गोबर भरे हाथ से उसकी पीठ पर छाप लगा दी।”
अब वो चला गया ओर चलते चलते दूर किसी नगर में आ पहुंचा।
वो काम की तलाश में यहाँ वहां भटक रहा था किसी जगा उसे काम नहीं मिल पा रहा था तब वो एक साहूकार की दुकान पर जा पहुंचा ओर बोला –
“भाई मुझे काम पर रख लो।”
किस्मत से साहूकार को भी जरूरत थी, उसने कहा – “रह जा..!!”
लडके ने कहा – “तन्खा क्या दोगे?”
साहूकार बोला – “देख भाई..!!! काम देख कर दाम मिलेंगे..!!!”
लडके को साहूकार की नौकरी मिल गई। वो सुबह 7 बजे से लेके रात के 10 बजे तक दुकान का सारा काम संभाल ने लगा। कुछ ही दिनों में उसने दुकान का सारा हिसाब किताब, लेन-देन, ग्राहकों माल बेचना सब कुछ सिख कर अच्छे से संभाल ने लगा। साहूकार के ओर सात-आठ नौकरी थे वो इस लडके का काम देख कर चकित हो गये ओर कहने लगे अरे ये तों बहोत ही होशियार लड़का है।
साहूकार ने भी उस लडके का काम देखा और उससे बहोत प्रभावित हुआ और उसने तीन महीने के कम समय में ही आधे मुनाफे का हिस्सेदार बना दिया। वो कुछ वर्ष में ही एक नामी शेठ बन चूका था और साहूकार अपना सारा कारोबार उसे सौप कर चला गया।
पति की अनुपस्थिति में सास का अत्याचार-
इधर लडके की पत्नी को उसके सास-ससुर बहोत दुःख देने लगे। उससे अपने घर का सारा काम करवाते और फिर उसे जंगल में लकड़ी लेने भेज देते थे। उसके खाने में उसे आटे से निकली हुई भूसी की रोटी और फूटे नारियल के नारेली में पानी दिया जाता था। एक दिन की बात है जब वो जंगल में लकड़ी लेने जा रही थी तब उसने कुछ स्त्रिओ को संतोषी माता का व्रत करते हुए देखा।
संतोषी माता का व्रत-
वो बड़ी विस्मयता से सभी स्त्रिओ को व्रत करता देख कड़ी हो कर देखने लगी और पूछा – “हे स्त्रिओ, आप यह किस देवता का व्रत कर रहे हो और इस व्रत के करने से किस पुण्यफल की प्राप्ति होती है अगर आप मुझे कृपा कर के बताएँगे तों में आपका बड़ा एहसान मानूगी।”
तभी उन में से एक स्त्री ने कहा – “देखो, यह हम माता संतोषी का व्रत कर रही है। इस व्रत को करने से निर्धनता और दरिद्रता का नाश होता है। यही नहीं अपने मन में जो भी कामनाये हो वो सब माता संतोषी की कृपा से पूरी होती है।”
वो अब इस व्रत को करने को उत्सुक हो गई अर उनसे इस व्रत की विधि पूछने लगी।
संतोषी माता व्रत विधि-
तब वो भक्तिनी स्त्री बोली – “देखो, सवा आने का गुड़-चना लेना, या फिर इच्छा हो तों सवा पाँच रुपये का लेना या सवा रुपये का लेना जो भी हो अपनी सहूलियत के अनुरूप लाना। अपने मन में कोई परेशानी लाये बिना श्रद्धा और प्रेम से जितना हो सके सवाया लेना। प्रत्येक शुक्रवार को निरहार रहना और माता संतोषी की कथा सुनना, देखो इस बिच क्रम ना टूटे, लगातार नियम पालन करना, कोई सुनने वाला ना हो तों अपने सामने घी का दीपक जाला कर रखना या एक लोटे में जल रख कर उसके सामने अपनी कथा कहना। जब तक अपनी मनोकामाना सिद्ध ना हो तब तक नियम का पालन करना और जब सिद्ध हो जाये तों व्रत का उद्यापन करना।
माता का सत है माता तीन माह में फल पूरा करती है। यदि किसी के ग्रह खोटे हो तों भी माता सालभर में फल अवश्य देती है। ध्यान रहे फल सिद्ध होने पर ही उद्यापन करना बिच में मत करना। उद्यापन में अढ़ाई शेर आटे का खाजा और इसी प्रमाण से खीर और चने का साग बनाना। अपने घर आमंत्रण देके आठ लडको को भोजन करवाना, हो सके तों जेठ, देवर, भाई बंधु को बुलाना और ना हो सके तों पडोसी और रिश्तेदारो को बुलाना। उन्हें प्रेम से भोजन करवा के यथा शक्ति दक्षिणा देके विदा करना और माता के नियम का पालन करना। और हाँ ध्यान रहे उस दिन घर में खटाई ना खाना। यह सब सुन बुढ़िया के बेटे की बहु हर्षित हो के चल दी।
व्रत का प्रण करना और माँ संतोषी का दर्शन देना-
जंगल से लकड़ी ले के घर आने के रास्ते में उसने लकड़ी के बोज को बेच दिआ और उसी पैसो से उसने गुड़ और चना खरीद कर माता संतोषी के व्रत की तैयारी शुरू कर दी। रास्ते में आते उसको एक मंदिर दिखा, उसने पूछा ये किस देवता का मंदिर है। सबाने कहा ये माता संतोषी का मंदिर है। सुनते ही वो मंदिर जाके माता के चरणों में गिर कर लोटने लगी।
दीनभाव से वो माता को बिनती करने लगी – “हे माँ, में अबोध अज्ञानी हुँ, व्रत के कोई नियम को नहीं जानती हुँ, में अत्यंत दुःखी हुँ! हे माँ! हे जगत जननी मेरा दुःख दूर कर में तेरे शरण में आई हुँ।”
माता को दया आ गई – एक शुक्रवार बिता की दूसरे के उसके प्रिय पति का पत्र आ पहुंचा और तीसरे को उसका भेजा हुआ पैसा। यह सब देख जेठ-जेठानी के मुँह बंध हो गये।
उनके लडके ताना देने लगे – अब तों काकी को काका के पत्र आने लगे, पैसा आने लगा, अब उनकी खातिरदारी बढ़ेगी।
बुढ़िया के बेटे की बहु बेचारी सरलता से कहती – “भैया कागज आवे रूपया आवे, हम सब के लिये अच्छा है। ऐसा बोल कर अपने आँखों में आँसू भरकर माता संतोषी के मंदिर जा पहुंची और मातारानी के चरणों में गिर कर बोली – “हे माँ, मेने तुमसे पैसा कब माँगा है। मुझे इन पैसे से क्या काम है। मुझे तों बस अपने सुहाग से काम है। में तों बस अपने स्वामी के दर्शन मांगू हे माँ।”
माँ उस पर प्रसन्न हुई और कहा – “जा बेटी! तेरा स्वामी तेरे पास आएगा।”
माता के ये वचन सुनकर भोली बहु बावली हो कर मंदिर से घर जा पहुंची और अपने काम में व्यस्त हो गई। यहाँ माता संतोषी सोच में पड़ गये मेने इस भोली लड़की को बोल तों दिया की तेरा स्वामी तुझे मिलेगा लेकिन कैसे वो तों उसे अपने स्वप्न में भी याद नहीं करता है। उसे याद दिलाने के लिये मुझे ही जाना होगा। तब एक रात माता उस बुढ़िया के बेटे के स्वप्न में जा पहुंची- “ओह साहूकार के बेटे, उठ सो रहा है या जाग रहा है।”
तब उस लडके ने कहा – “हे माता, सोता भी नहीं और जगाता भी नहीं बोलो माँ क्या आज्ञा है!”
तब माँ बोली – “तेरे घर बार कुछ है की नहीं।”
लड़का बोला – “हाँ हे ना..!!! मेरे पास सबकुछ है, मेरे माँ-बाप है एक बहु है मुझे किसी चीज की कमी नहीं है।”
माँ बोली – “हे पुत्र.!! तू बहोत भोला है, तेरी पत्नी बड़े कष्ट उठा रही है। तेरे माँ-बाप उसे बड़ा दुःख दे रहे है। तू जा, वो तेरे लिये तरस रही है और अपनी पत्नी की सुध ले।”
वो बोला – “हाँ माँ, यह तों मुझे पता है, लेकिन इस कारोबार को छोड़ कर जाऊ कैसे? परदेस का मामला है। हिसाब किताब देखना है। यहाँ मेरे अलावा और कोई हे भी तों नहीं जिसे में ये सब समजा कर चला जाऊ। में कैसे चला जाऊ हे माँ!”
माँ बोली – “मेरी बात मान, तेरी इस समस्या का भी समाधान मिल जायेगा। कल सवेरे उठ कर नाहा धो कर माँ संतोषी का नाम लेके, एक घी का दीपक जाला कर, माता को दंडवत प्रणाम करके दुकान पर जाके बैठ जा। देखते-देखते तेरा सारा लेन-देन चूक जायेगा। जमा माल बिक जायेगा। संध्या होते होते धन का भारी ढेर लग जायेगा।”
माँ की बात मान कर वो सूबे नाहा धो कर माँ संतोषी का नाम लेते हुए एक घी का दीपक करके माँ को दंडवत प्रणाम कर के अपनी दुकान पर जा बैठा। कुछ ही देर में सारे पैसे देने वाले अपना हिसाब चुकता कर के गये, लेने वाले सारे अपना हिसाब कर के गये। कोठे में पड़े माल को खरीदने के लिये लोग नकद दाम दे के खरीद कर गये। उसका मन बड़ा ही खुश हो गया और वो माता का नाम लेते हुए अपने घर ले जाने के वास्ते गहने, कपडे, मिठाईया खरीदने लगा। वहां का सारा काम निपटा कर वो सीधा अपने घर जाने रवाना हुआ।
उधर लडके की पत्नी जंगल में लकड़ी लेने जाती है और रास्ते में आते हुए माता के मंदिर पर रूकती है। यह तों अब उसका रोज का कर्म हो गया समजो, वही धूल उड़ती देख वो माता से पूछने लगती है – “हे माँ, यह धूल कैसे उड़ रही है?”
माँ बोली – “हे पुत्री, अब तेरा पति आ रहा है। अब तू ये काम कर इन लकड़ियों के तीन गठरे बना ले, एक उस नदी के पास, दूजा मेरे मंदिर में और तीसरा अपने सिर पर रख।
जब तेरा पति आएगा तों उसे इस लकड़ियों का गठर देख मोह पैदा होगा। वो यहाँ रुकेगा, अपना नाश्ता पानी करके अपनी माँ से मिलने जायेगा। तब उसी समय तू लकड़ियों का गठर लेके जाना और चौक में रखते हुए ज़ोर से आवाज़ लगाना – “लो मेरी सासुजी ये लकड़ियों का गठर लो, भूसे की रोटी दो और नारियल के खेपडे में पानी दो, आज यहाँ ये मेहमान कौन आया है?” माताजी से बहुत अच्छा बोल कर प्रसन्न मन से वो लकड़ियों के तीन गठर बनाती है और एक नदी ke किनारे पर और दूजा माता के मंदिर में रखती है।
इतने में मुसाफिर आ पहुँचता है। सुखी लकड़ी का ढेर देख कर उसकी विश्राम करने की इच्छा होती है। वो वंही विश्राम करता है और अपना भोजन भी कर लेता है और फिर कुछ देर बाद अपने गाँव जाने को निकल जाता है। गाँव पहोचते ही वो अपने माता पिता और संगी साथिओं को अच्छे से मिलता है और सबके हाल चाल पूछता है और चौक में जाके पड़ी खाट पर बैठ अपनी पत्नी का इंतेज़ार करने लगता है। इतने में वो बावली लकड़ी का ढेर लेके आती है और चौक में रख देती है और अपनी सासुमा को जोर से तीन आवाज़ लगाती है – “ये लो सासुमा, लकड़ी का गठर लेके आई हुँ। अब आप मुझे भूसे की रोटी दो और नारियल के खपेड़े में पानी। तब उसकी नज़र खाट पर बैठे आदमी पर गिरती है और वो बोल उठती है। अरे माई ये कौन महेमान आया हुआ है। तभी उसकी सासुमा उसे आवाज़ लगाते हुए बाहर आती है, अपने दिए गए अत्याचार पर पर्दा डालते हुए बोलती है। अरे ऐसा क्यों बोल रही है मेरी प्यारी बहु, और कौन महेमान आएगा। ये तों तेरा मालिक आया हुआ है। ये ले यहाँ बैठ और मीठा भात कहा। अच्छे कपडे और गहने पहिन। अपनी पत्नी की आवाज़ सुन उसका पति उसे देखता है और अपनी दी गई अंगूठी देख और व्याकुल हो जाता है और अपनी माँ से पूछता है।
बेटा – “माँ, ये कौन है?”
माँ – “बेटा, यह तेरी बहु है। जब से तू गया है ये बावली हो कर पुरे गांव में भटकती फिरती है। घर का काम काज कुछ करती नहीं। बस चार पहर आकर खाना खा जाती है।”
बेटा बोला – अच्छा माँ, मेने तेरी भी सुन ली और उसको भी देख लिया। ला अब मुझे दूसरे घर की चाबी दे में अब वही जाके रहूँगा।
माँ बोली – अच्छा बेटा ठीक है, जैसे तेरी मर्जी।
अब उसने दूसरे घर की तीसरी मंजिल का कमरा खोला और अपना सारा सामान जमाया। एक ही दिन में उसने एक पुराने कमरे को राजा के महल की तरह सजा दिया। अब क्या था उसकी पत्नी सुख भोगाने लगी। इतने में शुक्रवार आ गया।
शुक्रवार व्रत के उद्यापन में हुई भूल, किया खटाई का इस्तेमाल-
उसने अपने पति से कहा – “देखो, मुझे संतोषी माँ के व्रत का उद्यापन करना है।”
पति बोला – “अच्छा..!! ख़ुशी से करो।”
पति की रजामंदी मिलने पर वो ख़ुशी से माता के व्रत के उद्यापन में जुट गई। अपनी जेठानी के बच्चो को भोजन के लिये निमंत्रण देने चली गई। जेठानी ने स्वीकार तों किया लेकिन उसके जाते ही अपने बच्चों से कहने लगी, देखो भोजन के समय अपनी चाची से खटाई मांगना ताकि उसका उद्यापन पूरा ना हो पाए।
अब लडके भोजन के लिये आते है, खीर-खाना पेट भर खाते है और बाद में बोले – “अरे चाची, हमें खटाई दो..!! हमें ये खाना नहीं भाता, हमें अरुचि हो रही है।”
चाची ने कहा – “आज किसी को खटाई नहीं मिल सकती, ये तों माँ संतोषी का प्रसाद है। आपको यही मिलेगा।”
तब सब बच्चे उठ खड़े हुए और बोले – “लाओ चाची, हमें पैसा दे दो, हम तों चले”
चाची ने उन्हें पैसे दे दिया। और वो तभी इमली की खटाई ले के खाने लगे। यह देख माँ संतोषी बहु पर बहुत कुपित हुई। उसी दिन राजा के दूत उसके घर आये और उसके पति को धर के ले गये। वही जेठ – जेठानी ताना मरने लगे, सब लूट लूट कर धन इकठ्ठा किया हुआ है अब जब राजा की मार खायेगा तब जाके अक्कल ठिकाने आये गी। बहु उनके ये ताने बहोत चुभने लगे।
माँ संतोषी से माँगी माफी-
आँखों में अश्रु लिये वो दौड़ी दौड़ी माता के मंदिर पहोची और कहने लगी – “हे माँ, ये तूने क्या किया पहले हँसा कर अब भक्तो रुलाने लगी। ऐसी क्या भूल हो गई मुजसे!”
तब माँ ने कहा – “बेटी, तूने मेरा उद्यापन कर के व्रत को भंग किया है।”
उसने कहा – “माँ मेने कोई अपराध किया है मेने तों बस उन लडको को गलती से पैसे दे दिए थे, मुझे क्षमा करो माँ। अब में दुबारा आपका उद्यापन करुँगी।”माँ ने कहा – “जा, पुत्री तेरा पति तुझे रास्ते में ही आता मिलेगा।”
माँ बोली – “जा, अब भूल मत करना।”
उसने कहा – “माँ, अब भूल नहीं होंगी। अब बताओ वो कैसे आएंगे”
माँ ने कहा – “जा, पुत्री तेरा पति तुझे रास्ते में ही आता मिलेगा।”
वो अब ख़ुशी ख़ुशी वाह से निकली और रास्ते में अपने पति को आता हुआ देखा और बोली।
बहु – “कहा गये थे?”
पति – “अरे राजा ने बुलाया था। इतना धन जो कमाया है उसका कर उनके देके आया।”
बहु – “चलो जो हुआ अच्छा हुआ। अब घर चलो।”
अब कुछ दिन में फिर से शुक्रवार आता है।
फिर किया व्रत का उद्यापन-
वह फिर बोली – मुझे फिर माता का उद्यापन करना है।
पति ने कहा – “करो..!!!”
वो फिर जेठानी के लडको को भोजन के लिये बुलाने गई। अब जेठानी ने उसे खरी खोटी सुनाई और फिर अपने बच्चो को सिखाने लगी। तुम जब भोजन करने जाओ सबसे पहले तुम उनसे खटाई ही मांग लेना।
भोजन के दिन लडके अपनी चाची के घर जा पहुचे, और कहने लगे –
“चाची, आज हमें खीर नहीं खानी है। हमारा जी बिगड़ा हुआ है। आप हमें खटाई खाने को दो।”
चाची गुस्से में बोली – “आज किसी को यहाँ खटाई नहीं मिलेगी। खाना हो तों खाओ। अब वो ब्राह्मण के घर जाके उनके बेटों को आमंत्रित कर के लेके आ गई। उन्हें भर पेट भोजन करवाया और दक्षिणा की जगा यथा शक्ति एक एक फल हुए दिया और बिदा किया। माता बहोत प्रसन्न हुई।
संतोषी माता का फल-
माता की कृपा से उसे नवमे माह में चन्द्रमा के समान रुपवान पुत्र प्राप्त हुआ। अब वो प्रतिदिन माता के मंदिर अपने पुत्र को लेके आने लगी। एक दिन माता ने सोचा ये प्रति दिन मेरे मंदिर आया करती है क्यों ना आज में उसे मिलने उसके घर जाऊ। तब माता ने एक भयावह रूप धारण किया। गुड़ चने से सना हुआ मुँह, उस पर सुंढ की तरह लम्बे होंठ उस पर मक्खीया भीन-भीन कर रही थी। माता चलते चलते उसके घर आ पहुँचती है और उसके घर के देहलीज़ पर पैर रखती है। देहलीज़ पर पैर रखते ही उसकी सास चिल्लाते हुए बाहर आई और बोली – “अरे देखो देखो, ये तों कोई चुड़ैल डाकिनी दिखाई पडती है। अरे लडको कोई आओ इसे भगाओ नहीं तों ये किसी खा जाएगी। सभी लडके इकठ्ठा हुए और उसे भगाने लगे और चिल्ला कर खिड़किया बंध करवाने लगे।
बहु रोशनदान से सब देख रही थी, तभी वो बावली बन चिल्लाने लगी – अरे आज मेरी माता मेरे घर आई है। बावली बन दौड़ी दौड़ी अपने बच्चे को दूध पिता रोक वो उठ खड़ी हुई। ये सब देख सास का क्रोध फुट पड़ और वो बोली – “क्यों बावली बानी हुई है? क्यों उतावली हो रही है? मेरे बच्चे को पटक दिया।”
तभी माँ के प्रताप से उसे सभी तरफ बच्चे ही बच्चे नज़र आने लगे।
बहु बोली – माँ, में जिसका व्रत कर रही हुँ ये वही मेरी माता संतोषी है।
तब सबको बोध हुआ और सभी माता के चरणों में गिर गये और क्षमा याचना करने लगे – “हे माता..!! हम सब अज्ञानी है। आपके व्रत की विधि हम नहीं जानते है। हमने आपके व्रत को भंग करके एक बड़ा अपराध किया है। आप हमें आपके बालक जान हमारे अपराधों को क्षमा करें। इस प्रकार माता प्रसन्न हुई। बहु को प्रसन्न हो कर जो फल दिया, वैसा फल सबको दे, सबका मनोरथ पूर्ण हो। बोलो श्री माँ संतोषी की जय।
- Friday Vrat Story
- शुक्रवार व्रत कथा
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6. शक्तिपाठ और स्तुति
व्रत के समय निम्नलिखित mantra उच्चारण अत्यंत प्रभावशाली हैं:
“ॐ देवी लक्ष्म्यै नमः”
इस मंत्र को कम से कम 108 बार जपें, या अपनी श्रद्धानुसार। साथ ही आप “शुक्रवार स्तुति” गा सकते हैं:
“जय अम्बे गौरि, मैया जय शिवराति…”
ये mantras for Friday Vrat आपके मन को केंद्रित करते हैं और देवी की कृपा को आमंत्रित करते हैं।
- Friday Vrat Mantra
- देवी लक्ष्मी मंत्र
- shakti mantra for Friday fast
7. देवपूजा विधि
- साफ और सजावटी पूजा स्थल स्थापित करें—लाल रंग का वस्त्र, लाल फूल, दीप, अगरबत्ती।
- देवी की मूर्ति या तस्वीर के सामने kumbh, kalash, rice and flower offerings रखें।
- light diya, incense, और prasad (फल, दूर्वा, हलवा) अर्पित करें।
- मंत्रोच्चार (जप) के बाद अर्चना और आरती करें।
- अंत में prasad वितरण घर-परिवार में करें।
- Friday Vrat Puja Vidhi
- how to perform Friday fast puja
- शुक्रवार व्रत पूजा विधि
9. दीर्घकालिक भक्ति का महत्व
एक या दो बार व्रत रखना लाभदायक हो सकता है, लेकिन यदि आप इसे लंबे समय तक नियमित रखते हैं—तो devotion becomes a potent spiritual habit। इससे न केवल आपकी आंतरिक ऊर्जा मजबूत होती है, बल्कि जीवन में स्थायी समृद्धि और शांति स्थापित होती है।
- long‑term Friday Vrat devotion benefits
- how regular Friday fasting transforms life
- दीर्घकालिक व्रत की महिमा
10. निष्कर्ष
“ज्ञान की बातें” (https://www.gyankibaatein.com) पर प्रस्तुत यह प्रेरणादायक आर्टिकल आपको Friday Vrat significance, spiritual benefits, पूजा विधि, और व्रत की कथा से अवगत कराता है। यदि आप विश्वास, श्रद्धा और नियमितता से “Friday Vrat” पालन करते हैं, तो यह आपके जीवन में समृद्धि, मानसिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा ला सकता है।
आपके आध्यात्मिक पथ पर यह व्रत एक दीपस्तंभ की भांति उजाला फैले—“ज्ञान की बातें” में आपका आस्था मार्ग सदा प्रकाशित रहे।