बृहस्पतिवार : साप्ताहिक व्रत महिमा और कथा
साप्ताहिक व्रत

बृहस्पतिवार : साप्ताहिक व्रत महिमा और कथा

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गुरुवार का दिन हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यह दिन Jupiter god, Brihaspati, और Shukracharya जैसे देवों से संबंधित है, जिन्हें आध्यात्मिक उन्नति, बुद्धिमत्ता और आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है। हर सप्ताह गुरुवार का व्रत रखने से शांति, आनंद, समृद्धि और आत्मिक विकास प्राप्त होते हैं। इस आर्टिकल में हम देखेंगे “Guruwar Vrat benefits, weekly Thursday vrat importance, साप्ताहिक व्रत गुरुवार की महिमा, associated Guruwar vrat katha, कैसे रखें व्रत, किस देव को समर्पित करें, और साथ ही SEO‑friendly long‑tail keywords जैसे “best Thursday vrat benefits for family,” “Guruwar Vrat story in Hindi,” “how to observe Thursday fast at home” आदि को शामिल किया गया है।

1. गुरुवार व्रत का महत्त्व

1.1. ब्रह्मशक्ति और बुधिमत्ता

गुरुवार का दिन ज्योतिषशास्त्र में देवों के गुरु बृहस्पति (Jupiter) से जुड़ा है, जो ज्ञान, बुद्धि और धर्म का प्रतिक है। इससे गुरुवार व्रत विशेष रूप से “increase wisdom through Thursday fast,” “Brihaspati Puja for knowledge” जैसे long‑tail keywords से जुड़ा हुआ है।

1.2. वैभव और समृद्धि

गुरुवार व्रत से व्यक्ति पर रमणीय वैभव, “material prosperity Thursday vrat”, धन-संपत्ति में वृद्धि होती है। ऐसा माना जाता है कि व्रती को आर्थिक समस्याओं में सहायता मिलती है।

1.3. सामाजिक और पारिवारिक लाभ

परिवार में शांति, सामंजस्य, और पारस्परिक प्रेम बढ़ता है। लोग “family harmony through Thursday vrat” जैसे search queries करते हैं क्योंकि यह व्रत परिवारिक जीवन में स्थिरता लाता है।

2. गुरुवार व्रत के लाभ

प्रकारलाभ (Benefits)
आत्मिक (Spiritual)गहन ध्यान एवं साधना से मन की शांति, आत्म‑विश्वास और भक्ति भाव में वृद्धि होती है—(spiritual growth through Guruwar fast)
आर्थिक (Material/Financial)व्रत से वित्तीय बाधाएँ दूर होती हैं; “Thursday fast for financial success,” “Guruwar Vrat for wealth” की मांग बढ़ी है
स्वास्थ्य (Health & Wellness)व्रत के दौरान संतुलित भोजन प्रवृत्ति व आत्मसंचय से स्वास्थ्य बेहतर होता है—“health benefits of Thursday fasting”
मानसिक (Psychological)एकाग्रता, धैर्य और मानसिक संतुलन स्थिर होता है—“mental clarity from Thursday fasting” जैसी keyword research trends में दिखता है

3. व्रत कैसे करें?

3.1. योग्य दिन और समय

गुरुवार का व्रत सूर्य उदय के बाद ब्रह्म मुहूर्त अवधि में प्रारंभ किया जाता है। प्रातःकाल—“best time to start Thursday fast”—एक लोकप्रिय है।

3.2. पूजा विधि

  1. सुबह स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें
  2. पीले वस्त्र पहनें (Jupiter के प्रतीक रंग)
  3. घर या पूजा स्थल को पीले फूलों, हल्दी, गेरू से सजाएँ—(“Guruwar Vrat setup at home”)
  4. गणपति और बृहस्पति के चित्र/प्रतिमा स्थापित कर पूजन करें
  5. दूर्वा, गुड़, चने, हल्दी, पीली वस्तुएँ अर्पण करें
  6. गुरु मंत्र (जैसे “ॐ बृहस्पतिाय नमः”) का जाप करें—“Guru mantra for Thursday fast”
  7. भजन, कीर्तन, कथा सुनें
  8. राहत और शांति के लिए अंत में प्रसाद चढ़ाएँ

3.3. उपवास नियम

  • चावल, गेहूं के भोजन से परहेज़ करें
  • फलाहार, फल, दूध, शक्कर आदि का सेवन करें—“what to eat during Thursday fast”
  • दिनभर शांत रहें, ध्यान करें
  • अधिक तनाव से बचें

3.4. व्रत खोलना

  • शाम या अगले दिन सुबह हल्का भोजन लें
  • गुड़‑चने‑फलाहार से शुरू करें
  • धीमे‑धीमे सामान्य आहार पर लौटें—“how to break Thursday fast safely”

4. गुरुवार व्रत की कथा

पूर्वकाल की एक बात है। एक नगर में एक व्यापारी रहा करता था। वो जहाजो में माल लदवाकर अन्य देशो में माल भेजने का काम किया करता था। वो अपने व्यपार से बहुत धन कमाता था और वो जितना धन कमाता था उतना ही गरीबो में दान भी किया करता था। किन्तु उसकी पत्नी बहोत कंजूस थी वो किसी को एक दमड़ी भी देना पसंद नहीं करती थी।

एक बार वो धनिक शेठ अन्य नगर में व्यापार करने गया और उसके जाने के पश्चात भगवान बृहस्पति उसके घर भिक्षा मांगने के लिये आये। शेठ की पत्नी बृहस्पतिदेव से आकर बोली – “हे महाराज! में इस हर रोज के दान-पुण्य से तंग आ गई हुँ। आप कृपा कर के मुझे कोई ऐसा उपाय बताये की मेरा सारा धन नष्ट हो जाये और में आराम से अपने घर में रह सकूँ। में हर रोज ऐसे मेरे धन को लूटता हुआ नहीं देख सकती।

बृहस्पतिदेव ने कहा – “हे देवी! तुम बड़ी ही विचित्र जान पडती हो! संतान और धन की कामना तो सभी करते है मेने आज पहेली बार ऐसा देखा की कोई संतान और धन से इतना त्रस्त है। अगर तुम्हारे पास अधिक धन है तो इसे किसी पुण्य कार्य में लगाओ, कुंवारी कन्या का विवाह करवाओ बच्चो को पढ़ने के लिये विद्यालय बनवाओ, बाग़ और बगीचे का निर्माण करो। ऐसे पुण्य कार्य करने से तुम्हारे लोक और परलोक दोनों सुधर जायेंगे। किन्तु दुर्भाग्य वश शेठ की पत्नी को बृहस्पतिदेव की इस बात में कोई रूचि नहीं थी। उसने बड़े ही उद्धत स्वर में ब्रहस्पतिदेव को जवाब देते हुआ कहा – “मुझे ऐसे धन की अवश्यकता नहीं है जिसे में दान करू सकूँ।”

तब ब्रहस्पतिदेव बोले – “हे देवी! अगर तुम्हारी यही इच्छा है तो सुनो! तुम अब से सात ब्रहस्पतिवार तक अपने घर को गोबर से लिपना, अपने केशो को पिली मिट्टी से धोना और अपने केशो को धोते समय ही स्नान करना। अपने गंदे कपडे घर में ही धोना, मांस और मदिरा का सेवन करना और व्यापारी से हज़ामत बनाने को कहना। निश्चितरूप से तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जायेगा।” इतना बोल भगवान ब्रहस्पतिदेव वहाँ से अंतर्ध्यान हो गये।

व्यापारी शेठ की पत्नी ने बृहस्पतिदेव के कथननुसार अब सात बृहस्पतिवार को ऐसा ही करने का प्रण ले लिया। अब तक तो केवल तीन ही बृहस्पतिवार बीते थे की उसकी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई और वो परलोक सिधार गई। जब व्यापरी अपने घर वापस लौटा तो उसके होश उड़ चुके थे। उसने अपनी पुत्री को सांत्वना दी और किसी दूसरे नगर में जाके बस गया। वहाँ वो जंगल से लकड़ी काट के लाया करता था और उसे नगर में जाके बेच दिया करता था, इस तरह वो अपना और अपनी बेटी का गुजारा कर रहा था।

एक दिन व्यापारी की पुत्री ने दंही खाने की इच्छा बताई किन्तु व्यापारी के पास उसे समय दंही खरीदने के पैसे नहीं थे। वो अपनी पुत्री को आश्वाशन दे के जंगल में लकड़ी काटने को चला गया। वहाँ वो थक कर एक वृक्ष के निचे बैठ कर अपनी पूर्व दशा को याद करते हुए रोने लगा। वो दिन बृहस्पतिवार था। तभी बृहस्पतिदेव उस व्यापारी के समक्ष एक साधु के वेश लिये आ पहुचे और कहने लगे – “हे मानव! तुम इस प्रकार इस जंगल में उदास क्यों बैठे हुए हो?”

तब व्यापारी ने कहा – “हे विप्रवर! आप सर्वज्ञाता है, आपसे तो कुछ भी नहीं छीपा हुआ है। इतना बोल कर व्यापारी ने अपनी सारी कहानी रोते रोते उन्हें कह सुनाई। तब बृहस्पतिदेव बोले – “देखो पुत्र! यह सब तुम्हारी पत्नी की नादानियत के कारण हुआ है उसने बृहस्पतिदेव का अपमान किया था इसी कारण से तुम्हारी अब ये दशा हुई है। अब तुम बिलकुल भी चिंता मत करो। हर बृहस्पतिवार को बृहस्पतिदेव का पाठ करो। दो पैसे के चने और गुड़ को लेते हुए जल के लोटे में शक्कर को डाल कर वो अमृत रूपी प्रसाद अपने सगे संबंधिओ और कथा सुनने वालो में बाँट दो और स्वयं भी प्रसाद और चरणामृत का सेवन करो। भगवान बृहस्पति अवश्य ही तुम्हारा कल्याण करेंगे।”

साधु की बात सुन कर व्यापारी ने कहा – “हे महाराज! मेरी कमाई से इतना भी धन नहीं बचाता जिससे में अपनी पुत्री के लिये दंही तक खरीद सकूँ।” तब साधु वेश में आये बृहस्पति देव बोले – “तुम चिंता मत करो! आज जब तुम यह लकड़िया लेके बाजार में बेचने जाओगे तुम्हे इस लकड़ियों के पहले से चौगुने दाम मिलेंगे, इससे तुम अपने सभी कार्य सिद्ध कर पाओगे।

साधु महाराज के कहने पर व्यापारी ने उस दिन लकड़िया काटी और शहर में बेचने के लिये चला गया। जैसा की साधु महाराज ने कहा था उस दिन उसे लकड़िया बेचने पर पहले से अधिक धन प्राप्त हुआ और उससे उसने अपनी पुत्री के लिये दंही ख़रीदा और बृहस्पतिवार की कथा के लिये चने, गुड़ और शक्कर खरीदी। उसने आने वाली बृहस्पतिवार को कथा का आयेजन किया और सभी सगे सम्बन्धियों में गुड़ और चने का प्रसाद भी बांटा और खुद भी उसका सेवन किया। उसी दिन से उस व्यापारी के सभी कष्ट धीरे धीरे दूर होना शुरू हो गये थे। किन्तु दुर्भाग्य वश वो अगले गुरूवार को कथा करना भूल गया।

अगले दिन वंहा के राजा ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया और सभी नगरजनों को भोज के लिये आमंत्रित किया। राजा की आज्ञा अनुसार सभी नगरजन उस दिन राजा के महल में भोज करने के लिये पहुचे किन्तु व्यापारी और उसकी पुत्री को पहुंचने में थोड़ा विलम्ब हो गया। तब नगर के राजा ने उन्हें अपने भोजन कक्ष में ले जाके भोजन करवाया। जब वो दोनों भोजन कर के बाहर आये तब रानी ने देख की उनका खूंटी पर टंगा हुआ हार गायब है। रानी को व्यापारी और उसकी बेटी पर संदेह हुआ और उसे लगा की इन्होने ही उस हार को चुराया है। उसके बाद राजा की आज्ञा के अनुसार सिपाहियों ने दोनों व्यापारी और उसकी पुत्री को कोठरी में कैद कर लिया। कैद होने पर दोनों बड़े ही दुखी हुए। वहाँ उन्होंने बृहस्पतिदेव की प्रार्थना की।

व्यापारी और उसकी पुत्री की प्रार्थना सुन वंहा बृहस्पतिदेव प्रगट हुए और उन्हें उनकी भूल का अहसास करवाया और कहा अगले बृहस्पतिवार को तुम्हे कैद खाने के बाहर 2 पैसे मिलेंगे उससे तुम मुनाक्का और चने ले लेना और विधि विधान से भगवान बृहस्पति का पूजन करना। तुम्हारे सारे बिगड़े काम ठीक हो जायेंगे।

अगले बृहस्पतिवार उन्हें कारागार के द्वार पर दो पैसे मिले। व्यापारी ने देखा की बाहर सडक पर एक स्त्री जा रही थी, उसने उसे बुलाकर बोला – “बहन, मुझे बृहस्पतिवबवार का व्रत करना है क्या आप मेरे लिये गुड़ और चने ला के दोगे?” तब उस स्त्री ने कहा – “में अभी अपनी बहु के लिये गहने बनवाने जा रही हुँ मेरे पास समय नहीं है।” ऐसा कह वो वहाँ से चली गई। कुछ देर बाद एक दूसरी स्त्री वहाँ से गुजर रही थी उसने फिर उसे बुला कर उससे गुड़ और चने लाने को कहा।

बृहस्पतिदेव का नाम सुन कर वो स्त्री प्रसन्न हो कर बोली – “भाई, में तुम्हे अभी गुड़ और चने लाके देती हुँ, मेरा एक लौटा पुत्र मर गया है में उसके लिये कफन लाने निकली हुँ किन्तु में अभी तुम्हारा काम पहले करुँगी और उसके बाद में अपने बेटे के लिये कफन लाने जाउंगी।”
वह स्त्री बाजार जाके व्यापारी के लिये गुड़ और चना लेके आई और वही बैठ कर उसने भी बृहस्पतिवार की सम्पूर्ण कथा सुनी। कथा के समाप्त होने पर वो स्त्री अपने पुत्र के लिये कफन लेके अपने घर को पहुंची। वहाँ उसने देखा की सभी लोग उसके पुत्र को लेके “राम नाम सत्य है” के का नाम लेते हुए उसे श्मशान ले जाने की तैयारी कर रहे थे। वो स्त्री बोली – “भाइयो, रुको मुझे आपने पुत्र का अंतिम बार मुख तो देख लेने दो। अपने पुत्र का मुख देखने के बाद उस स्त्री ने उसके मुख में बृहस्पतिवार की कथा से लाया हुआ चरणामृत और प्रसाद डाला। प्रसाद के प्रभाव से वो लड़का पुनः जीवित हो उठा।

वंही पहली स्त्री जिसने बृहस्पतिदेव का निरादर किया था वो जब बाजार से अपने पुत्र की पुत्रवधु के लिये गहने खरीद कर वापस लौटी तो उसका बेटा घोड़ी पर सवार हो रहा था तभी उस घोड़ी ने एक ऐसी उछाल मारी की लड़का घोड़ी से उछाल कर निचे गिर गया और मर गया। वो अब यह सब देख बृहस्पतिदेव का नाम स्मरण करते हुए फुट फुट के रोने लगी थी।

उसी स्त्री की याचना से भगवान बृहस्पतिदेव वहाँ प्रगट हुए और उस स्त्री कहा – “हे पुत्री! तुम निराश ना हो यह सब तुमने मेरे भक्त का अनादर करने कारण ही हुआ है। तुम अभी मेरे भक्त के पास जाओ उससे क्षमा मांगो और उससे बृहस्पतिवार की कथा सुन कर आओ, तुम्हारा कल्याण हो जायेगा और तुम्हारी सभी अधूरी मनोकामना पूर्ण हो जायेगी।

कारागृह में जाके उस स्त्री ने व्यापारी के पास से कथा सुनी और कथा से प्राप्त हुआ प्रसाद और चरणामृत लेके वो वापस अपने घर गई और उसने भी वही प्रसाद और चरणामृत अपने मृत बेटे के मुख में डाला। चरणामृत के प्रभाव से उसका भी मृत बेटा जीवित हो उठा।

उसी रात्रि को भगवान बृहस्पतिदेव नगर के राजा के स्वप्न में आये और कहा – “हे राजन! तुम्हारे कारागार में सजा काट रहे व्यापारी और उसकी पुत्री निर्दोष है। तुम्हारी रानी का खोया हुआ हार अभी भी खूंटी पर ही टंगा हुआ है।”

प्रातः होत्ते ही राजा ने अपने स्वप्न की बात अपनी रानी से जाके कही और दोनों रानी का खोया हुआ हार वही खूंटी पर टंगा हुआ पाया। राजा और रानी को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने बिना विलम्ब किये कारावास से व्यापारी और उसकी पुत्री को मुक्त करवाया और उन्हें अपने प्रांत का आधा राज्य दे दिया और उसकी पुत्री का विवाह भी एक अच्छे कुल के संस्कारी युवक से करवाया और दहेज़ में भी अनेक हीरे जवाहरात दिये।

इस प्रकार से अगर कोई भी जातक पूर्ण श्रद्धा भाव से भगवान श्री बृहस्पतिदेव का पूजन और कथा श्रवण या वंचन करता है और विधि विधान से बृहस्पतिवार का व्रत अनुष्ठान करता है उसे भगवान बृहस्पतिदेव मनोवांचित फल प्रदान करते है इसमे बिलकुल भी संदेह नही है।


निष्कर्ष

गुरुवार का साप्ताहिक व्रत (Guruwar Vrat) सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह आत्मिक, मानसिक, और भौतिक समृद्धि का एक मार्ग भी है। इस शिविरता (discipline), भक्ति (devotion), और जागरूकता (awareness) से जीवन में शांति, ज्ञान, और धन की प्राप्ति संभव है। जब आप “gyankibaatein.com” पर इस लेख को प्रकाशित करेंगे, तो SEO‑friendly keywords और long‑tail phrases के उपयोग से आपकी वेबसाइट को न सिर्फ़ अधिक पाठक मिलेंगे, बल्कि वे पाठक आपके content में और अधिक जुड़ाव महसूस करेंगे।

आपका गुरुवार व्रत शुभ, शांतिमय और सफल हो—ज्ञान की बातें पढ़ते रहें और इससे प्रेरणा लें!


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