
ऋषि पञ्चमी 2026
हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाने वाला ऋषि पंचमी व्रत, हिंदू धर्म में एक खास स्थान रखता है. यह पर्व गणेश चतुर्थी के अगले दिन आता है और इसे पापों से मुक्ति तथा सातों ऋषियों की कृपा पाने का दिन माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से जीवन में हुई जाने-अनजाने गलतियों का प्रायश्चित हो जाता है. खासकर महिलाओं के लिए यह दिन बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह व्रत रजस्वला काल के दौरान हुए किसी भी धार्मिक दोष से मुक्ति दिलाता है
ऋषि पंचमी का महत्व

हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी का व्रत सप्तऋषियों की पूजा करने के लिए हर साल मनाया जाता है. कई जगहों पर ऐसा माना जाता है ऋषि पंचमी का व्रत संतान के सुख, वैवाहिक जीवन की खुशहाली और घर में समृद्धि के लिए महिलाएं खासतौर पर करती हैं. सप्त ऋषियों की पूजा करके वे उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती हैं. कहा जाता है कि जो लोग ऋषि पंचमी का व्रत करते हैं, उनके पिछले जन्म के जो भी पाप हैं, वे सब नष्ट हो जाते हैं. साथ ही इस जन्म में उन्हें अच्छे पुण्य मिलते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है. इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है
ऋषि पंचमी 2026 मुहूर्त
ऋषि पञ्चमी मंगलवार, सितम्बर 15, 2026 को
ऋषि पञ्चमी पूजा मुहूर्त – 11:02 ए एम से 01:30 पी एम
पञ्चमी तिथि प्रारम्भ – सितम्बर 15, 2026 को 07:44 ए एम बजे
पञ्चमी तिथि समाप्त – सितम्बर 16, 2026 को 08:59 ए एम बजे
ऋषि पंचमी पूजा विधि

- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ, हल्के पीले रंग के कपड़े पहनें.
- लकड़ी की चौकी पर सप्त ऋषियों (कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ) की फोटो या मूर्ति स्थापित करें.
- एक कलश में जल भरकर चौकी के पास रखें.
- सप्त ऋषियों को धूप, दीप, फूल, फल, मिठाई और नैवेद्य अर्पित करें.
- अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगें और दूसरों की मदद करने का संकल्प लें.
- सप्त ऋषियों की आरती करें और व्रत कथा सुनें.
- पूजा के बाद प्रसाद बांटें और बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लें.
ऋषि पंचमी की कथा
प्राचीन समय की बात है विदर्भ देश में एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी बड़ी पतिव्रता थी। जिसका नाम सुशीला था। उस ब्राह्मण के एक पुत्र व पुत्री दो संतान थीं। विवाह योग्य होने पर उसने समान कुलशील वर के साथ अपनी कन्या का विवाह कर दिया। दैवयोग से कुछ दिनों बाद ब्राह्मण की पुत्री विधवा हो गई। दुखी ब्राह्मण दंपति कन्या समेत गंगा तट पर कुटिया बनाकर रहने लगे। एक दिन ब्राह्मण कन्या सो रही थी कि उसका शरीर कीड़ों से भर गया। कन्या ने सारी बात मां से बताई। मां ने पति से सब बताते हुए कहा कि प्राणनाथ, मेरी कन्या की यह स्थिति होने का क्या कारण है? ब्राह्मण ने समाधि द्वारा इस घटना का पता लगाते हुए बताया कि पूर्व जन्म में भी यह कन्या ब्राह्मणी थी। इसने मासिक धर्म होते ही बर्तन छू दिए थे। इस जन्म में भी इसने लोगों की देखा-देखी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया, इसलिए इसके शरीर में कीड़े पड़े हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मासिक धर्म में स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी और तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है। चौथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है। मान्यता है कि यह व्रत भक्ति भाव व शुद्ध मन से करने से समस्त दुख दूर होते हैं और अगले जन्म में अटल सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत के प्रभाव से दुखों से मुक्ति मिलती है और अक्षय पुण्य मिलता है।
ऋषि पंचमी के दिन क्या करें

- ऋषि पंचमी सप्तऋषियों के साथ- साथ वशिष्ठ जी की पत्नी अरुंधति की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
- ऋषि पंचमी का व्रत सात साल करने के बाद आठवें साल में सप्तऋषियों की सात सोने की मूर्ति बनाकर उसका ब्राह्मण को दान अवश्य करें।
- ऋषि पंचमी के दिन देवी देवताओं की नहीं बल्कि सप्तऋषि की पूजा की जाती है।
- सप्तऋषि की पूजा में अपने गोत्र के ऋषि का नाम लेकर अवश्य पूजा करें।
- ऋषि पंचमी के दिन ब्राह्मण और गाय को भोजन अवश्य कराएं।
ऋषि पंचमी के दिन क्या ना करें

- ऋषि पंचमी के दिन व्रतधारी स्त्रियां ऋषि पंचमी के दिन जमीन में बोया अनाज ग्रहण न करें. इस व्रत में एक बार भोजन करने का विधान है. मोरधन, कंद, मूल का आहार कर व्रत करें. साथ ही ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.
- ऋषि पंचमी के दिन नमक का प्रयोग नहीं किया जाता। ऐसा करने से यह व्रत खंड़ित हो जाता है।
- ऋषि पंचमी के व्रत का उद्यापन महावारी खत्म होने के बाद ही करें। अगर आप इस व्रत का उद्यापन नहीं करती तो आपको इस व्रत का लाभ प्राप्त नहीं होगा।
- ऋषि पंचमी का व्रत निर्जल रहकर किया जाता है। इस व्रत में जल भी ग्रहण नहीं किया जाता।
- ऋषि पंचमी के दिन घर को गाय के गोबर से लिपना बिल्कुल भी न भूलें।