
कृष्ण जन्माष्टमी 2026
जन्माष्टमी के खास मौके पर हर ओर रौनक देखने को मिलती है। वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का पावन पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार4 सितम्बर शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस दिन भक्त भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप, लड्डू गोपाल, की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं। वहीं इस दिन मध्यरात्रि में भगवान का श्रृंगार किया जाता है और उनका अभिषेक होता है। साथ ही, इस दिन भजन-कीर्तन और जागरण भी किए जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस पावन दिन पर व्रत रखने और विधिपूर्वक पूजा करने से पापों से मुक्ति मिलती है।
कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व

ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक भारतवर्ष में रहने वाला जो प्राणी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करता है, वह सौ जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है। इसमें संशय नहीं है। वह दीर्घकाल तक वैकुंठ लोक में आनन्द भोगता है। फिर उत्तम योनि में जन्म लेने पर उसे भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति उत्पन्न हो जाती है-यह निश्चित है। अग्नि पुराण का कहना है कि इस तिथिको उपवास करने से मनुष्य कई जन्मों के किये हुए पापों से मुक्त हो जाता हैं, इसलिए भाद्रपद के कृष्णपक्ष की रोहिणी नक्षत्रयुक्त अष्टमी को उपवास रखकर भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करना चाहिये | यह भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी 2026 मुहूर्त
कृष्ण जन्माष्टमी शुक्रवार, सितम्बर 4, 2026 को
निशिता पूजा का समय – 11:57 पी एम से 12:43 ए एम
कृष्ण जन्माष्टमी पूजन सामग्री
श्रीकृष्ण की मूर्ति, एक लोटे में जल, आधा मीटर सफेद कपड़ा, आधा मीटर लाल कपड़ा,अपनी योग्यता के अनुसार पंच रत्न, फूल, माला, केसर, चंदन, कुमकुम, 5 यज्ञोपवीत, अबीर, गुलाल, अभ्रक, हल्दी, चावल (अक्षत), आम के पत्ते, श्री कृष्ण के लिए वस्त्र, आभूषण, धनिया की पंजीरी, माखन-मिश्री, तुलसी दल, मुकुट, मोर के पंख, बांसुरी, सिंहासन, झुला, सुपारी, पान के पत्ते, लकड़ी की चौकी, कमलगट्टा, तुलसी माला, खड़ी, धनिया गंगाजल, शहद, शकर, घी, डंडी के साथ खीरा, दही, दूध, मक्खन, मौसमी फल, दीपक, धूप, अगरबत्ती, कपूर, सप्तमृत्तिका, नैवेद्य या मिष्ठान्न, छोटी इलायची, लौंग, इत्र, पंच पल्लव (बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते), पंचामृत,तुलसी दल, बन्दनवार, ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा, श्रीफल (नारियल), धान्य (चावल, गेहूं, जौ, ज्वार), एक नई थैली में हल्दी की गांठ, झांकी सजाने के लिए सामान,
कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि

जन्माष्टमी के दिन प्रातः स्नान ध्यान के बाद पूजा स्थल को स्वच्छ करें और ईशान कोण में एक चौकी पर पीला या केसरिया कपड़ा बिछाकर भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या लड्डू गोपाल की स्थापना करें। खुद के लिए भी आसन बिछाएं और उस पर बैठकर पहले पवित्र जल से अपने ऊपर, फिर भगवान श्रीकृष्ण पर जल छिड़कें। अब भगवान के बाल स्वरूप का ध्यान करते हुए पूजा की सफलता के लिए प्रार्थना करें। अब भगवान श्रीकृष्ण को एक बड़े पात्र में रखकर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल) से अभिषेक करें। अभिषेक के बाद उन्हें शुद्ध जल से स्नान कराएं और स्वच्छ कपड़े से पोंछ दें। फिर पीतांबर वस्त्र, आभूषण और मुकुट पहनाकर उनका सुंदर श्रृंगार करें। माथे पर गोपी चंदन, रोली, हल्दी या केसर का तिलक लगाएं। इसके बाद उन्हें पुष्प-माला, तुलसी दल और दूर्वा अर्पित करें। नैवेद्य के रूप में माखन-मिश्री, फल, पान, सुपारी आदि अर्पित करें और प्रसाद पर जल फेरकर उन्हें समर्पित करें। पूजा के दौरान श्रीकृष्ण चालीसा, मंत्र या स्तोत्र का पाठ करें। आखिरी में कान्हा की आरती करें और पूजा में हुई भूल चुक के लिए क्षमा मांगें।
कृष्ण जन्माष्टमी की कथा
द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था।
एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था।
रास्ते में आकाशवाणी हुई- ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।’ यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ। तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- ‘मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है?कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया।
वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था।
उन्होंने वसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ ‘माया’ थी।
जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- ‘अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं।
तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो। इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी। उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए।
अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है।
उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- ‘अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।’ यह है कृष्ण जन्म की कथा।
कृष्ण जन्माष्टमी उपवास नियम

- जन्माष्टमी व्रत के नियम एक दिन पहले से शुरू हो जाते हैं।
- जन्माष्टमी से एक दिन पहले यानी सप्तमी तिथि को सात्विक भोजन करें और मन शांत रखें।
- व्रती को पूरे दिन अपनी इच्छानुसार निर्जला या फलाहार उपवास रखना चाहिए।
- इस दिन प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा, तंबाकू इत्यादि चीजों का भूलकर भी सेवन नहीं करना चाहिए।
- व्रत वाले दिन सुबह स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान श्री कृष्ण के समक्ष घी का दीपक जलाकर व्रत का संकल्प लें।
- पूरे दिन अपना मन भगवान की भक्ति में लगाएं रखें।
- इस व्रत में अन्न का सेवन बिल्कुल भी न करें। आप फलाहारी भोजन ले सकते हैं।
- रात के समय भगवान को पंचामृत से स्नान कराएं और परिवार सहित उनकी आरती करें।
- इसके बाद भगवान को भोग लगाकर प्रसाद सभी में बांट दें।
- जन्माष्टमी का व्रत अपने यहां की परंपरा के अनुसार उसी दिन रात 12 बजे के बाद या फिर अगले दिन सूर्योदय के बाद खोलना चाहिए।
- इस दिन भगवान के मंदिर में जाकर दर्शन जरूर करने चाहिए।
कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रात में कैसे खोलें

- जन्माष्टमी की रात में व्रत खोलने से पहले भगवान कृष्ण की विधि विधान पूजा करें और उन्हें उनकी प्रिय चीजों का भोग लगाएं। इसके बाद पूजा में चढ़ाए गए प्रसाद को खाकर अपना व्रत खोल लें। रात की पूजा के बाद आप सात्विक भोजन ग्रहण कर सकते हैं।