
नवरात्रि शब्द, जिसका अर्थ है ‘नौ रातें’, वह अवधि है जो नींद में मिलने वाले विश्राम और नवीनीकरण को दर्शाती है। मां दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित नवरात्रि का त्योहार साल में दो बार मनाया जाता है। एक तो चैत्र में और एक शारदीय नवरात्रि। इस बार 22 सितंबर से शारदीय नवरात्रि शुरू होने वाली है जिसे पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा।
हालांकि, अलग-अलग राज्यों में इसे अलग परंपरा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ मनाया जाता है। जैसे- गुजरात में पारंपरिक गरबा और डांडिया नृत्य, पश्चिम बंगाल में भव्य दुर्गा पूजा पंडाल और देवी की मूर्तियाँ, दक्षिण भारत में बोम्मई गोलू नामक गुड़ियों की सजावट, और उत्तर भारत में कन्या पूजन के साथ-साथ उपवास और जागरण शामिल हैं। त्योहार का मूल विचार बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाना है।
नवरात्रि का महत्व

नवरात्रि में 9 दिनों तक देवी मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा-अर्चना पूरे मनोभाव से की जाती है. इस साल शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri) 3 अक्टूबर 2024 से शुरू होकर 12 अक्टूबर तक चलेगी. हिंदू धर्म में नौ दिनों का त्योहार शक्ति और भक्ति का प्रतीक माना जाता है. इसमें माता की आराधना से जीवन सुखमय बनता है.
नवरात्रि 2025 मुहूर्त
प्रथम – 22 सितम्बर 2025 ( मां शैलपुत्री घटस्थापना )
द्वितीय – 23 सितम्बर 2025 ( मां ब्रह्मचारिणी )
तृतीय – 24 सितम्बर 2025 ( माँ चन्द्रघण्टा )
25 सितम्बर 2025 ( विनायक चतुर्थी )
चतुर्थी – 26 सितंबर 2025 ( मां कूष्मांडा पूजा )
पंचमी – 27 सितंबर 2025 ( मां स्कंदमाता पूजा )
षष्ठी – 28 सितंबर 2025 ( मां कात्यायनी पूजा )
सप्तमी – 29 सितंबर 2025 ( मां कालरात्रि पूजा )
महाअष्टमी – 30 सितंबर 2025 ( मां महागौरी पूजा )
महानवमी नवरात्रि – 1 अक्टूबर 2025 ( मां सिद्धिदात्री पूजा )
व्रत पारण / दशहरा – 2 अक्टूबर 2025 ( दुर्गा विसर्जन और दशहरा पर्व )
नवरात्रि पूजा सामग्री
एक चौकी, लाल कपड़ा, अक्षत, माता जी की प्रतिमा या चित्र, गणेश जी की प्रतिमा या चित्र, पीतल या तांबे का कलश/लोटा, सिक्का, पुष्प, लाल चुनरी, मौली, मिट्टी का बड़ा दीपक, लौंग, इलायची, ऋतु फल, बताशे या मिश्री और कपूर।
यह सभी सामग्री पूजा से कुछ दिन पहले एकत्रित कर लें। नवरात्रि के प्रथम दिन आप प्रातःकाल उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत हो जाएं और स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद ही पूजन विधि का प्रारंभ करें
नवरात्रि पूजा विधि

- सबसे पहले पूजन स्थल पर चौकी लगा लें और इसपर लाल रंग का कपड़ा बिछा लें।
- अब इस चौकी पर कुछ अक्षत यानी बिना टूटे चावल रखें और इसपर देवी दुर्गा जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- अब एक लोटे या कलश में शुद्ध जल भर लें।
- इसके अंदर एक सिक्का डालें।
- अब इसके ऊपर चावल से भरी एक प्लेट रख दें।
- इस कलश को माता की प्रतिमा के बाएं ओर 9 दिनों के लिए रख दें। इसे आपको रोज़ स्थापित नहीं करना है।
- इसके पश्चात् आप पूजन स्थल पर गणपति जी की प्रतिमा को विराजमान करें, अगर आपके पास प्रतिमा नहीं है तो सुपारी के रूप में भी बप्पा जी को विराजमान कर सकते हैं।
- भगवान गणेश और देवी दुर्गा जी पर पुष्प से शुद्ध जल का छिड़काव करें।
- अगर आप अखंड ज्योत नहीं जला पा रहे हैं तो आप केवल घी का दीपक जला लें।
- दीप प्रज्वलित करने के बाद गणेश जी, माता रानी, कलश और दीपक को हल्दी-कुमकुम का तिलक लगाएं।
- भगवान गणेश और देवी जी को वस्त्र स्वरूप कलावा या मौली अर्पित करें, साथ ही फूल भी अर्पित करें।
- वैसे तो माता दुर्गा को श्रृंगार की सामग्री भी चढ़ाई जाती है, लेकिन अगर ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है तो आप एक लाल चुनरी या लाल वस्त्र अवश्य माता को चढ़ाएं।
- भोग में बताशे, मिश्री, और फल अर्पित कर सकते हैं।
- हवन के स्थान पर आप एक मिट्टी के पात्र या बड़े दीपक में कपूर जला लें और इसमें लौंग का 1 जोड़ा ज़रूर रख दें। कुछ लोग लौंग के दो जोड़े भी अग्नि में डालते हैं।
- यह हवन माता को दिखाएं और पूरे घर में भी दिखाएं। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है। यह 9 दिनों तक रोज़ जलाएं।
ध्यान दें– आप बिना अक्षत के भी देवी जी की प्रतिमा की स्थापना कर सकते हैं और अगर आप चौकी भी नहीं लगा सकते हैं तो घर के मंदिर को ही शुद्ध और स्वच्छ करके वहां पर देवी जी का पूजन करें।
आरती से पहले आप भगवान गणेश और माँ दुर्गा को समर्पित काफी आसान लेकिन प्रभावी मंत्रों का जाप कर सकते हैं
नवरात्रि की कथा
प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीठत नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था, वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके संपूर्ण सद्गुणों से युक्त सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई। वह कन्या सुमति अपने पिता के घर बाल्यकाल में अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कला बढ़ती है। उसका पिता प्रतिदिन जब दुर्गा की पूजा करके होम किया करता, वह उस समय नियम से वहां उपस्थित रहती। एक दिन सुमति अपनी सखियों के साथ खेल में लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और वह पुत्री से कहने लगा अरी दुष्ट पुत्री! आज तूने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ट रोगी या दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूंगा। पिता का ऐसा वचन सुन सुमति को बड़ा दुख हुआ और पिता से कहने लगी- हे पिता! मैं आपकी कन्या हूं तथा सब तरह आपके आधीन हूं जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। राजा से, कुष्टी से, दरिद्र से अथवा जिसके साथ चाहो मेरा विवाह कर दो पर होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है, मेरा तो अटल विश्वास है जो जैसा कर्म करता है उसको कर्मों के अनुसार वैसा ही फल प्राप्त होता है क्योंकि कर्म करना मनुष्य के आधीन है पर फल देना ईश्वर के आधीन है। जैसे अग्नि में पड़ने से तृणादि उसको अधिक प्रदीप्त कर देते हैं। इस प्रकार कन्या के निर्भयता से कहे हुए वचन सुन उस ब्राह्मण ने क्रोधित हो अपनी कन्या का विवाह एक कुष्टी के साथ कर दिया और अत्यन्त क्रोधित हो पुत्री से कहने लगा-हे पुत्री! अपने कर्म का फल भोगो, देखें भाग्य के भरोसे रहकर क्या करती हो? पिता के ऐसे कटु वचनों को सुन सुमति मन में विचार करने लगी- अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला। इस तरह अपने दुख का विचार करती हुई वह कन्या अपने पति के साथ वन में चली गई और डरावने कुशायुक्त उस निर्जन वन में उन्होंने वह रात बड़े कष्ट से व्यतीत की। उस गरीब बालिका की ऐसी दशा देख देवी भगवती ने पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रगट हो सुमति से कहा- हे दीन ब्राह्मणी! मैं तुझसे प्रसन्न हूं, तुम जो चाहो सो वरदान मांग सकती हो। भगवती दुर्गा का यह वचन सुन ब्राह्मणी ने कहा- आप कौन हैं वह सब मुझसे कहो? ब्राह्मणी का ऐसा वचन सुन देवी ने कहा कि मैं आदि शक्ति भगवती हूं और मैं ही ब्रह्मविद्या व सरस्वती हूं। प्रसन्न होने पर मैं प्राणियों का दुख दूर कर उनको सुख प्रदान करती हूं। हे ब्राह्मणी! मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं। तुम्हारे पूर्व जन्म का वृतांत सुनाती हूं सुनो! तू पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की। चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेलखाने में कैद कर दिया। उन लोगों ने तुझको और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न जल ही पिया इस प्रकार नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी! उन दिनों में जो व्रत हुआ, इस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर मैं तुझे मनोवांछित वर देती हूं, तुम्हारी जो इच्छा हो सो मांगो। इस प्रकार दुर्गा के वचन सुन ब्राह्मणी बोली अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हे दुर्गे। मैं आपको प्रणाम करती हूं कृपा करके मेरे पति का कोढ़ दूर करो। देवी ने कहा- उन दिनों तुमने जो व्रत किया था उस व्रत का एक दिन का पुण्य पति का कोढ़ दूर करने के लिए अर्पण करो, उस पुण्य के प्रभाव से तेरा पति कोढ़ से मुक्त हो जाएगा। इस प्रकार देवी के वचन सुन वह ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और पति को निरोग करने की इच्छा से जब उसने तथास्तु (ठीक है) ऐसा वचन कहा, तब उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ट रोग से रहित हो अति कान्तिवान हो गया। वह ब्राह्मणी पति की मनोहर देह को देख देवी की स्तुति करने लगी- हे दुर्गे! आप दुर्गति को दूर करने वाली, तीनों लोकों का सन्ताप हरने वाली, समस्त दु:खों को दूर करने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली, प्रसन्न हो मनोवांछित वर देने वाली और दुष्टों का नाश करने वाली जगत की माता हो। हे अम्बे! मुझ निरपराध अबला को मेरे पिता ने कुष्टी मनुष्य के साथ विवाह कर घर से निकाल दिया। पिता से तिरस्कृत निर्जन वन में विचर रही हूं, आपने मेरा इस विपदा से उद्धार किया है, हे देवी। आपको प्रणाम करती हूं। मेरी रक्षा करो। उस ब्राह्मणी की ऐसी स्तुति सुन देवी बहुत प्रसन्न हुई और ब्राह्मणी से कहा- हे ब्राह्मणी! तेरे उदालय नामक अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र शीध्र उत्पन्न होगा। ऐसा वर प्रदान कर देवी ने ब्राह्मणी से फिर कहा कि हे ब्राह्मणी! और जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मांग ले। भगवती दुर्गा का ऐसा वचन सुन सुमति ने कहा कि हे भगवती दुर्गे! अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे नवरात्र व्रत की विधि और उसके फल का विस्तार से वर्णन करें। हे बृहस्पते! इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी अर्न्तध्यान हो गई। जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को भक्तिपूवर्क करता है वह इस लोक में सुख प्राप्त कर अन्त में दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त होता है।
नवरात्रि पर कन्या पूजन के नियम

- सर्वप्रथम माँ जगदम्बा के सभी नौ स्वरूपों का स्मरण करते हुए घर में प्रवेश करते ही कन्याओं के पाँव धोएं।
- इसके बाद उन्हें उचित आसन पर बैठाकर उनके हाथ में मौली बांधे और माथे पर बिंदी लगाएं।
- उनकी थाली में हलवा-पूरी और चने परोसे।
- अब अपनी पूजा की थाली जिसमें दो पूरी और हलवा-चने रखे हुए हैं, के चारों ओर हलवा और चना भी रखें। बीच में आटे से बने एक दीपक को शुद्ध घी से जलाएं।
- कन्या पूजन के बाद सभी कन्याओं को अपनी थाली में से यही प्रसाद खाने को दें।
- अब कन्याओं को उचित उपहार तथा कुछ राशि भी भेंट में दें।
- जय माता दी कहकर उनके चरण छुएं और उनके प्रस्थान के बाद स्वयं प्रसाद खाने से पहले पूरे घर में खेत्री के पास रखे कुंभ का जल सारे घर में बरसाएँ।
नवरात्रि के दौरान न करें ये काम

- अगर आप नवरात्रि के नौ दिनों तक अखंड ज्योति जलाने वाले हैं, तो गलती से भी आपको घर खाली छोड़कर नहीं जाना चाहिए। जिस घर में अखंड ज्योत जली हो वहां हर समय कोई न कोई अवश्य होना चाहिए।
- नौ दिन का व्रत रखने वाले भक्त को प्रतिदिन स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। नवरात्रि के दौरान अगर आप स्वच्छ नहीं रहेंगे तो माता आप से नाराज हो सकती हैं।
- नवरात्रि के व्रत का व्रत रखने वालों को नींबू खाने से भी परहेज करना चाहिए। इसके साथ ही मांस-मदिरा का सेवन करने से भी बचें, अगर आप मांस-मदिरा का सेवन करते हैं तो माता आपसे रुष्ट हो जाएंगी।
- कई लोग नवरात्रि के दौरान व्रत रखते हैं और दिन में सो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रि के दौरान आपको गलती से भी दिन के समय नहीं सोना चाहिए। दिन के समय आप माता के मंत्रों का जप कर सकते हैं।
- नवरात्रि के नौ दिनों में वासना जनित विचारों को न आने दें। मन को विचलित होने से रोकें और इसके लिए आध्यात्मिक पुस्तकों को पढ़ें। इस दौरान शारीरिक संबंध बनाने से भी आपको बचना चाहिए।
- व्रत रखने वाले भक्तों को चमड़े से बनी चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। बेल्ट, जूते-चप्पल यदि चमड़े के हैं तो उनका इस्तेमाल इस अवधि में न करें।
- नवरात्रि में भोजन को लेकर भी नियम बताए गए हैं। इस दौरान आपको लहसुन-प्याज जैसे तामसिक भोज्य पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए।
- नौ दिनों तक नाखून, दाढ़ी, बाल और नाखून काटने की भी मनाही होती है।
- व्रत रखने वाले फलाहार कर सकते हैं, लेकिन फलाहार आपको प्रतिदिन एक ही स्थान पर करना चाहिए।
- इस अवधि में माता की पूजा के दौरान गलती से भी बीच में न उठें। अगर आप ये गलती करते हैं तो माता नाराज हो सकती हैं।