द्वारकाधीश मंदिर , गुजरात 
धार्मिक स्थल

द्वारकाधीश मंदिर , गुजरात 

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देशभर में देवी-देवताओं को समर्पित कई ऐसे मंदिर हैं, जो अपने रहस्य या अन्य कारण से प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा कुछ मंदिर अपनी वास्तुकला और भव्य बनावट के लिए जाने जाते हैं। इनमें गुजरात के द्वारका में स्थित भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित द्वारकाधीश मंदिर है। धार्मिक मान्यता है कि द्वापर युग के दौरान द्वारकाधीश मंदिर के स्थान पर भगवान कृष्ण का निवास स्थल था, जिसे हरि गृह के नाम से जाना जाता था। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा विराजमान है, लेकिन उनकी आंखे बंद हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वह सुदामा की गरीबी को नहीं देख सकते थे।

द्वारकाधीश मंदिर का इतिहास

काठियावाड़ प्रायद्वीप के पश्चिमी सिरे पर स्थित द्वारका को भारत के सबसे पवित्र स्थलों – बद्रीनाथ, पुरी और रामेश्वरम सहित चार धामों – में शामिल किया गया है। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण इस शहर को बसाने के लिए उत्तर प्रदेश के ब्रज से यहाँ आए थे। मंदिर की स्थापना उनके पौत्र ने की थी। यह गोमती नदी और अरब सागर के संगम पर स्थित है, जो इस आध्यात्मिक स्थल को एक मनोरम पृष्ठभूमि प्रदान करता है। ऐसा कहा जाता है कि द्वारका छह बार समुद्र में डूबी थी और अब हम जो देख रहे हैं वह उसका सातवाँ अवतार है। इस मंदिर की एक रोचक कथा है। मूल संरचना को महमूद बेगड़ा ने 1472 में नष्ट कर दिया था, और बाद में 15वीं-16वीं शताब्दी में इसका पुनर्निर्माण किया गया था। 8वीं शताब्दी के हिंदू धर्मशास्त्री और दार्शनिक आदि शंकराचार्य ने भी इसकी पूजा की थी।

द्वारकाधीश मंदिर के खुलने और बंद होने का समय

सुबह : 6:30 बजे – 1:00 बजे

शाम : 5:00 बजे – 9:30 बजे

द्वारकाधीश मंदिर पूजा का समय

सुबह की आरती: 06:30 बजे.

श्रृंगार आरती: 09:00 बजे.

शाम की आरती: 07:00 बजे

द्वारकाधीश मंदिर की वास्तुकला

द्वारकाधीश मंदिर की वास्तुकला चालुक्य शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें चूना पत्थर और बलुआ पत्थर से बनी पांच मंजिला संरचना है. मंदिर की विशेषता इसका 78.3 मीटर ऊँचा शिखर है, और इसकी दीवारों पर भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ी जटिल नक्काशी और चित्रकारी की गई है. इसमें “मोक्ष द्वार” और “स्वर्ग द्वार” नामक दो प्रवेश द्वार हैं, जो क्रमशः बाज़ार और गोमती नदी की ओर ले जाते हैं. मंदिर की अनूठी विशेषताएं उसके 52 गज़ के पवित्र ध्वज और 72 स्तंभों पर आधारित संरचना हैं.  

द्वारकाधीश मंदिर की कथा

एक किंवदंती के अनुसार, द्वारका नगरी का निर्माण श्रीकृष्ण के आग्रह पर भगवान विश्वकर्मा द्वारा (देवताओं के शिल्पकार एवं वास्तुकार) गोमती नदी के तट पर समुद्री भूमि के एक टुकड़े पर किया गया था। कहते हैं कि विश्वकर्माजी द्वारा केवल एक रात्रि में ही इस भव्य नगरी का निर्माण पूरा हो गया था। उस समय यह द्वारका नगरी स्वर्ण द्वारका के नाम से जानी जाती थी क्योंकि उस काल के दौरान अपनी धन, वैभव और समृद्धि के कारण यहां स्वर्ण का दरवाजा लगा हुआ था। एक बार दुर्वासा ऋषि श्रीकृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मिणीजी से मिलने गए उनसे मिलने के बाद उन्होंने श्रीकृष्ण से उनके निवास स्थान, द्वारका नगरी पर चलने का अनुरोध किया।

द्वारका नगरी की तरफ कुछ दूर जाने के बाद ही रुक्मिणी देवी थक गईं और उन्होंने श्रीकृष्ण से पानी पीने का अनुरोध किया। जिसके बाद श्रीकृष्ण ने देवी रुक्मिणी की प्यास बुझाने के लिए एक पौराणिक छेद से गंगा नदी के धारा को प्रवाहित कर दिया। इस घटना से महृषि दुर्वासा को ऐसा लगा कि रुक्मिणी देवी उन्हें द्वारका जाने से रोकने का प्रयास कर रहीं हैं, जिससे क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि ने रुक्मिणीजी को उसी स्थान पर रहने का श्राप दे दिया। माना जाता है कि जिस स्थान पर रुक्मणी देवी श्राप के समय खड़ी हुई थी, उसी स्थान पर द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण किया गया।

माता गांधारी का श्राप और द्वारका नगरी का अंत

महाभारत के युद्ध में पांडवों का समर्थन करने के कारण, कौरवों की माता गांधारी ने युद्ध के पश्चात भगवान श्री कृष्ण को यह श्राप दिया था कि जिस तरह श्रीकृष्ण ने सभी भाइयों को आपस में लड़वाकर उनके कुल का नाश किया है, ठीक उसी प्रकार भगवान श्री कृष्ण का यदुवंश भी आपस में लड़कर समाप्त हो जायेगा और श्रीकृष्ण को चाहकर भी यह विनाश रोक नहीं पाएंगे और उनको यह विनाश अपनी आँखों से देखना पड़ेगा।

आगे श्राप देते हुए माता गांधारी ने कहा कि श्रीकृष्ण को अपने निवास स्थान से दूर कही किसी घने जंगल में मृत्यु आएगी उनकी मृत्यु के समय उनका कोई भी अपना उनके साथ नहीं होगा तत्पश्चात द्वारका नगरी भी समुद्र के गर्भ में समां जाएगी। महाभारत युद्ध के ठीक 36 वर्षो के बाद माता गांधारी का श्राप फलित हुआ और यदुकुल की समाप्ति के पश्चात द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई।

द्वारका द्वापर युग में भगवान कृष्ण की राजधानी थी, और आज कलयुग में यह स्थान भक्तों के लिए महातीर्थ माना जाता है। गोमती नदी के तट पर स्थापित यह मंदिर बहुत ही सुंदर व अद्भुत है यही नहीं इस स्थान पर गोमती नदी अरब सागर से मिलती है। द्वारकाधीश उपमहाद्वीप पर भगवान विष्णु का 108वां दिव्य मंदिर है, दिव्य प्रधान की महिमा पवित्र ग्रंथों में भी मानी जाती है। द्वारकाधीश मंदिर हिंदूओं के पवित्र धाम, चार धाम में से एक तीर्थ स्थल माना जाता है।

द्वारकाधीश मंदिर के 52 गज के ध्वज का रहस्य

  • कुछ लोग बोलते हैं कि द्वारका पर 56 प्रकार के यादवों ने राज किया था । जिनमें से मुख्य 4 (बलरामजी, श्रीकृष्ण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध) के मंदिर तो अभी भी बने हुए हैं शेष बचे 52 प्रकार के यादवों के प्रतीक के रूप में यह ध्वज 52 गज का है ।
  • एक और मान्यता अनुसार 12 राशि, 27 नक्षत्र, 10 दिशाएं , सूर्य, चन्द्रमा और श्री द्वारकाधीश मिलकर 52 होते हैं । इसीलिए द्वारकाधीश मंदिर पर 52 गज का ही ध्वज फहराया जाता है । इस ध्वज की खासियत यह है कि, हवा की दिशा चाहे जो भी हो, यह ध्वज हमेशा पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर ही लहराता रहता है।
  • एक और मान्यता अनुसार द्वारका में एक समय पर 52 द्वार हुआ करते थे। यह ध्वज उसी का प्रतीक है। मंदिर के इस ध्वज को एक खास दर्जी ही सिलता है। जब ध्वज बदलने की प्रक्रिया होती है, तो उस तरफ देखने की भी मनाही होती है। 

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