सोमनाथ मंदिर , गुजरात 
धार्मिक स्थल

सोमनाथ मंदिर , गुजरात 

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सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे स्थापित है यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है, जहां भगवान शिव एक ज्योति के रूप में प्रकट हुए थे। इस मंदिर के निर्माण, विध्वंस और फिर से बनने की यात्रा बड़ी रोचक है। कहते हैं कि सोमनाथ मंदिर का शिवलिंग हवा में तैरता रहता था। इस मंदिर का संबंध भगवान चंद्रदेव से है, जिन्होंने अपने ससुर दक्ष प्रजापति के श्राप से मुक्त होने के लिए यहां पर भगवान भोलेनाथ की आराधना की थी। 

सोमनाथ मंदिर का इतिहास

सोमनाथ मंदिर हिंदुओं के लिए एक पावन स्थल है क्योंकि मिथकों के अनुसार इसे शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला माना जाता है. कहते हैं कि इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव सोमराज ने किया था. इसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है. इस मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी. अरब यात्री अल बरूनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका विवरण लिखा जिससे प्रभावित हो महमूद ग़ज़नवी ने सन 1025 में सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया.

इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया. सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो इसे फिर गिराया गया. सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण और विनाश का सिलसिला जारी रहा.

इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया.

सोमनाथ मंदिर के खुलने और बंद होने का समय

सुबह: 6:00 बजे 

दोपहर: 10:00 बजे

सोमनाथ मंदिर पूजा का समय

सुबह की आरती:  7:00 बजे

दोपहर की आरती: 12:00 बजे 

शाम की आरती: 7:00 बजे

ध्वनि एवं प्रकाश शो रात : 8:00 बजे – 9:00 बजे

सोमनाथ मंदिर की वास्तुकला

श्री सोमनाथ मंदिर चालुक्य शैली की वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिसे मारू-गुर्जर वास्तुकला भी कहा जाता है। पीले बलुआ पत्थर से निर्मित इस मंदिर में जटिल नक्काशी, विशाल शिखर और एक भव्य गर्भगृह है जिसमें ज्योतिर्लिंग स्थापित है। मंदिर का शिखर 155 फीट ऊँचा है, जिस पर एक स्वर्ण कलश और एक पवित्र ध्वज है जो निरंतर लहराता रहता है।

इसके सबसे अनोखे पहलुओं में से एक है बाण स्तंभ (बाण स्तंभ), एक प्राचीन शिलालेख जो मंदिर को सोमनाथ और अंटार्कटिका के बीच सीधी रेखा में पहला भूमि बिंदु बताता है। मंदिर परिसर में प्रार्थना कक्ष, पूजा स्थल और एक विशाल प्रांगण है, जो इसे दिव्यता और शिल्प कौशल का एक उत्कृष्ट संगम बनाता है। चाहे आध्यात्मिक कारणों से जाएँ या स्थापत्य कला की प्रशंसा के लिए, सोमनाथ मंदिर हर यात्री पर एक अमिट छाप छोड़ता है।

सोमनाथ मंदिर की कथा

न्द पुराण के अनुसार चंद्रमा ने दक्ष की 27 पुत्रियों से विवाह किया था लेकिन एकमात्र रोहिणी के प्रति उनका प्रेम बहुत ज्यादा था. इसकी वजह से बाकी की छब्बीस रानियां अपने आप को को उपेक्षित और अपमानित अनुभव करने लगीं. उन्होंने इसकी शिकायत अपने पिता से की. पुत्रियों की वेदना को देखकर राजा दक्ष ने चंद्र देव को समझाने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं माने. इस पर राजा दक्ष ने चंद्रमा को धीरे-धीरे खत्म हो जाने का श्राप दिया.

इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा ने ब्रह्मदेव के कहने पर प्रभास क्षेत्र भगवान शिव की घोर तपस्या की. चंद्र देव ने शिवलिंग की स्थापना कर उनकी पूजा की. चंद्रमा की कठोर तपस्या से खुश होकर भगवान शिव से उन्हें श्राप मुक्त करते हुए अमरता का वरदान दिया. इस श्राप और वरदान की वजह से ही चंद्रमा 15 दिन बढ़ता और 15 दिन घटता रहता है.

कहा जाता है कि श्राप में मुक्ति के बाद चंद्रमा ने भगवान शिव से उनके बनाए शिवलिंग में रहने की प्रार्थना की और तभी से इस शिवलिंग को सोमनाथ ज्योतिर्लिंग में पूजा जाने लगा. माना जाता है कि सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजा से सब पापों से मुक्ति की प्राप्ति हो जाती है. इस स्थान को ‘प्रभास पट्टन’ के नाम से भी जाना जाता है.

सोमनाथ मंदिर कैसे पहुँचें

ट्रेन: निकटतम रेलवे स्टेशन वेरावल में है जो 6 किमी दूर है।

हवाईजहाज : निकटतम हवाई अड्डा दीव में है जो 81 किमी दूर है। दीव से सोमनाथ के लिए टैक्सियाँ उपलब्ध हैं।

सड़क : निकटतम रेलवे स्टेशन चोरवाड़ है जो 25 किमी दूर है। जूनागढ़ 79 किमी दूर है। गुजरात के सभी भागों से सीधी बसें उपलब्ध हैं।







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