
दक्षिणेश्वर काली मंदिर , कोलकाता
दक्षिणेश्वर काली मंदिर , भारत के कोलकाता के निकट दक्षिणेश्वर गाँव में गंगा की एक शाखा, हुगली नदी के पूर्वी तट पर स्थित ,19वीं शताब्दी का एक भव्य मंदिर है । इसकी मुख्य देवी भवतारिणी हैं, जो देवी काली का एक रूप हैं , लेकिन यह हिंदुओं और अन्य धर्मों के लोगों के लिए भी एक तीर्थस्थल है , जिसका मुख्य कारण यह है कि इस मंदिर का संबंध रामकृष्ण से है, जो 19वीं शताब्दी में 30 वर्षों तक यहाँ के पुजारी रहे थे।
दक्षिणेश्वर काली मंदिर का इतिहास

दक्षिणेश्वर काली मंदिर की स्थापना 1855 में देवी काली की एक प्रमुख परोपकारी और भक्त रानी रश्मोनी ने की थी । इस मंदिर की उत्पत्ति रानी रश्मोनी को पवित्र नगरी वाराणसी की तीर्थयात्रा पर जाने से पहले मिले एक दिव्य दर्शन से जुड़ी है। इस दर्शन में, देवी ने उन्हें गंगा के तट पर काली को समर्पित एक मंदिर बनाने का निर्देश दिया था। इस दर्शन के बाद, रानी रश्मोनी ने दक्षिणेश्वर में 20 एकड़ ज़मीन खरीदी, जहाँ अब मंदिर स्थित है। यह मंदिर एक आध्यात्मिक केंद्र बन गया, जहाँ एक पूजनीय संत और रहस्यवादी रामकृष्ण परमहंस इसके पुजारी के रूप में कार्यरत थे। उनकी शिक्षाओं और काली के प्रति भक्ति ने भारतीय अध्यात्म में मंदिर के महत्व को और भी पुष्ट किया है।
दक्षिणेश्वर काली मंदिर के खुलने और बंद होने का समय
सुबह: 06:00 बजे – 12:30 बजे
दोपहर: 03:00 बजे – 08:30 बजे
दक्षिणेश्वर काली मंदिर पूजा का समय

सुबह की आरती: 4:30 बजे
शाम की आरती: 7:00 बजे
दक्षिणेश्वर काली मंदिर की वास्तुकला

बंगाल वास्तुकला की नवरत्न या नौ शिखर शैली में निर्मित , तीन मंजिला दक्षिणमुखी मंदिर में ऊपरी दो मंजिलों में नौ शिखर वितरित हैं, और सीढ़ियों की एक उड़ान के साथ एक ऊंचे मंच पर खड़ा है, कुल मिलाकर यह 14 मीटर (46 फीट) वर्ग का है और 30 मीटर (100 फीट) ऊंचा है। गर्भगृह (या गर्भगृह ) में देवी काली की एक छवि है, जिसे भवतारिणी के रूप में जाना जाता है, जो एक लेटे हुए शिव की छाती पर खड़ी हैं , दोनों आकृतियाँ चांदी से बने एक हजार पंखुड़ियों वाले कमल सिंहासन पर रखी गई हैं।
मुख्य मंदिर के पश्चिम में और हुगली नदी पर घाट के प्रवेश द्वार के बीच, बारह एक जैसे शिव मंदिरों की एक पंक्ति स्थित है, जो विशिष्ट आट-चला बंगाली वास्तुकला में पूर्वाभिमुख निर्मित हैं । मंदिर परिसर के उत्तर-पूर्व में विष्णु/राधाकांत मंदिर है। सीढ़ियाँ एक स्तंभयुक्त बरामदे से मंदिर तक जाती हैं। वहाँ एक चाँदी का सिंहासन है जिस पर 21वीं शताब्दी के भगवान शिव की मूर्तियाँ स्थापित हैं। भगवान कृष्ण की 1 ⁄ 2 इंच (550 मिमी) की छवि और राधा की 16 इंच (410 मिमी) की छवि।
दक्षिणेश्वर काली मंदिर की कथा
पश्चिम बंगाल में रानी रासमनी नाम की एक बहुत ही अमीर विधवा थी। उनके जीवन में सबकुछ था मगर पति का सुख नहीं था। रानी रासमनी जब उम्र के चौथे पड़ाव पर आईं तो उनके मन में सभी तीर्थों के दर्शन करने का खयाल आया।
रानी रासमनी की देवी माता में बहुत बड़ी श्रद्धा थी। उन्होंने सोचा कि वो अपनी तीर्थ यात्रा की शुरुआत वराणसी से करेंगी और वहीं रहकर देवी का कुछ दिनों तक ध्यान करेंगी। उन दिनों वाराणसी और कोलकाता के बीच कोई रेल लाइन की सुविधा नहीं थी। कोलकाता से वाराणसी जाने के लिए लोग नाव से जाया करते थे। जैसा की आप जानते हैं दोनों ही शहरों से से गंगा नदी गुज़रती है इसलिए लोग गंगा के रास्ते ही वाराणसी तक जाते थे। रानी रासमनी ने भी यही रास्ता अपनाया। और फिर उनका काफिला वाराणसी जाने के लिए तैयार हुआ। लेकिन जाने के ठीक एक रात पहले रानी के साथ एक अजीब घटना घटी। ऐसी कहानी प्रचलित है कि मन में देवी का ध्यान कर के वो सो गईं। रात में एक सपना आया। कहा जाता है उनके सपने में देवी काली प्रकट हुई और उनसे कहा कि वाराणसी जाने की कोई जरूरत नहीं है। तुम गंगा के किनारे मेरी प्रतिमा को स्थापित करो। एक सुंदर मंदिर का निर्माण कराओ। “मैं उस मंदिर की प्रतिमा में खुद प्रकट होकर श्रद्धालुओं की पूजा को स्वीकार करुंगी”। तुरंत ही यह सपना देखकर रानी की आंख खुली। फिर सुबह होते ही रानी का वाराणसी जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया और गंगा के किनारे मां काली के मंदिर के लिए जगह की तलाश शुरू कर दी गई। मायता है कि जब रानी इस घाट पर गंगा के किनारे जगह की तलाश करने आईं तो उनके अंदर से एक आवाज आई कि हां इसी जगह पर मंदिर का निर्माण होना चाहिए। फिर वह जगह खरीद ली गई और मंदिर बनाने का काम तेजी से शुरु हो गया। ये बात 1847 की है और मंदिर का काम पूरा हुआ 1855 यानी कुल आठ सालों में।
आपको बता दें विवेकानंद जी के गुरु रामकृष्ण परमहंस का इस मंदिर से बहुत ही गहरा नाता है। दक्षिणेश्वर काली मंदिर में देश के कोने-कोने से लोग आते हैं। लंबी-लंबी कतारों में घंटो खड़े होकर देवी माँ काली के दर्शन का इंतज़ार करते हैं। कहते हैं कि दक्षिणेश्वर काली मंदिर में रामकृष्ण परमहंस को दक्षिणेश्वर काली ने दर्शन दिया था। दक्षिणेश्वर काली मंदिर से लगा हुआ परमहंस देव का कमरा है, जिसमें उनका पलंग तथा दूसरे स्मृतिचिह्न सुरक्षित हैं। दक्षिणेश्वर काली मंदिर के बाहर परमहंस की धर्मपत्नी श्रीशारदा माता तथा रानी रासमणि का समाधि मंदिर है और वह वट वृक्ष है, जिसके नीचे परमहंस देव ध्यान किया करते थे।