बैसाखी 2026
त्यौहार (Festival)

बैसाखी 2026

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बैसाखी का पर्व हर साल अप्रैल में पड़ता है, जो कि खासतौर पर उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है. यह पर्व मुख्य रूप से कृषि से जुड़ा है और नई फसल की कटाई की खुशी में मनाया जाता है. बैसाखी का पर्व सिख समुदाय के लिए बहुत ज्यादा महत्व रखता है, क्योंकि इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. बैसाखी को आमतौर पर मेष संक्रांति भी कहा जाता है. यह दिन न सिर्फ किसानों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि सिखों के लिए एक ऐतिहासिक और धार्मिक दिन भी माना जाता है. इस दिन लोग खुशी और समृद्धि की कामना करते हैं. साख ही, सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देते हैं. बैसाखी का पर्व भारतीय संस्कृति की विविधता और एकता को दर्शाने वाला एक महत्वपूर्ण अवसर है.

बैसाखी का महत्व

बैसाखी का पर्व सिख धर्म के लोगों के लिए विशेष धार्मिक महत्व रखता है. इस दिन सिखों के दसवें गुरु यानी गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. गुरु जी ने इस दिन सभी जातिगत भेदभावों को समाप्त कर एकता का संदेश दिया था. गुरु गोबिंद सिंह जी के नेतृत्व में खालसा पंथ की स्थापना ने समाज को एकजुट करने के लिए मजबूत कदम उठाया था.

बैसाखी के अवसर पर सिख धर्मावलंबी गुरुद्वारों में विशेष अरदास करते हैं. इस दिन विशेष रूप से गुरुद्वारों में भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है और साथन ही नगर कीर्तन की परंपरा निभाई जाती है. इस दिन लोग अपने पवित्र कर्तव्यों को याद करने, गुरु के बताए मार्ग पर चलने और धर्म के प्रति अपनी आस्था को और गहरा करने का अवसर मानते हैं.

बैसाखी 2026 मुहूर्त

बैसाखी मंगलवार, अप्रैल 14, 2026 को

बैसाखी संक्रान्ति का क्षण – 09:39 ए एम

बैसाखी पूजा सामग्री

सूर्य पूजा के लिए ताबें का लोटा, कुमकुम, अक्षत (अटूट चावल), लाल फूल (कनेर का फूल मिले तो उत्तम ), काले तिल, गुड, गंगाजल, गेहूं अथवा जौं, पंखा, जल से भरा घड़ा या लोटा, लाल फल, मिठाई, सूर्य पुराण

बैसाखी पूजा विधि

बैसाखी के दिन उगते सूर्य को तांबे के लोटे में गुड और कुमकुम मिलाकर जल अर्पित करें। इसके बाद लाल कनेर के फूल और अक्षत अर्पित करें। हाथ में लेकर काले तिल सूर्य देव कौ अर्पित करें। आप चाहें तो इन्हें जल में भी मिला सकते हैं। जल में गंगाजल जरुर डालें। इसके बाद सूर्यदेव को फल, मिठाई अर्पित करें। अंत में पंखा और जल से भरा घड़ा अगर कच्चा आम उपलब्ध हो तो उसे भी अर्पित करें और उसे उत्सर्ग करें और सभी सामान पूजा के बाद किसी ब्राह्मण या जरुरमंद को दान कर दें। इस दिन सूर्य पुराण का पाठ करना और दान देने उत्तम माना जाता है।

बैसाखी की कथा

जब मुगलकालीन के क्रूर शासक औरंगजेब ने मानवता पर बहुत जुल्म शुरू किए थे। खासकर सिख समुदाय पर क्रूरता करने की औरंगजेब ने सारी ही सीमाएं पार कर दी थी। अत्याचार की पराकाष्ठा तब हो गई, जब औरंगजेब से लड़ाई लड़ने के दौरान श्री गुरु तेग बहादुरजी को दिल्ली में चांदनी चौक पर शहीद कर दिया गया। औरंगजेब के इस अन्याय को देखकर गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने अनुयायियों को संगठित करके खालसा पंथ की स्थापना की। इस पंथ का लक्ष्य हर तरह से मानवता की भलाई के लिए काम करना था। खालसा पंथ ने भाईचारे को सबसे ऊपर रखा। मानवता के अलावा खालसा पंथ ने सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने के लिए भी काम किया। इस तरह 13 अप्रैल,1699 को श्री केसगढ़ साहिब आनंदपुर में दसवें गुरु गोविंदसिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना कर अत्याचार को समाप्त किया। इस दिन को तब नए साल की तरह माना गया, इसलिए 13 अप्रैल को बैसाखी का पर्व मनाया जाने लगा।

बैसाखी के दिन क्या करें

  •  सुबह स्नान करें और गुरुद्वारों में जाकर भजन, प्रार्थना करें और मत्था टेकें. 
  • इस शुभ दिन पर नए और रंगीन कपड़े पहनने चाहिए. 
  •  सरसों का साग और मक्के की रोटी जैसे पारंपरिक पंजाबियों के व्यंजन बनाएं और उनका आनंद लें. 
  • घर के बाहर लकड़ियां जलाकर उसके चारों ओर भांगड़ा और गिद्दा का आनंद लें. 
  • अच्छा हो कि इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराएं. 
  • गर्मी से राहत पाने और सूर्य देव की कृपा पाने के लिए सत्तू और गुड़ का सेवन करें. 

बैसाखी के दिन क्या ना करें

  • बैसाखी एक शुभ दिन है, इसलिए काले या नीले रंग के कपड़े पहनने से बचें. 
  • किसी भी तरह के नकारात्मक विचार मन में न लाएं और न ही दूसरों के साथ बुरा व्यवहार करें. 
  •  इस दिन क्रोध से बचें और लड़ाई-झगड़े करने से दूर रहें. 
  • बैसाखी के दिन तली-भुनी और मसालेदार चीजें खाने से बचें. 
  •  यह दिन धार्मिक भावना से जुड़ा है, इसलिए मांस, मछली और अंडे से परहेज करें. 
  • शराब और तंबाकू या किसी भी अन्य प्रकार के नशे से इस दिन दूर रहें. 



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