आमलकी एकादशी 2026: महिमा, व्रत और कथा
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आमलकी एकादशी 2026: महिमा, व्रत और कथा

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हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है, और आमलकी एकादशी (Amalaki Ekadashi) इनमें से एक ऐसी पवित्र तिथि है जो भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का अनुपम अवसर प्रदान करती है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाने वाली यह तिथि न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति में भी सहायक है। आमलकी एकादशी 2026 (Amalaki Ekadashi 2026) में यह व्रत 27 फरवरी को मनाया जाएगा, जो भक्तों के लिए भगवान विष्णु के प्रति अपनी भक्ति को और गहरा करने का एक सुनहरा अवसर होगा।

इस लेख में हम आमलकी एकादशी का महत्व (Significance of Amalaki Ekadashi), व्रत की विधि (Amalaki Ekadashi Vrat Vidhi), व्रत कथा (Amalaki Ekadashi Vrat Katha), और इसके आध्यात्मिक लाभों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। साथ ही, हम यह भी जानेंगे कि कैसे यह व्रत आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। इस प्रेरणादायक लेख को पढ़कर आप न केवल इस पवित्र दिन की महिमा को समझेंगे, बल्कि इसे अपने जीवन में अपनाने के लिए भी प्रेरित होंगे। आइए, ज्ञान की बातें के साथ इस आध्यात्मिक यात्रा पर चलें।

आमलकी एकादशी का महत्व

पौराणिक महत्व

आमलकी एकादशी (Amalaki Ekadashi) का उल्लेख पुराणों में विस्तार से मिलता है। यह एकादशी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है, और ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने सृष्टि की रचना के समय आंवले के वृक्ष को उत्पन्न किया था, जिसे वे अपना निवास स्थान मानते हैं। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के साथ-साथ आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है, जो भक्तों को सुख, समृद्धि और मोक्ष प्रदान करती है।

पद्म पुराण के अनुसार, आमलकी एकादशी का व्रत (Amalaki Ekadashi Vrat) करने से एक हजार गायों के दान के समान पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि भक्तों के जीवन से नकारात्मक ऊर्जा को भी दूर करता है। यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती के काशी आगमन के साथ भी जुड़ा है, जिसके कारण इसे रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है।

आंवले के वृक्ष की महिमा

आंवला, जिसे आमलकी (Amla) के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, आंवले के वृक्ष में सभी देवी-देवताओं का वास होता है। इसके मूल में भगवान विष्णु, तने में भगवान शिव, शाखाओं में मुनिगण, और फलों में प्रजापति निवास करते हैं। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से भक्तों को गोदान का फल प्राप्त होता है।

आंवले का सेवन न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, बल्कि यह आध्यात्मिक शुद्धता भी प्रदान करता है। आमलकी एकादशी के दिन आंवला पूजन (Amla Puja on Amalaki Ekadashi) करने से भक्तों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

आमलकी एकादशी 2026 की तिथि (Amalaki Ekadashi 2026 Date)

इस दिन का शुभ मुहूर्त और पारण का समय निम्नलिखित है:

आमलकी एकादशी शुक्रवार, फरवरी 27, 2026 को

28वाँ फरवरी को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 06:47 ए एम से 09:06 ए एम

पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 08:43 पी एम

एकादशी तिथि प्रारम्भ – फरवरी 27, 2026 को 12:33 ए एम बजे

एकादशी तिथि समाप्त – फरवरी 27, 2026 को 10:32 पी एम बजे

आमलकी एकादशी व्रत की विधि

व्रत की तैयारी

आमलकी एकादशी व्रत (Amalaki Ekadashi Vrat Vidhi) की तैयारी दशमी तिथि से शुरू हो जाती है। इस दिन भक्तों को सात्विक भोजन करना चाहिए और तामसिक भोजन (जैसे मांस, मछली, लहसुन, प्याज) से बचना चाहिए। रात को भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।

  • संकल्प: व्रत के दिन सुबह स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु के समक्ष संकल्प लें। संकल्प मंत्र इस प्रकार है:”मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता और मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत करता/करती हूँ। मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूर्ण हो, इसके लिए श्रीहरि मुझे अपनी शरण में रखें।”

पूजा विधि

  1. स्नान और शुद्धि: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। यदि संभव हो तो आंवले के रस मिले जल से स्नान करें।
  2. पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल को गाय के गोबर और गंगाजल से शुद्ध करें। एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं और भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  3. आंवला पूजन: आंवले के वृक्ष के नीचे पूजा करें। वृक्ष को धूप, दीप, चंदन, रोली, अक्षत, और फूल अर्पित करें।
  4. विष्णु पूजा: भगवान विष्णु को पंचामृत, तुलसी पत्र, पीले फूल, फल, और आंवला अर्पित करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
  5. व्रत कथा का पाठ: पूजा के बाद आमलकी एकादशी व्रत कथा (Amalaki Ekadashi Vrat Katha) का पाठ करें।
  6. जागरण: रात में भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें और जागरण करें।

व्रत पारण

व्रत का पारण द्वादशी तिथि को शुभ मुहूर्त में करें। पारण से पहले ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद स्वयं सात्विक भोजन ग्रहण करें।

आमलकी एकादशी व्रत कथा

एक समय की बात है जब राजा मान्धाता ऋषि वशिष्ठ के आश्रम पहुंचे और उनसे निवेदन करने लगे।

राजा मान्धाता – “हे मुनिवर, आप सर्व वेदो के ज्ञाता है। आप मुझ पर कृपा करें और मुझे कोई ऐसी कथा सुनाये की जिससे मेरा कल्याण हो।”

महर्षि वशिष्ठ – “हे राजन, तुमने बड़ा ही उत्तम विचार प्रगट किया है। सर्व कल्याण हेतु आज में तुम्हे एक ऐसी कथा अवश्य सुनाऊंगा। सभी व्रतो में सबसे उत्तम और मनुष्य के अंत समय में उसे मोक्ष प्रदान करने वाली आमलकी एकादशी की कथा आज में तुम्हे सुनाऊंगा अतः इस बड़े ही श्रद्धापूर्वक सुनना।

एक समय की बात है, वैदिश नामक एक नगर हुआ करता था जँहा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी वर्ण के लोग बड़े ही आनंद से अपना जीवन निर्वाह किआ करते थे। वंहा सदैव वेद ध्वनि गुंजा करती थी और इस नगर में पापी दुराचारी और नास्तिक कोई भी न था। उस खुशाल नगर में चैतरथ नामक चंद्रवंशी राजा राज किया करता था। राजा अत्यंत विद्वान और गुणी था। नगर में कोई भी व्यक्ति दरिद्र और कंजूस न था। सभी नगरजन परम विष्णु भक्त और आबाल-वृद्ध, स्त्री -पुरुष सभी एकादशी का व्रत किया करते थे।

एक दिन फाल्गुन माह के शुक्लपक्ष की आमलिका एकादशी का पर्व आया। उस दिन सभी प्रजाजनों ने हर्ष पूर्वक इस व्रत का अनुष्ठान किया। राजा अपने प्रजाजनों संग नगर के एक मंदिर में जा कर पूर्ण कुम्भ की स्थापना करते हुए प्रभु को धुप, दीप, नैवेध्य, पंचरत्न आदि से धात्री/अंवाले का पूजन करने लगे और इस प्रकार स्तुति करने लगे।

हे पूज्य धात्री..!! आप परम ब्रह्मास्वरुप हो, स्वयं ब्रह्माजी द्वारा उत्पन्न हुए और सर्व पापो का नाश करने वाले हो, आपको में कोटि कोटि वंदन करता हुँ। अब आप मेरा अर्ध्य स्वीकार करें। आप स्वयं श्री रामचंद्रजी द्वारा पूजनीय हो, मैं आपकी स्तुति करता हुँ, अतः आप मेरे सभी अवगुणो का नाश करो। भगवान धात्री की स्तुति के साथ ही सभी ने उस रात्रि जागरण भी किया।

रात्रि के समय वंहा एक बहेलिया आया, वह अत्यंत पापी और अधर्मी था। वह अपने परिवार का भरण पोषण जीव हत्या करके किया करता था। उस समय भूख प्यास से अति व्याकुल वह बहेलिया मंदिर में हो रहे जागरण को देखने मंदिर के कोने में जा कर बैठ गया और भगवान श्री हरी की एकादशी कथा का महात्मय सुनने लगा। इस तरह वंहा उपस्थित अन्य नगर जनों की भांति उसने भी पूरी रात्रि जागरण करते हुए बिता दी।

प्रातः काल होने पर सभी नगर जन अपने घर को चले गये और वह बहेलिया भी अपने घर को चला गया। घर जाकर उस बहेलिए ने भोजन किया और कुछ समय पश्चात उस बहेलिए की मृत्यु हो गई।

किन्तु आमलिका एकादशी(Amalaki Ekadashi) व्रत के कारण उसने अगले जन्म में राजा विदुरथ के घर जन्म लिया और वह वसूरथ के नाम से जाना गया। आगे जाके युवा होने पर वह चतुरंगिनी सेना और धन धान्य से परिपूर्ण हो कर 10 हज़ार ग्रामो का पालन करने लगा।

उसकी प्रतिभा तेज में सूर्य के समान, काँटी में चन्द्रमा के समान, वीरता में स्वयं भगवान विष्णु के समान और क्षमा में माता पृथ्वी के समान थी। वह अपने युग में महान धर्मनीष्ठ, सत्यवादी, कर्मवीर और परम विष्णु भक्त था। वह अपनी प्रजा का समान भाव से पालन करता था। वह परम दानवीर था और दान देना उसका नित्य कर्म भी था।

एक दिन राजा आँखेद करने हेतु जंगल में गया। दैवयोग के कारण वह मार्ग भूल गया और दिशा की अज्ञानता के कारण वह एक वृक्ष के तले जा कर सो गया। कुछ ही देर बाद पहाड़ी म्लेच्छ वंहा आ गये, राजा को अकेला देख मारो मारो शब्दों के नारों लगाते हुए राजा की और दौड़े। म्लेच्छ कहने लगे इस दुष्ट राजा ने हमारे सभी सम्बन्धी, माता, पिता, पुत्र, पौत्र की निरापराध हत्या की है और हमें अपने नगर से बाहर निकल दिया है अतः ऐसे दुष्ट राजा को मारना अवश्य चाहिये।

अपना क्रोध राजा के ऊपर निकाल ते हुए वे निशस्त्र राजा की ओर दौड़े और अपने अस्त्र – शस्त्र का प्रहार राजा के ऊपर करने लगे। जितने भी अस्त्र शस्त्र राजा के ऊपर फेके जाते वाह स्वतः ही नष्ट हो जाते और राजा को उन अस्त्रों का वार एक पुष्प के समान प्रतीत हो रहा था। अब उन म्लेच्छों द्वारा फेंके जाने वाले अस्त्र और शस्त्र उल्टा उन्हीं को क्षति पहुंचाने लगे और क्षति के मारे वाह स्वयं ही मूर्छित हो कर निचे गिरने लगे। उसी पल राजा के शरीर से एक दिव्य प्रकाश उत्पन्न हुआ और उसमे से एक बहोत ही सुन्दर स्त्री का आगमन हुआ। वह स्त्री सुन्दर अवश्य थी किन्तु उसकी भृकुटी टेढ़ी थी, उनके नेत्रों से एक भयावह अग्नि की ज्वाला प्रगट हो रही थी। वह दूसरे काल से समान दिख रही थी।

राजा पर प्रहार हो रहा देख वह उन म्लेच्छों का संहार करने उनके पीछे दौड़ी और कुछी समय में उसने सभी म्लेच्छों का संहार कर दिया। कुछ समय पश्चात जब राजा जागृत अवस्था में आया तो उसने सभी म्लेच्छों को मरा हुआ पाया। सभी म्लेच्छों को मरा हुआ देख वह आश्चर्यचकित हो उठा और सोचने लगा की इन म्लेच्छों को आखिर किसने मारा होगा? इन निर्जन वन में ऐसा कोन हे जो मेरा हितैषी है जिसने मेरे प्राणों की रक्षा की है? की तभी एक आकाशवाणी हुई – “हे राजन..!! इस संसार में भगवान श्री हरी विष्णु के अतिरिक्त और कौन है जो तुम्हरी सहायता कर सकता है?

इस आकाशवाणी को सुन उसने भगवान श्री हरी विष्णु की स्तुति गाते हुए उनको शष्टांग नमन किआ। अब राजा पुनः अपने राज्य को गया और सुख पूर्वक अपना राज्य करने लगा।

अंत में महर्षि वशिष्ठ बोले – “हे राजन..!! यह आमलकी एकादशी(Amalaki Ekadashi) का प्रभाव था। इस एकादशी का व्रत करने वाला हर मनुष्य अपने सभी कार्यों में निश्चित रूप से सफलता प्राप्त करता है और अपने अंत समय में विष्णुलोक को प्राप्त होते है।

आमलकी एकादशी के लाभ

आध्यात्मिक लाभ

  • पापों का नाश: यह व्रत भक्तों के जन्म-जन्मांतर के पापों को नष्ट करता है।
  • मोक्ष की प्राप्ति: आमलकी एकादशी का व्रत (Amalaki Ekadashi for Moksha) करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • भगवान विष्णु की कृपा: इस दिन पूजा और जागरण करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  • सकारात्मक ऊर्जा: आंवले के वृक्ष की पूजा और इस व्रत से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

सामाजिक और व्यक्तिगत लाभ

  • सुख-समृद्धि: इस व्रत से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
  • स्वास्थ्य लाभ: आंवले का सेवन और पूजन स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।
  • मन की शांति: यह व्रत मन को शांत और स्थिर करता है, जिससे तनाव और चिंता दूर होती है।
  • पारिवारिक एकता: सामूहिक पूजा और जागरण से परिवार में एकता और प्रेम बढ़ता है।

    निष्कर्ष

    आमलकी एकादशी 2026 (Amalaki Ekadashi 2026) एक ऐसा पवित्र अवसर है जो भक्तों को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है। इस व्रत के माध्यम से न केवल आध्यात्मिक उन्नति होती है, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का भी आगमन होता है। आमलकी एकादशी व्रत कथा (Amalaki Ekadashi Story) हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और श्रद्धा से किए गए कार्य जीवन को बदल सकते हैं।

    ज्ञान की बातें आपको इस आध्यात्मिक यात्रा में प्रेरित करता है कि आप इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करें और अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएं। 27 फरवरी 2026 को इस पवित्र दिन को मनाएं और भगवान विष्णु की कृपा से अपने जीवन को आलोकित करें।

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