विजया एकादशी 2026: महिमा, व्रत और कथा
एकादशी के दिन

विजया एकादशी 2026: महिमा, व्रत और कथा

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विजया एकादशी, हिंदू धर्म में एक पवित्र और शक्तिशाली व्रत है, जो फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और जीवन में विजय, सुख, और समृद्धि प्राप्त करने का एक अनमोल अवसर प्रदान करता है। “Vijaya Ekadashi” का अर्थ है विजय देने वाली एकादशी, और यह अपने नाम के अनुरूप भक्तों को उनके कार्यों में सफलता और बाधाओं पर विजय दिलाने के लिए जानी जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्वयं भगवान श्रीराम ने इस व्रत का पालन किया था, जिसके फलस्वरूप उन्हें लंका पर विजय प्राप्त हुई। इस लेख में हम “विजया एकादशी 2026” की महिमा, व्रत विधि, कथा, और इसके आध्यात्मिक महत्व को विस्तार से जानेंगे। हमारी वेबसाइट ज्ञान की बातें (https://www.gyankibaatein.com) आपके लिए यह प्रेरणादायक जानकारी लेकर आई है, जो आपके जीवन को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देगी।

विजया एकादशी का महत्व

विजया एकादशी का महत्व हिंदू धर्म में अत्यंत विशेष है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे करने से भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, यह व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है, बल्कि जीवन की सभी बाधाओं को दूर करके सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। “Vijaya Ekadashi Significance” को समझने के लिए हमें यह जानना होगा कि यह व्रत भगवान श्रीराम के जीवन से भी जुड़ा है। जब श्रीराम को समुद्र पार करने और रावण पर विजय प्राप्त करने की चुनौती का सामना करना पड़ा, तब उन्होंने महर्षि वकदाल्भ्य के सुझाव पर इस व्रत का पालन किया। इस व्रत के प्रभाव से ही वे समुद्र पार करने और लंका पर विजय प्राप्त करने में सफल हुए।

यह व्रत न केवल व्यक्तिगत विजय, बल्कि मानसिक शांति, पारिवारिक सुख, और आर्थिक समृद्धि भी प्रदान करता है। जो लोग इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करते हैं, उन्हें भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत जीवन के हर क्षेत्र में “Success and Prosperity through Vijaya Ekadashi” को सुनिश्चित करता है।

विजया एकादशी 2026 की तिथि (Vijaya Ekadashi 2026 Date)

इस दिन का शुभ मुहूर्त और पारण का समय निम्नलिखित है:

विजया एकादशी शुक्रवार, फरवरी 13, 2026 को

14वाँ फरवरी को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 07:00 ए एम से 09:14 ए एम

पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 04:01 पी एम

एकादशी तिथि प्रारम्भ – फरवरी 12, 2026 को 12:22 पी एम बजे

एकादशी तिथि समाप्त – फरवरी 13, 2026 को 02:25 पी एम बजे

विजया एकादशी व्रत की विधि

विजया एकादशी का व्रत विधि-विधान से करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह व्रत दशमी तिथि से शुरू होकर द्वादशी तिथि तक चलता है। नीचे व्रत की विस्तृत विधि दी गई है:

  1. दशमी तिथि की तैयारी:
    • दशमी के दिन सात्विक भोजन करें और तामसिक भोजन (लहसुन, प्याज, मांस, आदि) से बचें।
    • एक स्वर्ण, चांदी, तांबे, या मिट्टी का कलश बनाएं। इसे जल से भरें और इसमें पांच पल्लव (आम, पीपल, बरगद, आदि) रखें।
    • कलश के नीचे सतनजा (सात अनाज) और ऊपर जौ रखें।
    • भगवान नारायण की स्वर्णमयी मूर्ति या चित्र को कलश पर स्थापित करें।
  2. एकादशी के दिन:
    • ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
    • पूजा स्थल को साफ करें और लकड़ी की चौकी पर पीला या लाल कपड़ा बिछाएं।
    • भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
    • धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल, सुपारी, चंदन, और तुलसी पत्र से भगवान की पूजा करें।
    • “Vijaya Ekadashi Puja Vidhi” के अनुसार, विष्णु सहस्रनाम या विष्णु मंत्र का जाप करें।
    • दिन भर भक्ति भजन और कथा-वार्ता में समय व्यतीत करें।
    • रात में जागरण करें और घी का दीपक जलाएं।
  3. द्वादशी के दिन:
    • सूर्योदय के बाद स्नान करें और पूजा करें।
    • कलश को किसी नदी, तालाब, या जलाशय के पास ले जाएं।
    • विधिवत पूजा के बाद कलश और भगवान की प्रतिमा को ब्राह्मण को दान करें।
    • पारण समय में फलाहार या सात्विक भोजन के साथ व्रत खोलें।

विजया एकादशी की पौराणिक कथा

एक समय देवर्षी नारदजी ब्रह्मलोक गये और परम पिता ब्रह्माजी से कहने लगे –

देवर्षी नारद – “हे परम पिता, में आपसे आज फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी के महात्मय को सुनना चाहता हुँ। अतः मेरी इस याचना को पूर्ण करें।

ब्राह्मजी – “हे पुत्र, तुमने आज बड़ा ही उत्तम विचार प्रगट किया है। फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी को विजया एकादशी(Vijaya Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। अब में तुम्हे इसकी कथा सुनाने जा रहा हुँ अतः बड़े ध्यान से सुनना।

त्रेता युग में जब भगवान श्री विष्णु के सप्तम अवतार श्री रामचन्द्रजी को चौदह वर्ष का वनवास हुआ तब वे माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ पंचवटी में निवास करने लगे। वंहा जब लंकापती रावण ने छल से माता सीता का हरण किया तब इस समाचार को प्राप्त करके भ्राता लक्ष्मण और प्रभु श्री रामचंद्रजी बहोत दुखी और व्याकुल हो कर माता सीता की ख़ोज में निकल पड़े।

खोजते खोजते जब वे मरणासन्न पक्षीराज जटायु के समक्ष पहुंचे तब जटायु ने उन्हें सारा वृतांत सुना कर वह स्वर्ग सिधार गये। जटायु के कथनासूर दोनों दक्षिण दिशा की ओर माता सीता की ख़ोज करने आगे बढ़े। आगे चलाते उनकी भेंट पवनपुत्र श्री हनुमानजी से हुई और पवनपुत्र हनुमानजी द्वारा उनकी मित्रता वनारराज सुग्रीव से हुई। सुग्रीव के साथ मित्रता के चलते बाली का वध हुआ। हनुमानजी सीता माता की ख़ोज करते हुए लंकापति रावण की नगरी में आ पहुंचे वंहा माता सीता के दर्शन प्राप्त कर वापस उनका संदेशा ले कर वह श्री राम के पास पहुंचे। प्रभु श्री राम ने विलम्ब ना करते हुए लंका पर चढ़ाई की घोषणा कर दी। अपनी विशाल वानर सेना के संग वह विशाल समुद्र तट पर आ गये। समुद्र इतना विशाल था के उन्हें अब आगे कुच करने का कोई मार्ग नहीं मिल रहा था। घोर चिंता में डूबे हुए प्रभु श्री राम ने जब लक्ष्मण जी से अपनी व्यथा कही तब लक्ष्मण जी ने कहा –

‘हे प्रभु आप सर्वग्य है। संसार में आपसे कोई बात छुपी नहीं है। फिर भी आप मुझे अपना दास समज मुझ पर कृपा करते हुए मुजसे इस समस्या का समाधान पूछ रहे है तो सुने – “यहाँ से आधा जोजन दूर कुमारी द्वीप में महर्षि वकदाल्भ्य नामक ऋषि निवास करते हे। वह परम तपस्वी और ज्ञानी है उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे है। अतः वह हमारी इस समस्या का समाधान अवश्य निकल सकते है। लक्ष्मणजी की बात सुन प्रभु श्री रामचंद्रजी बिना विलम्ब किये ऋषि श्री वकदाल्भ्य जी के आश्रम आ पहुंचे।

वंहा उन्होंने ऋषि को सादर नमन करते हुए उनके सम्मुह आसान लगा कर बैठ गये। तब ऋषि अपनी साधना में लीन थे जब वह जागृत अवस्था में आये तब अपने सम्मुख प्रभु श्री राम को पाते वह हर्षित हो उठे। किन्तु प्रभु के मनुष्य अवतार की मर्यादा को जान उन्होंने प्रभु श्री राम से वंहा आने का प्रयोजन पूछा। प्रभु श्री राम ने कहा – “हे मुनिश्रेष्ठ..!! में मेरी भार्या सीता की ख़ोज में निकला हुँ जिसका छल से अपहरण कर दुष्ट रावण अपनी लंकापुरी ले गया है। में वनारराज की वानर सेना के साथ इस विशाल समुद्र के सम्मुख खड़ा हुँ और आपसे निवेदन करता हुँ की इस विशाल समुद्र को सेना सहित पार करने का कोई संभव उपाय मुझे कहे।

श्री रामचंद्रजी से सारा वृतांत सुन महर्षि बोले – “हे राम, इस विशाल समुद्र को लाँगना अत्यंत जटिल है किन्तु फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी(Vijaya Ekadashi) व्रत के माध्यम से ये जटिल कार्य भी अति सरलरूप से संभव हो सकता है। में अपनी दिव्य दृष्टी से देख रहा हुँ आप इस एकादशी का व्रत कर निश्चित रूप से विजय प्राप्त करेंगे। अब हे राम में तुम्हे इस व्रत की विधि सुनाने जा रहा हुँ अतः इसे ध्यानपूर्वक सुनना। फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष की दशमी तिथि के दिन स्वर्ण, चांदी, ताम्र या फिर मिट्टी का एक घड़ा बनाये। उस घड़े को जल से भरकर पांच पल्लव रख वेदिका पर स्थापित करें। उस घड़े के निचे सतनजा और ऊपर जौ रखे और प्रभु श्री नारायण की स्वर्ण की प्रतिमा स्थापित करें। एकादशी तिथि के दिन सूर्योदय से पूर्व उठ कर स्वच्छ गंगा जल से स्नान कर बाकि नित्य क्रिया को पूर्ण करते हुए धुप, दीप, नैवेध्य, श्रीफल आदि से भगवान का श्रद्धांपूर्वक पूजन करें।

उसके पश्चात उस घड़े के सम्मुख बैठ कर भगवान श्री हरी का ध्यान धरते हुए अपना दिन व्यतीत करें और रात्रि को भी उस घड़े के सम्मुख बैठ कर भगवान श्री हरी का जयकारा लगाते हुए जागरण करें। अगले दिन द्वादशी तिथि के दिन अपने नित्य नियम से निवृत हो कर उस घड़े को योग्य ब्राह्मण को दान कर दे।

हे राम!! अगर तुम भी इस व्रत का अनुष्ठान अपने सेनापतियों सहित करोगे तो निश्चित रूप से तुम्हारी विजय होंगी। प्रभु श्री रामचंद्रजी ने मुनिश्रेष्ठ के कथननुसार इस व्रत का अनुष्ठान किआ और रावण जैसे दुष्ट दैत्य पर अपनी विजय प्राप्त की।

अतः हे कुंतीनंदन..!! जो भी मनुष्य इस व्रत को पूर्ण विधि विधान से मन में पूर्ण श्रद्धा रखते हुए करता है उसे निश्चित रूप से दोनों लोको पर विजत प्राप्त होती है। ब्रह्माजी ने नारद से यह कहा है की जो भी मनुष्य इस(Vijaya Ekadashi) व्रत का पठन या श्रवण करता है उसे वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

व्रत के नियम और सावधानियां

विजया एकादशी का व्रत रखने के लिए कुछ नियम और सावधानियां हैं:

  • निराहार या फलाहार: व्रत के दौरान अन्न, दाल, और चावल का सेवन वर्जित है। फल, दूध, या सात्विक भोजन ही ग्रहण करें।
  • सात्विक जीवन: व्रत के दौरान क्रोध, झूठ, और नकारात्मक विचारों से बचें।
  • जागरण: रात में भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन और जागरण करें।
  • दान-पुण्य: द्वादशी के दिन ब्राह्मण को दान देना शुभ माना जाता है।
  • स्वच्छता: पूजा स्थल और शरीर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें।
  • मंत्र जाप: “Vijaya Ekadashi Mantra” जैसे “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप करें।

विजया एकादशी के आध्यात्मिक लाभ

विजया एकादशी का व्रत करने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:

  • पापों का नाश: यह व्रत पुराने और नए पापों को नष्ट करता है।
  • विजय की प्राप्ति: जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और विजय प्राप्त होती है।
  • मानसिक शांति: भगवान विष्णु की कृपा से मन शांत और स्थिर रहता है।
  • मोक्ष की प्राप्ति: यह व्रत मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
  • सुख-समृद्धि: परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि का वास होता है।

विजया एकादशी और ज्योतिषीय संयोग

2026 में विजया एकादशी के दिन विशेष ज्योतिषीय संयोग बन सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि इस दिन सिद्धि योग या व्यतीपात योग बनता है, तो यह व्रत और पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाएगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुछ राशियों (जैसे मेष, सिंह, और धनु) के लिए यह व्रत विशेष रूप से लाभकारी हो सकता है। “Vijaya Ekadashi 2026 Astrological Benefits” को समझने के लिए अपने ज्योतिषी से परामर्श करें।

व्रत के दौरान भोजन और उपवास के नियम

व्रत के दौरान भोजन के नियम निम्नलिखित हैं:

  • निषिद्ध भोजन: चावल, दाल, गेहूं, और तामसिक भोजन (मांस, मछली, लहसुन, प्याज) का सेवन न करें।
  • अनुमत भोजन: फल, दूध, दही, साबूदाना, और कुट्टू का आटा।
  • जल: निर्जला व्रत रखने की इच्छा हो तो जल का त्याग करें, अन्यथा सीमित मात्रा में जल ग्रहण करें।

विजया एकादशी के मंत्र और पूजा सामग्री

व्रत के दौरान निम्नलिखित मंत्रों का जाप करें:

  • विष्णु मंत्र: ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
  • लक्ष्मी मंत्र: ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः

पूजा सामग्री:

  • भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की मूर्ति/चित्र
  • पीला/लाल कपड़ा
  • फल, फूल, तुलसी पत्र
  • धूप, दीप, नैवेद्य
  • सुपारी, नारियल, चंदन
  • सात अनाज, जौ

निष्कर्ष

विजया एकादशी 2026 एक ऐसा पवित्र अवसर है, जो भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और जीवन में विजय, सुख, और समृद्धि पाने का मार्ग दिखाता है। इस व्रत का पालन करके आप न केवल अपने पापों से मुक्ति पा सकते हैं, बल्कि अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की शक्ति और साहस भी प्राप्त कर सकते हैं। ज्ञान की बातें (https://www.gyankibaatein.com) की ओर से हम प्रेरित करते हैं कि आप इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ करें। यह व्रत आपके जीवन को आध्यात्मिक और भौतिक दोनों स्तरों पर समृद्ध करेगा। आइए, इस विजया एकादशी पर भगवान विष्णु की आराधना करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को नई दिशा दें।

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