मकर संक्रांति व्रत सम्पूर्ण कथा
व्रत कथाएँ

मकर संक्रांति व्रत सम्पूर्ण कथा

34views

धर्म शास्त्रों में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य देव की दो पत्नियां थीं. एक छाया और एक संज्ञा. सूर्य देव को उनकी पत्नी छाया से एक पुत्र हुआ जिसका नाम था शनिदेव. सूर्य देव और उनके पुत्र शनिदेव के संबंध अच्छे नहीं थे और इसके पीछे का कारण था शनिदेव की माता छाया के प्रति सूर्य देव का खराब व्यवहार. दरअसल, जब शनिदेव का जन्म हुआ था तो उनका काला रंग देखकर सूर्य देव क्रोधित हो गए और सूर्य देव ने कहा था कि ऐसा पुत्र मेरा नहीं हो सकता है.

शनिदेव के जन्म के बाद से ही सूर्य देव ने शनिदेव और उनकी माता छाया को अलग कर दिया था. शनिदेव और उनकी माता छाया दोनों जिस घर में रहते थे, उसका नाम कुंभ था.सूर्य देव के इस व्यवहार से उनकी पत्नी छाया क्रोधित हुईं और उन्होंने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया. छाया केइस श्राप से क्रोधित होकर सूर्यदेव ने छाया और शनिदेव का घर जला दिया.

इसके बाद सूर्य देव की पहली पत्नी संज्ञा से हुए पुत्र यम ने सूर्य देव को छाया के श्राप से मुक्ति दिलाई. साथ ही, यम ने सूर्य के सामने मांग रखी कि वह माता छाया और शनि के प्रति अच्छा व्यवहार करें. इसके बाद सूर्य को अपनी गलती का एहसास हुआ और वे पत्नी छाया और पुत्र शनिदेव से मिलने के लिए उनके घर पहुंचे. जब सूर्य शनि के घर पहुंचे, तो वहां सब कुछ जलकर राख हो गया था.

सूर्य देव को देखकर शनिदेव बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने काले तिल से अपने पिता का स्वागत किया. शनिदेव के इस व्यवहार से सूर्य देव बहुत प्रसन्न हुए. सूर्य देव ने शनिदेव को एक नया घर भेंट किया जिसका नाम मकर था. सूर्य देव के आशीर्वाद से शनिदेव दो राशियां कुंभ और मकर के स्वामी बन गए.

सूर्य देव ने शनिदेव को आशीर्वाद दिया कि वो जब भी उनसे मिलने उनके घर आएंगे तो उनका घर धन-धान्य से भर जाएगा. सूर्य ने कहा कि मकर संक्रांति के मौके पर जो भी मुझे काले तिल अर्पित करेगा, उनके जीवन में खुशहाली आएगी. इसी कारण जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है. मकर संक्रांति के मौके पर सूर्य देव की पूजा में काले तिल का इस्तेमाल करने से धन धान्य की कमी नहीं रहती है.

Leave a Response