व्रत कथाएँ

राम नवमी व्रत सम्पूर्ण कथा

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प्राचीन ग्रंथो के अनुसार त्रेता युग में राजा दशरथ अयोध्या क्षेत्र में आपना राज किआ करते थे। वे बड़े ही पराक्रमी और वचनबद्द राजा थे। उनके कुल का नाम रधुकुल था। उसी के चलते भगवान राम को रधुकुल शिरोमणि भी कहा जाता है। रघुकुल वंश में बड़े ही तेजस्वी और परम प्रतापी राजा हुए थे। राजा भगीरथ उनमे से एक है जिन्होंने माता गंगा को पृथ्वी पर अवतरित कि आ था।

एक समय की बात है जब राजा दशरथ अपनी बढ़ती हुई आयु के चलते बड़े ही चिंता में थे, क्योकि उनकी प्रमुख तिन रानिओ में से किसी को भी संतान नहीं थी। राजा दशरथ ने संतान प्राप्ति हेतु बड़े जतन किये किन्तु उन्हें संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो पाई। एक दिन रघुकुल ने कुल गुरु महर्षि वशिष्ठ राजा दशरथ से भेंट करने उनके राज महल में आये। राज दशरथ ने बड़े ही आदरभाव से उनका स्वागत किआ और उन्हें अपने राज कक्ष में आमंत्रित किआ। महर्षि वशिष्ट वंहा पहुंचे और राजा दशरथ को अपने यहाँ आने का कारण बताने लगे। महर्षि वशिष्ट ने कहा “राजन, में जानता हूँ की आपकी चिंता का कारण क्या है। आपकी इसी चिंता का समाधान लेके में आपको “पुत्रकामेष्टि यज्ञ” करने का परामर्ष ले कर आया हु।”

राजा दशरथ कुलगुरु वशिष्ठ के परामर्ष को ध्यान में रखते हुए अपने जमाता महर्षि ऋष्यश्रृंग के पास पहुंचे। महर्षि ऋष्यश्रृंग ने सारा वृतांत सुना और एक उत्तम तिथि और मुहूर्त पर “पुत्रकामेष्टि यज्ञ” का अनुष्ठान किआ। यज्ञ में सभी प्रमुख रानियां एवं दरबारी उपस्थित थे और पूरी अयोध्या इस यज्ञ का एक उत्सव मना रही थीं। यज्ञ संपन्न होने पर हवनकुंड मेसे एक दिव्य पुरुष अपने हाथों में एक स्वर्ण कटोरा ले कर प्रगट हुए। उसे स्वर्ण कटोरे में ख़िर थीं। दिव्य पुरुष ने वह कटोरा राजा दशरथ को सौंप पर अंतर्ध्यान हो गये। राजा दशरथ के हाथों में ख़िर से लदा हुआ दिव्य कटोरा देख सभी उपस्थित जन अत्यंत प्रसन्न हुए और महर्षि ऋष्यश्रृंग ने महाराजा दशरथ को कटोरे में लदी ख़िर को तीनों रानीयों में बांटने को कहा। कटोरे में उपलब्ध ख़िर बहोत ही कम मात्रा में थी तो राजा दशरथ ने वह ख़िर रानी कौशल्या और रानी कैकेई में बांट दी। किन्तु वह तीन रानियों में अपार स्नेह और प्रेम की भावना थी इसी कारण वश रानी कौशल्या और कैकई ने अपने हिस्से की आधी ख़िर निकल कर रानी सुमित्रा को अर्पित कर दी। कुछ ही समय के अंतराल में तीनों रानियां गर्भवती हुई और पूरे नव माह के अंतराल के बाद चैत्र माह शुक्ल पक्ष की नवमीं तिथि पर रानी कौशल्या को एक पुत्र, रानी कैकई को एक पुत्र और रानी सुमित्रा जिन्होंने रानी कौशल्या और रानी कैकई के हिस्से का प्रसाद ग्रहण किया था उन्हें दो तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुए। यहाँ माता कौशल्या के पुत्र श्री राम हुए, माता कैकई के पुत्र भरत और माता सुमित्रा के पुत्र लक्षमण और शत्रुघ्न हुए। चारों ही पुत्र के मुख पर सूर्यवंश का तेज छलक रहा था।

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