नीलकंठ महादेव मंदिर, ऋषिकेश
धार्मिक स्थल

नीलकंठ महादेव मंदिर, उत्तराखंड

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नीलकंठ महादेव मंदिर भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है. कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष पिया था और विष के प्रभाव से उनका कंठ यानि गला नीला पड़ गया था इसलिए महादेव के इस मंदिर को नीलकंठ महादेव के नाम से जाना जाने लगा। श्रुति और स्मृति पुराण में भी इस मंदिर का जिक्र मिलता है. नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश से काफी ऊंचाई पर स्थित है. महादेव का यह मंदिर प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ है. नीलकंठ मंदिर उत्तराखंड की सुरम्य पहाड़ियों के बीच मधुमती और पंकजा नदी के संगम पर स्थित है. आपको बता दें कि भगवान शिव का आशीर्वाद लेने और उनके दर्शन के लिए लोग इस मंदिर में दूर-दूर से आते हैं. इसके अलावा, मंदिर के प्रांगण में एक अखंड धूनी जलती रहती है और उस धूनी की भभूत को श्रद्धालु प्रसाद के तौर पर भी लेकर जाते हैं. 

नीलकंठ महादेव मंदिर का इतिहास

नीलकंठ महादेव मंदिर का इतिहास हिंदू पौराणिक कथाओं से जुड़ा है, जहाँ माना जाता है कि भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष (हलाहल) का सेवन किया था, जिससे उनका गला नीला हो गया और उन्हें ‘नीलकंठ’ कहा गया. यह मंदिर इसी घटना के सम्मान में बनाया गया है. हालांकि, मंदिर के वास्तविक निर्माण का कोई निश्चित ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता है, लेकिन इसके आस-पास की वास्तुकला और प्राकृतिक वातावरण इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बनाते हैं. 

नीलकंठ महादेव मंदिर के खुलने और बंद होने का समय

गर्मियों के मौसम में

सुबह : 5:00 बजे 

शाम : 6:00 बजे तक

सर्दियों के मौसम में

सुबह: 6:00 बजे

शाम: 7:00 बजे तक

नीलकंठ महादेव मंदिर पूजा का समय

सुबह की आरती: 5 बजे 

शाम की आरती: 6 बजे

नीलकंठ महादेव मंदिर की वास्तुकला

नीलकंठ महादेव मंदिर की वास्तुकला अत्यंत आकर्षक और रंग-बिरंगी है। प्रवेश द्वार के ऊपर, देवताओं और राक्षसों की मूर्तियों द्वारा समुद्र मंथन की पौराणिक कथा का दृश्य दर्शाया गया है। मंदिर की दीवारें मंथन की पूरी कथा को दर्शाती हैं। मंदिर का आंतरिक परिसर भी उतना ही दिव्य और सुंदर है। इस पवित्र मंदिर में एक पवित्र शिवलिंग स्थापित है। भक्तगण एक विशाल पीपल के वृक्ष पर पवित्र धागा बाँधकर मन्नत मांगते हैं। मंदिर में एक प्राकृतिक झरना भी है जहाँ भक्त पवित्र स्नान करते हैं।

नीलकंठ महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि का त्यौहार पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और इस पावन अवसर पर बड़ी संख्या में भक्त मंदिर में आते हैं। भक्त शिवलिंग पर दूध, बेल के पत्ते, नारियल, फूल आदि चढ़ाते हैं।

नीलकंठ महादेव मंदिर की कथा

एक बार देवताओं और असुरों (राक्षसों) ने अमरता का अमृत प्राप्त करने के लिए महासागर का मंथन करने का फैसला किया. उन्होंने भगवान विष्णु से मदद मांगी. जिसमें मंथन के दौरान  मंदार पर्वत को मथनी के रूप में इस्तेमाल किया गया और वासुकी नाग को मंथन की रस्सी के रूप में प्रयोग किया गया था. समुद्र मंथन के दौरान कुल 14 चमत्कारी चीजें निकलीं जिसमें कामधेनु (इच्छा पूरी करने वाली गाय), उच्चैश्रवा (दिव्य सफेद घोड़ा) और देवी लक्ष्मी भी प्रकट हुईं. जैसे-जैसे मंथन जारी रहा, समुद्र की गहराई से कालकूट नामक हलाहल विष निकला. विष इतना शक्तिशाली और खतरनाक था कि इससे पूरी सृष्टि के नष्ट होने का खतरा था. विनाशकारी परिणामों के डर से देवता और असुर भगवान शिव की सहायता लेने के लिए दौड़ पड़े. तब भगवान शिव ने संसार के कल्याण के लिए कालकूट नामक हलाहल विष को पीकर अपने कंठ में उसे धारण किया. जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया. तभी से उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना जाने लगा, जहां “नील” का अर्थ नीला और “कंठ” का अर्थ गला है. जिसके बाद इस विष की ज्वलंता को शांत करने के लिए भगवान शिव ने पंकजा और मधुमति नदी के संगम के समीप मंचपणी नामक वृक्ष के नीचे समाधि लेकर 60 हजार वर्षों तक तप किया. भगवान शिव जिस वृष के नीचे समाधि लेकर बैठे थे, उसी स्थान पर आज भगवान शिव का स्वयंभू लिंग विराजमान है.  

नीलकंठ महादेव मंदिर में ध्यान रखने योग्य बाते

  • सम्मानजनक कपड़े पहनें, पूरे लंबाई के कपड़े पहनना पसंद करें, खासकर यदि आप धार्मिक त्योहारों के दौरान जा रहे हों।
  • पर्याप्त नकदी साथ रखें क्योंकि स्थानीय दुकानों या मंदिर के पास स्थित स्टॉलों पर डिजिटल भुगतान संभव नहीं होगा।
  • यदि आप लंबी कतारों से बचना चाहते हैं और शांतिपूर्ण दर्शन करना चाहते हैं तो सप्ताहांत और छुट्टियों के दिनों में दर्शन करने से बचें।
  • ठंडे मौसम और कम भीड़ के लिए, विशेष रूप से गर्मियों के महीनों के दौरान, सप्ताह के दिनों में सुबह जल्दी आने की योजना बनाएं।

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