ब्रह्मा मंदिर, राजस्थान
धार्मिक स्थल

ब्रह्मा मंदिर, राजस्थान

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पुष्कर अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक महत्ता के लिए जाना जाता है। ऐसा ही एक दर्शनीय स्थल ब्रह्मा मंदिर है। यह मंदिर भगवान ब्रह्मा को समर्पित है। विभिन्न देवताओं में से, कुछ ही मंदिर इस ब्रह्मांड के रचयिता ब्रह्मा को समर्पित हैं। पुष्कर स्थित ब्रह्मा मंदिर, ब्रह्मा देवता का एकमात्र मंदिर है, यही कारण है कि यह एक महान धार्मिक केंद्र है।

ब्रह्मा मंदिर का इतिहास

भारत में ब्रह्मा मंदिर के बारे में कई मिथक और किंवदंतियाँ सुनने को मिलती हैं, जिनमें से अधिकांश में इसके निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन है। एक प्रमुख मिथक के अनुसार, सृष्टि की रचना के बाद, ब्रह्मा को आत्म-प्रशंसा की इच्छा हुई, जो एक यज्ञ का रूप ले सकती थी। वे उस आदर्श स्थान की तलाश में भटकते रहे और पुष्कर पहुँचे, जो एक मनोरम झील थी और जिसके चारों ओर पत्तियाँ थीं। ब्रह्मा के पति सावित्री इस बात से खुश नहीं थे कि पुष्कर में किसी और का धार्मिक कार्य हो रहा था। क्रोधित होकर, उन्होंने पुष्कर को श्राप दे दिया कि किसी भी स्त्री को इस नगर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं होगी। फिर भी ब्रह्मा ने श्राप को अग्नि-अनुष्ठान करने से नहीं रोका, और तब से उस स्थान का नाम ‘पुष्कर’ पड़ा, जिसका अर्थ है कमल। इसी अशुभ अपमान के कारण, ब्रह्मा मंदिर आज भी उन कुछ स्थानों में से एक है जहाँ महिलाओं का प्रवेश सख्त वर्जित है।

हालाँकि यह स्पष्ट नहीं है कि भारत में ब्रह्मा मंदिर का निर्माण कब हुआ था, लेकिन एकमत है कि इसका निर्माण मध्यकालीन युग में हुआ होगा। इस मंदिर में राजपूताना के मंदिरों को भी दर्शाया गया है जो उसी वास्तुकला में बने हैं, जिनमें सुंदर टीले, उत्कृष्ट स्तंभ और प्रशस्ति-चिह्न वाले गुंबद हैं। इतिहास में इस मंदिर की कई बार मरम्मत और विस्तार हुआ है, लेकिन इसका स्वरूप आज भी वैसा ही है।

ब्रह्मा मंदिर के खुलने और बंद होने का समय

सुबह : 6:00 बजे – 12:00 बजे

दोपहर में मंदिर बाद रहता है: 12:30 बजे – 3:30 बजे

शाम : 4:00 बजे – 8:00 बजे तक

ब्रह्मा मंदिर पूजा का समय

सुबह की आरती:  6:30 बजे

शाम की आरती:  7:30 बजे। 

ब्रह्मा मंदिर की वास्तुकला

भारत में ब्रह्मा मंदिर वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है जो राजपूताना शिल्पकारों की प्रतिभा को दर्शाता है। पत्थरों से निर्मित इस मंदिर में एक मुख्य गुंबद है और इसके चारों ओर अन्य मंदिरों के छोटे गुंबद हैं। मंदिर का मुख्य भाग हिंदू विचारधाराओं से संबंधित विस्तृत चित्रों और आकृतियों से सुसज्जित है। मंदिर का आंतरिक दृश्य भी अद्भुत है, जहाँ सजावटी स्तंभ बने हैं और एक शांत वातावरण निर्मित होता है। भारत में ब्रह्मा मंदिरों की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि मंदिर में ब्रह्मा जी की कोई मूर्ति स्थापित नहीं है। मंदिर के गर्भगृह में मूर्ति के बजाय, देवता का एक स्वरूप स्थापित है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह किसी भी भौतिक स्वरूप से कहीं अधिक शक्तिशाली है। यह स्वरूप एक यज्ञ कुंड है, जो सृष्टि के निर्माण का प्रतीक है।

ब्रह्मा मंदिर की कथा

पद्म पुराण के मुताबिक, एक बार धरती पर वज्रनाश नामक राक्षस ने उत्पात मचा रखा था. उसके अत्याचार इतने बढ़ गए थे कि ब्रह्मा जी को तंग आकर उसका वध करना पड़ा. जब वो उसका वध कर रहे थे, तब ब्रह्मा जी के हाथों से धरती की तीन जगहों पर कमल का पुष्प गिरा. जहां-जहां तीन कमल गिरे, वहां पर तीन झीलें बन गईं. उनमें से एक स्थान का नाम पुष्कर पड़ा. फिर संसार की भलाई के लिए ब्रह्मा जी ने यहीं पर यज्ञ करने का फैसला किया.

यज्ञ करने के लिए ब्रह्मा जी पुष्कर पहुंच गए. इस यज्ञ में पत्नी का बैठना जरूरी था, लेकिन सावित्री को पहुंचने में देरी हो गई. पूजा का शुभ मुहूर्त बीतता जा रहा था. सभी देवी-देवता एक-एक करके यज्ञ स्थली पर पहुंचते गए. लेकिन सावित्री का कोई अता-पता नहीं था. कहते हैं कि जब शुभ मुहूर्त निकलने लगा, तब कोई उपाय न देखकर ब्रह्मा ने नंदिनी गाय के मुख से गायत्री को प्रकट किया और उनसे विवाह कर अपना यज्ञ पूरा किया. उधर सावित्री जब यज्ञस्थली पहुंचीं, तो वहां ब्रह्मा के बगल में गायत्री को बैठे देख क्रोधित हो गईं और उन्होंने ब्रह्मा को श्राप दे दिया. सावित्री का गुस्सा इतने में ही शांत नहीं हुआ. उन्होंने विवाह कराने वाले ब्राह्मण को भी श्राप दिया कि चाहे जितना दान मिले, ब्राह्मण कभी संतुष्ट नहीं होंगे. गाय को कलियुग में गंदगी खाने और नारद को आजीवन कुंवारा रहने का श्राप दिया. अग्निदेव भी सावित्री के कोप से बच नहीं पाए. उन्हें भी कलियुग में अपमानित होने का श्राप मिला.

सभी ने माता सावित्री से विनती की कि वो इस श्राप को वापस ले लें. लेकिन उन्होंने नहीं लिया. जब उनका गुस्सा शांत हुआ तो सावित्री ने कहा कि इस धरती पर सिर्फ पुष्कर में आपकी पूजा होगी. अगर कोई दूसरा व्यक्ति आपका मंदिर बनाएगा तो उस मंदिर का विनाश हो जाएगा. इस कार्य में विष्णु जी ने भी ब्रह्मा जी की मदद की थी. इसी के चलते देवी सरस्वती ने भी विष्णु जी को श्राप दिया कि उन्हें पत्नी से विरह का कष्ट सहन करना पड़ेगा. इसी कारण विष्णु जी ने श्री राम का अवतार लिया और 14 साल के वनवास के दौरान उन्हें पत्नी से अलग रहना पड़ा था.




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