
हिंदू धर्म में सकट चौथ व्रत बेहद खास माना जाता है। सकट चौथ व्रत को संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह व्रत हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है। लेकिन माघ मास में आने वाली चतुर्थी व्रत का विशेष महत्व होता है। यह दिन भगवान गणेश और सकट माता को समर्पित माना जाता है। वहीं, सकट चौथ का व्रत हर मां के लिए बेहद खास होता है। इस दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र, सुख और समृद्धि के लिए भगवान गणेश और सकट माता की पूजा करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से बच्चों के जीवन की हर परेशानी दूर होती है।
सकट चौथ का महत्व

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सकट चौथ व्रत का बहुत महत्व है. मान्यता है कि इस व्रत का रखने से बच्चों का लंबी आयु प्राप्त होती है और उनके जीवन में सुख समृद्धि बढ़ती है. भगवान गणेश का विघ्नहर्ता माना गया है और उनकी अराधना से जीवन की परेशानियों से छुटकारा प्राप्त होता है. इस व्रत को करने से परिवार के सभी सदस्यों के जीवन में खुशियां आती हैं. संकट चौथ को चंद्रमा को अर्घ्य देने से चंद्रदेव की कृपा प्राप्त होती है और उससे मानसिक शांति प्राप्त होती है.
सकट चौथ 2026 मुहूर्त
सकट चौथ मंगलवार, जनवरी 6, 2026 को
सकट चौथ के दिन चन्द्रोदय समय – 08:54 पी एम
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ – जनवरी 06, 2026 को 08:01 ए एम बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त – जनवरी 07, 2026 को 06:52 ए एम बजे
सकट चौथ पूजा विधि

- गणेश जी की पूजा के समय आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए।
- पूजा में तिल, तांबे के लोटे में पानी, गुड़, फूल, चंदन, भोग, प्रसाद, केला, नारियल इत्यादि चीजें जरूर शामिल करें।
- इस बात का ध्यान रखें कि आपको तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल इस पूजा में नहीं करना है।
- सकट चौथ पूजा में दुर्गा माता की प्रतिमा भी जरूर रखें
- फिर मां दुर्गा और गणेश जी की विधि विधान पूजा करें।
- मंदिर में घी का दीपक जलाएं और इसके बाद इस मंत्र का जाप करें (गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।)
- भगवान को फूल, फल और प्रसाद इत्यादि चीजें अर्पित करें।
- इसके बाद अपने पल्लू में थोड़े से तिल बांधकर सकट चौथ की कथा सुनें।
- इसके बाद गणेश जी की आरती करें।
- ध्यान रहे गणेश जी की पूजा-कथा चांद निकलने से पहले संपन्न करनी है।
- फिर रात में चंद्र देव की विधि विधान पूजा करें।
- चांद को कच्चे दूध से अर्घ्य देकर धूप-दीप दिखाएं। फिर प्रसाद अर्पित करें।
- चांद की पूजा के बाद नियम के अनुसार दूध और शकरकंदी खाकर अपना व्रत खोल लें।
सकट चौथ की कथा
प्राचीनकाल का वृतान्त है, एक देवरानी एवं जेठानी थी। उनके पति सगे भाई थे। यद्यपि दोनों भाई एक ही परिवार से थे, तथापि बढ़ा भाई अत्यन्त धनवान एवं छोटा भाई अत्यन्त निर्धन था। छोटा भाई लकड़ी बेचकर अपना जीवन-यापन करता था, जो कि रसोई के लिये प्रयोग की जाती थीं।
छोटे भाई की पत्नी भगवान गणेश की परम भक्त थी तथा प्रत्येक संकष्टी चतुर्थी व्रत का पालन करती थी। अपने कुटुम्ब का पालन-पोषण करने हेतु वह बड़ी भाभी के घर में कार्य भी करती थी।
एक समय की बात है, सकट चौथ के दिन देवरानी के पास पकाने को कुछ भी नहीं था। इसीलिये उसने अपनी भाभी के घर पर कठिन परिश्रम से कार्य किया ताकि सकट चौथ के शुभ अवसर पर उसे कुछ धन प्राप्त हो जाये। परन्तु जेठानी ने पूजा के दिन पारिश्रमिक देने से मना कर दिया तथा कहा कि पूजा के अगले दिन ही देवरानी को पारिश्रमिक देगी। देवरानी थकी-हारी खाली हाथ घर लौट आयी। इस अन्याय से भगवान गणेश जेठानी भाभी पर कुपित हो गये।
सन्ध्याकाल में जब देवरानी का पति काम से लौटा, तो पत्नी भोजन परोसने में असमर्थ थी। पति भी क्रोधित था क्योंकि सकट चौथ के दिन किसी ने भी लकड़ियाँ क्रय नहीं की थीं। भोजन न पकाने के कारण पति ने क्रोध में पत्नी की पिटाई कर दी। वह दुखी पत्नी बिना भोजन करे ही शयन करने चली गयी।
रात्रि के समय भगवान गणेश स्वयं उसके घर आये। जब उन्होंने द्वार खोलने को कहा, तो उसे प्रतीत हुआ कि यह उसका स्वप्न है। देवरानी ने कहा – “हमारे घर में ताले लगाने जैसा कुछ है ही नहीं, सभी द्वार खुले हैं, आप आ जाइये।” भगवान गणेश ने घर में प्रवेश किया तथा देवरानी से भोजन माँगा। देवरानी ने कहा – “सुबह बथुआ पकाया था, वही चूल्हे पर रखा है, आप ग्रहण कर लीजिये।” गणेश जी ने बथुआ का सेवन करने के उपरान्त कहा कि वे शौच करना चाहते हैं। देवरानी ने उत्तर दिया – “घर के पाँचों स्थान, अर्थात् चारों कोने एवं द्वार आपके लिये खुले हैं।” तदुपरान्त भगवान गणेश ने पोंछने के लिये कुछ माँगा। भूखी एवं क्रोधित देवरानी ने कहा – “आप मेरे मस्तक का ही उपयोग कर लीजिये।”
अगले दिन जब वह देवरानी उठी, तो देखा कि उसका माथा, घर के चारों कोने तथा प्रवेश द्वार आदि सभी स्थान बहुमूल्य हीरे, स्वर्ण तथा आभूषण आदि से भरे हुये हैं। तब उसे बोध हुआ कि यह सपना नहीं था, वास्तव में भगवान गणेश स्वयं उसके कुटुम्ब को आशीर्वाद प्रदान करने हेतु पधारे थे। तदुपरान्त वह इस अथाह धन को तौलने हेतु अपनी भाभी के घर तराजू माँगने गयी।
बड़ी भाभी ने तराजू के नीचे गोंद लगा दी थी। जब जेठानी ने तराजू लौटाया, तो उस पर कुछ आभूषण चिपक गये थे जिससे जेठानी को सत्य ज्ञात हो गया। जेठानी के बारम्बार विनती करने पर देवरानी ने अपने घर पर गणेश जी के आगमन का सम्पूर्ण प्रकरण जेठानी के समक्ष वर्णित कर दिया।
तत्पश्चात् देवरानी की भाँति ही धन-सम्पदा प्राप्त करने हेतु जेठानी ने देवरानी के घर में काम करना आरम्भ कर दिया। अगले वर्ष, जेठानी ने भी वही प्रक्रिया दोहराई जो देवरानी ने की थी, यहाँ तक कि सकट चौथ के दिन जेठानी ने पति से स्वयं की पिटाई भी करवायी ताकि वैसा ही फल प्राप्त हो जैसा देवरानी को हुआ था। सब कुछ योजना के अनुसार हुआ, किन्तु धन-सम्पदा के स्थान पर सम्पूर्ण घर में मल एवं दुर्गन्ध फैल गयी थी। जेठानी द्वारा नाना प्रकार से स्वच्छ करने पर भी वह मल नहीं हट रहा था। पण्डितों ने सलाह दी कि यदि जेठानी अपनी सम्पत्ति को देवरानी के साथ समान भाग में बाँट ले, तो गणेश जी के श्राप का शमन हो सकता है। जेठानी ऐसा ही किया, परन्तु गन्ध एवं मल नहीं हटा। तदनन्तर यह ज्ञात हुआ कि जेठानी ने एक हार देवरानी से साझा नहीं किया था। जेठानी द्वारा हार देने के उपरान्त भगवान गणेश का श्राप पूर्णतः समाप्त हो गया।
इस कथा का श्रवण करने के उपरान्त भक्तगण देवरानी की भाँति कृपा व आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु भगवान गणेश से प्रार्थना करते हैं।
सकट चौथ के दिन क्या करें

- सकट चौथ के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद भगवान श्रीगणेश व सकट माता की पूजा करनी चाहिए।
- पूजा के समय हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- सकट चौथ व्रत का पाठ करना चाहिए।
- भगवान गणेश तिल के लड्डूओं व मोदक आदि का भोग लगाना चाहिए।
- शाम को चंद्रोदय के बाद चंद्रदेव को अर्घ्य देकर व्रत पारण करना चाहिए।
- इस दिन नमक, घी, गर्म वस्त्र व तिल से बनी चीजों का दान करना चाहिए।
- बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेना चाहिए।
सकट चौथ के दिन क्या ना करें

- इस दिन सूर्योदय के बाद नहीं सोना चाहिए।
- स्नान किए बिना अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए।
- इस दिन झूठ बोलने से बचना चाहिए।
- सकट चौथ व्रत में दिन में नहीं सोना चाहिए।
- वाद-विवाद से बचना चाहिए।
- मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।