देवप्रबोधिनी एकादशी: महिमा, व्रत और कथा
एकादशी के दिन

देवप्रबोधिनी एकादशी: महिमा, व्रत और कथा

6views

देवप्रबोधिनी एकादशी, जिसे Dev Uthani Ekadashi या Prabodhini Ekadashi के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र दिन है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के जागरण का प्रतीक है, जब वे चार महीने की योग निद्रा के बाद जागते हैं। यह पर्व न केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। इस लेख में हम Dev Prabodhini Ekadashi 2025 के महत्व, व्रत की विधि, कथा और इसके प्रेरणादायक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे। यह लेख आपको इस पवित्र पर्व को गहराई से समझने और इसे अपने जीवन में अपनाने की प्रेरणा देगा।

Dev Prabodhini Ekadashi, Dev Uthani Ekadashi, Prabodhini Ekadashi, Ekadashi Vrat, Hindu Festival, Tulsi Vivah
Dev Prabodhini Ekadashi 2025 date, Importance of Dev Uthani Ekadashi, Dev Prabodhini Ekadashi Vrat Katha in Hindi, How to perform Dev Uthani Ekadashi Vrat, Spiritual benefits of Prabodhini Ekadashi

देवप्रबोधिनी एकादशी 2025 की तिथि (Devaprabodhini Ekadashi 2025 Date)

इस दिन का शुभ मुहूर्त और पारण का समय निम्नलिखित है:

देवउत्थान एकादशी शनिवार, नवम्बर 1, 2025 को

2वाँ नवम्बर को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 01:11 पी एम से 03:23 पी एम

पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय – 12:55 पी एम

एकादशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 01, 2025 को 09:11 ए एम बजे

एकादशी तिथि समाप्त – नवम्बर 02, 2025 को 07:31 ए एम बजे

प्रबोधिनी एकादशी पारण

गौण देवउत्थान एकादशी रविवार, नवम्बर 2, 2025 को

3वाँ नवम्बर को, गौण एकादशी के लिए पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 06:34 ए एम से 08:46 ए एम

पारण के दिन द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाएगी।

एकादशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 01, 2025 को 09:11 ए एम बजे

एकादशी तिथि समाप्त – नवम्बर 02, 2025 को 07:31 ए एम बजे

देवप्रबोधिनी एकादशी का महत्व

देवप्रबोधिनी एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है। यह वह दिन है जब भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं। यह पर्व Chaturmasya के समापन का प्रतीक है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी एकादशी) से शुरू होता है। इस दौरान सभी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि निषिद्ध होते हैं। देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन से ये कार्य पुनः शुरू हो जाते हैं, जिससे यह पर्व सामाजिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है।

पद्म पुराण के अनुसार, इस व्रत को करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञों के समान पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत सभी पापों का नाश करता है और भक्त को बैकुंठ धाम की प्राप्ति कराता है। यह दिन भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का अवसर प्रदान करता है।

Importance of Dev Prabodhini Ekadashi, Spiritual significance of Ekadashi, Hindu festivals 2025
Why is Dev Prabodhini Ekadashi important, Benefits of observing Dev Uthani Ekadashi

देवप्रबोधिनी एकादशी व्रत की विधि

देवप्रबोधिनी एकादशी का व्रत विधि-विधान से करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। नीचे व्रत की पूरी प्रक्रिया दी गई है:

  1. प्रातःकाल स्नान: सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। गंगा जल मिलाकर स्नान करना विशेष पुण्यदायी माना जाता है।
  2. पूजा की तैयारी: घर के मंदिर को साफ करें और भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  3. संकल्प: व्रत का संकल्प लें, जिसमें आप भगवान विष्णु की कृपा और पापों के नाश की कामना करें।
  4. पूजा सामग्री: धूप, दीप, फूल, तुलसी पत्र, चंदन, नैवेद्य (सिंघाड़ा, गन्ना, शकरकंदी, केला आदि) और पंचामृत तैयार करें।
  5. मंत्र जाप: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी शुभ माना जाता है।
  6. रात्रि जागरण: रात में भगवान विष्णु के भजन और कीर्तन करें। यह पुण्य को कई गुना बढ़ाता है।
  7. व्रत पारण: अगले दिन द्वादशी तिथि में शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करें।

व्रत के दौरान सात्विक भोजन या फलाहार ग्रहण करें और चावल, मांस, मदिरा आदि से बचें।

Dev Prabodhini Ekadashi Vrat Vidhi, How to perform Ekadashi Vrat
Step-by-step guide for Dev Uthani Ekadashi Vrat, Dev Prabodhini Ekadashi puja items

देवप्रबोधिनी एकादशी की पौराणिक कथा

प्राचीनकाल में एक राजा के राज्य में सभी प्रजाजन एकादशी का व्रत रखा करते थें। एकादशी व्रत की फल प्राप्ति के लिए राज्य के सभी प्राणीजीव, पशु एवं प्रजाजन को एकादशी के अवसर पर अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन किसी और राज्य का एक निर्धन मनुष्य काम काज की तलाश में इस नगर में आता है और राजा के दरबार में जा कर राजा से अपने राज्य में काम दिलवाने की याचना करता है। राजा बड़े ही दयावान थे और उस मनुष्य की बात को स्वीकारते हुए उसे काम दिलवाते है किंतु उसी के साथ एक शर्त भी रखते है की यहां बाकी सभी दिन पूर्ण और भरपूर भोजन प्राप्त हो सकता है किंतु एकादशी पर्व पर समग्र राज्य एकादशी व्रत रखता है इस कारण वश तुम्हें उस दिन अन्न की प्राप्ति नहीं हो पायेगी केवल और केवल फलाहार कर अपना दिन व्यतीत करना पड़ेगा। परप्रांतीय मनुष्य इस समय तो राजा की हा में हा मिला देता है क्योंकि उसे उस समय केवल काम काज लेने से मतलब था। अब कुछ समय बीत जाता है और एकादशी व्रत का दिन आता है। राजा के कथन अनुसार राज्य में कहीं भी भोजन या अन्न की प्राप्ति नहीं हो पाती। भोजन ना मिलने से मनुष्य व्याकुल हो जाता है और तुरंत राजा के समक्ष जा कर खड़ा हो जाता है और दुबारा याचना करता है –

मनुष्य – “हे महाराज, निसंदेह है कि आपकी प्रजा एकादशी व्रत करने में प्रवीण है किंतु में अभी अभी पर प्रांत से काम की तलाश में आपके सम्मुख आया हु मुझे इस व्रत के बारे में कोई विशेष जानकारी प्राप्त नहीं है और में बस इस फलाहार से अपना आज का दिन व्यतीत नहीं कर पाऊंगा। अतः आप मुझ दीन पर कृपा कर मुझे अन्न प्रदान करे।”

राजा ने जब यह वचन सुने तब उन्होंने उसे अपने वचन और शर्त की याद दिलाई किंतु वह किसी भी सूरत में आज व्रत करने की स्थिति में नहीं था। अतः राजा ने उस पर दयाभाव दिखा कर अपने भंडार में से उचित मात्रा में चावल, दाल और आता दिया और कहा की तुम नगर से बाहर नदी के किनारे बैठ कर यह अन्न लेकर भोजन पका सकते हो। मनुष्य तुरंत से सभी सामग्री एकत्र कर नदी किनारे जा कर अपना भोजन पका कर नित्य कर्म अनुसार भगवान को भोग लगाता है, “हे भगवान, भोजन तैयार है। कृपया आकर ग्रहण करें।”

उसकी निस्वार्थ समर्पण भावना और वाणी सुन कर प्रभु स्वयं को रोक नहीं पाते है और पीतांबर धारी चतुर्भुज स्वरूप में वह उस मनुष्य के सम्मुख आकार उसके साथ प्रेम से भोजन करने लगते हैं और भोजन समाप्ति पर वहां से अंतर्ध्यान हो जाते है। मनुष्य देखता है भगवान तो उसके द्वारा पकाया हुआ सारा भोजन खा कर अदृश्य हो गए थें। और भंडार से राजा ने उसे केवल एक व्यक्ति खा सके उतना ही अन्न उसे दिया गया था। अतः उसके ना चाहते हुए भी उसका एकादशी व्रत संपन्न हो गया था।

पंद्रह दिन बाद जब आगली एकादशी का पर्व आया तब वह मनुष्य राजा के पास जा कर निवेदन करने लगा –

मनुष्य – “हे महाराज, इस बार आप मुझे दुगना अन्न देने की कृपा करें। पिछली बार तो मुझे भूखा ही रहना पड़ा था।”

राजा – “क्यों..!”

मनुष्य – “क्यों की मेरे बुलाने पर भगवान भी आते है और हम दोनों के लिए यह अन्न इतना पर्याप्त नहीं है।”

मनुष्य की वाणी सुन राजा विचलित हो उठे और कहने लगे –

राजा – “तुम जरूर मेरा उपहास कर रहे हो। ज्यादा अन्न प्राप्त करने के लिए तुम मेरे परम पूज्य। भगवान का सहारा लेते हो तुम्हे लज्जा नहीं आती। में तुम पर कैसे भरोसा करू। तुम तो यहां अभी कुछ ही दिन पहले आए हो। मैं तो यहां प्रभु की भक्ति प्रतिदिन करता हूं। हर व्रत अनुष्ठान विधि विधान से करता हूं। मुझे तो आज दिन तक भगवान के दर्शन नहीं हो पाएं। और तुम कह रहे हो की तुम्हे हो गए। इतना ही नहीं भगवान स्वयं तुम्हारे साथ आकर तुम्हारा पकाया हुआ भोजन खाते हैं। मुझे भ्रमित करने की चेष्टा भी मत करना अन्यथा तुम्हारे लिए अच्छा न होगा।”

राजा का उस कुछ दिन पूर्व आए मनुष्य पर भरोसा ना करना स्वभाविक था।

मनुष्य – “हे महाराज, आप मेरे कथन पर संदेह ना करें। मेरा कथन उतना ही सत्य है जितना सूर्य में प्रकाश। अतः अगर आप मेरे वचन की परीक्षा लेना चाहे तो निसंदेह आप मेरे साथ आज चल सकते है।”

राजा – “उचित है..!!”

फिर राजा और मनुष्य वन में नदी के किनारे जाते है। मनुष्य हमेशा की तरह अपना भोजन पका कर भगवान को आमंत्रण देता हैं। वहां राजा एक वृक्ष के पीछे छिप कर सारा दृश्य अपने सम्मुख देख रहा होता है। मनुष्य के आमंत्रण देने पर भी भगवान इस बार प्रगट हो कर भोजन करने नहीं आए। देखते ही देखते संध्या वेला आरंभ होने को थी। अब राजा का विश्वास उस मनुष्य पर से उठने लगा था और मनुष्य अपने विश्वास को पुरवार करने हेतु भगवान को पूर्ण श्रद्धा से पुकारता है।

मनुष्य – “हे भगवान..!! में आपसे अंतिम बार निवेदन कर रहा हूं। कृपया इस भक्त के वचनों को लाज रखें अन्यथा मुझे इस नदी में खुद को समर्पित करके अपने प्राणों की आहुति देनी होगी। हे भक्तवत्सल..!! इस भक्त को दर्शन दे प्रभु..!!”

मनुष्य के निवेदन करने के पश्चात भी भगवान वहा प्रगट ना हुए। वहा राजा यह सारा दृश्य अपनी आखों से देख रहा था। अब मनुष्य अपने प्राण त्यागने नदी की प्रचंड धाराओं की और बढ़ने लगा। नदी के अत्यंत निकट आ कर वो नदी में कूदने ही वाला था। अपने प्राणों की आहुति देने की दृढ़ता देख भगवान तुरंत वहां प्रगट हुए और उसे नदी में कूदने से बचा लिया।

फिर दोनो भक्त और भगवान ने साथ बैठ कर अपना भोजन समाप्त किया और फिर भगवान अपने भक्त को अपने गरुड़ पर बैठा कर अपने परम धाम को ले गए। वहां राजा छिप कर यह सारा दृश्य देख रहा था। एक क्षण के लिए उसकी बुद्धि धूम गई थी उसने ऐसा दृश्य पहले कभी अनुभव नहीं किया था लेकिन उस अध्याय से उसे ये समझ अवश्य आ गया था, व्रत और उपवास तब तक तुम्हे उचित फल की प्राप्ति नहीं देते जब तक तुम्हारे इस व्रत अनुष्ठान के प्रति भाव और श्रद्धा शुद्ध ना हो। उसी क्षण से वह भी एकादशी का व्रत पूर्ण श्रद्धा और शुद्ध मन से करने लगा और अपने अंत समय में वैकुंठ को गया।

अतः हे राजन..!! कोई भी व्रत और अनुष्ठान तब तक सफल नहीं हो पाते जब तक यजमान अपनी पूर्ण श्रद्धा और शुद्ध भावना से उसे ना करें। इस एकादशी(Devutthana Ekadashi) का पठन और श्रवण करने वाले मनुष्य की बुद्धि अपने भगवान में प्रवत रहती है और अंत समय में उसे परम धाम की प्राप्ति करवाती है।

Dev Prabodhini Ekadashi Vrat Katha, Ekadashi stories in Hindi
Dev Uthani Ekadashi story in Hindi, Moral of Dev Prabodhini Ekadashi Katha

तुलसी विवाह का महत्व

देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन Tulsi Vivah का आयोजन भी किया जाता है। यह भगवान विष्णु और तुलसी माता के प्रतीकात्मक विवाह का उत्सव है। शास्त्रों के अनुसार, तुलसी को विष्णुप्रिया माना जाता है। इस दिन तुलसी के पौधे को सजाकर उसका विवाह शालिग्राम (विष्णु का प्रतीक) के साथ किया जाता है। यह अनुष्ठान विशेष रूप से उन दंपतियों के लिए शुभ माना जाता है जिन्हें संतान प्राप्ति में बाधा आ रही हो। तुलसी विवाह करने से कन्यादान का पुण्य प्राप्त होता है।

Tulsi Vivah 2025, Importance of Tulsi Vivah
How to perform Tulsi Vivah on Dev Prabodhini Ekadashi, Benefits of Tulsi Vivah

व्रत के आध्यात्मिक और सामाजिक लाभ

देवप्रबोधिनी एकादशी का व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देता है। इस व्रत के कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

  • आध्यात्मिक लाभ: यह व्रत पापों का नाश करता है और मोक्ष का मार्ग खोलता है। रात्रि जागरण और भजन-कीर्तन से भक्तों का मन शुद्ध होता है।
  • सामाजिक लाभ: तुलसी विवाह और सामूहिक पूजा से समुदाय में एकता और भाईचारा बढ़ता है। यह पर्व लोगों को धर्म और संस्कृति के प्रति जागरूक करता है।
  • मानसिक शांति: व्रत और ध्यान से मन शांत होता है, जिससे तनाव और चिंता कम होती है।

Benefits of Dev Prabodhini Ekadashi, Spiritual advantages of Ekadashi Vrat
How Dev Uthani Ekadashi brings peace, Social benefits of Prabodhini Ekadashi

देवप्रबोधिनी एकादशी और पर्यावरण संरक्षण

देवप्रबोधिनी एकादशी का तुलसी विवाह पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देता है। तुलसी का पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है और यह वायु को शुद्ध करता है। इस दिन तुलसी की पूजा और उसके संरक्षण का संकल्प लेना पर्यावरण के प्रति जागरूकता को बढ़ाता है। हमें अधिक से अधिक तुलसी के पौधे लगाने चाहिए और पर्यावरण को स्वच्छ रखने का प्रयास करना चाहिए।

Environmental benefits of Tulsi Vivah, Dev Prabodhini Ekadashi and nature
How Dev Uthani Ekadashi promotes environmental awareness, Role of Tulsi in Dev Prabodhini Ekadashi

प्रेरणादायक संदेश

देवप्रबोधिनी एकादशी हमें सिखाती है कि जीवन में धर्म, भक्ति और अनुशासन का पालन करने से हर कठिनाई पर विजय प्राप्त की जा सकती है। यह पर्व हमें अपने भीतर की शक्ति को जगाने और सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। इस दिन का व्रत हमें न केवल भगवान विष्णु के करीब लाता है, बल्कि हमारे जीवन को सार्थक और उद्देश्यपूर्ण बनाने में भी मदद करता है।

Inspirational message of Dev Prabodhini Ekadashi, Motivation from Ekadashi Vrat
How Dev Uthani Ekadashi inspires positivity, Spiritual motivation from Prabodhini Ekadashi

निष्कर्ष

देवप्रबोधिनी एकादशी एक ऐसा पर्व है जो हमें आध्यात्मिक, सामाजिक और पर्यावरणीय जागरूकता की ओर ले जाता है। इस दिन का व्रत और तुलसी विवाह न केवल हमारे पापों का नाश करता है, बल्कि हमारे जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से भर देता है। ज्ञान की बातें (https://www.gyankibaatein.com) आपको इस पवित्र पर्व को पूरे उत्साह और भक्ति के साथ मनाने के लिए प्रेरित करता है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करें और अपने जीवन को नई दिशा दें।

Leave a Response