पुत्रदा एकादशी: महिमा, व्रत और कथा
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पुत्रदा एकादशी: महिमा, व्रत और कथा

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हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है, और इनमें से पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) का स्थान अत्यंत विशिष्ट है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और विशेष रूप से संतान प्राप्ति (Child Conception) व संतान के कल्याण (Child Welfare) के लिए किया जाता है। पुत्रदा एकादशी 2025 सावन मास (Shravan Month) और पौष मास (Paush Month) के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस व्रत को करने से न केवल संतान सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति भी प्राप्त होती है। यह आर्टिकल आपको पुत्रदा एकादशी की महिमा, व्रत विधि, कथा, और इसके आध्यात्मिक महत्व के बारे में विस्तार से बताएगा। इसे पढ़कर आप इस पवित्र व्रत को विधिवत रूप से कर सकेंगे और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त कर सकेंगे।

आइए, ज्ञान की बातें के माध्यम से इस पवित्र व्रत की महिमा और महत्व को समझें और इसे अपने जीवन में अपनाएं।

पुत्रदा एकादशी का महत्व

पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi Significance) हिंदू धर्म में संतान प्राप्ति और उनके सुखी जीवन की कामना के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जो भक्तों को संतान सुख (Child Happiness), दीर्घायु और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत न केवल संतानहीन दंपतियों के लिए शुभ माना जाता है, बल्कि उन माता-पिताओं के लिए भी महत्वपूर्ण है जो अपनी संतान के कल्याण और उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।

पद्म पुराण और अन्य शास्त्रों में इस व्रत की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करता है, उसे न केवल इस लोक में सुख-समृद्धि मिलती है, बल्कि परलोक में भी वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। सावन मास की पुत्रदा एकादशी को पवित्रा एकादशी (Pavitra Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है, जो भगवान शिव और विष्णु की कृपा का अनूठा संगम है।

कामदा एकादशी 2025 की तिथि (Kamada Ekadashi 2025 Date)

इस दिन का शुभ मुहूर्त और पारण का समय निम्नलिखित है:

पौष पुत्रदा एकादशी शुक्रवार, जनवरी 10, 2025 को

11वाँ जनवरी को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 07:15 ए एम से 08:21 ए एम

पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 08:21 ए एम

एकादशी तिथि प्रारम्भ – जनवरी 09, 2025 को 12:22 पी एम बजे

एकादशी तिथि समाप्त – जनवरी 10, 2025 को 10:19 ए एम बजे

पुत्रदा एकादशी व्रत की विधि

पुत्रदा एकादशी व्रत (Putrada Ekadashi Vrat Vidhi) को विधिवत रूप से करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:

  1. संकल्प: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु के समक्ष संतान प्राप्ति या कल्याण की कामना के साथ व्रत का संकल्प लें।
  2. पूजा की तैयारी: पूजा स्थल को साफ करें और भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  3. पूजा सामग्री: पंचामृत, फल, फूल, तुलसी पत्र, धूप, दीप, चंदन, रोली, नारियल, पान, सुपारी, और प्रसाद के लिए मिठाई तैयार करें।
  4. पूजा विधि:
    • भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं।
    • तुलसी पत्र, फूल, और चंदन अर्पित करें।
    • धूप-दीप जलाकर भगवान की आरती करें।
    • पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Putrada Ekadashi Vrat Katha) का पाठ करें।
  5. उपवास: पूरे दिन निराहार रहें या फलाहार करें। चावल और चावल से बनी चीजों का सेवन न करें।
  6. रात्रि जागरण: रात में भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें और जागरण करें।
  7. पारण: द्वादशी तिथि पर सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें। ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें।

पुत्रदा एकादशी की पौराणिक कथा

पुत्रदा एकादशी की कथा (Putrada Ekadashi Story) प्राचीनकाल में चम्पावती नगरी में महिष्मान नामक राजा राज किआ करता था। भगवान श्री हरी की कृपा से उसे चार पुत्र थे। किन्तु उन सभी पुत्रो में लुम्पक नाम का सबसे ज्येष्ठ पुत्र महापापी और दुराचारी था। वह अधर्म के मार्ग पर चलते हुए परस्त्री गमन, जुआ, मदिरापान, वैश्यागमन जैसे कुकर्मो में अपने पिता का पुण्य से अर्जित किआ हुआ धन नष्ट कर रहा था। वह सदैव ब्राह्मण, देवता, वैष्णव, ऋषि, संतो की निंदा करता रहता था। उसे किस भी धर्म काज में रूचि नहीं थी। एक समय जब उसके परम धर्मात्मा पिता को उसके कुकर्मो के विषय में ज्ञात हुआ तो उन्होंने उसी क्षण उसे अपने नगर से बाहर धकेल दिया। नगर से दूर होते ही लुम्पक की बुद्धि ने उसका साथ देना छोड़ दिया। उसे अब कुछ भी नहीं सुज़ रहा था की इस अवस्था में वह क्या करें और क्या ना करें।

भूख से तरबतर हो कर वो वन्य जीवो को मार कर खाने लगा। और धन की लालसा में रात्रि को अपने ही नगर में जा कर चोरी करता और निर्दोष नगर जनो को परेशान कर उन्हें मारने का महापाप करने लगा। कुछ समय पश्चात सारी नगरी उससे भयभीत होने लगी। निर्दोष वन्य जीवो को मार कर उसकी बुद्धि कुपित हो गई थी। कई बार राजसी सेवको और नगर जनों ने उसे पकड़ा किन्तु राजा के भय से वह उसे छोड़ देते।

वन के मध्य में एक अतिप्राचीन और विशाल पीपल का वृक्ष था।  वह इतना प्राचीन था की कई नगर जन उसे भगवान की ही तरह पूजा करते थे। वंही लुम्पक को इस विशाल वृक्ष की छाया अति आनंद प्रदान करती थी इसी कारणवश वह भी इसी वृक्ष की छाया में जीवन व्यतीत करने लगा। इस वन को लोग देवताओं की क्रीड़ास्थली भी मानते थे। कुछ समय बीतने पर आनेवाली पोष माह के कृष्णपक्ष की दसवीं तिथि की रात्रि को लुम्पक वस्त्रहीन होने के कारण शीत ऋतु के चलते वो पूरी रात्रि सो ना सका। उसके शरीर के अंग जकड गये थे।

सूर्योदय होते होते वह मूर्छित हो गया। अगले दिन एकादशी को मध्याह्न के समय सूर्य की गरमी से उसकी मूर्छा दूर हुई। रात्रि जागरण और कई दिन से आहार ना करने की वजह से वो बहोत अशक्त हो गया था। गिरता संभालता आज वाह फिर भोजन की खोज में वन को निकल पड़ा। अशक्त होने के कारण वह आज इस स्तिथि में नहीं था की किसी पशु का आँखेद कर सके इस लिए वृक्ष के निचे गिरे हुए फलो को एकत्रित करते हुए वह पुनः वही विशाल पीपल के वृक्ष के निचे आ बैठा तब तक सूर्यास्त होने को था। एकदशी के महापर्व पर आज उससे अनजाने में व्रत हो चूका था। अत्यंत दुःख के कारण वह अपने आप को प्रभु श्री हरी को समर्पित करते हुए कहने लगा –

“हे प्रभु..!! अब आपके ही है यह फल। आपको ही समर्पित करता हुँ। आप भी तृप्त हो जाइये।”

उस दिन भी अत्यंत दुःख के चलते वो पूरी रात्रि सो नहीं पाया। उसके इस व्रत (उपवास) से भगवान अत्यंत प्रसन्न हुए। प्रातः होने पर एक अत्यंत सुन्दर अश्व, सुन्दर परिधानो से सुसज्ज, उसके सामने आके खड़ा हो गया। उसी क्षण एक आकाशवाणी हुई –

“हे राजपुत्र, श्री नारायण की कृपा से तुम्हारे सर्व पापो का नाश हो चूका है। अब तुम अपने राज्य अपने पिता के पास लौट कर उनसे राज्य ग्रहण करोI”

आकाशवाणी से सुन प्रसन्न चित हो कर सुन्दर परिधान धारण कर भगवान श्री हरी का जय करा लगते हुए वह अपने राज्य को प्रस्थान कर गया। वंहा राज्य में राजा को भी इस बात की पुष्टि हो गई थी। अपने पापी पुत्र के पाप नष्ट होने पर राजा ने भी उसे सहर्ष स्वीकाराते हुए अपना राजपाठ उसे सौप दिया और खुद वन की और चले गये।

अब लुम्पक भी शास्त्रनुसार राजपाठ चलाने लगा था और उसका सारा परिवार पुत्र, स्त्री सहित भगवान श्री हरी के परम भक्त बन चुके थे। वृद्धावस्था आने पर वह भी अपने सुयोग्य पुत्र को अपने राज्य का कारभार सौपते हुए वन की ओर तपस्या करने चला गया और अपने अंत समय में वैकुंठ को प्राप्त हुआ।

अतः हे धर्मराज, जो भी मनुष्य अपने जीवनकाल में इस एकादशी(Saphala Ekadashi) का व्रत करता है उसे अपने अंत समय भी निसंदेह मुक्ति की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य इस पतित पावानी एकादशी का व्रत नहीं करता है वो सींग और पूँछ रहित पशु के समान है। इस सफला एकादशी(Saphala Ekadashi) की कथा का जो भी मनुष्य श्रवण या पठन करता है उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

पुत्रदा एकादशी के लाभ

पुत्रदा एकादशी (Benefits of Putrada Ekadashi) के निम्नलिखित लाभ हैं:

  1. संतान प्राप्ति: यह व्रत संतानहीन दंपतियों के लिए विशेष रूप से फलदायी है। यह संतान की प्राप्ति में आने वाली बाधाओं को दूर करता है।
  2. संतान का कल्याण: जिनके पास पहले से संतान है, उनके लिए यह व्रत संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि सुनिश्चित करता है।
  3. पापों का नाश: इस व्रत को करने से अनजाने में किए गए पाप नष्ट होते हैं।
  4. वैकुंठ की प्राप्ति: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने और कथा सुनने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।
  5. सुख-समृद्धि: यह व्रत जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है।

व्रत के नियम और सावधानियां

पुत्रदा एकादशी व्रत (Putrada Ekadashi Rules) को सफल बनाने के लिए निम्नलिखित नियमों और सावधानियों का पालन करें:

  1. सात्विकता: व्रत के दिन सात्विक भोजन करें और तामसिक भोजन (जैसे मांस, मछली, लहसुन, प्याज) से बचें।
  2. चावल का त्याग: एकादशी के दिन चावल और चावल से बनी चीजों का सेवन वर्जित है।
  3. सत्य और अहिंसा: क्रोध, झूठ, और कठोर शब्दों से बचें। सत्य और अहिंसा का पालन करें।
  4. रात्रि जागरण: रात में भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें और सोने से बचें।
  5. दान और पुण्य: व्रत के बाद ब्राह्मणों को दान देना और गरीबों की मदद करना शुभ माना जाता है।

पुत्रदा एकादशी के मंत्र और पूजा सामग्री

पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi Mantra) के दिन निम्नलिखित मंत्रों का जाप करें:

  1. विष्णु मंत्र:
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
    इस मंत्र का जाप 108 बार करें।
  2. लक्ष्मी-विष्णु मंत्र:
    ॐ श्री लक्ष्मी नारायणाय नमः
    इस मंत्र का जाप संतान सुख और समृद्धि के लिए करें।

पूजा सामग्री (Putrada Ekadashi Puja Samagri):

  • भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति/चित्र
  • पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)
  • तुलसी पत्र, फूल, चंदन, रोली
  • धूप, दीप, कपूर
  • फल, नारियल, पान, सुपारी
  • मिठाई और प्रसाद

सामान्य प्रश्न (FAQs)

1. पुत्रदा एकादशी कब मनाई जाती है?
पुत्रदा एकादशी वर्ष में दो बार मनाई जाती है—सावन मास और पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को। 2025 में यह 5 अगस्त और 10 जनवरी को होगी।

2. पुत्रदा एकादशी व्रत कौन कर सकता है?
यह व्रत कोई भी व्यक्ति कर सकता है, विशेष रूप से वे दंपति जो संतान प्राप्ति की कामना करते हैं या अपनी संतान के कल्याण की इच्छा रखते हैं।

3. क्या इस व्रत में चावल खा सकते हैं?
नहीं, एकादशी व्रत में चावल और चावल से बनी चीजों का सेवन वर्जित है।

4. पुत्रदा एकादशी की कथा पढ़ना क्यों जरूरी है?
कथा पढ़ने या सुनने से व्रत पूर्ण होता है और वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है। यह भक्ति और श्रद्धा को बढ़ाता है।

5. क्या इस व्रत का कोई वैज्ञानिक आधार है?
हालांकि यह व्रत धार्मिक और आध्यात्मिक है, उपवास और सात्विक जीवनशैली से मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।

निष्कर्ष

पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi 2025) भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और संतान सुख की कामना को पूर्ण करने का एक पवित्र अवसर है। इस व्रत को श्रद्धा, भक्ति और विधि-विधान से करने से न केवल संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है, बल्कि जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी आती है। इसकी कथा और महिमा हमें यह सिखाती है कि विश्वास और भक्ति के साथ किए गए कार्य असंभव को भी संभव बना सकते हैं।

ज्ञान की बातें आपको प्रेरित करता है कि आप इस पवित्र व्रत को अपनाएं और अपने जीवन में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करें। इस पुत्रदा एकादशी 2025 पर अपने परिवार के साथ इस व्रत को करें और संतान सुख का आशीर्वाद प्राप्त करें। जय श्री हरि!

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