व्रत कथाएँ

सूर्य षष्ठी व्रत सम्पूर्ण कथा

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक महिला थी जिसके विवाह हुए कई साल हो गए थे, लेकिन कोई संतान नहीं थी। मान्यता है कि उस महिला ने कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन संकल्प लिया कि यदि संतान की प्राप्ति होती है तो वो सूर्य देव का व्रत करेगी। ऐसे में महिला को सूर्य देव की कृपा से संतान की प्राप्ति हुई। लेकिन महिला ने व्रत नहीं किया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब लड़का धीरे-धीरे बड़ा हुआ और उसकी शादी हो गई।

शादी के बाद जब वह जंगल के रास्ते घर लौट रहा था तो एक स्थान पर डेरा लगाया। जब दुल्हन ने देखा कि पालकी में उसका पति मरा हुआ है।दुल्हन अपने पति को देखकर विलाप करने लगी। उसके रोने की आवाज सुनकर एक वृद्ध महिला उसके पास आई और बोली कि मैं छठ माता हूं, तुम्हारी सास मेरा व्रत करने की बात कहकर टालती रही। जिसके कारण तुम्हारे पति की मृत्यु हो गई है।

वृद्ध महिला ने कहा कि मुझे तुम्हारा विलाप नहीं देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि मैं तुम्हारे पति को जिला देती हूं लेकिन घर जाकर अपनी सास से इस बारे में जरूर पूछना। इसके बाद छठ माता ने उसके पति को जीवित कर दिया। कुछ देर बाद जब बहू घर पहुंची तो रास्ते में जितनी भी बातें हुई थी सारी बातें अपने सास को बतायी। तब लड़के की मां ने अपने पुराने संकल्प को याद करते हुए सूर्य देव का व्रत किया। तब से लेकर आज तक यह व्रत चलन में है।माना जाता है कि इस व्रत संस्कार से भगवान भास्कर प्रसन्न होते हैं और सबके जीवन में सूर्य की रोशनी विराजमान रहती है ।

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