
गुरु पूर्णिमा 2026
गुरु पूर्णिमा का पर्व आदरणीय गुरु को उसके विद्यार्थी के जीवन से, अज्ञानता रूपी अंधकार को दूर करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह पर्व प्रत्येक साल जुलाई के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को आता है।
- मान्यता है की इस पर्व की शुरुआत महर्षि वेदव्यास के सम्मान में आरंभ की गई थी।
- महर्षि वेदव्यास महाभारत के रचयिता और वेदों, पुराणो के विशेषज्ञ थे।
- वेदव्यास के काव्यों से व महकाव्यों से हमे प्राचीन काल की संस्कृति और इतिहास के बारे में जानने को मिलता है।
- जीवन के हर क्षेत्र मे सही राह को दिखाने वाला, अज्ञानता को दूर करने वाला एक गुरु ही होता है, जैसे वह विद्यालय के गुरु हो या विद्यालय से बाहर का समाज।
- इसीलिए सभी व्यक्ति के जीवन में एक गुरु का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
- गुरु पूर्णिमा पर्व को एक अन्य नाम व्यास पूर्णिमा से भी जाना जाता है।
गुरु पूर्णिमा का महत्व

गुरु पूर्णिमा के दिन सभी गुरुओं को नमन किया जाता है। गुरु पूर्णिमा के अगले दिन से सावन मास प्रारंभ हो जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि पर भगवान वेद व्यास का जन्म हुआ था। इसलिए इस तिथि पर गुरु पूर्णिमा के पर्व को मनाया जाता है। वेद व्यास ने कई वेदों और पुराणों की रचना की थी। गुरु पूर्णिमा के दिन अपने सभी गुरुजनों का नमन कर उनका आशीर्वाद जरूर प्राप्त करें। शास्त्रों में गुरु को भगवान से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है।
गुरु पूर्णिमा 2026 मुहूर्त
गुरु पूर्णिमा बुधवार, जुलाई 29, 2026 को
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – जुलाई 28, 2026 को 06:18 पी एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – जुलाई 29, 2026 को 08:05 पी एम बजे
गुरु पूर्णिमा कथा
गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाने के पीछे मुख्य कारण है महर्षि वेदव्यास का जन्म। महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अंश के रूप में धरती पर आए थे। उनके पिता का नाम ऋषि पराशर और माता सत्यवती थी। उन्हें बाल्यकाल से ही अध्यात्म में काफी रुचि थी। जिसको पूरा करने के लिए उन्होंने अपने माता-पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा प्रकट की और वन में जाकर तपस्या करनी शुरू कर दी।लेकिन उनकी माता ने इस इच्छा को मना कर दिया। महर्षि वेदव्यास ने अपनी माता से इसके लिए हठ किया और अपनी बात को स्वीकार करा लिया। लेकिन उन्होंने आज्ञा देते हुए कहा की जब घर का ध्यान आए तो वापस हमारे पास लौट आना। इसके बाद वेदव्यास तपस्या हेतु वन चले गए और वहां जाकर उन्होंने कठोर तपस्या की। इस तपस्या के पुण्य के तौर पर उन्हें संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल हुई। जिसके बाद उन्होंने चारों वेदों का विस्तार किया महाभारत ,अठारह महापुराणों और ब्रह्मास्त्र की रचना की, उन्हें वरदान प्राप्त हुआ। ऐसा कहा जाता है कि, किसी न किसी रूप में हमारे बीच महर्षि वेदव्यास आज भी उपस्थित है। इसलिए हिंदू धर्म में वेदव्यास भगवान के रूप में पूजे जाते हैं। आज भी वेदों का ज्ञान लेने से पहले महर्षि वेदव्यास का नाम सबसे पहले लिया जाता है।
गुरु पूर्णिमा के दिन क्या करें

- आज के दिन महर्षि वेद व्यास जी के समक्ष घी का दीया जलाएं, साथ ही भगवान श्री कृष्ण की पूजा करें।
- पीपल में जल चढ़ा कर घी का दीपक प्रज्वलित करके श्रीहरि विष्णु जी का ध्यान करें।
- – पितरों के नाम तर्पण करें।
- आज श्रीमद्भागवदगीता का पाठ करें।
- भगवान सत्यनारायण पूजन करके कथा वाचन करें।
- गुरु पूर्णिमा का दिन विद्या या सिद्धि की दृष्टि से बहुत खास है, अत: इस दिन नया सीखने का कार्य प्रारंभ करें।
- केसर का तिलक लगाएं।
- मंदिर में पीली वस्तुओं का दान करें।
- यदि कोई गुरु हो तो गुरु से मंत्र प्राप्त करें।
- पीली वस्तुओं का सेवन करें।
- घर के बड़े-बुजुर्गों तथा अपने गुरु, शिक्षक के पैर छुएं तथा भेंट अवश्य दें।
- गुरु पूजन से बृहस्पति दोष समाप्त हो जाता है, अत: देवगुरु बृहस्पति का पूजन तथा उनके मंत्रों का जाप करें।
- गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरूदेवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥ मंत्र का जान करें।
गुरु पूर्णिमा के दिन क्या न करें

- किसी भी प्रकार का मांगलिक कार्य न करें।
- क्रोध, ईर्ष्या, किसी का अपमान न करें।
- मांस, मटन, मदिरा से दूर रहें।
- स्त्री प्रसंग से दूर रहें।
- किसी भी प्रकार का तामसिक भोजन न करें।
- यात्रा न करें।
- सुख सुविधा का त्याग करें।
- यदि आपने व्रत रखा हैं तो किसी भी तरह की बहस से दूर रहें।