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शीतला अष्टमी 2026
त्यौहार (Festival)

शीतला अष्टमी 2026

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हिंदू धर्म में शीतला अष्टमी का विशेष महत्व है। इस व्रत को कई स्थानों पर बासौड़ा या बूढ़ी बसौड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा की जाती है। शीतला अष्टमी पर बासी या ठंडा भोजन करने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। इस मौके पर भक्त सुबह-सुबह ठंडे जल से स्नान कर शीतला माता की पूजा करते हैं। इस दिन घर की सफाई और रसोई में विशेष स्वच्छता का ध्यान रखा जाता है। माना जाता है कि इस दिन माता शीतला की कृपा से संतान और परिवार को बीमारियों से मुक्ति मिलती है। माताएं व्रत रखकर अपने बच्चों की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना करती हैं।

शीतला अष्टमी का महत्व

शीतला माता को आरोग्य की देवी माना जाता है। विशेषकर बच्चों को चेचक, खसरा, फोड़े-फुंसी और त्वचा संबंधी रोगों से बचाने के लिए उनकी पूजा की जाती है। मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन व्रत रखने और मां शीतला की श्रद्धा से पूजा करने से शरीर को इन बीमारियों से रक्षा मिलती है। यह भी कहा जाता है कि मां शीतला अपने भक्तों के कष्ट दूर करती हैं और उन्हें शारीरिक कष्टों से राहत प्रदान करती हैं।

शीतला अष्टमी 2026 मुहूर्त

शीतला अष्टमी बुधवार, मार्च 11, 2026 को

शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त – 06:36 ए एम से 06:27 पी एम

अष्टमी तिथि प्रारम्भ – मार्च 11, 2026 को 01:54 ए एम बजे

अष्टमी तिथि समाप्त – मार्च 12, 2026 को 04:19 ए एम बजे

शीतला अष्टमी पूजा विधि

शीतला अष्टमी के दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद शीतला माता की प्रतिमा या चित्र का गंगाजल से अभिषेक करें। देवी को सुंदर पुष्पों और मालाओं से सजाएं, उन्हें कुमकुम अर्पित करें और श्रृंगार सामग्री चढ़ाएं। फिर माता को बासी भोजन जैसे दही, चावल, रोटी और मिठाई आदि का भोग लगाएं। पूजा के समय शीतला माता की कथा, मंत्र और आरती का पाठ अवश्य करें। अंत में, पूजा में हुई किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा मांगें और मां से अपनी मनोकामनाएं कहें।

कैसे रखा जाता है शीतला अष्टमी का व्रत?

शीतला अष्टमी के अवसर पर भक्त श्रद्धा भाव से व्रत करते हैं। इस दिन व्रती पूरे दिन अन्न का त्याग करते हैं और केवल पानी या फलाहार लेकर उपवास रखते हैं। शाम के समय जब शीतला माता की विधिपूर्वक पूजा की जाती है, तभी व्रत का पारण किया जाता है।

शीतला अष्टमी व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार एक वृद्ध महिला और उसकी दो बहुओं ने देवी शीतला के लिए उपवास रखा था। दोनों बहुओं ने मान्यताओं के अनुसार, एक दिन पहले ही प्रसाद के लिए भोजन बनाकर तैयार कर लिया, लेकिन दोनों बहुओं के बच्चे छोटे थे, इसलिए उन्होंने सोचा कि कहीं बासी खाना उनके बच्चों को नुकसान न कर दे। इसलिए उन्होंने बच्चों के लिए ताजा खाना दोबारा से तैयार किया, जब वे दोनों शीतला माता की पूजा के बाद घर वापस लौटीं, तो उन्होंने अपने बच्चों को मृत पाया। इस दृश्य को देखकर वे जोर-जोर से विलाप करने लगीं। तब उनकी सास ने उन्हें बताया कि “यह शीतला माता के प्रकोप का प्रभाव है। ऐसे में जब तक ये बच्चे जीवित न हो जाएं, तब तक तुम दोनों घर वापस मत आना।” दोनों बहुएं अपने मृत बच्चों को लेकर इधर-उधर भटकने लगीं, तभी उन्हें एक पेड़ के नीचे दो बहनें बैठी मिलीं जिनका नाम ओरी और शीतला था। वे दोनों बहने गंदगी और जूं के कारण बहुत परेशान थीं।

शीतला अष्टमी भोग

शीतला अष्टमी के दिन मां शीतला को ठंडा यानी बासी भोजन का भोग लगाने की परंपरा है। इस विशेष भोग के लिए खाना एक दिन पहले ही बना लिया जाता है और उसे पूरी तरह ठंडा होने के बाद देवी को अर्पित किया जाता है। भोग में मुख्य रूप से दही-चावल, ठंडी रोटी, मीठी पूड़ी, मिठाई और अन्य शीतल चीजें शामिल होते हैं।

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