
देवी काली हिन्दू धर्म की एक प्रसिद्धह देवी है, इन्ही की पूजा को काली पूजा की संज्ञा दी जाती है। चतुर्भुजधारी माँ काली अपने एक हाथ में कटा हुआ सिर और गले में मूँद की माला मे देखने में बहुत ही भयानक लगती है। परंतु माँ काली विनाश की शक्ति या असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक मानी जाती है।
- यह पर्व हर साल अक्टूबर माह के अंत या नवंबर माह के शुरुआत में अमावस्या तिथि को मनाया जाता है।
- काली पूजा मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, असंम बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है।
- काली माँ की पूजा को श्यामपुजा और कालरात्रि पूजा भी कहा जाता है।
- सप्ताह का शुक्रवार का दिन माँ काली की पूजा का दिन माना जाता है।
- माँ काली की पूजा 2 तरीके से होती है।
- पहले तरीके में माँ का तिलक आदि कर फल फूल चढ़ा के ढोल नगाड़े से की जाती है।
- दूसरे तरीके में माँ काली को तंत्र-मंत्र के साथ बलि देकर की जाती है।
- माँ काली की पूजा अपने पड़ोसी देश बांग्लादेश एवं नेपाल में भी होती है।
काली पूजा 2025 मुहूर्त
काली पूजा सोमवार, अक्टूबर 20, 2025 को
काली पूजा निशिता काल – 11:41 पी एम से 12:31 ए एम, अक्टूबर 21
अमावस्या तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 20, 2025 को 03:44 पी एम बजे
अमावस्या तिथि समाप्त – अक्टूबर 21, 2025 को 05:54 पी एम बजे
काली पूजा का महत्व
देवी काली नकरात्मक शक्तियों का नाश और असत्य पर सत्य के विजय का प्रतीक है। मान्यता है की देवी काली बहुत ही शक्तिशाली है, और वह अनैतिक कार्यो को करने वाले का क्रूरतापूर्वक उसका वध कर देती है। माँ काली ने ऐसे ही किसी अनैतिक कार्यों को करने वाले राक्षस को उसके कृत्य के कारण उसके मुंडी काट उसको गले में धारण कर लिया था। असत्य पर सत्य पर विजय के रूप में माँ काली की पूजा होती है।
माँ काली की छवि से क्या प्रतीत होता है?

- देवी काली का काला रंग – माँ काली का काला रंग उनकी उग्रता, क्रूरता, प्रकृति और सत्य का प्रतीक है।
- गले में मुंड की माला – सत्यता का प्रतीक।
- खुले हुए बाल – सभी सभ्यताओ के स्वतंत्र होने का प्रतीक माना जाता है।
- मैया की तीन आँख – मान्यता है की माँ की तीनों आँखे सूर्य चंद्र और अग्नि का प्रतीक है।
- एक हाथ में एक मूँद, और एक हाथ में अभयमुद्र – एक हाथ में मूँड पूर्ण रूप से ज्ञान का प्रतीक है व दूसरे हाथ की अभयमुद्र आशीर्वाद मुद्रा है।
काली पूजा कथा
एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार, एक बार चंड- मुंड और शुंभ- निशुंभ आदि दैत्यों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था. जिसके बाद उन्होंने इंद्रलोक तक पर कब्जा करने के लिए देवताओं से युद्ध शुरू कर दिया. तब सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे दैत्यों से छुटकारा पाने के लिए प्रार्थना की. भगवान शिव ने माता पार्वती के एक रूप अंबा को प्रकट किया. माता अंबा ने इन राक्षसों का वध करने के लिए मां काली का भयानक रूप धारण किया और अत्याचार करने वाले सभी दैत्यों का वध कर दिया. उसके बाद अति शक्तिशाली दैत्य रक्तबीज वहां आ पहुंचा रक्तबीज एक ऐसा दैत्य था जिसके रक्त की एक बूंद जमीन पर गिरते ही उस रक्त से एक नया राक्षस पैदा हो जाता था, इसीलिए उसे रक्तबीज कहा गया. मां काली ने रक्त बीज का वध करने और दूसरे रक्तबीज का जन्म होने से रुकने के लिए अपनी जीभ बाहर निकाली और अपनी तलवार से रक्तबीज पर वार किया और उसका रक्त जमीन पर गिरे, उसके पहले ही वे उसे पीने लगीं. इस तरह रक्तबीज का वध हुआ लेकिन मां काली का क्रोध शांत नहीं हुआ. वे संहार की ही प्रवृत्ति में रहीं. मां काली के इस स्वरूप को देखकर ऐसा लग रहा था कि अब सारी सृष्टि का ही संहार कर देंगी. जैसे ही भगवान शिव को इसका आभास हुआ तो वे चुपचाप मां काली के रास्ते में लेट गए मां काली भगवान शिव का ही अंश हैं इसीलिए उन्हें अर्धनारीश्वर भी कहा जाता है. उन्हें अनंत शिव भी कहा जाता है क्योंकि उनकी थाह कोई लगा ही नहीं सकता.जब मां काली आगे बढ़ीं तो उनका पैर शिवजी की छाती पर पड़ा. अनंत शिव की छाती पर पैर पड़ते ही मां काली चौंक पड़ीं क्योंकि उन्होंने देखा कि यह तो साक्षात भगवान शिव हैं. उनका क्रोध तत्काल खत्म हुआ और उन्होंने संसार के सभी जीवों को आशीर्वाद दिया. इसलिए कार्तिक मास की अमावस्या को मां काली की पूजा की जाती है.
मां काली पूजा विधि

मां काली की पूजा करने के लिए सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें. देवी काली की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थल पर रखें, और इसे लाल या काले कपड़े से सजाएं. मां काली का आह्वान करें और उन्हें पूजा में आमंत्रित करें. देवी की मूर्ति पर जल, दूध, और फूल अर्पित करें.सिंदूर, हल्दी, कुमकुम, और काजल चढ़ाएं. मां काली को फूलों की माला पहनाएं. सरसों का तेल का दीपक जलाएं और कपूर से आरती करें.धूप या अगरबत्ती जलाकर मां काली के सामने रखें.मिठाई, फल, और नैवेद्य मां को अर्पित करें.”ॐ क्रीं काली” या “क्रीं काली” का जाप करें. यह मंत्र मां काली को बहुत प्रिय हैं. उसके बाद मां काली की कपूर से आरती कर पूजा संपन्न करें.
दिल्ली में काली पूजा व पंडाल कहाँ पर लगते है
- दिल्ली मे कई स्थानों पर काली पूजा होती है, और पंडाल भी लगते है। वे सभी भक्त या बंगाली जो काली पूजा करते है, वो इन स्थानों पर जाकर अपना त्योहार मनाते है।
- काली पूजा नई दिल्ली कालीबाड़ी में होती है, आप यहाँ जा सकते है यहाँ जाने की लिए आवश्यक यातायात सुविधा बस, ऑटो आसानी से उपलब्ध हो जाते है।
- इसके अलावा नोएडा क्लब जो की सेक्टर 26 में यहाँ भी कालीबाड़ी है। और यहाँ भी काली पूजा होती है और यहाँ जाने के लिए भी आवश्यक यातायात साधन उपलब्ध है।
- इसके अलावा दिल्ली का चितरंजन पार्क में कालीमंदिर है। यहाँ सभी बंगाली व माँ काली के सभी भक्तो की भीड़ काली पूजा के रात्री यही देखने को मिलती है।
- अगर आप इन सब क्षेत्रों से दूर से रहते है, तो इसके अतिरिक्त दिल्ली वासियों के लिए एक और विकल्प है। आप काली पूजा देखने और उसमे भग लेने के लिए द्वारका सेक्टर 12 में जा सकते है। यहाँ जाने के लिए सभी यातायात के साधन उपलब्ध है आप यहाँ आसानी से जा सकते है।