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वट सावित्री व्रत 2026
त्यौहार (Festival)

वट सावित्री व्रत 2026

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हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष धार्मिक महत्व है। यह व्रत विशेष रूप से सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए करती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पर्व ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। इस दिन महिलाएं वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़) की पूजा करके सावित्री और सत्यवान की कथा सुनती हैं। मान्यता है कि इसी दिन सावित्री ने अपने तप और संकल्प से यमराज से अपने पति के प्राण वापस लिए थे।

वट सावित्री व्रत का महत्व

वट सावित्री व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह स्त्री के भक्ति और पति के प्रति प्रेम का प्रतीक है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन की खुशहाली, पति की लंबी उम्र और परिवार में सुख-शांति के लिए प्रार्थना करती हैं। मान्यता है कि सावित्री जैसी सच्ची श्रद्धा और तप से कोई भी स्त्री अपने वैवाहिक जीवन को संपूर्ण और सुखमय बना सकती है।

वट सावित्री व्रत 2026 मुहूर्त

वट सावित्री अमावस्या शनिवार, मई 16, 2026 को

अमावस्या तिथि प्रारम्भ – मई 16, 2026 को 05:11 ए एम बजे

अमावस्या तिथि समाप्त – मई 17, 2026 को 01:30 ए एम बजे

वट सावित्री व्रत पूजन सामग्री

  • सूत (लाल धागा)
  • बड़ वृक्ष की शाखा या नीचे पूजा के लिए स्थान
  • फल, फूल, 5 प्रकार के फल, पंखा, कच्चा दूध, भीगे चने, प्रसाद, जल पात्र, अगरबत्ती, दीपक आदि

वट सावित्री व्रत की पूजा विधि

  • वट सावित्री व्रत के दिन यानी आज ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर महिलाएं पति की आयु, सुख और परिवार की रक्षा के लिए व्रत का संकल्प लें. इसके बाद घर के आसपास के बरगद के पेड़ के पास जकर पूजा अर्चना करें. अगर आसपास कोई बरगद का पेड़ नहीं है तो एक छोटे गमले में बरगद के पेड़ की जड़ लगाकर पूजा अर्चना कर सकते हैं.
  • पूजा के लिए लाल चुनरी, कलावा, फल, फूल, दूध, घी, 7 प्रकार के अनाज, जल से भरा लोटा, हल्दी, सुपारी, शहद, बांस की टोकरी, मिठाई, शक्कर, सूत का धागदा, कपूर, कथा की पुस्तक आदि पूजा से संबंधित चीजें पूजा की प्लेट में रख लें.
  • वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए सबसे पहले वट वृक्ष के पेड़ को जल, दूध, गंगाजल, शहद, भीगे हुए चने आदि पूजा से संबंधित चीजें अर्पित करें. फिर पेड़ को रोली, हल्दी लगाएं और फल, फूल, अक्षत आदि चीजें अर्पित करें.
  • वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें और हर परिक्रमा में सूत (धागा) लपेटें. जब आप परिक्रमा करें तब मन में पति की लंबी उम्र की कामना करें. इसके बाद सावित्री-सत्यवान की कथा श्रद्धा से सुनें या पढ़ें.
  • सावित्री और सत्यवान की मूर्तियां बांस की एक टोकरी में रखें और सजाकर पूजन करें. इसके बाद पंचामृत से स्नान कराएं, वस्त्र अर्पित करें और रोली अक्षत लगाएं. इसके बाद दीपक जलाएं.
  • अंत में आरती करें और पति के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें. वट सावित्री व्रत का पारण अगले दिन यानी सूर्यादय के बाद जलपान किया जाता है.

वट सावित्री व्रत कथा

मद्र देश के राजा अश्वपति के पुत्री रूप में सर्वगुण संपन्न सावित्री का जन्म हुआ. राजकन्या ने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की कीर्ति सुनकर उन्हें पति रूप में वरण कर लिया. यह बात जब त्रऋषिराज नारद को पता चली तो वे अश्वपति से जाकर कहने लगे आपकी कन्या ने वर खोजने में निःसन्देह भारी भूल की है. सत्यवान गुणवान तथा धर्मात्मा भी है, परन्तु वह अल्पायु है और एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जायेगी.

नारद की यह बात सुनते ही राजा अश्वपति का चेहरा उदास हो गया. उन्होंने अपनी पुत्री को समझाया कि ऐसे अल्प आयु व्यक्ति के साथ विवाह करना उचित नहीं. इसलिए कोई अन्य वर चुन लो, इस पर सावित्री बोली-पिताजी ! आर्य कन्याएं अपना पति एक बार ही वरण करती हैं. अब चाहे जो भी हो मैं सत्यवान को ही वर स्वरूप स्वीकार करूंगी. सावित्री ने नारद से सत्यवान की मृत्यु का समय मालूम कर लिया था. अन्ततः उन दोनों का विवाह हो गया. वह ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा में रात-दिन रहने लगी. समय बदला, ससुर का बल क्षीण होता देख शत्रुओं ने राज्य छीन लिया.नारद का वचन सावित्री को दिन प्रतिदिन अधीर करता रहा. उसने पति के मृत्यु का दिन नजदीक आने से तीन दिन पूर्व से ही उपवास शुरू कर दिया. नारद् द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया. नित्य की भांति उस दिन भी सत्यवान अपने समय पर लकड़ी काटने के लिए जब चला तो सावित्री भी सास-ससुर की आज्ञा लेकर चलने को तैयार हो गई.सत्यवान वन में पहुंचकर लकड़ी काटने के लिए वृक्ष पर चढ़ा. वृक्ष पर चढ़ने के बाद उसके सिर पर भयंकर पीड़ा होने लगी. वह नीचे उतरा. सावित्री ने उसे बड़ के पेड़ के नीचे लिटाकर उसका सिर अपनी जाघ पर रख लिया. देखते ही देखते यमराज सत्यवान के प्राणों को लेकर चल दिये (कहीं-कहीं ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि वट वृक्ष के नीचे लेटे हुए सत्यवान को सर्प ने डस लिया था) सावित्री सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे ही लिटाकर यमराज के पीछे-पीछे चल दी. पीछे आती हुई सावित्री को यमराज ने उसे लौट जाने का आदेश दिया. इस पर वह बोली महाराज जहां पति वहीं पत्नी. यही धर्म है, यही मर्यादा है.

सावित्री की धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज बोले पति के प्राणों के अतिरिक्त कुछ भी मांग लो. सावित्री ने यमराज से सास-श्वसुर के आंखों की ज्योति और दीर्घायु मांगी. यमराज तथास्तु कहकर आगे बढ़ गए. सावित्री अभी भी यमराज का पीछा करती रही. यमराज ने अपने पीछे आती सावित्री से वापस लौट जाने को कहा तो सावित्री बोली पति के बिना नारी के जीवन की कोई सार्थकता नहीं. यमराज ने सावित्री के पति व्रत धर्म से खुश होकर पुनः वरदान मांगने के लिए कहा. इस बार उसने अपने ससुर का राज्य वापस दिलाने की प्रार्थना की. तथास्तु कहकर यमराज आगे चल दिये. सावित्री अब भी यमराज के पीछे चलती रही. इस बार सावित्री ने यमराज से सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा. तथास्तु कहकर जब यमराज आगे बढ़े तो सावित्री बोली आपने मुझे सौ पुत्रों का वरदान दिया है, पर पति के बिना मैं मां कैसे बन सकती हूं. अपना यह तीसरा वरदान पूरा कीजिए. सावित्री की धर्मनिष्ठा, ज्ञान, विवेक तथा पतिव्रत धर्म की बात जानकर यमराज ने सत्यवान के प्राणों को अपने पास से स्वतंत्र कर दिया. सावित्री सत्यवान के प्राण को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची जहां सत्यवान का मृत शरीर रखा था. सावित्री ने वट वृक्ष की परिक्रमा की तो सत्यवान जीवित हो उठा.

प्रसन्नचित्त सावित्री अपने सास-श्वसुर के पास पहुंची तो उन्हें नेत्र ज्योति प्राप्त हो गई. इसके बाद उनका खोया हुआ राज्य भी उन्हें मिल गया. तभी से वट वृक्ष की पूजा की जाती है.

वट सावित्री व्रत के दिन क्या करें

  • सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और भगवान विष्णु तथा माता सावित्री का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
  • वट वृक्ष की पूजा इस व्रत का सबसे अहम हिस्सा है। पीली साड़ी पहनकर महिलाएं बरगद के पेड़ के नीचे जाकर पूजन करती हैं, जल चढ़ाती हैं, रोली, चावल, फूल, कच्चा सूत (कलावा) चढ़ाती हैं और सात या 108 बार वृक्ष की परिक्रमा करती हैं।
  • इस दिन व्रती महिलाओं को वट सावित्री व्रत की पौराणिक कथा अवश्य सुननी चाहिए, जिससे व्रत की पूर्णता मानी जाती है।
  • इस दिन व्रत करने के बाद जरूरतमंदों को फल, अन्न, वस्त्र और दक्षिणा का दान करना शुभ माना जाता है।
  • पूरे दिन संयमित आचरण रखें, मन को शांत और श्रद्धावान बनाए रखें। यह व्रत केवल बाह्य आडंबर नहीं बल्कि आंतरिक श्रद्धा से भी जुड़ा है।

वट सावित्री व्रत के दिन क्या ना करें

  • इस दिन व्रतधारी महिलाएं केवल फलाहार करती हैं। अन्न या नमक का सेवन व्रत का नियम तोड़ता है।
  • व्रत के दिन गुस्सा करना, झगड़ना, अपशब्द बोलना या किसी को अपमानित करना अशुभ माना जाता है।
  • व्रत करने वाली महिलाएं दिन में सोने से बचें, क्योंकि यह व्रत के नियमों के विरुद्ध माना जाता है।
  • इस दिन घर और पूजा स्थान को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए। गंदगी या अव्यवस्था अपवित्रता मानी जाती है।
  • इस दिन मांसाहारी भोजन और शराब जैसे अपवित्र पदार्थों से पूरी तरह परहेज रखना चाहिए।
  • इस दिन का उद्देश्य ध्यान, साधना और श्रद्धा है। इसलिए तकनीकी उपकरणों से दूरी बनाए रखें और आध्यात्मिक गतिविधियों में समय बिताएं।


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