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गंगा दशहरा 2026
त्यौहार (Festival)

गंगा दशहरा 2026

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गंगा दशहरा देवी गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जो राजा भागीरथ की कठिन तपस्या के बाद संभव हुआ था। यह पर्व ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को होता है और इसे गंगा नदी में स्नान करने, दान-पुण्य करने और पूजा-अर्चना के माध्यम से मनाया जाता है, जिससे भक्तों के पापों का नाश होता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

गंगा दशहरा का महत्व

गंगा दशहरा को लेकर यह धार्मिक मान्यता है कि इस दिन ही मां गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। गंगा दशहरा पर पवित्र गंगा नदी में स्नान जरूर करना चाहिए। अगर आपके लिए ऐसा कर पाना संभव न हो तो आपको घर पर ही स्नान करते हुए पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर लेना चाहिए। इस दिन मां गंगा की पूजा-अर्चना की जाती है।

गंगा दशहरा 2026 मुहूर्त

गंगा दशहरा बुधवार, अप्रैल 4, -2026 को

दशमी तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 03, -2026 को 11:12 पी एम बजे

दशमी तिथि समाप्त – अप्रैल 04, -2026 को 10:08 पी एम बजे

हस्त नक्षत्र प्रारम्भ – अप्रैल 04, -2026 को 01:09 पी एम बजे

हस्त नक्षत्र समाप्त – अप्रैल 05, -2026 को 01:05 पी एम बजे

व्यतीपात योग प्रारम्भ – अप्रैल 05, -2026 को 03:37 ए एम बजे

व्यतीपात योग समाप्त – अप्रैल 06, -2026 को 02:10 ए एम बजे

गंगा दशहरा पूजा विधि

1. ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगाजल मिलाकर स्नान करें या सीधे गंगा नदी में स्नान करें। 

2. मां गंगा का ध्यान करें। घर पर पूजा कर रहे हैं तो गंगाजल से भरा कलश स्थापित करें और गंगा की तस्वीर या मूर्ति को भी रखें। 

3. मां गंगा को चंदन, अक्षत (चावल), लाल फूल, सिंदूर, और गुलाल अर्पित करें। 

4. गुड़, मिठाई, फल, या खीर का भोग लगाएं। धूप और घी का दीपक जलाकर आरती करें। 

5. मां गंगा के मंत्रों जैसे ‘ॐ गंगे नमः’ या ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करें। इसके साथ ही श्री गंगा सहस्रनाम स्तोत्र या गंगा चालीसा का पाठ करें। 

6. अंत में प्रसाद का वितरण करें और अपनी गलतियों के लिए देवी से क्षमा याचना करें। 

पूजा के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें

  • पूजा के दौरान तामसिक (मांस-मदिरा) चीजों का सेवन न करें।
  • पूजन के बाद गरीबों को भोजन कराएं, जिससे शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
  • यदि घर पर पूजा कर रहे हैं, तो कलश में गंगाजल भरें और उसमें पूजा की सामग्री डालकर अर्पित करें।

गंगा दशहरा कथा

एक बार महाराज सगर ने व्यापक यज्ञ किया। उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला। इंद्र ने सगर के यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया। यह यज्ञ के लिए विघ्न था। परिणामतः अंशुमान ने सगर की साठ हजार प्रजा लेकर अश्व को खोजना शुरू कर दिया। सारा भूमंडल खोज लिया पर अश्व नहीं मिला।

फिर अश्व को पाताल लोक में खोजने के लिए पृथ्वी को खोदा गया। खुदाई पर उन्होंने देखा कि साक्षात्‌ भगवान ‘महर्षि कपिल’ के रूप में तपस्या कर रहे हैं। उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है। प्रजा उन्हें देखकर ‘चोर-चोर’ चिल्लाने लगी।

महर्षि कपिल की समाधि टूट गई। ज्यों ही महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्र खोले, त्यों ही सारी प्रजा भस्म हो गई। इन मृत लोगों के उद्धार के लिए ही महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया था। भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने को कहा तो भगीरथ ने ‘गंगा’ की मांग की।

इस पर ब्रह्मा ने कहा- ‘राजन! तुम गंगा का पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो? परंतु क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल पाएगी? मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है। इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए।’

महाराज भगीरथ ने वैसे ही किया। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा। तब भगवान शिव ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं। इसका परिणाम यह हुआ कि गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका।

अब महाराज भगीरथ को और भी अधिक चिंता हुई। उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव की आराधना में घोर तप शुरू किया। तब कहीं भगवान शिव ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया। इस प्रकार शिवजी की जटाओं से छूट कर गंगाजी हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करके मैदान की ओर मुड़ी।

इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके बड़े भाग्यशाली हुए। उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया। युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, मुक्ति भी देती है। इसी कारण भारत तथा विदेशों तक में गंगा की महिमा गाई जाती है।

गंगा दशहरा के दिन क्या करें

  • गंगा दशहरा पर दीप दान अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
  • गंगा दशहरा के दिन गरीब और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र व धन का दान करना शुभ माना जाता है।
  • इस दिन गंगा नदी में स्नान का विशेष महत्व है। अगर गंगा नदी में स्नान करना संभव नहीं है तो घर पर ही स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है। मान्यता है कि ऐसा करने से पापों से मुक्ति मिलती है
  • गंगा दशहरा पर मां गंगा के साथ भगवान शिव की पूजा करना व उनका जलाभिषेक करना शुभमाना गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से देवों के देव महादेव प्रसन्न होते हैं।

गंगा दशहरा के दिन क्या ना करें

गंगा दशहरा
  • गंगा दशहरा पर दीप दान अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
  • गंगा दशहरा के दिन गरीब और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र व धन का दान करना शुभ माना जाता है।
  • इस दिन गंगा नदी में स्नान का विशेष महत्व है। अगर गंगा नदी में स्नान करना संभव नहीं है तो घर पर ही स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है। मान्यता है कि ऐसा करने से पापों से मुक्ति मिलती है।
  • गंगा दशहरा पर मां गंगा के साथ भगवान शिव की पूजा करना व उनका जलाभिषेक करना शुभमाना गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से देवों के देव महादेव प्रसन्न होते हैं।

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