
मंगला गौरी व्रत 2026
हिंदू धर्म में श्रावण मास का विशेष महत्व होता है, और इसी महीने में मंगला गौरी व्रत का आयोजन किया जाता है. यह व्रत विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखा जाता है. मंगला गौरी व्रत प्रत्येक मंगलवार को किया जाता है और इसका पूजन विशेष नियमों के साथ देवी गौरी (मां पार्वती) को समर्पित होता है.
मंगला गौरी व्रत का महत्व

मंगला गौरी का व्रत करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है. माना जाता है कि श्रावण मास के दौरान मंगला गौरी की पूजा करने से मनचाही इच्छा पूरी होती है और सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. साथ ही, अविवाहित कन्याओं के लिए भी यह व्रत विवाह की बाधाओं को दूर कर मनपसंद जीवनसाथी दिलाने में मददगार साबित होता है. इसके अलावा, यह व्रत संतान संबंधी समस्याओं के समाधान में भी लाभकारी माना जाता है.
मंगला गौरी व्रत 2026 मुहूर्त
श्रावण प्रारम्भ: मई 10 2026, बृहस्पतिवार
प्रथम मंगला गौरी व्रत: मई 14 2026, सोमवार
द्वितीय मंगला गौरी व्रत: मई 21 2026, सोमवार
तृतीय मंगला गौरी व्रत: मई 28 2026, सोमवार
चतुर्थ मंगला गौरी व्रत: जून 4 2026, सोमवार
श्रावण समाप्त: जून 7 2026, बृहस्पतिवार
मंगला गौरी व्रत पूजा विधि

- श्रावण मास के मंगलवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठें।
- नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ-सुथरे धुले हुए अथवा नए वस्त्र धारण कर व्रत करें।
- मां मंगला गौरी (पार्वती जी) का एक चित्र अथवा प्रतिमा लें।
- फिर निम्न मंत्र के साथ व्रत करने का संकल्प लें। (मम पुत्रापौत्रासौभाग्यवृद्धये श्रीमंगलागौरीप्रीत्यर्थं पंचवर्षपर्यन्तं मंगलागौरीव्रतमहं करिष्ये।) ’अर्थात्- मैं अपने पति, पुत्र-पौत्रों, उनकी सौभाग्य वृद्धि एवं मंगला गौरी की कृपा प्राप्ति के लिए इस व्रत को करने का संकल्प लेती हूं।
- तत्पश्चात मंगला गौरी के चित्र या प्रतिमा को एक चौकी पर सफेद फिर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित किया जाता है।
- प्रतिमा के सामने एक घी का दीपक (आटे से बनाया हुआ) जलाएं। दीपक ऐसा हो जिसमें 16 बत्तियां लगाई जा सकें।
- फिर (‘कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्। नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्.) यह मंत्र बोलते हुए माता मंगला गौरी का षोडशोपचार पूजन करें।
- माता के पूजन के पश्चात उनको (सभी वस्तुएं 16 की संख्या में होनी चाहिए) 16 मालाएं, लौंग, सुपारी, इलायची, फल, पान, लड्डू, सुहाग की सामग्री, 16 चूड़ियां तथा मिठाई अर्पण करें। इसके अलावा 5 प्रकार के सूखे मेवे, 7 प्रकार के अनाज-धान्य (जिसमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) आदि चढ़ाएं।
- पूजन के बाद मंगला गौरी की कथा सुनी जाती है।
- इस व्रत में एक ही समय अन्न ग्रहण करके पूरे दिन मां पार्वती की आराधना की जाती है।
- शिवप्रिया पार्वती को प्रसन्न करने वाला यह सरल व्रत करने वालों को अखंड सुहाग तथा पुत्र प्राप्ति का सुख मिलता है।
मंगला गौरी व्रत कथा
एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ निवास करता था। साहूकार धनवान था और उसके घर में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं थी, फिर भी वह और उसकी पत्नी संतान न होने के कारण दुखी रहते थे। संतान की कमी उन्हें हमेशा कचोटती रहती थी।
एक दिन की बात है, उस साहूकार के घर में साधु आए, साहूकार ने उनका आदर सत्कार किया और उन्हें अपनी समस्या के बारे में बताया। साधु ने साहूकार की पत्नी को सावन में मंगलवार को किए जाने वाले मंगला गौरी व्रत करने की सलाह दी। साथ में पूजा विधि के बारे में भी संपूर्ण जानकारी प्रदान की। इसके बाद साहूकार की पत्नी ने सावन माह के पहले मंगलवार से ही गौरी मंगला का पूजन व्रत रखना शुरू कर दिया। अब वह हर मंगलवार को विधि पूर्वक व्रत और पूजा पाठ करने लगी। इस प्रकार कई महीनों तक उसने वह व्रत किया। एक दिन उसकी धर्मनिष्ठा से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने भगवान शिव से साहूकार और उसकी पत्नी को संतान प्राप्ति का वरदान देने के लिए कहा।
साहूकार को उस रात स्वप्न में एक दिव्य शक्ति ने दर्शन देकर कहा कि- एक आम के पेड़ के नीचे भगवान गणेश की मूर्ति विराजमान है, तुम उस पेड़ से आम तोड़कर अपनी पत्नी को खिला देना, इससे तुम्हें संतान की प्राप्ति का सुख मिलेगा।
साहूकार ने अगले दिन सुबह उठकर अपनी पत्नी को इस सपने के बारे में बताया और वह उस आम के पेड़ को ढूंढने निकल पड़ा। काफी समय तक ढूंढने के बाद, आखिरकार साहूकार को वह आम का पेड़ मिला जहां भगवान गणेश की मूर्ति विराजमान थी। उसने आम तोड़ने के लिए उस पेड़ पर पत्थर मारना शुरू कर दिया।
पत्थर फेंकने से एक आम तो टूट कर नीचे गिर गया लेकिन गलती से एक पत्थर जाकर भगवान गणेश की प्रतिमा को लग गया। इससे भगवान गणेश क्रोधित हो गए और उन्होंने प्रकट होकर उस साहूकार को श्राप देते हुए कहा कि- हे स्वार्थी मनुष्य! तूने अपने स्वार्थ के कारण मुझे चोट पहुंचाई है, तुझे माँ पार्वती की कृपा से संतान की प्राप्ति तो होगी लेकिन उसकी मृत्यु 21 वर्ष की आयु में ही हो जाएगी।
यह सुनकर साहूकार बहुत घबरा गया और वो वापिस घर चला गया। उसने वह फल अपनी पत्नी को खिला दिया और किसी को भी इस घटना के बारे में नहीं बताया। कुछ समय पश्चात भगवान शिव और माता पार्वती के आशीर्वाद से साहूकार और उसकी पत्नी को पुत्र की प्राप्ति हुई। इससे उन दोनों के जीवन में खुशी का ठिकाना न रहा, लेकिन साथ ही साहूकार इस बात से भी चिंतित था कि उसका पुत्र अल्पायु होगा।
देखते ही देखते वह बालक 20 वर्ष हो गया और व्यापार में अपने पिता का हाथ बटाने लगा। एक दिन घर लौटते समय साहूकार पेड़ की छांव में तालाब किनारे बैठकर अपने पुत्र के साथ भोजन करने लगा। तभी वहां कमला और मंगला नामक दो कन्याएं कपड़े धोने के लिए आईं और कपड़े धोते हुए आपस में बात करने लगी। कमला ने मंगला से कहा कि, मैंने इस सावन मास में प्रत्येक मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रखने का निश्चय किया है, तुम भी माँ पार्वती को समर्पित यह व्रत अवश्य करना। इससे माता पार्वती प्रसन्न होती हैं और आप पर उनकी कृपा दृष्टि बनी रहती है। इसे करने से मनोवांछित वर और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति भी होती है। कमला की बात सुनकर मंगला भी इस व्रत को करने के लिए तैयार हो गई।
दूसरी ओर साहूकार ने दोनों कन्याओं के बीच यह पूरा संवाद सुन लिया और उसने अपने मन में यह सोचा कि यह कन्या मंगला गौरी व्रत को करती है, इससे इसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। यह मेरे पुत्र के लिए एक योग्य वधू साबित होगी। ऐसा सोचकर वह उन दोनों के विवाह का प्रस्ताव कन्या के पिता के पास लेकर गया।
साहूकार की गांव में प्रतिष्ठा और मान होने के कारण कमला के पिता अपनी पुत्री का विवाह साहूकार के लड़के से करवा देते हैं। विवाह के पश्चात् भी कमला विधिपूर्वक मंगला गौरी का व्रत रखना जारी रखती है।
उसके इस भक्ति भाव से प्रसन्न होकर माता पार्वती एक दिन उसे स्वप्न में दर्शन देती हैं और कहती हैं कि, मैं तुम्हारी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूँ, इसलिए तुम्हें अखंड सौभाग्य का वरदान देती हूँ। लेकिन तुम्हारा पति अल्पायु है, इसलिए अगले महीने मंगलवार के दिन एक सर्प तुम्हारे पति के प्राण लेने आएगा। तुम उसके लिए एक प्याले में मीठा दूध रख देना। उसके पास एक खाली मटका भी रख देना। सर्प दूध पीकर उस मटके में चला जाएगा और फिर तुम उस मटके को ऊपर से कपड़े द्वारा ढक देना।
अगले मंगलवार को कमला ने माता पार्वती की बात मानकर, एक प्याले में मीठा दूध रख दिया और पास में एक मटकी भी रख दी। सर्प ने आकर दूध पिया और मटकी में जाकर बैठ गया। कमला ने उस मटकी पर कपड़ा बांध कर उसे जंगल में रख दिया। माता पार्वती की कृपा से कमला के पति के प्राण बच गए। इस प्रकार मंगला गौरी व्रत के पुण्य फल से साहूकार का पुत्र श्राप मुक्त हो गया। जब कमला ने घर में सबको इस चमत्कार के बारे में बताया तो सभी आश्चर्यचकित रह गए। इसके बाद साहूकार और उसकी पत्नी ने अपने पुत्र और पुत्र वधु को आशीर्वाद दिया और पूरा परिवार सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा।
मंगला गौरी व्रत में क्या खाना चाहिए?

- मंगला गौरी व्रत के दिन आपको शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए
- मंगला गौरी व्रत में एक समय अनाज ग्रहण करने का नियम है
- इस व्रत में नमक का सेवन करना वर्जित माना जाता है
- जो लोग इस व्रत को नहीं कर सकते हैं वह भी इस दिन साध्विक भोजन करके इस व्रत का पालन कर सकते हैं
- इसके साथ ही आप सुबह की पूजा के बाद ही चाय वगैरा ले सकते हैं
- इस दिन आप मीठा ग्रहण कर सकते हैं और इस दिन शाम को आरती के बाद ही आप भोजन ग्रहण कर सकते हैं
मंगला गौरी व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए?

- इस बात का विशेष ध्यान रखें कि व्रत के भोजन में अनाज और दालें (जैसे गेहूं, चावल),लहसुन,प्याज तला-भुना भोजन और साधारण नमक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।