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वरलक्ष्मी व्रत 2026
त्यौहार (Festival)

वरलक्ष्मी व्रत 2026

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हिंदू धर्म में देवी लक्ष्मी को धन, ऐश्वर्य, समृद्धि और सुख-शांति की देवी माना जाता है। हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में ‘वरलक्ष्मी व्रत’ रखा जाता है। इस दिन महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा करती हैं। यह पर्व विशेष रूप से दक्षिण भारत में तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्ट्र में बहुत श्रद्धा और विश्वास से मनाया जाता है। अब यह पर्व देश के अन्य हिस्सों में भी लोकप्रिय हो चुका है।

वरलक्ष्मी पूजा का दिन धन और समृद्धि की देवी की पूजा करने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। भगवान विष्णु की पत्नी वरलक्ष्मी, देवी महालक्ष्मी के रूपों में से एक हैं। देवी वरलक्ष्मी की उत्पत्ति क्षीर सागर में हुई थी। देवी वरलक्ष्मी के रंग रूप का वर्णन दूधिया सागर के समान किया गया है और वह उसी रंग के वस्त्र धारण करती हैं।

वरलक्ष्मी व्रत का महत्व

इस व्रत को रखने से ऐसा माना जाता है कि देवी लक्ष्मी स्वयं अपने भक्तों के घर पधारती हैं और उन्हें धन, समृद्धि और सुख-शांति का आशीर्वाद देती हैं। ‘वर लक्ष्मी’ का अर्थ है  ‘वह लक्ष्मी जो वरदान देने वाली हैं।’ यह व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाएं करती हैं जिससे उनके पति और संतान स्वस्थ, दीर्घायु और समृद्ध रहें। कुंवारी कन्याएं भी अच्छा जीवनसाथी प्राप्त करने की कामना से यह व्रत रखती हैं।

वरलक्ष्मी व्रत 2026 मुहूर्त

वरलक्ष्मी व्रतम् शुक्रवार, अगस्त 28, 2026 को

सिंह लग्न पूजा मुहूर्त (प्रातः) – 05:57 ए एम से 07:29 ए एम

अवधि – 01 घण्टा 32 मिनट्स

वृश्चिक लग्न पूजा मुहूर्त (अपराह्न) – 12:05 पी एम से 02:23 पी एम

अवधि – 02 घण्टे 19 मिनट्स

कुम्भ लग्न पूजा मुहूर्त (सन्ध्या) – 06:09 पी एम से 07:37 पी एम

अवधि – 01 घण्टा 27 मिनट्स

वृषभ लग्न पूजा मुहूर्त (मध्यरात्रि) – 10:37 पी एम से 12:33 ए एम, अगस्त 29

अवधि – 01 घण्टा 56 मिनट्स

वरलक्ष्मी व्रत कथा

प्राचीन काल का वृत्तान्त है, एक समय भगवान शिव कैलाश पर्वत के शिखर पर माता पार्वती के साथ पाशों का खेल अथवा चौसर खेल रहे थे। उसी समय भगवान शिव एवं माता पार्वती के मध्य कौन विजयी हुआ, इस पर विवाद होने लगा। वे दोनों ही स्वयं को विजयी सिद्ध कर रहे थे। उन दोनों ने वहाँ उपस्थित चित्रनेमि से विजेता का नाम पूछा। चित्रनेमि भगवान शिव का भक्त था। अतः उसने मिथ्या बोल दिया कि भगवान शिव विजयी हुये हैं। चित्रनेमि के मिथ्या भाषण से देवी पार्वती को अत्यन्त क्रोध आया तथा उन्होंने उसे श्राप देते हुये कहा कि – “हे मिथ्याभाषी! तूने मेरे समक्ष मिथ्या भाषण करके, मेरा अपमान एवं अधार्मिक आचरण किया है, अतः तू कुष्ठ रोग से ग्रसित हो जा।” माता पार्वती के श्राप से चित्रनेमि अत्यन्त चकित एवं भयभीत हो गया तथा त्राहिमाम् करने लगा।

तदुपरान्त भगवान शिव ने कहा – “मैंने मिथ्या भाषण से अधिक घोर एवं विकट पाप न कहीं देखा, न सुना है। किन्तु यह चित्रनेमि अत्यन्त विद्वान है, वह कभी मिथ्या भाषण नहीं करता। अतः हे देवि! आप इस असहाय पर कृपा दृष्टि कर, इसे क्षमा करें तथा इस शरणागत का उद्धार करें।”

क्रोध शान्त होने पर माता पार्वती ने दया करते हुये चित्रनेमि को श्राप मोचन का मार्ग बताते हुये कहा – “जब सुन्दर सरोवर पर अप्सरायें पवित्र व्रत करेंगी तथा एकाग्रतापूर्वक तुझे सर्वस्व कहेंगी, उस समय तुम श्राप मुक्त हो जाओगे।” देवी पार्वती के इतना कहते ही चित्रनेमि कैलाश से नीचे आ गिरा एवं सरोवर के निकट कोढ़ी होकर जीवन व्यतीत करने लगा।

सरोवर के समीप ही उसने अप्सराओं को पूजा-अर्चना करते हुये देखा। उन विलासिनियों को प्रणाम करते हुये चित्रनेमि ने उनसे पूछा – “हे महाभागो! आप सभी किसका पूजन कर रही हैं तथा आपकी क्या मनोकामना है। कृपया मुझे कोई ऐसी साधना बतायें जिसका फल मुझे इस लोक में तथा परलोक में भी प्राप्त हो। कृपया किसी ऐसे व्रत का वर्णन करें जिसका पालन करने से मैं माता पार्वती के उस श्राप से मुक्त हो जाऊँ जो दीर्घकाल से मुझे कष्ट दे रहा है।”

उनमें से एक अप्सरा ने कहा – “यह सर्व कामनाओं की सिद्धि करने वाला एवं सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला श्री वरलक्ष्मी व्रत है। तुम भी इस सर्वोत्तम व्रत का पालन करो। जिस समय श्रावण में सूर्यदेव कर्क राशि में स्थित हों उसी समय गङ्गा, यमुना के संगम अथवा तुङ्गभद्रा नदी के तट पर उसी श्रावण मास के शुक्लपक्ष के शुक्रवार को सभी सयंमी पुरुषों को देवी महालक्ष्मी का व्रत करना चाहिये।

इस व्रत को करने हेतु माता पार्वती की चतुर्भुजी स्वर्ण प्रतिमा निर्मित करवायें तथा रंगवल्ली एवं तोरण आदि से घर को सुसज्जित करें। घर के पूर्वभाग में, विशेषतः ईशान कोण में एक प्रस्थ अर्थात् लगभग 400 ग्राम तण्डुल भूमि पर रखें। पद्म पर तीर्थ के जल से भरा एक कलश स्थापित करें। उस पर फल रखकर उसमें स्वर्ण, पीतल अथवा ताम्र धातु एवं पञ्च पल्लव डालकर वस्त्र से ढक दें। तदुपरान्त अग्न्युत्तारण आदि संस्कार सम्पन्न करने के पश्चात् प्रतिमा को विधिपूर्वक कलश पर स्थापित करके उसका पूजन करें। पूजन हेतु क्रमशः शुद्ध स्नान तथा मन्त्रों द्वारा पञ्चामृत से स्नान करवायें एवं देवीसूक्त का पाठ करते हुये अभिषेक करें। अष्टगन्ध से पूजन करके पल्लवों से पूजन करें। अश्वत्थ, अर्थात् पीपल, वट, बिल्व, आम्र, मालती तथा अनार आदि के 21 पत्र लें तथा अन्य मालती आदि के पुष्प भी माता को अर्पित करें। धूप-दीप आदि से कामनाओं की पूर्ति करने वाली देवी महालक्ष्मी का पूजन करें। विभिन्न प्रकार के व्यञ्जनों सहित पायस (खीर) एवं इक्कीस अपूप (पुआ) द्वारा देवी शिवा को नैवेद्य अर्पित करें। तदुपरान्त माता से वर प्राप्ति की याचना करें। देवी सरस्वती एवं मितभाषिणी देवी शची का ध्यान करते हुये नृत्य एवं गानादि के माध्यम से श्री लक्ष्मी जी की प्रार्थना करें।”

उपरोक्त विधि से व्रत करने के उपरान्त पाँच प्रकार के वायन, अर्थात् भोग अर्पित करके श्रद्धापूर्वक व्रत कथा का श्रवण करें। मौन रहकर पाँच आरतियों से माता का पूजन करें। इस प्रकार स्वर्ग की उन अप्सराओं ने वरलक्ष्मी व्रत के विधान का विस्तृत वर्णन किया।

व्रतधारी एक सुपारी लेकर चूर्णरहित एक पत्ते को सावधानीपूर्वक सहेजें, उसे एक वस्त्र के टुकड़े में बाँधकर प्रातःकाल उसका अवलोकन करें। यदि वे ठीक प्रकार से लाल हो जाये तो व्रत करें अन्यथा भूमि की कामना करने वाले को यह व्रत नहीं करना चाहिये। उपरोक्त विधान से ही व्रत ग्रहण करें। समस्त मनोरथों की सिद्धि करने वाले इस व्रत को अप्सराओं ने विधिपूर्वक सम्पन्न किया। पूजन सम्पन्न करने के उपरान्त अप्सराओं ने चित्रनेमि की ओर देखा तो वह धूप के धूम्र एवं घृत के दीपक के प्रभाव से कुष्ठ रहित हो गया था तथा स्वर्ण के समान कान्तिवान हो गया था।

चित्रनेमि ने उन सभी देवियों से कहा – “मैं भी यत्नपूर्वक इस सिद्धिदाता व्रत को अवश्य करूँगा।” चित्रनेमि ने दिव्य वस्त्राभूषणों से युक्त देवी की प्रतिमा निर्मित करवायी तथा पूर्वोक्त विधि-विधान से उनका पूजन किया। वेणु के पात्र, दक्षिणा, फल, अन्न तथा इक्कीस पकवानों से पाँच प्रकार के वायन देवी माँ को अर्पित किये। विप्र, यति, देवी, ब्रह्मचारी तथा सुवासिनी स्त्री को एक-एक वायन अर्पित किया। इस प्रकार पाँच वायन अर्पित करके देवी माँ के चरणों में नमन करके वह अपने निवास स्थान की ओर चल दिया।

चूर्णरहित नागवल्ली अर्थात् पान का एक पत्ता तथा सुपारी वस्त्र में बाँधकर प्रातःकाल उसका अवलोकन किया तो पाया कि वह लाल हो चुका था। उसे लाल देखकर चित्रनेमि ने भक्तिपूर्वक व्रत किया। व्रत के फलस्वरूप देवी माँ ने उसे दर्शन दिया जिससे वह श्रापमुक्त हो गया। व्रत सम्पन्न करने के उपरान्त वह भगवान शिव के समक्ष कैलाश पर्वत पर पहुँचा। कैलाश पहुँचकर चित्रनेमि ने श्रद्धापूर्वक भगवान शिव एवं देवी पार्वती को प्रणाम किया।

देवी पार्वती ने उससे कहा – “हे चित्रनेमि! तू मेरे पुत्र के समान ही पालनीय एवं रक्षणीय है। इस तथ्य को सत्य समझ।” चित्रनेमि ने कहा – “हे माता! देवी वर लक्ष्मी की कृपा से ही मुझे आपके इन पावन चरण कमलों का दर्शन एवं आश्रय प्राप्त हुआ है। आप मुझ पर सदैव कृपा करें।”

तदुपरान्त भगवान शिव ने चित्रनेमि से कहा – “इस पुण्यप्रदायक वर लक्ष्मी व्रत के प्रभाव से तुम इसी क्षण से कैलाश पर यथेष्ट भोगों को भोगकर अन्त समय में वैकुण्ठ लोक को प्राप्त करोगे। पूर्वकाल में पुत्र प्राप्ति की कामना से देवी पार्वती ने भी इस व्रत का पालन किया था। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से ही उन्हें पुत्र कार्तिकेय की प्राप्ति हुयी थी। विक्रमादित्य को इस व्रत के प्रभाव से राज्य प्राप्त हुआ था तथा नन्द को सुलक्षणा स्त्री की प्राप्ति हुयी थी। नन्द की स्त्री ने भी पुत्र प्राप्ति हेतु यह व्रत किया था जिससे उसे तीनों लोकों का पालन करने में समर्थ पुत्र की प्राप्ति हुयी थी। अतः तुम इस व्रत के फलस्वरूप नाना प्रकार के दुर्लभ सुखों को भोगोगे।”

उसी दिन से यह वरलक्ष्मी व्रत समस्त संसार में लोकप्रिय हो गया। उस दिन से जो भी प्राणी इस व्रत का पालन करता है, वह विभिन्न सुखों को भोगकर अन्त में शिवपुर को प्रस्थान करता है। हे विप्रों ! इस प्रकार मैंने वरलक्ष्मी व्रत का सम्पूर्ण वर्णन किया है। जो भी प्राणी श्रद्धापूर्वक एवं एकाग्रता से इस कथा का पाठ एवं श्रवण करेगा, वह अवश्य ही देवी वरलक्ष्मी की कृपा से शिवपुर को गमन करेगा। इस प्रकार भविष्यपुराण में वर्णित श्रावण शुक्रवार को किया जाने वाला वरलक्ष्मी व्रत सम्पूर्ण होता है।

वरलक्ष्मी व्रत पूजा सामग्री

देवी वरलक्ष्मी की मूर्ति, फूल माला, लहसुन, कुमकुम, चन्दन का पाउडर,  विभूति, शीशा, आम पत्र, कंघी, फूल, पान के लिए, पंचामृत, देही, दुग्ध, अगरबत्ती, मौली, पानी, कर्पुर, पूजा की घंटी, प्रसाद, तेल का दीपक, अक्षरत आदि

वरलक्ष्मी व्रत पूजा विधि

  • सर्वप्रथम सुबह जल्दी उठकर स्नान करके माता लक्ष्मी को नमन कीजिये और सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण कीजिये|
  • जहाँ आप पूजा करे उस जगह पर चॉक की सहायता से रंगोली बनाना चाहिए|
  • घर के सभी कोनों में गंगाजल का छिड़काव करके घर की शुद्धि करें और व्रत का संकल्प ले|
  • देवी मां की प्रतिमा को अच्छे से वस्त्र पहना कर आभूषण व कुमकुम से माता का शृंगार करें|
  • एक चौकी लीजिये उसपर लाल कपड़ा बिछाए और गणेश जी के साथ माता रानी की प्रतिमा को स्थापित कीजिये
  • इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि माँ लक्ष्मी की प्रतिमा का मुख पूर्व दिशा की ओर है| यह भक्त के लिए बहुत लाभदायक होता है|
  • पूजा वाली जगह पर थोड़े से चावल फैला दे|
  • इसके बाद एक कलश ले और उसके चारों ओर चन्दन का लेप करें|
  • कलश को आधे से ज्यादा चावल से भर दीजिये|
  • उसके पश्चात कलश में पान के पत्ते, चांदी का सिक्का और खजूर डालिए|
  • एक नारियल पर चन्दन,कुमकुम लगाकर उसे कलश के ऊपर रखिए|
  • कलश के ऊपर रखे हुए नारियल के चारों ओर आम के पत्ते लगाये|
  • एक थाली लेकर उसमे नया लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उसे चावल के ऊपर रख दे|
  • देवी माँ की प्रतिमा के सामने तेल का दीपक अवश्य लगाये|
  • गणेश जी के सामने घी का दीपक जलाएं|
  • कलश और अक्षत से माँ वरलक्ष्मी का स्वागत कीजिये|
  • देवी माँ को चंदन पाउडर, कुमकुम, इत्र, फूलों की माला, हल्दी, धूप, कपड़े और मिठाई अर्पित कीजिये|
  • देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मंत्र का जप कीजिये|
  • वरलक्ष्मी व्रत की कथा पढ़े और देवी माँ की आरती करें|
  • पूजा का समापन होने के बाद देवी माँ को भोग लगाएं और प्रसाद का वितरण कीजिये|

वरलक्ष्मी व्रत के दिन क्या करें

  • सुबह जल्दी उठें, पवित्र स्नान करें, तथा दिन के अनुष्ठान शुरू करने के लिए पारंपरिक पोशाक पहनें।
  • पूजा शुरू करने से पहले, भक्ति के साथ अनुष्ठान करने का संकल्प लें और देवी का आशीर्वाद लें।
  • देवी को नैवेद्यम के रूप में मीठा पोंगल, नारियल, केले और अन्य फल जैसे पारंपरिक व्यंजन तैयार करें और चढ़ाएं।
  • पूजा के दौरान लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनामावली (लक्ष्मी के 108 नाम) या श्री सूक्तम जैसे पवित्र भजनों का पाठ करें।
  • पूजा के समापन पर कपूर और दीपक से आरती करें, जो अंधकार और अज्ञानता को दूर करने का प्रतीक है।
  • पूजा पूरी होने तक उपवास रखें। अनुष्ठान के बाद, आप फल या हल्का भोजन ले सकते हैं।
  • परिवार और मित्रों के साथ प्रसाद (आशीर्वाद युक्त भोजन) बांटें, देवी का आशीर्वाद फैलाएं।
  • शाम के समय, विवाहित महिलाओं (सुमंगली) को आमंत्रित करें और उन्हें सद्भावना के संकेत के रूप में चने की सुंडल के साथ थम्बुलम (पान के पत्ते, सुपारी और अन्य वस्तुएं) भेंट करें।
  • घर और पूजा क्षेत्र को स्वच्छ और शांत रखें, क्योंकि माना जाता है कि देवी लक्ष्मी पवित्रता और सद्भाव वाले स्थानों पर निवास करती हैं।

वरलक्ष्मी व्रत के दिन क्या ना करें

  • वरलक्ष्मी पूजा पूरी होने से पहले कोई भी भोजन न करें।
  • इस शुभ दिन पर क्रोध, बहस या किसी भी प्रकार की नकारात्मकता से बचें, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इससे देवी का आशीर्वाद खत्म हो जाता है।
  • व्रत के दिन मांसाहारी भोजन न बनाएं और न ही खाएं।
  • अशुभ मानी जाने वाली गतिविधियों से बचें, जैसे नाखून, बाल काटना या किसी भी प्रकार की हिंसा में शामिल होना।
  • सुनिश्चित करें कि सभी अनुष्ठान पूरी लगन से किए जाएं और पूजा बिना किसी रुकावट के पूरी हो।
  • पूजा के दौरान चमकीले और शुभ रंग पहनने की प्रथा है, काले या गहरे रंग के कपड़े पहनने से बचें।
  • व्रत के दिन, पैसे उधार देने या उधार लेने जैसे वित्तीय लेनदेन से बचें।
  • सुनिश्चित करें कि आप पूजा के दौरान साफ ​​और ताजे कपड़े पहनें, क्योंकि देवी की उपस्थिति को आमंत्रित करने में स्वच्छता सर्वोपरि है।




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